वाह: अनुच्छेद 370 पर रोज सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Article 370 Jammu And Kashmir Supreme Court

3 साल बाद फिर सुप्रीम कोर्ट में 370: रोज होगी सुनवाई, हर एक बात समझिए

Article 370 Hearing in SC: सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 पर रोजाना सुनवाई पर सहमति दे दी है। पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले को सुनेगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच में होगी सुनवाई।

हाइलाइट्स
आर्टिकल 370 मामले पर सुप्रीम कोर्ट 2 अगस्त से रोजाना करेगी सुनवाई
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच करेगी सुनवाई
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया था

नई दिल्ली 11 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांटने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ 2 अगस्त से रोजाना सुनवाई करेगी। याचिका में कई अहम कानूनी और संवैधानिक पहलुओं को लेकर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुनवाई करेगी। चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है। गौरतलब है कि आर्टिकल 370 खत्म किए जाने के खिलाफ 20 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं।

बदलाव का रास्ता

जम्मू-कश्मीर महबूबा मुफ्ती सरकार  से समर्थन वापस लेने के बाद राज्य में 19 जून 2018 को राज्यपाल शासन लागू किया गया था। जम्मू-कश्मीर के आर्टिकल 92 के अनुसार, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले 6 महीने का राज्यपाल शासन जरूरी था। राज्य की विधानसभा को 21 नवंबर को भंग कर दिया गया था। 12 दिसंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। बाद में संसद के दोनों सदनों ने इसपर सहमति दे दी। 12 जून 2019 को राष्ट्रपति शासन को 6 और महीने के लिए बढ़ाया गया था।

संवैधानिक बदलाव

5 अगस्त को केंद्र ने एक आदेश जारी कर संविधान (जम्मू-कश्मीर अप्लीकेशन) आदेश, 1954 और संविधान के आदेश 2019 में बदलाव करते हुए राज्य से आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला किया। सरकार ने आर्टिकल 367 में एक और क्लाउज (4) जोड़ते हुए साफ किया कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू होगा। 6 अगस्त को राष्ट्रपति ने इस बाबत आदेश भी जारी कर दिया।

आर्टिकल 370 में बदलाव

आर्टिकल 370 के अप्लीकेशन में आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370 ही जम्मू-कश्मीर में लागू होता था। इसके अलावा संविधान का कोई अन्य प्रावधान राज्य में लागू नहीं होता था। इसके लिए आर्टिकल 370 के क्लाउज (1) (d) राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता है कि वो जम्मू-कश्मीर की सरकार की सहमति से अपनी कार्यकारी शक्तियों को लागू कर सकता है। आर्टिकल 370 की क्लाउज 3 राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता है कि ये आर्टिकल तभी लागू होगा जब राज्य की विधानसभा इसकी अनुशंसा करेगी। चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वजूद में नहीं है उसे 1957 में ही भंग कर दिया गया था। ऐसे में जबतक नई विधानसभा नहीं चुनी जाती तब तक राष्ट्रपति की शक्तियों पर रोक लग जाती है। आर्टिकल 370 में इसके उद्देश्य का भी जिक्र किया गया था। इसके तहत राज्य सरकार जम्मू-कश्मीर के महाराजा (बाद में इसे सदर-ए-रियासत कर दिया गया) मंत्रिमंडल की सलाह से काम करेंगे। लेकिन जम्मू-कश्मीर में उस वक्त कोई सरकार नहीं थी। ऐसे में राष्ट्रपति के पास राज्य के अधिकार को अपने में समाहित करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।

इसका ये मतलब हुआ कि केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई संविधानिक और कानूनी मैकनिजम नहीं था जो आर्टिकल 370 में बदलाव कर सके। हालांकि, केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 (1) (d) के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल आर्टिकल 367 में बदलाव के लिए किया। इसमें संविधान की व्याख्या की शक्ति दी गई है। आर्टिकल 367 में राज्य की संविधान सभा को रिप्लेस करने का क्लाउज जोड़ा गया। इस तरह से आर्टिकल 370 (1) (d) के जरिए राष्ट्रपति के आदेश का इस्तेमाल करते हुए आर्टिकल 370 में ही बदलाव कर दिया गया। इससे पहले आर्टिकल 370 में आर्टिकल 370 (3) के तहत संविधान सभा की अनुशंसा पर ही बदलाव करने का प्रावधान था।

संसद का मतलब राज्य सरकार?

