सैयद सालार मसूद गाजी मजार के चमत्कारों पर इतना भरोसा? वो भी हिंदुओं को?
Swati Singh with Prince Lokesh Singh Rajput
कब्र पूजकों के मुंह पर तुलसीदास जी का थप्पड़ ।
भारत के इतिहास में एक विलक्षण घटना घटित हुई है |इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया था, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या “सैयद सालार मसूद” की विशाल सेना से भी ज्यादा थी। “गाजी” मसूद ने कहा कि “इस धरती की सारी ज़मीन खुदा की है, और वह जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है… यह उसका धार्मिक कर्तव्य है कि वह सभी को इस्लाम का अनुयायी बनाये और जो खुदा को नहीं मानते उन्हें काफ़िर माना जाये…”।
इसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी। इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया।
बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ। बहराइच के नज़दीक इसी मुगल आक्रांता सैयद सालार मसूद (तथाकथित गाज़ी बाबा) की कब्र बनी।
“गाजी बाबा” की कथा वाचन करने का मकसद है – बहराइच (उत्तर प्रदेश) में “दरगाह शरीफ़” पर प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के पहले रविवार को लगने वाला सालाना उर्स…। बहराइच शहर से 3 किमी दूर सैयद सालार मसूद गाज़ी की दरगाह स्थित है, और हिन्दओू की ऐसी मान्यता है(?) कि मज़ार-ए-शरीफ़ में स्नान करने से बीमारियाँ दूर हो जाती हैं, और निःसंतान स्त्रियों को बच्चे होते हैं…
कब्र पूजा के इस पाखंड को उजागर करते हुए तुलसीदास जी ने ५०० वर्ष पूर्व एक प्रश्न पूछा था जो आज तक अनुत्तरित है. उन्होंने पूछा था कि बहराइच में सैय्यद सालार मसूद की मजार पर जाने से किस अंधे को आँख मिली? किस बाँझ को पुत्र हुआ? और किस कोढ़ी का शरीर सुन्दर हो गया? उसको मेरे सामने लाओ.
लही आँखि कब आँधरे बाँझ पूत कब ल्याइ।
कब कोढ़ी काया लही जग बहराइच जाइ।496।
तुलसी निरभय होत नर सुनिअत सुरपुर जाइ।
सो गति लखि ब्रत अछत तनु सुख संपति गति पाइ।497।
आज तक एक भी ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया है. तुलसीदास के प्रश्न का उत्तर अभी तक नहीं मिला है. लेकिन इसी प्रश्न में तुलसीदास की आज्ञा भी छिपी है कि कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना पाखण्ड के अलावा कुछ नहीं है.
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