आशावाद:ट्रंप तूफ़ान है गुजर जायेगा
Former Diplomat Vikas Swarup Spoke On India Us Relations You Just Have To Wait Out The Storms
‘बस तूफान के गुजरने का इंतजार करें…’: भारत-अमेरिका के बदले रिश्ते पर क्या बोले पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप
पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप को लगता है कि अमेरिका-पाकिस्तान के संबंध अल्पकालिक हैं, जो तात्कालिक लाभ पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में आई खटास एक तूफान की तरह है, जो हमेशा नहीं रहेगी।
नई दिल्ली 13 अगस्त 2025 : पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप ने अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते में आई गरमाहट को कुछ समय की बात बताया है। साथ ही कहा कि भारत के साथ अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में जो रिश्ते बिगड़े हैं, वह तूफान की तरह हैं, जो हमेशा के लिए रहते। कनाडा में भारत के पूर्व उच्चायुक्त और स्लमडॉग मिलिनेयर के लेखक विकास स्वरूप ने एक इंटरव्यू में कहा है कि ‘अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों को हमें भारत के साथ उसके संबंधों से अलग नजरिए से देखना होगा।’
विकास स्वरूप, पूर्व राजनयिक
‘भारत-अमेरिका संबंध ज्यादा रणनीतिक’
न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में विकास स्वरूप ने कहा है कि उन्हें लगता है कि ‘पाकिस्तान के साथ (अमेरिका के) अभी के संबंध बहुत ही सामरिक और तात्कालिक तरह के हैं।’ उनके मुताबिक, ‘मुख्य रूप से यह रिश्ता उस वित्तीय फायदे से जुड़ा है,जिसे ट्रंप परिवार और (मध्य पूर्व में अमेरिका के विशेष दूत स्टीव) विटकॉफ परिवार पाकिस्तान में क्रिप्टोकरेंसी वाली संपत्तियों से हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं।’ वहीं भारत के साथ अमेरिका के ताल्लुकातों को लेकर उनका कहना है कि ‘भारत के साथ मुझे लगता है कि यह संबंध ज्यादा रणनीतिक है।’
‘तूफान के गुजरने का इंतजार करना होगा’
उन्होंने कहा है कि , ‘पाकिस्तान के साथ यह (रिश्ता) जितना लेन-देन वाला है,(भारत के साथ) उतना नहीं है। इसलिए मुझे निजी तौर पर लगता है कि यह एक गुजरता हुआ दौर है।’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि ‘मैं इसे तूफान कहता हूं, अलगाव नहीं। आपको सिर्फ तूफान के गुजरने का इंतजार करना होगा। सभी तूफान आखिरकार गुजर जाते हैं।’
‘फायदेमंद डील के लिए दबाव की रणनीति’
जब उनसे ट्रंप की ओर से भारत पर थोपे गए सबसे ज्यादा टैरिफ के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि यह भारत से बेहतर ट्रेड डील का एक हथकंडा मात्र है। उनके मुताबिक, ‘…. इसका मतलब ये नहीं है कि भारत से उन्होंने उम्मीद छोड़ दी है या भारत अब उनके लिए विरोधी हो गया है। मुझे लगता है कि यह उनकी एक दबाव डालने वाली रणनीति है, ताकि भारत के साथ फायदेमंद डील कर सकें। भारत को इसपर झुकना नहीं चाहिए, क्योंकि हमारी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं किया जा सकता।’उन्होंने यह भी कहा कि ‘…अगर आप किसी धौंस देने वाले के सामने झुकेंगे तो धमकाने वाला अपनी मांगें और बढ़ा देगा। तब वह और बहुत कुछ मांग करने लगेगा।’
‘मुझे लगता है कि हमने सही किया है’
उन्होंने स्पष्ट तौर पर सरकार के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि, ‘इसलिए, मुझे लगता है कि हमने सही किया है। भारत इतना विशाल और इतना गौरवशाली देश है कि वह किसी दूसरे देश का पिछलग्गू नहीं बन सकता। सामरिक स्वायत्तता 1950 के दशक से हमारी विदेश नीति का आधार रही है। मुझे नहीं लगता कि दिल्ली में कोई भी सरकार इस पर समझौता कर सकती है।’
पाकिस्तान ने क्या ट्रंप को साध लिया है, जानिए वहां के एक्सपर्ट्स क्या कह रहे
डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल नवंबर में जब राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की थी तो भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, ‘मैं जानता हूं कि कई देश अमेरिका को लेकर नर्वस हैं लेकिन भारत उन देशों में से नहीं है.’जयशंकर ने पीएम मोदी और ट्रंप के बीच अच्छे निजी संबंधों का भी ज़िक्र किया था. लेकिन अब ट्रंप के रुख़ को देखते हुए शायद ही जयशंकर ऐसा कह सकें.
ट्रंप का रुख़ पाकिस्तान को लेकर पूरी तरह से बदला दिख रहा है. बीएलए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) और मजीद ब्रिगेड अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल कर दी है. पाकिस्तान लंबे समय से इसकी मांग कर रहा था. इसे भी पाकिस्तान की विदेश नीति की जीत माना जा रहा है.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर पिछले हफ़्ते अमेरिका के फ्लोरिडा में अमेरिकी जनरल माइकल कुरिला के रिटायरमेंट समारोह में गए थे. माइकल कुरिला मध्य-पूर्व में अमेरिकी सैन्य बल के कमांडर थे. जनरल कुरिला ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में साझेदारी को आसिम मुनीर की तारीफ़ की थी।वहीं जून महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया था.
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क्या पाकिस्तान ने ट्रंप को साध लिया?
