पंजाब, हरियाणा में भी एमएसपी का पैसा सीधे किसानों के खातों में, भड़के आढ़ती
गेहूं खरीद: पंजाब-हरियाणा में एमएसपी का पैसा सीधे किसानों के खातों में भेजने से किसका फायदा, किसका नुकसान?
गेहूं खरीद की तैयारियों के बीच भारतीय खाद्य निगम ने साफ कर दिया है कि पंजाब और हरियाणा में भी गेहूं की एमएसपी का पूरा पैसा सीधे किसानों के खातों में सरकार द्वारा भेजा जाएगा। इस व्यवस्था को पंजाब पिछले कई वर्षों से अपने यहां लागू नहीं कर रहा था, आढ़तिया संघ ने नई व्वयस्था के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है। जानिए आखिर ई-मोड का विरोध क्या हैं और इस व्यवस्था से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान?
देश के कई राज्यों में एक अप्रैल से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर गेहूं की सरकारी खरीद भी शुरू हो जाएगी, बाकी राज्यों की तरफ इस बार पंजाब और हरियाणा में भी पूरी तरह किसानों को सीधे सरकार (एफसीआई) पैसा भेजेगी। भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने इस संबंध में पंजाब के खाद्य विभाग एवं आपूर्ति विभाग को निर्देश पत्र जारी कर दिया है। पंजाब के आढ़ती इसे अव्यवहारिक बताते हुए विरोध कर रहे हैं। उन्होंने इसे कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने 18 फरवरी को इस संबंध में बयान जानकारी दी थी। मंत्रालय में हुए सुधारों और बजट को लेकर एक प्रेजेंटेशन के दौरान ये बताया गया था कि इस वर्ष से पंजाब हरियाणा को भी एमएसपी पर खरीद का भुगतान सीधे किसानों के खातों में करना होगा। सरकार ने तर्क दिया कि इससे भुगतान व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। लेकिन पंजाब और हरियाणा के मंडियों के कमीशन एजेंट आढ़तियों का कहना है कि ये उन्हें मार्केट से बाहर करने की ‘चाल’ है। पंजाब में कुछ इलाकों में किसानों ने भी इसका विरोध कर रहे हैं।
पंजाब एपीएमसी एक्ट के अनुसार एमएसपी का पैसा आढ़तिया भी किसानों के बैंक खातों में भेजते हैं। नई व्यवस्था पंजाब के लिए अव्यवहारिक है। यहां 30 फीसदी से ज्यादा जमीन बटाई और ठेके पर है, ऐसे किसान जमीन रिकॉर्ड कहां से लाएंगे। दूसरा एपीएमसी राज्य का सब्जेक्ट है। केंद्र सरकार को कंडीशन लगाने का अधिकार नहीं। अगर वो जिद करेगी तो हम इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगे। – रविंदर सिंह चीमा, अध्यक्ष, पंजाब, आढ़तिया संघ
पंजाब आढ़तिया संघ के अध्यक्ष रविंदर सिंह चीमा गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “पंजाब के एपीएमएसी एक्ट के हिसाब से आढ़तिया आज भी किसानों को पैसा ऑनलाइन ही (आरटीजीएस) ट्रांसफर करते हैं। इस लेनदेन की सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) के जरिए निगरानी होती है। दूसरा सरकार कह रही है कि खरीद के लिए जमीन के रिकॉर्ड (खसरा-खतौनी) होना जरुरी है। लेकिन पंजाब में 30 फीसदी खेती बटाईदार या ठेके पर होती है। वो जमीन के कागजात कहां से लाएंगे? पंजाब के लिए ये नियम व्यवहारिक नहीं हैं।”
नए सिस्टम को लेकर रविंदर सिंह चीमा आगे कहते हैं, “फसलों की खरीद कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) के जरिए जो राज्य सरकार के कानून के मुताबिक होती है। हर राज्य का अपना एपीएमसी एक्ट है। केंद्र सरकार को कोई कंडीशन लगाने का हक नहीं है। केंद्र सरकार अगर अपनी जिद पर रहेगी तो हम इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएंगे। जब पैसा हम (आढ़तिया) भी ऑनलाइन भेजते हैं तो नए सिस्टम की क्या जरूरत है?”
