विवाद: टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने मारा कि उरी और नान्जे गौड़ा ने?
टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने मारा या वोक्कालिगा ने: भाजपा नेता बोले- सिद्धारमैया को टीपू जैसे मार दो, 224 साल बाद क्यों बना चुनावी मुद्दा
बैंगलुरू 20 फरवरी। ‘टीपू सुल्तान का बेटा सिद्धारमैया आएगा… आपको टीपू चाहिए या सावरकर? नान्जे गौड़ा ने क्या किया आपको याद है न? हमें सिद्धारमैया को ऐसे ही खत्म कर देना चाहिए।’
यह बयान कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री अश्वथ नारायण का है। 13 फरवरी को मांड्या में एक रैली में दिया गया यह बयान फिलहाल कर्नाटक की राजनीत के केंद्र में है। इस बयान का जिक्र करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने कहा कि, ‘मेरी हत्या करने के लिए लोगों को भड़काया जा रहा है। अश्वथ नारायण खुद ही मुझे गोली क्यों नहीं मार देते।’ हालांकि बाद में अश्वथ नारायण ने अपने बयान पर माफी मांग ली।
अश्वथ नारायण के बयान में एक बारीक बात है। वो स्थापित करना चाहते हैं कि टीपू सुल्तान की मौत अंग्रेजों से लड़ाई में नहीं, बल्कि वोक्कालिगा प्रमुख नान्जे गौड़ा ने उनकी हत्या की थी। इस विवेचना में हम इसी गुत्थी को सुलझाएंगे कि टीपू सुल्तान कौन थे, उनकी मौत कैसे हुई और कर्नाटक चुनाव में हर बार वो मुद्दा क्यों बन जाते हैं?।
20 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में मैसूर के शासक हैदर अली खां के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। हैदर ने अपने बेटे का नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब रखा था। बाद में यही बच्चा टीपू सुल्तान नाम से जाना गया।
ब्रिटैनिका के मुताबिक, टीपू के पिता और मैसूर के मुस्लिम शासक हैदर अली के घर पर कई फ्रांसीसी अधिकारी काम करते थे। टीपू को मिलिट्री ट्रेनिंग भी इन्हीं फ्रांसीसी अधिकारियों ने दी। टीपू ने साल 1767 में पश्चिमी भारत के कर्नाटक क्षेत्र में मराठों के विरुद्ध घुड़सवार सेना की कमान संभाली। साल 1775 और 1779 के बीच कई मौकों पर मराठों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
फरवरी 1782 में हुए दूसरे मैसूर युद्ध में उसने कोल्लिडम (कोलरून) नदी तट पर कर्नल जॉन ब्रैथवेट को हराया। दिसंबर 1782 में उसने अपने पिता की जगह ली। साल 1784 में उसने अंग्रेजों से शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर मैसूर के सुल्तान की उपाधि पाई।
साल 1789 में टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर के राजा पर हमला किया जिसे अंग्रेजों ने अपने ऊपर हमला माना, क्योंकि त्रावणकोर के राजा अंग्रेजों के सहयोगी थे। टीपू ने दो साल से अधिक समय तक अंग्रेजों को खाड़ी में रोके रखा।
मार्च 1792 में श्रीरंगपट्टनम संधि के बाद युद्ध खत्म हुआ लेकिन टीपू को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। संधि में टीपू को अपने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ा। उसने अंग्रेजों को युद्ध के हर्जाने में 3 करोड़ रुपए दिए। हर्जाना चुकाने तक उसे अपने दो बेटे अंग्रेजों के पास रखना पड़ा।
जनरल लॉर्ड कार्नवालिस को साल 1793 में टीपू सुल्तान अपने बेटे बंधक के रूप में सौंपते हुए। पोर्ट्रेट ब्रिटिश ऑयल पोर्ट्रेट पेंटर रॉबर्ट होम ने बनाया है।
यही नहीं, टीपू ने यहां पर एक और बड़ी गलती की। उन्होंने रिवोल्यूशनरी फ्रांस के साथ अपनी बातचीत के बारे में भी अंग्रेजों के सामने शेखी बघारी। इसी से गवर्नर-जनरल लॉर्ड मॉर्निंगटन ने 4 मई 1799 को चौथे मैसूर युद्ध की शुरुआत की। टीपू सुल्तान की राजधानी सेरिंगापटम यानी आज के श्रीरंगपट्टनम पर 45,000 अंग्रेज सैनिकों ने हमला कर दिया।
