मत:गरीब और गरीब,अमीर और अमीर क्यों हो रहे हैं? ये रहा कारण

Huge Treasure Of 22 Tons Of Gold And Silver In Portugal Coast Donald Trump Tariffs Billionaires List China India
22 टन सोने-चांदी का विशाल खजाना देख खुला रह गया मुंह…एक मजदूर की दो जन्म की कमाई अरबपति के सालभर के बराबर
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से टैरिफ बम फोड़ रहे हैं, उससे दुनिया भर के बाजार औंधे मुंह गिर रहे हैं। अरबपति कंगाल हो रहे हैं। मगर, कुछ ऐसे गरीब भी हैं, जिनकी किस्मत चमक रही है। कमाई और संपति जुटाने में असमानता कोई चौंकाने वाली चीज नहीं है। अमीर कैसे और अमीर बनता जाता है और गरीब कैसे और गरीब बनता जाता है, यह सवाल दुनिया के सामने सदियों से हैं। मगर, एक सवाल और भी है कि क्या अमीरों के बर्बाद होने से गरीबों के दिन फिरते हैं। आइए-इसे समझते हैं-

+×क्या किसी अमीर के बर्बाद होने पर गरीब को होता है फायदा
+×क्या होता है मैथ्यू इफेक्ट, क्या है इसके पीछे की थ्योरी
+×दुनिया में कितनी बढ़ी है गरीबी और अमीरी, जानिए

पुर्तगाल के समंदर में पानी की गहराइयों में छिपा 5500 टन का खजाना मिला है। बीते साल दिसंबर की बात है, पुर्तगाल के पुरातत्‍वविद एलेक्जेंडर मॉन्टीरो को इस खजाने का पता लगा। पुरातत्‍वविद एलेक्जेंडर मॉन्टीरो के अनुसार,  खजाने में 5500 टन से ज्‍यादा सोना-चांदी हो सकता है। यह खजाना 435 साल से समंदर में डूबा है। मॉन्टीरो ने दावा किया है कि पुर्तगाल के आसपास के समंदर में 250 जहाज डूबे पड़े हैं, जिनमें खजाना भरा पड़ा है। एक जहाज पर कम से कम 22 टन सोना और चांदी होने का अनुमान है। ऐसा ही खजाना मिलने की उम्मीद हर गरीब और मध्यम वर्ग करता है। उसे लगता है कि काश कोई ऐसा जैकपॉट लग जाए और वो जिंदगी भर बैठकर खाए। मगर, दुनिया के सबसे अमीर लोगों के पिछले कुछ दिन बेहद खराब रहे। ब्लैक मंडे से लेकर अब तक अरबपतियों के अरबों-खरबों रुपए कुछ ही घंटे में डूब गए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से नए जवाबी टैरिफ की घोषणा बाद दुनिया भर के बाजारों में भारी गिरावट आई। इसका असर अरबपतियों की संपत्ति पर भी पड़ा। ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स के अनुसार, दुनिया के 500 सबसे अमीर लोगों को कुल मिलाकर 536 बिलियन डॉलर का चूना लगा . समझते हैं कि क्या अमीरों के बर्बाद होने से गरीबों को फायदा होता है? क्या किसी मजदूर की 112 साल की कमाई किसी अरबपति की एक साल की कमाई के बराबर होती है?

90 प्रतिशत  अरबपतियों की संपत्ति घटी
ब्लूमबर्ग की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार, बाजार के गिरावट में लगभग 90% अरबपतियों की संपत्ति घटी है और इस दौरान हर एक को औसतन 3.5% का नुकसान उठाना पड़ा ।  2022 में दावोस में सम्पन्न वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की वार्षिक बैठक अरबपतियों पर केंद्रित रही। दुनिया के अरबपति वैश्विक जीडीपी के लगभग 14 प्रतिशत  हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं और इतनी तेजी से संपत्ति बनाते रहे हैं, जितनी तेजी से कोई नाभिकीय रिएक्टर काम करता है।

यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, मंदी की आशंका
2022 की मई में पांच दिनों की बैठक में दुनिया भर के अमीर उन वैश्विक संकटों से फायदा उठा रहे थे, अभिभूत थे, जिसने खाद्य और ऊर्जा संकट को जन्म दिया। यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, कोरोना महामारी का अर्थव्यवस्था को लगातार ध्वस्त करते जाना और भविष्य में मंदी की आशंका ने ऐसा आभास दिया कि अगर दुनिया के सबसे बड़े धनकुबेर ढह जाएंगे तो ट्रिकल डाउन थ्योरी के हिसाब से नीचे के लोगों तक धन नहीं पहुंचेगा और आखिरकार करोड़ों लोग गरीबी के दलदल में धंस जाएंगे।

कोरोना में बन गए 573 नए अरबपति
2022 में वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की वार्षिक बैठक से पहले गैर सरकारी संगठन ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने अपनी ‘वेल्थ जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन’ रिपोर्ट जारी की थी। इसका शीर्षक ही था- ‘प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन’। कोरोना महामारी के दौरान संपति बनाने का एनालिसिस करने पर ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने पाया कि इस धरती पर आने वाले हर संकट में कुछ लोगों को बहुत ज्यादा फायदा हुआ है। इसमें गरीबों को बुरी तरह नुकसान उठाना पड़ा है ओर पहले से ज्यादा लोग गरीबी के दलदल में धंस गए हैं।

कोरोना महामारी के 2 साल में पैदा हुए 573 नए अरबपति
ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने रिपोर्ट में कहा था-दुनिया के अरबपति अपनी तकदीर बदलने का जश्न मनाने दावोस आ रहे हैं। पहले महामारी, अब खाद्यान्न और ऊर्जा की कीमतों में भारी बढ़ोतरी उनके लिए वरदान साबित हो रही है। उन्होंने ‘प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन’ के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2020 में महामारी आने के बाद से दुनिया के अरबपतियों की संपत्ति पिछले लगभग दो सालों की संयुक्त वृद्धि की तुलना में ज्यादा बढ़ी है। उन दो सालों में 573 नए अरबपति पैदा हुए।

एनर्जी, ड्रग्स और फूड से जमकर कमाई
एनर्जी, फूड खाद्य और दवा (तीन क्षेत्रों में जहां दुनिया संकट का सामना कर रही है) कार्पोरेशनों ने अपने जीवनकाल में अधिकतम लाभ दर्ज किया है। खाद्य क्षेत्र में 62 नए अरबपति सामने आए हैं। खाद्य और ऊर्जा सेक्टर के अरबपतियों के लिए पिछले दो साल किसी वरदान की तरह रहे हैं, जिसमें उनकी संपति में हर दो दिन में एक अरब डालर की वृद्धि हुई।

2022 में गरीबी के दलदल में धंसे 26.3 करोड़ लोग
दूसरी ओर खाद्य चीजों के दाम बढ़ने, आजीविका के छिनने और कमाई का कोई जरिया न होने से इस साल यानी 2022 में 26.3 करोड़ लोग गरीब हो जाएंगे। यह उन अरबपतियों की कीमत पर होगा, जो हर 33 घंटे में पैदा हो रहे हैं। जिन तीन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संपति बनाई गई है, उनमें मजदूरों का वेतन नहीं बढ़ा है। संकट का बोझ गरीब और हाशिये के लोग ही महसूस कर रहे हैं।

शीर्ष दस अमीरों की संपति, 3.1 अरब लोगों की कुल संपति से ज्यादा
ऑक्सफेम इंटरनेशनल के मुताबिक, दुनिया के शीर्ष दस अमीरों की संपति 3.1 अरब लोगों की कुल संपति से या फिर अर्थव्यवस्था में नीचे के स्तर पर मौजूद 40 प्रतिशत  लोगों की कुल संपति से ज्यादा है। यानी गरीब आदमी जिंदगी भर काम करके भी कभी उतना नहीं कमा सकेगा, जितना अमीर एक साल में कमा लेगा। ऑक्सफेम के आकलन के हिसाब से निचले स्तर के 50 प्रतिशत लोगों में शामिल एक मजदूर को जितना कमाने में 112 साल लगेंगे, उतना कमाने में शीर्ष के एक प्रतिशत में शामिल अमीर को मात्र एक साल लगेगा।

