91वां बलिदान दिवस: जतिन दा ने अपनी संकल्प शक्ति परीक्षा को चुनी मैराथन अनशन से मौत
फांसी, गोली की मौत आसान होती है। अनशन से मौत संकल्प की परीक्षा होगी
द लीजेंड ऑफ भगत सिंह फिल्म याद है? याद करो हर 15 अगस्त, 26 जनवरी को आती तो थी. उसमें कोर्ट वाला सीन देख कर तो हमारा खून खौल जाता था. एक सीन और था बहुत धांसू उसमें, जब फिल्म में खराब खाने को लेकर भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल करते हैं. और उनको अंग्रेज जबरदस्ती खाना खिलाते हैं. इन सब के दौरान एक क्रांतिकारी के फेफड़ों में जबरदस्ती दूध पिलाए जाने से दूध भर जाता है. ये क्रांतिकारी इसके बाद दवा भी नहीं खाता और 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी मौत हो जाती है.
उस क्रांतिकारी का नाम था यतीन्द्रनाथ दास, पैदाइश 27 अक्टूबर, 1904. 16 साल की उम्र में ही गांधी जी के चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक्टिविस्ट. पर गांधी जी के असहयोग वापस लेने के बाद उनकी अहिंसा की थ्योरी से निराश और क्रांतिकारियों में शामिल हो गए.
बोले थे जीतूंगा या मरूंगा, दोनों ही हासिल
लाहौर षड्यंत्र में छठी बार यतीन्द्रनाथ जेल पहुंचे थे. उनके साथ भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और दूसरे क्रांतिकारी भी थे. सारे भूख हड़ताल कर रहे थे. भूख हड़ताल के पीछे वजह ये थी कि जेल अफसर क्रांतिकारियों के साथ मारपीट भी किया करते थे. क्रांतिकारी चाहते थे कि इन सबको भी राजनीतिक बंदी मान कर अच्छा बिहेव किया जाए, जैसा कि सत्याग्रहियों के साथ होता था.
वहीं सत्याग्रहियों को राजनीतिक बंदी माना जाता था. यतीन्द्र भी अनशन करने वालों में से एक थे. यतीन्द्र ने अनशन शुरू करते हुए कहा था कि या तो जीतूंगा या मर जाऊंगा. पर ऐसा हुआ नहीं, आखिर अंग्रेज अधिकारी उनके आगे झुके पर तब तक यतीन्द्रनाथ की मौत हो चुकी थी. इस तरह से उनकी कही दोनों ही बातें सही हो गईं. जीत भी गए और इस दुनिया से रुखसत भी हो गए.
ये वाला किस्सा पढ़ो, समझ जाओगे क्या इरादे थे!
जब यतीन्द्रनाथ अनशन करते-करते मर रहे थे. उस वक्त उन्होंने कहा था, गोली खाकर या फिर फांसी पर झूलकर मरना तो बहुत आसान है. जब अनशन करके धीरे-धीरे आदमी मरता है तो उसके मनोबल का पता चलता है. ऐसे में अगर वो मन से कमजोर है तो उससे ये कभी नहीं हो पाएगा.
फेफड़ों में दूध भरा था, पर दवा लेने से मना कर दिया
13 जुलाई, 1929 से अनशन शुरू हुआ. जेल में क्रांतिकारियों को बहुत खराब खाना मिलता था. जेल के अफसर अनशन के बाद से उनके कमरे में बहुत अच्छा खाना रखने लगे. क्रांतिकारी ये चीजें उठाकर फेंक देते थे पर यतीन्द्रनाथ को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था वो उन खाने-पीने की चीजों की ओर देखते ही नहीं थे. जेल के अधिकारियों ने तब उनका जबरन अनशन तुड़वाने की कोशिश की. बंदियों के हाथ-पैर बांधकर जबरदस्ती नाक में दूध डाला जाता था. यतीन्द्र के साथ ऐसा किया गया तो दूध उनके फेफड़ों में चला गया.