इतिहासकार जेम्स मिल ने अपनी किताब द हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया में लिखा है कि ये वही टीपू सुल्तान थे जिसके आधे साम्राज्य पर 6 साल पहले अंग्रेजों ने कब्जा किया था। अंग्रेजों ने धीरे-धीरे सेरिंगापटम के किले पर घेरा डाला और तोपों से गोलाबारी कर उसकी प्राचीर छेद दिया।
इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की सेना का बड़ा अधिकारी मीर सादिक अंग्रेजों से मिल गया। इसी से तीन महीने की लड़ाई के बाद युद्ध के मैदान में अंग्रेजों से लड़ता हुआ टीपू सुल्तान मारा गया। मेजर एलेक्जेंडर ऐलन ने इस युद्ध का जिक्र करते हुए किताब में लिखा था कि टीपू सुल्तान के मरने के बाद भी अंग्रेज सैनिक उसके शव को छूने से डर रहे थे।
सर डेविड बेयर्ड ने सबसे पहले टीपू सुल्तान का शव खोजा था। टीपू के शरीर पर चार घाव थे, तीन शरीर पर और एक माथे पर।
टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने नहीं, वोक्कालिगा प्रमुख नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा ने मारा, ये कहां से आया?
पुराने मैसूर के कई इलाकों में दावा होता है कि टीपू सुल्तान की मौत अंग्रेजों से लड़ाई में नहीं हुई, बल्कि वोक्कालिगा प्रमुखों नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा ने उसकी हत्या की थी। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पहली बार यह दावा मैसूर में हुए एक नाटक में किया गया था। राइटर और डायरेक्टर अडांडा सी करियप्पा ने यह नाटक ‘टीपू निंजा कनसुगलु’ यानी Real Dreams Of Tipu लिखा है। इसे लिखने और मंचित करने पर उन्हें हत्या की धमकियां भी मिली।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब टीपू सुल्तान चर्चा का विषय बने हैं। साल 2014 में भी टीपू सुल्तान ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे। इसकी शुरुआत कर्नाटक से गणतंत्र दिवस परेड की एक झांकी से हुई थी। परेड में टीपू सुल्तान की एक बड़ी मूर्ति थी।
काफिरों के विनाश के लिए चमक रही तलवार
टीपू सुल्तान की तलवार बहुत मशहूर हुई थी जो wootx steel से बनी हुई थी जिससे वो दुश्मन का लौह कवच भी आसानी से चीर देता था। ये सब कुछ तो हम किताबों में अक्सर पढ़ते आए हैं। बताया जाता है कि टीपू सुल्तान की तलवार के हैंडल पर कुरान की आयतें लिखी थी। लेकिन ये नहीं बताया गया कि तलवार के हैंडल पर लिखी लाइन का मतलब क्या है? टीवी सुल्तान की तलवार के हैंडल पर लिखा था कि मेरी विजयी तलवार काफिरों के विनाश के लिए चमक रही है।
टीपू सुल्तान ने उजाड़े कई शहर, मंदिरों-चर्च किये नष्ट
टीपू सुल्तान के बारे में दावा किया जाता है कि उसने अपने राज में हजारों महिला, पुरुष, बच्चों का कत्लेआम किया। सैकड़ों हिन्दू मंदिर ध्वस्त किये और मैंगलोर, कुर्ग, कोयंबटूर, जैसी जगहों पर हजारों लोगों का धर्मांतरण भी किया। टीपू सुल्तान ने केवल हिन्दुओं बल्कि ईसाइयों पर भी अत्याचार किए। उसने चर्च नष्ट किए, धर्मांतरण करवाएं। लेकिन टीपू सुल्तान का ये क्रूर चेहरा किताबों में नहीं पढ़ाया जाता। टीपू सुल्तान ने 1788 में कर्नाटक के कोडागू (तब के कुर्ग) में हमला किया। टीपू की सेना ने कोडागू में कई कस्बे और गांव तबाह कर दिये थे। कुशालपुरा, तालकावेरी, मदीकेरी गांव पूरी तरह से उजाड़ दिए। 40 हजार हिन्दुओँ को जबरन मुसलमान बनाया। इन गावों में सात हजार मुस्लिम परिवारों को बसाया गया। इसी तरह से टीपू सुल्तान ने कालीकट के मालाबार में भी सेना भेजी। मालाबार में 7 हजार ब्राह्मणों समेत कई हिन्दू परिवार रहते थे। दावा किया जाता है कि टीपू सुल्तान ने 2 हजार ब्राह्मणों का कत्ल करवा दिया। सैकड़ों का जबरन धर्मांतरण करवाया। कई हिन्दुओं ने जंगलों में भागकर अपनी जान बचाई थी।
मासूम बच्चों को उसकी मांओं के गले से बांधकर फांसी पर लटकाया