अब विरासत में मिलती है गरीबी, 50 प्रतिशत के पास कोई संपत्ति नहीं
गरीबी अब प्रभावी रूप से विरासत में मिलने वाली चीज है। गरीब घर में जन्म लेने वाला निश्चित रूप से हमेशा को गरीब हो जाएगा। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के प्रमुख लेखक लुकास चांसल जैसे अर्थशास्त्री ने बढ़ती असमानता को इस तरह बताया है। उनके मुताबिक, दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी के पास किसी तरह की संपति नहीं है। जाहिर है, इससे गरीब पीछे ही छूटते जाएंगे।

अमीर कैसे और अमीर बनते हैं और गरीब कैसे गरीब
अमीर पहले से मौजूद यानी विरासत में मिली संपति का इस्तेमाल करते हैं। सरकारी नीतियां उन्हें उनका बिजनेस करने और मुनाफा कमाने में मदद देती हैं और यह पूरी प्रकिया संपति के समान वितरण की बजाय उसकी दौलत बढ़ाने पर केंद्रित है। इसी से यह मांग बढ़ रही है कि सरकारें लोगों को सीधे नकद या आय में सहायता दें। यह वह ‘पूंजी’ हो सकती है, जिसे लेकर गरीब आश्वस्त हो सकते हैं और अपनी समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने को रणनीति बना सकते हैं।

क्या अमीरों के डूबने से गरीबों को फायदा होता है
अमीरों के डूबने यानी आर्थिक रूप से नुकसान होने से गरीबों को सीधे तौर पर फायदा नहीं होता है। मगर, इससे समाज में आर्थिक असमानता कम हो सकती है और कुछ गरीबों को अवसर मिल सकते हैं। हालांकि, ऐसा कहना बेहद जटिल है और यह कई दूसरे फैक्टरों पर निर्भर है। अमीरों के डूबने से गरीबों को दूसरे तरीकों से फायदा पहुंच सकता है। जैसे-अमीरों के डूबने से उनकी संपत्ति और आय में कमी हो सकती है, जिससे समाज में आर्थिक असमानता कम हो सकती है। अमीरों की संपत्ति और संसाधनों का कुछ हिस्सा गरीबों तक पहुंच सकता है, जिससे उन्हें बेहतर जीवन स्तर और अवसर मिल सकते हैं।

गरीबों पर पड़ सकता है उल्टा असर
अमीरों के डूबने से आर्थिक मंदी और बेरोजगारी भी हो सकती है, जो गरीबों के लिए और भी हानिकारक हो सकती है। उन्हें नौकरियां नहीं मिलें या वो  नौकरी गंवा सकते हैं। अमीरों के डूबने से सामाजिक अशांति और विरोध भी हो सकता है, जो गरीबों के लिए भी खतरनाक हो सकता है।

मैथ्यू प्रभाव भी कहता है अमीर और अमीर…
मैथ्यू प्रभाव व्यक्तियों की अपनी लोकप्रियता, मित्रों और धन के शुरुआती स्तर के अनुपात में सामाजिक या आर्थिक सफलता अर्जित करने की प्रवृत्ति है। इसे कभी-कभी कहावत के रूप में कहा जाता है-अमीर और अमीर होते जाते हैं और गरीब और गरीब होते जाते हैं।

क्या है मैथ्यू इफेक्ट, जान लीजिए
विज्ञान के समाजशास्त्र में मैथ्यू प्रभाव रॉबर्ट के. मेर्टन और हैरियट ऐनी ज़करमैन की ओर से गढ़ा गया यह शब्द था। यह बताता था कि कैसे अन्य बातों के अलावा प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को अक्सर तुलनात्मक रूप से अज्ञात शोधकर्ता की तुलना में अधिक श्रेय मिलता है, भले ही उनका काम समान हो। इसका यह भी मतलब है कि श्रेय आमतौर पर उन शोधकर्ताओं को दिया जाएगा जो पहले से ही मशहूर हैं। उदाहरण के लिए एक पुरस्कार लगभग हमेशा एक परियोजना में शामिल सबसे वरिष्ठ शोधकर्ता को दिया जाएगा, भले ही सारा काम एक स्नातक छात्र द्वारा किया गया हो। इसे बाद में स्टीफन स्टिग्लर ने स्टिग्लर के नाम के नियम के रूप में तैयार किया। किसी भी वैज्ञानिक खोज का नाम उसके मूल खोजकर्ता के नाम पर नहीं रखा जाता है।

कौन है गरीब, सरल भाषा में जानिए
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर जेफ्री सैश कहते हैं-गरीबी का मतलब रोजमर्रा की जिंदगी के लिए जरूरी चीजों की कमी है। जैसे वह गरीब है जिसे खाना, पानी और आम चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं मिल पा रहीं हैं। हालांकि, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) और वर्ल्ड बैंक इन पैमानों पर गरीबी नापता है-अच्छी शिक्षा की उपलब्धता, टेक्नोलॉजी तक पहुंच, काम के अवसर और तरीके, कितनी मिलती है सैलरी और सामाजिक सुरक्षा।

सात पीढ़ियां लग जाती हैं गरीबी से उबरने में
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की ग्लोबल सोशल मोबिलिटी रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत के किसी गरीब परिवार को मिडिल क्लास में आने में सात पीढ़ियों का समय लग जाता है। ऐसे में 23 करोड़ लोगों को कोरोना ने गरीबी रेखा से नीचे ढकेल दिया है, उनको वापस आने में कई साल लग सकते हैं। अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच कोरोना महामारी के दौर के एक साल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं। आखिरी बार जब गरीबी पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट आई थी, तब 10 सालों में केवल 27 करोड़ 30 लाख लोग गरीबी से बाहर निकल पाए थे। यानी कोरोना के एक साल ने गरीबी के मामले में देश को करीब 8 से 9 साल पीछे ढकेल दिया है।

दुनिया में 110 करोड़ लोग घोर गरीबी में जी रहे
बीते साल संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई कि दुनिया में करीब 110 करोड़ लोग घोर गरीबी में जिंदगी बसर कर रहे हैं और इनमें से भी आधे नाबालिग हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की आक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) की ओर से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 110 करोड़ घोर गरीबों में से 40 प्रतिशत लोग युद्ध, नाजुक स्थिति या अशांत देशों में रह रहे हैं।

भारत में 23.4 करोड़ लोग गरीबी में रह रहे
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 23.4 करोड़ लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, जिसे मध्यम मानव विकास सूचकांक में रखा गया है। भारत उन पांच देशों में है जहां पर घोर गरीबी में जीवनयापन करने वालों की संख्या सबसे अधिक है।

  • अमीर और अमीर हो रहा और गरीब और ज्यादा गरीब’…इस ट्रेंड की पीछे की कहानी समझिए
    नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस यानी NSO के सर्वे के अनुसार देश के टॉप 10 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास औसतन 1.5 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जबकि भारत के शहरों में निचले वर्ग के परिवारों के पास औसतन सिर्फ 2,000 रुपये की संपत्ति है.अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई
    रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
    कैसे दूर होगी ये समस्या, एक्सपर्ट ने बताया
    भारत देश को लेकर एक बात काफी सामान्य हो गई है. यहां पर अमीर और ज्यादा अमीर हो जाता है और गरीब और ज्यादा गरीब होता दिख जाता है. मतलब विकास तो होता है, लेकिन सिर्फ अमीरों का. गरीबों को तो सिर्फ दो वक्त की रोटी मिल जाए, वो भी काफी रहता है. लेकिन फिर भी ये सवाल तो आता ही है कि जब गरीबी दूर करने को सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, फिर भी अमीर-गरीब के बीच ये खाई क्यों नहीं कम होती?
  • अमीर-गरीब के बीच की खाई आंकड़ों में फंसी

नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस यानी NSO के सर्वे के मुताबिक देश के टॉप 10 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास औसतन 1.5 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जबकि भारत के शहरों में निचले वर्ग के परिवारों के पास औसतन सिर्फ केवल 2,000 रुपये की संपत्ति है. तो सवाल ये कि जब अमीर और गरीब दोनों के वोट से गांव के प्रधान से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक चुने जाते हैं. तो फिर अमीर और अमीर और गरीब बेहद गरीब क्यों होता जाता है. एक्सपर्ट इसके लिए बेरोजगारी को बड़ी वजह मानते हैं.

SBI की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संकट में 2018 के मुकाबले 2021 में सामान्य जन का ऋण दोगुना हो चुका. अमीरों और गरीबों की संपत्ति में बढते अंतर पर सरकारी सर्वे कहता है कि भारत की 10 प्रतिशत सबसे अमीर आबादी देश की आधी से भी ज्यादा संपत्ति की मालिक है. वहीं 50 प्रतिशत आबादी के पास देश की 10 प्रतिशत से भी कम संपत्ति है. इसका बड़ा कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सरकारी नीतियों का ढीलापन है. जहां लोग गांव छोड़कर मजदूरी करने शहर आ असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं.

गडकरी ने बता दी बड़ी बात

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इसे स्वीकार करते हैं. उनकी नजरों में गांव से शहरों की तरफ पलायन भी इसी से होता है. उनका कहना है कि लोग शहरों में क्यों आ रहे हैं, वहां की झुग्गी झोपड़ी में क्यों रह रहे हैं, क्या खुशी से आ रहे हैं, गांवों में जाने को रोड नहीं, पीने को पानी नहीं, स्कूल की हालत ऐसी है कि अगर स्कूल की बिल्डिंग है तो टीचर नहीं, टीचर है तो बिल्डिंग नहीं, दोनों हैं तो विद्यार्थी नहीं, तीनों हैं तो पढ़ाई नहीं.

ऐसा ही चलता रहा, भविष्य कैसा होगा?

अब अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई पर कई एक्सपर्ट चिंता जताते हैं. आर्थिक मामलों के जानकार शरद कोहली के मुताबिक लंबे समय में समाज में अपराध और ज्यादा बढ़ सकता है.सोशल अनरेस्ट भी दिख सकता है. ये सब इसलिए होगा क्योंकि अमीर जरूर हर सुविधा का  आनंद लेगा लेकिन गरीब अपनी परेशानियों  से और ज्यादा दबता चला जाएगा और फिर  अपराध  का रास्ता अपना लेगा.

पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया की हालत और खराब
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अलावा अन्य चार देश पाकिस्तान (9.3 करोड़), इथियोपिया (8.6 करोड़), नाइजीरिया (7.4 करोड़) और कांगो (6.6 करोड़) हैं, जिन्हें निम्न मानव विकास सूचकांक में रखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया में घोर गरीबी में जीवन यापन करने वाले 1.1 अरब लोगों में करीब आधे (48.1 प्रतिशत) इन पांच देशों में रहते हैं।

2030 तक कितने लोग घोर गरीबी में रहेंगे
वर्ल्ड बैंक के एक अनुमान के अनुसार, 2030 में 622 मिलियन लोग (वैश्विक आबादी का 7.3 प्रतिशत) अत्यधिक गरीबी में रहेंगे। इसका मतलब है कि अनुमान है कि 2024 और 2030 के बीच लगभग 69 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकलेंगे, जबकि 2013 और 2019 के बीच लगभग 150 मिलियन लोग ऐसा करेंगे। इसके अलावा, 3.4 बिलियन लोग (दुनिया की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत) संभवतः प्रति दिन $6.85 से कम पर जीवन यापन करेंगे।

धुआं और मौसमी बदलाव भी घोंट रहा गरीबों का दम
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, हर पांच में से एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में चरम मौसम की घटनाओं के साथ जीता है। इसका मतलब है कि उन्हें अपनी आजीविका में गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जिससे गरीबी कम करने के प्रयासों में काफी बाधा आ सकती है। जब तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आती, जलवायु संबंधी खतरों के प्रति लोगों का जोखिम बढ़ने की आशंका है.

गरीबी से उबरने का रास्ता क्या है
यदि विकास में तेजी नहीं आती और यह अधिक समावेशी नहीं बनता, तो अत्यधिक गरीबी को समाप्त करने में दशकों लग जाएंगे और लोगों को 6.85 डॉलर प्रतिदिन की गरीबी रेखा से ऊपर लाने में एक सदी से अधिक समय लग जाएगा। अधिक और बेहतर नौकरियों का सृजन तथा शिक्षा,बुनियादी ढांचे और बुनियादी सेवाओं में निवेश करके श्रम आय में सुधार करना महत्वपूर्ण होगा, ताकि गरीबी में रहने वाले लोगों को अधिक लाभ मिल सके और वे विकास में योगदान दे सकें, तथा बढ़ते झटकों के बीच उनका लचीलापन बढ़ाया जा सके।

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