श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर वाद में हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, मुकदमों को हरी झंडी

High Court: Big Decision In The Shri Krishna Janmabhoomi And Shahi Idgah Dispute Case,
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद : हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, मंदिर के पक्ष में आया फैसला

प्रयागराज 01 अगस्त 2024 । भगवान श्री कृष्ण लला विराजमान व शाही मस्जिद ईदगाह पक्षों में लंबित वाद में हाईकोर्ट ने वाद पोषणीयता मामले में मंदिर पक्ष में फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत ने की। हाईकोर्ट में 12 अगस्त से सिविल वादों की सुनवाई शुरू होगी।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस – फोटो : सोशल मीडिया

मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह विवाद में लंबित 18 सिविल वादों की पोषणीयता पर हिंदू पक्ष को बड़ी  सफलता मिली है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल सिविल वाद पोषणीय है। झटके पर झटका खाती ईदगाह कमेटी हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। मुस्लिम पक्ष से सभी सिविल वादों की पोषणीयता को लेकर दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन अदालत ने दिन प्रतिदिन लंबी सुनवाई कर जून में फैसला सुरक्षित कर लिया था। आज फैसला सुनाया गया। केस की अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी।

हिंदू पक्ष के सिविल वाद शाही ईदगाह मस्जिद का ढांचा हटाकर जमीन का कब्जा देने और मंदिर का पुनर्निर्माण कराने की मांग को लेकर दायर किए गए हैं। दावा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बना मंदिर ध्वस्त कर किया गया है। इसलिए उस विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा का अधिकार है। वहीं, वादियों की विधिक हैसियत पर सवाल खड़ा करते हुए मुस्लिम पक्ष का कहना है कि श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह कमेटी में कोई विवाद नहीं है।

विवाद खड़ा करने वाले पक्षकारों का जन्मभूमि ट्रस्ट और ईदगाह कमेटी से कोई रिश्ता, वास्ता और सरोकार नहीं हैं। इसके अलावा यह भी तर्क दिया कि ईदगाह स्थल वक्फ की संपत्ति है। 15 अगस्त 1947 को यह मस्जिद अस्तित्व में थी। पूजा का अधिकार अधिनियम में अब धार्मिक स्थल का स्वरूप बदला नहीं जा सकता। महीनों लंबी बहस के बाद फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट ने मुस्लिम पक्षकारों को तगड़ा झटका दिया है

कृष्ण जन्मभूमि पर 18 मुकदमें कोर्ट में 
इस विवाद की जड़ हिंदू पक्ष के दायर मूल मुकदमे में है, जिसमें दावा किया गया है कि मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनाई गई थी। हिंदू पक्ष ने मस्जिद हटाने की मांग की है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में हिंदू पक्ष द्वारा दायर 18 मुकदमे विचारणीय हैं।

शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंधन ने देवता और हिंदू पक्षों  के मुकदमों की स्वीकार्यता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि ये मुकदमे पूजास्थल अधिनियम, सीमा अधिनियम और विशिष्ट राहत अधिनियम से वर्जित हैं।

आज, न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मुस्लिम पक्ष का आवेदन निरस्त कर दिया।

Justice Mayank Kumar Jain
इस विवाद की शुरुआत हिंदू पक्ष के दायर मूल मुकदमे से हुई है, जिसमें दावा किया गया है कि मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनाई गई थी। हिंदू पक्ष ने मस्जिद हटाने की मांग की है।

यह दावा किया गया है कि इस दृष्टिकोण का समर्थन करने को कई संकेत हैं कि शाही-ईदगाह मस्जिद वास्तव में एक हिंदू मंदिर है।

पिछले साल 14 दिसंबर को, उच्च न्यायालय ने शाही-ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने को एक न्यायालय आयुक्त की नियुक्ति को एक हिंदू देवता, भगवान श्री कृष्ण विराजमान और सात अन्य हिंदू पक्षों की ओर से दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्देश पर रोक लगा दी थी।

मामले की कार्यवाही 2023 में ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दी गई।

सितंबर 2020 में एक सिविल कोर्ट ने मुकदमे को शुरू में खारिज कर दिया था, जिसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 में मामले को स्वीकार करने पर रोक का हवाला दिया गया था। हालांकि, मथुरा जिला न्यायालय के समक्ष अपील के बाद इस फैसले को पलट दिया गया।

मई 2022 में मथुरा जिला न्यायालय ने माना कि मुकदमा सुनवाई योग्य है और मुकदमे को खारिज करने वाले सिविल कोर्ट के आदेश को पलट दिया।

अधिवक्ता विष्णु जैन, देवकी नंदन शर्मा, प्रभाष पांडे और प्रदीप कुमार शर्मा वादी (हिंदू पक्ष) की ओर से पेश हुए।

मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता तस्नीम अहमदी, नसीरुज्जमां, गुलरेज़ खान, हरे राम, नसीरुद्दीन

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हिंदू पक्षकारों के तर्क 
1-ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है।
2-शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
3-श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
4-बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।
मुस्लिम पक्षकारों की दलील
1- इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
2-उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
3-15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती।

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