इसके बाद राष्ट्रपति शासन के जरिए राज्य सरकार के सारे अधिकार संसद के पास आ गए। इसका मतलब ये हुआ कि राष्ट्रपति का शासन जम्मू-कश्मीर में लागू हो गया। इसके साथ ही संसद ने राज्य विधानसभा की जगह ले ली। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की शक्तियां राज्य विधानसभा के पास दी गई, राज्य विधानसभा भंग हो चुकी थी, इस तरह राष्ट्रपति एक तरह अपने ही फैसलों का अनुमोदन खुद ही करते रहे। इस तरह के तर्क दिए गए कि चूंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन था और जबतक कोई चुनी हुई सरकार नहीं हो तब तक राष्ट्रपति शासन के प्रशासनिक अधिकारी वैसे फैसले नहीं ले सकते हैं, जिसमें राज्य के संविधानिक स्ट्रक्चर में बदलाव करे।

जम्मू-कश्मीर का संविधान

जम्मू-कश्मीर के संविधान को भंग करने के फैसले को भी चुनौती दी गई है क्योंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास जम्मू-कश्मीर संविधान में भारत के संविधान में बदलाव वाले अनुशंसा करने की कोई शक्ति नहीं थी। जम्मू-कश्मीर संविधान के आर्टिकल 147 में राज्य की विधानसभा को ऐसे किसी भी अनुशंसा करने से रोक लगाता है जिसमें भारतीय संविधान पूरी तरह से राज्य में लागू हो। अब तर्क दिया जा रहा है कि इसका ये मतलब हुआ कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा तक भी कानूनी तौर पर राष्ट्रपति के आदेश को लागू करने की सहमति नहीं दे सकता है।

केंद्रशासित प्रदेश में बांटना

जम्मू-कश्मीर (रिऑर्गेनाइजेशन) ऐक्ट, 2019 के तहत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (विधानसभा के साथ) और लद्दाख (बिना विधानसभा के) में बांट दिया गया। भारत के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं देखते को मिलता है, जिसमें किसी राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में डिमोट कर दिया गया हो। यहां तक कि संसद आर्टिकल 3 में देश के किसी हिस्से को राज्य में बदलने, उसे दो राज्य में बदलते, या कुछ हिस्सों को अलग-अलग राज्य में बदलने की ताकत रखता है। संसद के पास ये भी शक्तियां है कि वह मौजूदा राज्य में कुछ हिस्से जोड़ दे या फिर उसकी सीमा बदल दे।

केंद्र के फैसले को इस बिना पर भी चुनौती दी गई है कि यह आर्टिकल 3 का उल्लंघन करता है। इसके अलावा इस आर्टिकल का प्रावधान ये कहता है कि राष्ट्रपति ऐसे किसी विधेयक या कानून को अपनी स्वीकृति नहीं दे सकते हैं जो राज्य की सीमा, नाम को बदलने की प्रवृति वाला हो। तर्क दिया जा रहा है कि संसद ऐसे में राज्य के विचार को नहीं बदल सकता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान वैसे ही अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है जो राज्य को चलाने के लि जरूरी है।

केंद्र सरकार के फैसले को इस आधार पर भी चुनौती दी गई है कि संविधान में बदलाव आभासी बदलाव (Colourable Legislation) हैं और ये कानूनी तौर पर नहीं टिक पाएंगे। आभासी बदलाव का सिद्धांत कानूनी प्रिंसिपल है, जो कहता है कि जो सीधे-सीधे नहीं किया जा सकता है उसे परोक्ष रूप से भी नहीं किया जाना चाहिए। इस सिद्धांत को सुप्रीम कोर्ट भी मान्यता देता है साथ ही साथ दूसरे देशों की संविधानिक अदालतें भी मानती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *