कुलदीप सिंह सेंगर को सुको से झटका,जमानत पर हाई कोर्ट फैसला स्थगित
Kuldeep Singh Sengar Supreme Court Judgement Unnao Rape Case Cbi Plea
कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से झटका,जमानत पर हाई कोर्ट के फैसले पर स्थगनादेश
कुलदीप सिंह सेंगर की उन्नाव रेप मामले में आजीवन कारावास की सजा निलंबित करने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में विचार के लिए महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न उत्पन्न होते हैं। चार सप्ताह में काउंटर एफिडेविट दाखिल किया जाए।
नई दिल्ली 29 दिसंबर 2025 : सुप्रीम कोर्ट ने CBI की याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। कुलदीप सिंह सेंगर की उन्नाव रेप मामले में आजीवन कारावास की सजा निलंबित करने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई की।
चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रारंभिक रूप से, हम इस आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में हैं। सामान्यतः सिद्धांत यह होता है कि यदि कोई व्यक्ति बाहर आ चुका हो,तो अदालत उसकी स्वतंत्रता वापस नहीं लेती। लेकिन यहां स्थिति विशेष है,क्योंकि वह किसी अन्य मामले में पहले से ही जेल में बंद है। सुप्रीम कोर्ट ने CBI की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कुलदीप सिंह सेंगर की ओर से पेश अधिवक्ताओं को सुना।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें यह प्रतीत होता है कि इस मामले में कई महत्त्वपूर्ण विधिक सवाल उठे हैं। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि जब किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को छोड़ा गया हो, तो इस न्यायालय से संबंधित व्यक्ति को सुने बिना ऐसे आदेशों पर रोक नहीं लगाई जाती। लेकिन इस मामले के विशिष्ट तथ्य देखते हुए कि जहां दोषी एक अलग अपराध में भी सजा काट रहा है हम दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश के संचालन पर रोक लगाते हैं।
हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सेंगर की आजीवन कारावास की सजा 23 दिसंबर को निलंबित कर दी थी। उन्नाव के 2017 के दुष्कर्म मामले की पीड़िता,उसके परिवार और कार्यकर्ताओं ने भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की आजीवन कारावास की सजा निलंबित किए जाने का लगातार विरोध कर रहा था।
Yogita Bhayana Who Supported The Unnao Rape Victim Made Several Revelations About Kuldeep Singh Sengar
उसने रोते-रोते फोन कर कहा कि… उन्नाव रेप केस की पीड़िता का साथ देने वाली योगिता भयाना के कई अनावरण
उन्नाव रेप केस की पीड़िता को न्याय दिलाने वाली योगिता भयानाने कहा कि सच की जीत हुई है, लेकिन असली जीत तब होगी जब हर महिला को न्याय मिलेगा। भयाना ने न्याय व्यवस्था में कमियों और आरोपियों को बचाने की कोशिशों पर भी प्रकाश डाला।
उन्नाव रेप केस की पीड़िता को न्याय दिलाने को आवाज उठाने वाली योगिता भयाना ने आज पीड़िता से जुड़े एक-एक सवाल का जवाब दिया। उन्होंने बताया कि कैसे सिस्टम पूरी तरह से आरोपितों को बचाने में लगा रहता है। न्याय व्यवस्था में बहुत कमियां है, निर्भया केस के बाद बहुत चीजें ठीक करने की कोशिश की गई थी, लेकिन वो कागजों पर ही रह गई।
उन्नाव रेप पीड़िता केस में आवाज उठाने वाली योगिता भयाना
आप उन्नाव रेप केस की पीड़िता के साथ लगातार एकजुटता दिखाती रही हैं, सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को कैसे देखती हैं ?
सच की जीत हुई है। लेकिन सच ये भी है कि हर केस में इतना दबाव और मीडिया का समर्थन नहीं मिलता लेकिन इसके बावजूद हर महिला न्याय की हकदार है। इस जीत को असल जीत तब तक नहीं माना जा सकता जब तक देश की हर महिला को न्याय नहीं मिल जाता।
बीते दिनों हमने ऐसे कई केस देखे हैं, जहां न्यायालयों में न्याय की लड़ाई लड़ रही बच्चियों को जीत नहीं मिली। लेकिन हां इस जीत से एक बात तो हुई है कि दूसरे पीड़ितों में भी न्याय की उम्मीद जगी है। कन्विक्शन रेट कम है, अपराध और अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है।
न्याय प्रणाली से हतोत्साहित होकर महिलाओं का विश्वास टूट रहा था । मनोबल टूट रहा था। ऐसे सिस्टम में जहां न्याय प्रणाली उनका साथ नहीं देती, इस आदेश ने न्याय की उम्मीद छोड़ देने वाली महिलाओं में नई हिम्मत आएगी है कि अगर इस सर्वाइवर को न्याय मिल सकता है तो हमें क्यों नहीं ?
देश में विक्टिम प्रोटेक्शन को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, इस उस लिहाज से ये केस क्या एक उदाहरण की तरह सामने आया है ? पीड़िता की बहन सुरक्षा की चिंता जता चुकी है।
इस केस में हमने खुद देखा है कि किस तरह से पीड़िता के परिवार के सदस्यों का मर्डर कर दिया गया। ऐसे केसों में विक्टिम खुद एक गवाह होती है और उसकी सुरक्षा सर्वोपरि होती है । इस पीड़िता को भले ही सुरक्षा दी गई, लेकिन इसके परिवार की सुरक्षा हटा ली गई थी।
इस विक्टिम को तो सुरक्षा मिली भी, लेकिन सबको कहां मिलती है, ऐसे में ये जरूरी है कि ऐसा माहौल बने कि इन सब चीजों की जरूरत ही ना पड़े। क्योंकि इस तरह की स्थिति का ही फायदा ही आरोपी पक्ष उठा लेता है। उन्हें लगता है कि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
हमारे देश में विटनेस प्रोटेक्शन नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं है। डर इसी वजह से बहुत सारी महिलाएं अपनी न्याय की लड़ाई छोड़ देती हैं या शुरू भी नहीं करती।
बिल्किस बानो केस हो या फिर उन्नाव केस, दोषियों के समर्थन में नारे और उनके स्वागत करने जैसी घटनाएं न्याय की दिशा में किस तरह की रुकावट पैदा करती हैं ?
न्याय की लड़ाई बहुत ज्यादा मुश्किल है। आरोपियों का फूल मालाओं और लड्डुओं से स्वागत होता है। एक तो न्यायिक प्रक्रिया में खुद ही बहुत संघर्ष है, ऐसे में जब विक्टिम आरोपियों के प्रति व्यवहार देखती हैं, तो उनका मनोबल बहुत टूट जाता है। ऐसे में कोर्ट सुनिश्चित करे कि ऐसा ना हो। गरमीत राम रहीम और आसाराम के बाहर आने पर उनके भक्तों की ओर से समर्थन में जुलूस निकाला जाता है। क्या सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर स्यू मोटो नहीं ले सकता। क्योंकि इससे बहुत गलत मैसेज जाता है, पीड़िताओं का मनोबल टूटता है।
समाज, कानून और पुलिस…इन सब व्यवस्थाओं में ऐसे केसों को लेकर किस तरह की सरंचनात्मक कमियां हैं ?
न्याय व्यवस्था में बहुत कमियां है, निर्भया केस के बाद बहुत चीजें ठीक किए जाने की कोशिश की गई थी, लेकिन वो कागजों पर ही रह गई। किसी ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। सरकार और सिस्टम के पास कोई ब्लूप्रिंट ही नहीं है
पूरा सिस्टम महिलाओं को सपोर्ट करने की बजाय आरोपितों को बचाने की ही कोशिश में लगा रहता है। पीड़िताओं को पता ही नहीं चलता कि उनके केस में चल क्या रहा है।
छोटा सा उदाहरण लें, इस केस में विक्टिम ने मुझसे कहा कि दीदी अगर मुझे अंग्रेजी आती तो मैं अपना केस खुद ही लड़ लेती, वकीलों की जरूरत ही नहीं थी। हाईकोर्टमें जब इससे जुड़ा ऑर्डर आया तो वो नहीं जानती थी कि इस केस में हुआ क्या है ? उसने रोते-रोते फोन करके कहा कि कुछ गलत हुआ है।
किसी भी सुनवाई में उसे कभी समझाया ही नहीं जाता था कि सुनवाई के दौरान क्या हुआ है ? भाषा बड़ी बाधा है। पब्लिक प्रोसिक्यूटर (सरकारी वकील) और पीड़ित के बीच कम्युनिकेशन को लेकर बहुत गैप है। विक्टिम के साथ किस तरह का बर्ताव हो, इसे लेकर
इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर की ट्रेनिंग भी सही नहीं है। वकील समेत पूरी न्यायिक व्यवस्था में पीड़ित को लेकर संवेदनशीलता नहीं है। प्रक्रियागत कमियां बहुत ज्यादा हैं। कानून को छोड़कर बाकी सारी चीजें खराब हैं।
ऑनलाइन स्पेस में एक नरेटिव ये भी था कि इस मसले का राजनीतिक लाभ लिए जाने की कोशिश की जा रही है,ऐसे आरोपों पर आप क्या कहेंगी ?
गैर राजनीतिक कुछ नहीं होता। हम सब वोट देते हैं। एक सरकार को चुनते हैं। अगर राजनेता इसमें दखल नहीं देते हैं तो वो गलत है। हालांकि इसका राजनीतिक फायदा नहीं लेना चाहिए। राजनीति में मुद्दों की पॉलिटिक्स होनी ही चाहिए। अगर विपक्ष और राजनीति
अपना काम करे तो हमारे एक्टिविज्म की जरूरत ही ना पड़े। हम तो केवल गैप भर रहे हैं। इस अवधारणा से बाहर निकलना होगा कि पॉलिटिक्स नहीं होनी चाहिए , मु्द्दों पर पॉलिटिक्स क्यों ना हो

