मिर्जापुर 2 का बहिष्कार बदला बायकाट अली फजल में
साभार ट्वि्टर
मिर्जापुर2 के बाद अब अली फजल के बायकॉट ने पकड़ा जोर, सीएए विरोध में कहा था- मजा आ रहा है
मिर्जापुर सीजन 2 के बाद अब अली फजल का बायकॉट (साभार: deccanchronicle)
बीते एक-दो दिनों से ट्विटर पर एक हैशटैग खूब चर्चा में रहा, #BoycottMirzapur। इस पर वेब सीरीज़ (मिर्ज़ापुर) में गुड्डू भैया का किरदार निभाने वाले अली फज़ल ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि वह किसी ट्रेंड की दया पर नहीं टिके हैं। वह इस तरह के किसी ट्रेंड को नहीं मानते हैं। उनकी इस प्रतिक्रिया का नतीजा यह निकला कि ट्विटर पर एक और हैशटैग ट्रेंड करने लगा #बॉयकाट_अली_फजल। यानी वेब सीरीज़ के विरोध से शुरू हुआ ट्रेंड सीधे उनके विरोध तक आ पहुँचा।
इस पूरे विवाद की शुरुआत साल 2019 के दिसंबर महीने से हुई थी जब देश में सीएए और एनआरसी का विरोध हो रहा था। मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ के को प्रोड्यूसर फरहान अख्तर ने भी विरोध किया था। इस विरोध को मद्देनज़र रखते हुए ट्विटर पर मिर्ज़ापुर 2 का बहिष्कार शुरू हुआ।
इस बहिष्कार के चर्चा में आने के बाद अली फज़ल ने अपने बयान में कहा, “हमें तय करना होगा कि हम किस तरफ खड़े हैं? क्या हम किसी ट्रेंड की दया पर टिके हुए हैं? नहीं, मैं कला को उस नज़रिए से नहीं देखता हूँ। हम केवल एक एप की दया पर निर्भर हैं, जिससे तय होता है कि कौन हमारा शो देखेगा और कौन नहीं। इसका मतलब यह बहुत नीचे गिर चुका है। मेरा मतलब है कि अगर आप ट्रेंड की बात करते हैं तो मैंने कभी किसानों के लिए कोई ट्रेंड नहीं देखा जो पूरे देश में आंदोलन कर रहे हैं। हालाँकि मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि ऐसी चीज़ें ज़रूरी नहीं है,लेकिन कोरोना की ख़बरें अब किसी को ज़रूरी नहीं लग रही हैं। अब इस तरह की ख़बरें ट्रेंड में नहीं हैं,जबकि मेरे हिसाब से यह एक बड़ी समस्या है,जिसका हम फ़िलहाल सामना कर रहे हैं। मुझे आशा है कि आम लोग इस तरह की चीज़ों से ऊपर उठेंगे।”
लोगों ने उनके इस बयान के एक हिस्से का जम कर विरोध किया, वह था ‘हम ट्रेंड की दया पर नहीं जीते हैं।’ तमाम सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस पर प्रतिक्रिया दी।
कुछ लोगों ने लिखा, “अब मैं मिर्ज़ापुर 2 मुफ्त में भी नहीं देखूँगा।”
वहीं एक और ट्विटर यूज़र ने लिखा, “अब कोई भी फिल्म या वेब सीरीज़ देश के लिए वफ़ादार नहीं रह गई है।”
देश में जब सीएए और एनआरसी का विरोध हो रहा था तब फरहान अख्तर समेत बॉलीवुड के कई कलाकारों ने विरोध किया था। इसमें अली फज़ल का नाम भी शामिल था। उन्होंने 20 दिसंबर 2019 को किए गए एक ट्वीट में लिखा था, “शुरू मजबूरी में किए थे, अब मज़ा आ रहा है।” बाद में अली फज़ल ने अपना यह ट्वीट हटा भी लिया था।
विरोध करने के दौरान फरहान अख्तर एक बार बुरी तरह ट्रोल भी हो चुके हैं। प्रदर्शन में शामिल होने के दौरान उन्होंने कहा कि विरोध करते हुए आवाज़ उठाना मेरा लोकतांत्रिक अधिकार है। उनके इस जवाब पर एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि इस क़ानून को लेकर उनकी क्या समस्या है या उनके अनुसार इस क़ानून में क्या बदलाव किए जाने चाहिए? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा,“मैं अभी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहता हूँ,सब कर रहे हैं तो कोई वजह ज़रूर होगी।”
हाल ही में मिर्ज़ापुर 2 का ट्रेलर आया था, जिसके बाद से इसकी चर्चा जारी है। इसके अलावा वेब सीरीज़ शुरुआत से ही विवादों में घिरी हुई है। आगामी 23 अक्टूबर को मिर्ज़ापुर 2 अमेज़न प्राइम पर स्ट्रीम होगी। इस वेब सीरीज़ में पंकज त्रिपाठी, रसिका दुग्गल, विजय वर्मा, कुलभूषण खरबंदा, श्वेता त्रिपाठी, राजेश तैलंग, हर्षिता गौड़, लिलीपुट और मेघना मलिक समेत अन्य कलाकार नज़र आएँगे।
मिर्जापुर: हिन्दू-घृणा से भरा पैकेज लेकर आया है 53 लाशों का जश्न मनाने वाला विषैला गैंग
मिर्जापुर भारत के गाँव-देहातों में अनेकों खामियों के बावजूद मजबूत संस्कृति को भद्दे प्रकाश में दिखाने का एक मनोरंजनात्मक ज़हर है।
जी हाँ आपने एकदम सही पढ़ा, कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन और फिर अब ‘अनलॉक’ होते-होते CAA की आड़ में दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों में मार-काट के मुजाहिरे का जश्न मनाने वाले गज़वा-ए-हिन्द का जमावड़ा हिन्दू-घृणा और मनोरंजन के बरक्स एक बड़े भारत-विरोधी बाज़ार में अपनी दुकानें फिर से गर्मा चुका है। और इस बार पहली छोटी दुकान नेटफ्लिक्स प्रायोजित ‘सीरियस मैन’ के बाद अमेज़न प्राइम की ‘मिर्ज़ापुर 2’ (Mirzapur 2) नाम से सजी है।
मिर्ज़ापुर क्या है?
मिर्जापुर (Mirzapur 2) भारत के गाँव-देहातों में अनेकों खामियों के बावजूद मजबूत संस्कृति को भद्दे प्रकाश में दिखाने का एक मनोरंजनात्मक ज़हर है। इसका पहला सीज़न भी आप लोगों ने सब्सक्रिप्शन लेकर या बिना सब्सक्रिप्शन के दीगर ज़रियों से देखा ही होगा।
ग़र आप इसको महज पंकज त्रिपाठी के अभिनय तक सीमित कर के देखते हैं तो भुलावे में हैं। मनोरंजन की नज़र से इसके पहले सीज़न में साफ़तौर पर दिखता है कि किस तरह अखंडानंद त्रिपाठी और रति शंकर शुक्ला नाम के दो हिन्दू-ब्राह्मणों के बीच हर क़िस्म की गुंडागर्दी और गन्दगी परोसी गई है।
यह एक सामान्य उदाहरण है जिसे दर्शक को जानना चाहिए। जिहाद-परस्त व जिहाद-समर्थ इसी तर्ज पर नए दौर में तलवार, पेट्रोल बम के साथ साथ मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक जिहाद पर बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहे हैं।
मिर्जापुर दिल्ली दंगों में दिलबर नेगी, अंकित शर्मा व अन्य 5 दर्जन लोगों की मृत्यु का जश्न मनाने वालों का एक विषैला समूह है, जिसमें निर्माता फरहान अख्तर से लेकर कथित अभिनेता अली फ़ज़ल, विक्रांत मेसी सभी हिन्दू-घृणा की अफ़ीम को हर पल खाकर जीते हैं। यह वही अली फ़ज़ल हैं, जिन्हें CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने के नाम पर आगज़नी में देखने में बहुत मज़ा आ रहा था। वेब सीरीज़ में पैसा लगाने वाले फरहान अख्तर से तो सबका तार्रुफ़ है ही।
तो क्या हुआ हम तो पंकज त्रिपाठी के लिए देखने जाएँगे?
आपके जेहन में ऐसा सवाल आता है तो इसका यह पक्ष जान लीजिए। टारगेट ऑडिएंस अधिकतर हिन्दू युवा ही हैं जिनको लुभाने के लिए मिर्जापुर नाम के इस भारतीयता व हिन्दू-विरोधी प्रचार में पंकज त्रिपाठी को रखने के तीन कारण हैं :
पंकज त्रिपाठी अतीत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अभाविप (ABVP) में सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं जैसा वे खुद कुछ साक्षात्कार में बताते हैं। पंकज त्रिपाठी मसान, वासेपुर जैसी फिल्मों के काऱण युवाओं में लोकप्रिय हैं।
बॉलीवुड में फैले भाई-भतीजावाद के बीच पंकज त्रिपाठी एक आउटसाइडर हैं और ठीक-ठाक कलाकार हैं, जो पूर्व में इसी प्रकार की कहानी ‘वासेपुर’ में भी सुल्तान का किरदार निभा चुके हैं। 8 सालों के वक्फे में फ़र्क महज़ वासेपुर से मिर्जापुर तक सुल्तान का अखंडानंद ‘त्रिपाठी’ होने का है। प्रतिभावान आउटसाइडर को किसी बड़े दुष्प्रचार का हिस्सा बनाकर ढोल-नगाड़ों के साथ दुष्प्रचार करने का यह नया फॉर्मूला है, जो आने वाले दिनों में और ज्यादा देखने को मिलेगा। हाल की ही गुंजन सक्सेना पर बनी फिल्मइसी बात का एक उदाहरण है।
पंकज त्रिपाठी, राजेश तैलंग करेक्टर आर्टिस्ट हैं, जिनकी अभिनय कला अली फ़ज़ल और विक्रांत मेसी से कहीं बेहतर है, इसलिए यह वेब सीरीज़ एक भ्रम को टार्गेटेड ऑडिऐंस में कस्बाई बोलचाल इत्यादि जैसे अनेकों तत्व को अपने हिसाब से बोने का काम बखूबी करती है।
वेब सीरीज के माध्यम से हिन्दू-घृणा परोसना और उसे स्थापित करना अब वामपंथी बुद्धिपिशाचों का नया जरिया बन गया है। इसके इन्हें दो तरह के फायदे भी होते हैं – पहला तो जगजाहिर हिन्दू-घृणा, हिंदुत्व के प्रतीकों को अपमानित कर उनसे भयानक छेड़खानी कर नए नैरेटिव को टीवी के माध्यम से स्थापित करना और दूसरा यह कि विवादों के जरिए आसानी से चर्चा का विषय बन जाना। मिर्जापुर से पहले भी ‘पाताल लोक‘ और ‘लैला‘ इसी हिन्दू-घृणा से भरी खुराफात का ही निचोड़ मात्र थे।