स्वामी ओमानंद सरस्वती ने हैदराबाद निजाम से लेकर आजादी के आंदोलन तक में जेल यात्राएं की
पुण्य स्मृति: 23 मार्च 2003, स्वामी ओमानन्द सरस्वती – डा. अशोक आर्य स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी का जन्म गांव नरेला ( दिल्ली ) में चैत्र शुक्ला ८ सम्वत १९६७ विक्रमी तदनुसार ९ जून १९११ इस्वी को हुआ । आप के पिता गांव के धनाढ्य थे जिनका नाम कनक सिंह था । माता का नाम नान्ही देवी था । आप का नाम भगवान सिंह रखा गया । आप ने गांव के ही हाई स्कूल में अपनी शिक्षा आरम्भ की । आरम्भिक शिक्षा पूर्ण कर आपने दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कालेज में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया । यहां से आप ने एफ़ ए की उपाधि परीक्षा उत्तीर्ण कर देश के स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पडे तथा देश को स्वाधीन कराने के प्रयास में समय लगाने के लिए आप ने आगे की शिक्षा छोडने का निर्णय लिया । अब आप ने नियमित रुप से आर्य समाज के साथ ही साथ कांग्रेस की कार्य योजनाओं का भाग बनकर इन के लिए कार्य आरम्भ कर दिया ।
भगवान सिंह की पढने की इच्छा अभी पूरी प्रकार से समाप्त न हुई थी , इस कारण आप ने दयानन्द वेद विद्यालय निगम बोध घाट में प्रवेश लिया तथा यहां संस्कृत व्याकरण का खूब अध्ययन किया । इतना ही नहीं, आप ने गुरुकुल चित्तौड़ में प्रवेश ले कर कुछ समय यहां से शास्त्रों का भी अध्ययन किया । अब तक आप एक अच्छे शिक्षक के योग्य बन चुके थे । अत: सन १९४२ में आपने गुरुकुल झज्जर में आचार्य पद की नियुक्ति प्राप्त की तथा आप इस संस्था की निरन्तर उन्नति के लिए जुट गये । आप के नेतृत्व में इस गुरुकुल ने भरपूर उन्नति की । आप के प्रयत्नों से गुरुकुल झज्जर ने एक महाविद्यालय का रुप लिया तथा देश के उत्तम गुरुकुलों में स्थान बनाने में सफ़ल हुआ । इतना ही नहीं, यह आर्ष शिक्षा का भी उत्तम केन्द्र बन गया । इस मध्य ही आप न जाने कब भगवान सिंह से भगवान देव बन गए किसी को पता ही न चला ।
भगवान देव 1939 के हैदराबाद निजाम के विरुद्ध सत्यार्थ प्रकाश आंदोलन में जेल गए और उसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भी कई बार जेल गए। उन्होंने 1965 के हिंदी आंदोलन में भी भाग लिया।
भगवान देव देश के पूर्व वैभव के प्रमाण चुन चुनकर एकत्र करते रहते थे । प्राचीन इतिहास तथा पुरातत्व के कार्यों में आप की अत्यधिक रुचि थी । इस कारण ही जब आप इन सिक्कों व कंकड़ – पत्थरों को साफ़ कर रहे होते थे तो लोग आप का मजाक उडाया करते थे किन्तु इस सब के परिणाम स्वरुप गुरुकुल में एक उच्चकोटि का संग्रहालय बन गया है , जिसे देखने के लिए विदेश के लोग भी आते हैं । इस संग्रहालय में कुछ ऐसी सामग्री भी है , जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं । १९६५ में व १९७१ में जो भारत का पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ , उस सम्बन्ध में जब आप अबोहर आये तथा फ़ाजिल्का सैनिकों से मिलने गये तो मैं भी आप के साथ गया । यहां तोपों के अनेक खाली गोले तो आप को भेंट किये ही गये , एक ऐसा टोप भी भेंट किया गया , जिसके एक ओर से गोली अन्दर जाकर दूसरी ओर से निकल गयी थी किन्तु जिस सैनिक के सिर पर यह टोप था वह पूरी प्रकार से बच गया था । यह सामग्री भी आज इस संग्रहालय की शोभा बना हुआ है । आप का सैनिकों में प्रचार करना एक उपलब्धि थी ।
भगवान देव ने १९७० इस्वी में स्वामी सर्वानन्द सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली तथा स्वामी ओमानन्द सरस्वती बन गये । आप परोपकारिणी सभा अजमेर के प्रधान रहे तथा सार्वदेशिक सभा के भी । आप ने अनेक देशों में भी आर्य समाज का सन्देश दिया । ऐसे देशों में यूरोप , अमेरिका , अफ़्रीका , पूर्वी एशिया के अनेक देश सम्मिलित हैं । आप एक अच्छे लेखक व सम्पादक भी थे । आप ने आर्य समाज को धरोहर रुप में अनेक पुस्तकें भी दीं । इन में आर्य समाज के बलिदान , स्वप्न्दोष ओर उसकी चिकित्सा, व्यायाम का महत्व,नेत्र रक्षा, भोजन आदि पुस्तकों के अतिरिक्त अपनी विदेश यात्राओं इंग्लैण्ड, नैरौबी , जापान तथा काला पानी का भी उल्लेख किया तथा गुरुकुल पत्रिका सुधारक के सम्पादक भी रहे । आप का पुरातत्व के लिए जो प्रेम था उसके कारण आप ने इतिहास, प्राचीन मुद्राओं . प्राचीन सिक्कों , वीर योधेय आदि पर अपने खोज पूर्ण व एक उत्तम गवेषक के रुप में कई ग्रन्थ दिये । सत्यार्थ प्रकाश को ताम्बे की प्लेटों पर उत्कीर्ण करवा कर यह प्लेटें भी गुरुकुल के संग्रहालय का अंग बना दी गई हैं ।