सरकार का कहना है ये कवायद सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिए है, साथ बाहर से आने वाले गेहूं को रोकने के लिए हैं। धान के सीजन में पंजाब में यूपी और बिहार समेत कई राज्यों से आए कई ट्रक धान पकड़ा गया था जो वहां औने-पौने दाम में खरीदकर पंजाब की मंडियों में एमएसपी पर बेचा जा रहा था।
केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इस वर्ष (विपणन वर्ष 2021-22) 427.363 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं खरीद का अनुमान लगाया है। इसमें से 130 एलएमटी पंजाब से और 80 एलएमटी हरियाणा से अनुमानित है। पंजाब को गेहूं की एमएसपी के एवज में किसानों के खातों में करीब 24,000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। देश में वर्ष की अनुमानित खरीद पिछले वर्ष (खरीद वर्ष 2020-21) के दौरान हुई 389.93 लाख मीट्रिक टन से 9.56 प्रतिशत अधिक है। हरियाणा में झज्जर जिले के किसान शमशेर सिंह कहते हैं, “किसानों के खातों में सीधे पैसे आएंगे, ये अच्छी बात है। गेहूं का अनुमानित आंकड़ा ज्यादा है, सरकार कैसे भी करके कि इस वर्ष एमएसपी पर ज्यादा खरीद करेगी लेकिन बाद में वही होगा जो सरकार ने सोच रखा होगा।”
देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी को लेकर भुगतान की कई राज्यों में अलग-अलग व्यवस्थाएं रही हैं। लेकिन ज्यादातर राज्यों में किसानों को एमएसपी पर खरीद का पैसा सीधे खातों में भुगतान होता है। लेकिन पंजाब में भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकार आढ़तियों को भुगतान करते हैं। आढ़तिया किसानों को पैसा ट्रांसफर करते हैं।
आढ़तिया संघ के मुताबिक पंजाब के एपीएमसी एक्ट में ये प्रावधान है कि किसान चाहे तो आढ़तिया या फिर एजेंसी से सीधा पैसा ले, लेकिन पंजाब में एजेंसी से किसान लेता नहीं। सरकार का पैसा देर सवेर आता है जबकि किसान को तुरंत पैसे की जरुरत होती है जो आढ़तिया किसानों को देते हैं।
ई-मोड व्यवस्था का नए कृषि कानूनों से लेना-देना नहीं है। यूपीए सरकार के दौरान (2012) से ही ऑनलाइन ट्रांसफर की कवायद शुरू की गई थे, 2015-16 के बाद कई राज्यों ने इसे अपना लिया, लेकिन पंजाब-हरियाणा लगातार छूट लेते रहे हैं। इस बार 18 फरवरी को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के प्रजेंटशन में दोनों राज्यों के लिए ऑनलाइन ट्रांसफर अनिवार्य होने की बात कही गई है। हालांकि आढ़तिया को मार्केट से बाहर करने को सवाल उठने पर 19 जनवरी को उपभोक्ता मामले विभाग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भुगतान वर्तमान कृषि उपज मंडी समिति प्रणाली के बदले में नहीं है, यह केवल अधिक पारदर्शी तरीकों से भुगतान करने की व्यवस्था को और मजबूत बनाता है। सरकार का पंजाब और हरियाणा में आढ़तियों को बाहर करने का कोई इरादा नहीं है और मंडी व्यवस्था से आढ़तियों को समाप्त करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है, इससे आढ़तियों के कमीशन या मंडी शुल्क में भी कोई असर नहीं पड़ेगा।”
ऐसे में सवाल उठता है अगर किसान को पैसा सीधे खाते में पहुंचेगा,आढ़तिया को कमीशन मिलता रहेगा,खरीद भी आढ़तियों के जरिए होगी फिर समस्या कहां है?
इसका जवाब पंजाब में खरीद व्यवस्था से सीधे जुड़े रहे एक अधिकारी ने नाम छापने की शर्त पर बताया, “देखिए पंजाब का किसान काफी हद तक आढ़तियों पर निर्भर है। वे साल भर किसानों को पैसे देते हैं। किसान की फसल तो साल में दो बार आती है। ऐसे में जब पैसे का ट्रांजेक्शन आढ़तियों के जरिए होता है तो उसे पता होता है कि किसे पैसे मिला किसे नहीं। एक तरह से जो वह एडवांस और लोन देता है वो उनकी अदायगी कर लेता है। ये रिश्ता आपसी सहमति पर चलता है। पहले ये अपने पैसे काटकर किसानों को देता था लेकिन वर्ष 2020 से आढ़तिया भी पूरा पैसा किसान को आरटीजीएस करते थे बाद में भले उनसे ले लेते हों। यहां के किसानों को लगता है एक बार तो पैसे सरकार से मिल जाएंगे लेकिन जो मौके-मौके पर आढ़ती से पैसे ले आते हैं वो कैसे मिलेगा?”
पंजाब में बठिंडा जिले के रायके कलां गांव में 16 एकड़ में गेहूं की खेती करने वाले किसान कुलवंत सिंह की बातें उक्त अधिकारी की बातों पर मुहर लगाती नजर आती हैं, “हम किसानों के लिए अच्छा है कि पैसा आढ़तिया के जरिए आए। वे हमारे दिन रात के एटीएम हैं। फसल तो बाद में आती है पैसा हम पहले ही उठा लेते हैं। पिछले दिनों हमारे घर पर सोसायटी (कृषि सहकारी समितियां जहां से किसान खाद-बीज आदि उठाते हैं) के लोग आए थे एक फार्म भरवा रहे थे, जिसमें लिखा था कि हम पैसा सीधे सरकार से लेने को तैयार हैं, लेकिन हमने मना कर दिया।”
पंजाब में अभी तक गेहूं धान और दूसरी फसलों की खरीद पर उसकी एमएसपी अढ़तिया के माध्यम से किसानों के खातों में जाती थी। लेकिन अब सरकार खुद भेजेगी।
पंजाब आढ़ती संघ के मुताबिक पंजाब में गेहूं की खरीद के लिए करीब 32,000 कमीशन एजेंट (आढ़ती) रजिस्टर्ड हैं जबकि धान के लिए 28,000 अढ़तिया रजिस्टर्ड हैं। (कई जगहों पर धान के मौसम में कपास की खेती होती है, इसलिए गेहूं के अढतियों की संख्या ज्यादा है) जो धान, गेहूं, कपास, बासमती, बाजरा, मक्का आदि की ख़रीद करते हैं। यहां 1,850 बड़ी मंडियां हैं, जिनमें से 152 अनाज की मंडियां हैं। पंजाब के एपीएमसी एक्ट में 2020 में अमेडमेंट कर किया गया था। जिसके बाद आढ़तियों को एमएसपी का 100 फीसदी पैसा, बिना किसी कटौती के किसानों को खातों में भेजना अनिवार्य कर दिया गया था। खरीफ के सीजन में धान का भुगतान ऐसे ही हुआ है। पंजाब के खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों की तत्कालीन निदेशक अनिन्दिता मित्रा ने इसकी पुष्टि की है।
ई- मोड के जरिए किसानों को भुगतान की व्यवस्था कई राज्यों में पहले से ही लागू है। उत्तर प्रदेश में गेहूं धान और मक्का को एमएसपी पर बेचने के लिए खाद्य व रसद विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण कराना होता है। (गेहूं के लिए एक मार्च रजिस्ट्रेशन जारी है।) ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बायोमेट्रिक मॉडल से किसानों को भुगतान किया जाएगा। हरियाणा में भी पिछले वर्ष धान की खरीद इसी तरह से की गई थी। हरियाणा में फसल बेचने के लिए किसानों को प्रदेश सरकार के पोर्टल मेरी फसल मेरा ब्योरा पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है।
ऑनलाइन भुगतान को लेकर हरियाणा के हालात अलग हैं। यहां पर पिछले वर्ष बड़े पैमाने पर ऑनलाइन पेमेंट शुरू किया गया था, लेकिन पूरे राज्य में होना बाकी है।
हरियाणा में सोनीपत जिले की खरखौंदा मंडी में 400 किसानों के साथ काम करने वाले आढ़ती नरेश दहिया कहते हैं, “इस बार खरीद को लेकर हमें कोई लेटर तो नहीं मिला है, लेकिन हम हारी बीमारी (सुख-दुख) में हमेशा किसान के साथ खड़े रहते हैं। हमारा किसानों के साथ लेनदेन तो लगा रही रहता है, लेकिन सरकार चाहती है कि आढ़तिया और किसान का नाता ही खत्म हो जाए। पिछले साल से सरकार ने आरटीजीएस (तत्काल सकल निपटान) अनिवार्य कर दिया, चेक तक देने से मना कर दिया था। लेकिन जब सरकार सीधा किसान को पैसा देगी तो हमें कमीशन को क्यों देगी? इस सरकार को कमीशन एजेंट से तकलीफ है।”
नई व्यवस्था को लेकर वे कहते हैं, “पंजाब में आढ़तियों ने इस व्यवस्था के खिलाफ हड़ताल की धमकी दी तो सरकार ने कहा हम खुद खरीद लेंगे, सरकार कर भी सकती है, लेकिन इसमें किसानों का नुकसान होगा। पंजाब-हरियाणा में जो 20 दिन का गेहूं का खरीद पीक सीजन होता है वह 2-2 महीने का होगा। सरकार का मैसेज आएगा कि 30 क्विंटल गेहूं लेकर कल मंडी आओ, किसान के पास फसल तैयार नहीं होगी, उसके पास टाइम नहीं होगा तो वह क्या करेगा, आढ़तियों के पास कभी आ सकता है।”
किसानों के खातों में एमएसपी का पैसा सीधे ट्रांसफर करने के मुद्दे पर संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान नेता और क्रांतिकारी किसान यूनियन, (पंजाब) के अध्यक्ष डॉ. दर्शनपाल कहते हैं, “पैसा सीधे किसानों को मिले ये ठीक है, लेकिन जिस समय पर सरकार ये कर रही है वह ठीक नहीं है, परेशान करने की नई वजह है।