फेफड़ों में दूध भर गया था इसके बावजूद भी यतीन्द्रनाथ ने दवा खाने से इंकार कर दिया और लाहौर सेंट्रल जेल में ही भूख हड़ताल के 63वें दिन 13 सितंबर को उनकी मौत हो गई. जब उनका डेड बॉडी लाहौर से कलकत्ता लाई गई तो कलकत्ता में उन्हें देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ थी.
शुरुआत ही धुआंधार थी, जेलर ने मांगी थी माफी
यतीन्द्र का जन्म कलकत्ता में हुआ था. बंगाल में ही वो अनुशीलन समिति के मेंबर बन गए. और गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए. कलकत्ता के विद्यासागर कॉलेज में वो अभी पढ़ाई ही कर रहे थे, तभी उनको देशविरोधी गतिविधियों के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त उन्हें मेमनसिंह जेल में रखा गया था. वहां पर भी जेल की अव्यवस्था और खराब खाने से ऊबकर यतीन्द्र ने भूख हड़ताल शुरू कर दी. 20 दिन की भूख हड़ताल के बाद जेल अथॉरिटी को यतीन्द्र के सामने झुकना पड़ा. जेल सुपरिटेंडेंट ने यतीन्द्र से माफी मांगी और फिर यतीन्द्र ने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी. भगत सिंह के साथ इसके बाद ही उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने ठान लिया था कि हिंसा के जरिए ही अंग्रेजों को देश से निकालना है.
16 साल की उम्र में पहली सजा हुई, 6 महीने की
पहली बार अंग्रेजों ने जब यतीन्द्रनाथ को गिरफ्तार किया था तब उनकी उम्र महज 16 साल थी. यतीन्द्रनाथ विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना दे रहे थे. बस ये ही जुर्म था, जो सजा हुई 6 महीने की. चौरी-चौरा के बाद जब महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया तो निराश यतीन्द्रनाथ फिर से कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिल हो गए.
कई कांड में पहले से ही वांटेड थे
गांधी जी के अहिंसा के रास्ते से मन ऊबने के बाद यतीन्द्रनाथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए. यतीन्द्रनाथ का नाम दक्षिणेश्वर बम कांड और काकोरी कांड में भी सामने आया. और उनको 1925 में गिरफ्तार कर लिया गया. पर सबूत नहीं मिल पाए इनके खिलाफ अंग्रेजों को. जिसके बाद इनके खिलाफ मुकदमा नहीं चल सका. पर एहतियातन नजरबंद रहे.
शचींद्रनाथ सान्याल के कांटेक्ट से चले थे क्रांतिकारी पार्टी की ओर
1928 में वो कोलकाता में कांग्रेस सेवादल में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सहायक थे. जहां उनकी सरदार भगत सिंह से भेंट हुई. 8 अप्रैल के बम कांड में इन्हीं के बनाए बम फेंके गए थे. 14 जून, को उनपर मुकदमा शुरू हुआ. जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में यतीन्द्रनाथ की शहादत का जिक्र किया है. ये सीन देखिए द लीजेंड ऑफ भगत सिंह का जिसमें यतीन्द्रनाथ दास से भगत सिंह, आजाद के साथ मिलने पहुंचे हैं –
गांधी ने अपने सहायक महादेव देसाई को भेजे एक खत में यतीन्द्रनाथ की मौत का जिक्र करते हुए दुख जताया था. गांधी ने खत में लिखा था, अभी तक में कुछ भी यतीन्द्रनाथ के बारे में नहीं लिख पाया हूं. मुझे भी सरप्राइज नहीं होगा अगर मैं जो भी कहूं उसे गलत समझा जाए. पर्सनली मुझे अपने विचारों में कोई भी गलती नजर नहीं आती है. मैं इस तरह के बवाल से कोई भलाई नहीं देखता हूं. मैं शांत रहकर ही ठीक हूं क्योंकि मैंने अगर कुछ भी बोला तो उसको मिसयूज किया जा सकता है.
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