कालीकट में टीपू सुल्तान की सेना के अत्याचार के बारे में पुर्तगाली यात्री फादर बाथलमयू ने अपनी किताब वॉयेज टू द ईस्ट इंडीज में लिखा है कि 30 हजार बर्बर सैनिकों के दल ने रास्ते में जो भी मिला उसे मार डाला। सैनिकों के साथ हाथी पर सवार टीपू सुल्तान भी चल रहा था। उसके पीछे 30 हजार सैनिकों का एक और दल था। कालीकट में ज्यादातर पुरुषों और महिलाओं को फांसी पर लटका दिया गया। मासूम बच्चों को उसकी मांओं के गले से बांधकर फांसी पर लटकाया गया। हिन्दुओं और ईसाइयों को कपड़े उतारकर हाथी के पैरों से बांध दिया गया था और हाथियों को तब तक घुमाया गया जब तक लोगों के शरीर के टुकड़े-टुकडे नहीं हो गए।
इतिहासकारों ने टीपू की मौत कैसे हुई, इस पर आरोप लगाने के लिए करियप्पा किताब और नाटक की आलोचना की। उन्होंने करियप्पा के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि “टीपू द्वारा 80,000 कूर्गियों का नरसंहार किया गया था,” यह दावा करते हुए कि उस समय कूर्गी की वास्तविक आबादी 10,000 से अधिक नहीं हो सकती थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला वक्फ बोर्ड समिति के पिछले अध्यक्ष द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में, बेंगलुरु में अतिरिक्त शहर सिविल और सत्र न्यायालय ने पुस्तक के वितरण और बिक्री पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। मैसूर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व के प्रोफेसर एन एस रंगराजू ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उरी गौड़ा और नानजे गौड़ा हैदर अली के सैनिक थे जिन्होंने वास्तव में एक युद्ध में टीपू और उसकी मां को मराठों के चंगुल से बचाया था। हालांकि, चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान जब टीपू की मृत्यु हुई, तो लक्ष्मणमणि, ब्रिटिश, मराठों और निजामों के बीच एक संधि हुई। इसमें टीपू पर हमले के लिए समय, स्थान और अन्य रणनीतियों सहित सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि टीपू की सेना इतनी शक्तिशाली और अभेद्य थी कि कोई भी दो व्यक्ति उसे आसानी से नहीं मार सकते थे।
मौत के 224 साल बाद भी टीपू कर्नाटक में चुनावी मुद्दा क्यों बनते हैं?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मालाबार, कोडगु और बेदनूर में टीपू के नेतृत्व को असहिष्णु और अत्याचारी कहा जाता है। मैसूर के ये इलाके सामरिक और आर्थिक रूप से काफी महत्वपूर्ण थे।
रिपोर्ट बताती है कि टीपू पर युद्ध के आरोप काफी गंभीर थे। टीपू सुल्तान भविष्य के विरोध से बचने को विद्रोहियों या षड्यंत्रकारियों को दंड रूप में जबरन धर्मांतरण कराता था और अपने गृह क्षेत्र से मैसूर में लोगों को भेज देता था।
कोडगु और मालाबार दोनों इलाकों में इस तरह की घटनाएं सामने आई थीं। विशेष रूप से नायर और ईसाइयों के खिलाफ इस तरह का अत्याचार ज्यादा होता था। हालांकि, इतिहासकार टाइगर: द बायोग्राफी ऑफ टीपू सुल्तान के लेखक केट ब्रिटलबैंक कहते हैं कि टीपू के काम आधुनिक मानकों के अनुसार सही नहीं थे। हालांकि 18 वीं शताब्दी में सभी धर्मों के शासकों के बीच सामान्य थे।
इस मामले में संघ विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने इंटरव्यू में कहा था कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं को मुस्लिम बनाने के साथ ही बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया था। उन्होंने कई मंदिर तोड़े और हिंदू महिलाओं की इज्जत लूटी। इसलिए संघ और भाजपा टीपू सुल्तान का विरोध करती हैं।
वहीं, चुनाव से ठीक पहले टीपू सुल्तान के मुद्दे को उठाए जाने पर सवाल उठता है कि क्या हर पार्टी अपने फायदे के लिए इस मुद्दे को उठाती है? ‘द हिंदू’ में लिखे अपने लेख में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंदन गौड़ा कहते हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए हर दल इस तरह के मुद्दे को उठाता है।
क्या टीपू सुल्तान हिंदू विरोधी थे?
1990 तक सरकारी स्कूलों में देशभक्त राजा के तौर पर टीपू सुल्तान को पढ़ाया जाता था, लेकिन 1990 के दौर में जब मंदिर-मस्जिद मामला उठा। राजनीति में धार्मिक घालमेल बढ़ा, तो इसी दौरान टीपू सुल्तान की छवि एक धर्मनिरपेक्ष शासक के बजाय मुस्लिम तानाशाह की बना दी गई।
टीपू सुल्तान पर लिखी गई किताब में चिदानंद मूर्ति कहते हैं, ‘वे बेहद चालाक शासक थे। उन्होंने मैसूर में हिंदुओं पर कोई अत्याचार नहीं किया, लेकिन तटीय क्षेत्र जैसे मालाबार में हिंदुओं पर उन्होंने काफी अत्याचार किए।’
इतिहास में बताया गया है कि टीपू सुल्तान ने 1783 में पालघाट किले पर हमला कर हजारों ब्राह्मणों का कत्लेआम किया था। इससे हिंदुओं के मन में टीपू सुल्तान के खिलाफ डर भर गया था। हालांकि एक इंटरव्यू में इतिहासकार प्रोफेसर बी शेख अली कहते हैं कि यह सब कुछ इतिहास से अधिक वर्तमान राजनीतिक माहौल से प्रभावित है।
हालांकि कुछ इतिहासकारों की राय इससे इतर भी है। टीपू सुल्तान को मैसूर के बहादुर शासक के रूप में जाना जाता है। उनके पराक्रम को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें शेर-ए-मैसूर कहा था। टीपू सुल्तान को कुछ लोग बहादुर देशभक्त बताते हैं तो वहीं कुछ लोग उनको सांप्रदायिक शासक बताते हैं। मैसूर में हिंदू बहुमत में थे। इसलिए टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम, मैसूर समेत राज्य के कई स्थानों पर मंदिर बनवाए।
इतिहासकार टीसी गौड़ा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर जैसे मंदिरों के जवाहरातों की सुरक्षा कराता था। 1759 में आदि शंकराचार्य के बनाए तिरुपति मंदिर पर मराठों ने हमला किया तो हिंदुओं की धार्मिक भावना को देखते हुए टीपू सुल्तान ने इसका निर्माण करवाया था।
चुनाव में राजनीतिक विषय बनाने को लेकर टीपू के वंशज क्या कहते हैं?
हाल में एक इंटरव्यू में टीपू सुल्तान के वंशजों ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई में टीपू सुल्तान की छवि लगातार खराब की जा रही है। उन्होंने कहा कि हम यह अभियान समाप्त करने को अदालत का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं।
टीपू सुल्तान के 17वें वंशज साहबजादा मंसूर अली कहते हैं कि हमारे पूर्वज टीपू सुल्तान का नाम क्यों घसीटा जा रहा है और हर मौके पर इसका राजनीतिकरण किया जाता है? राजनीतिक पार्टियों को जब भी सुविधाजनक लगे, उनके नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि अब ऐसा करने पर हम मानहानि का मुकदमा करेंगे। मंसूर अली की यह घोषणा मैसूर के शासक टीपू को एक बार फिर से भाजपा और कांग्रेस की ओर से चुनावी मुद्दा बनाने के बीच आई है।