आसिम मुनीर व्हाइट हाउस में तब लंच कर रहे थे, जब पाकिस्तान और भारत सैन्य टकराव हुए एक महीना ही हुआ था. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को लेकर बहुत ही सख़्त थे लेकिन दूसरे कार्यकाल में ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनका रुख़ पाकिस्तान के प्रति पूरी तरह से बदला दिख रहा है.
पाकिस्तान में 2006 से 2010 तक भारत के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ की संवाददाता रहीं निरूपमा सुब्रमण्यम मानती हैं कि पाकिस्तान ने ट्रंप को इस बार भारत की तुलना में ज़्यादा ठीक से पहचाना.वें कहती हैं,कि ”मेरा मानना है कि भारत की तुलना में पाकिस्तान ने ट्रंप को ज़्यादा ठीक से समझा. पाकिस्तान ने मौक़े का फ़ायदा भी बहुत तरीक़े से उठाया. पाकिस्तान को बहुत सालों बाद आसिम मुनीर की तरह बिल्कुल ही अलग किस्म का सेना प्रमुख मिला है. ऑपरेशन सिंदूर से पहले आसिम मुनीर की स्थिति बहुत ही कमज़ोर थी. पाकिस्तान का मानना है कि भारत के ऑपरेशन सिंदूर में उसकी जीत हुई है. पाकिस्तान दावा कर रहा है कि उसने भारत के पाँच रफ़ाल मार गिराए. ऐसे में आसिम मुनीर का प्रोफ़ाइल पाकिस्तान में बहुत ऊपर चला गया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद ही उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया.”
दूसरी तरफ़ ट्रंप ने युद्धविराम कराने का श्रेय लिया. युद्धविराम की घोषणा भी ट्रंप ने ही सोशल मीडिया से की थी. पाकिस्तान ने ट्रंप को खुलकर इसका श्रेय दिया लेकिन भारत में विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाया कि ट्रंप कौन होते हैं, युद्ध रुकवाने वाले. वहीं मोदी सरकार ने ट्रंप का दावा नकार दिया और कहा कि पाकिस्तान के आग्रह पर युद्धविराम हुआ था न कि ट्रंप की मध्यस्थता के कारण.
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ट्रंप को पाकिस्तान ने कैसे ख़ुश किया?
निरूपमा सुब्रमण्यम कहती हैं, ”भारत ने ट्रंप को श्रेय नहीं दिया तो पाकिस्तान ने इसमें मौक़ा देखा. भारत इसी से ख़ुश था कि प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप का पर्सनल संबंध है. ट्रंप ने युद्धविराम का श्रेय लिया तो पाकिस्तान ने इसे न केवल माना बल्कि शुक्रिया भी कहा. इससे आगे बढ़कर शहबाज़ शरीफ़ सरकार ने ट्रंप को शांति के नोबेल सम्मान देने को सिफ़ारिश कर दी.मार्च में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस आईएसआई प्रमुख आसिम मलिक ने 2021 में काबुल एयरपोर्ट धमाके का ‘मास्टरमाइंड’ अमेरिका के हवाले किया था. धमाके में 180 लोग मारे गए थे, जिनमें 13 अमेरिकी सैनिक भी थे.इसे लेकर ट्रंप ने पाकिस्तान की बहुत तारीफ़ की। क्रिप्टोकरेंसी पर भी पाकिस्तान ने ट्रंप के हिसाब से काम किया. ये सारी चीज़ें ट्रंप को पसंद आईं. ट्रंप यूनिफ़ॉर्म बहुत पसंद करते हैं. जैसे ही पाकिस्तान ने आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया वैसे ही ट्रंप का बुलावा आ गया. हम इसी बात पर रह गए कि कोई ना कोई डील कर लेंगे. पिछले हफ़्ते आसिम मुनीर ने भारत को जिस अंदाज़ में अमेरिका से धमकाया, यह उनका अतिआत्मविश्वास ही दर्शाता है कि उन्होंने ट्रंप को जीत लिया और उनकी ज़मीन से कुछ भी कह सकते हैं.
अभी स्थिति यह है कि ट्रंप और भारत के कहने में काफ़ी अंतर है. जैसे ट्रंप ने कहा कि उन्होंने युद्ध बंद कराया लेकिन भारत ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. ट्रंप कह रहे हैं कि रूस से तेल नहीं ख़रीदो लेकिन भारत इसे भी नहीं मान रहा. ट्रंप कह रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बेजान है, भारत कह रहा है कि वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
पाकिस्तान ने जैसे ट्रंप को हैंडल किया, उसका फ़ायदा भी उसे होता दिख रहा है. ट्रंप ने पाकिस्तान पर 19 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया है जबकि भारत पर 50%.
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ट्रंप का पाकिस्तान कार्ड?
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी को लगता है कि ट्रंप भारत से फ़ायदा उठाने को पाकिस्तान कार्ड खेल रहे हैं. हक़्क़ानी ने फ़ाइनैंशियल टाइम्स से कहा कि ट्रंप पाकिस्तान कार्ड आज़माकर चाहते हैं कि भारत उनकी शर्तें मान ले.अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी पाकिस्तान और ट्रंप की बढ़ती जुगलबंदी पर अपनी रिपोर्ट में हक़्क़ानी की टिप्पणी शामिल की है.
इसमें हक़्क़ानी ने कहा कि ”क्या ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका किसी के लिए भरोसेमंद हो सकता है? मोदी ने ट्रंप से संबंध मज़बूत करने में काफ़ी निवेश किया था लेकिन इसका नतीजा हम सबके सामने है. हम पाकिस्तान को इस डर के दायरे से अलग क्यों देखें?”
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका को झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया है. अमेरिका में पाकिस्तान की राजदूत रहीं मलीहा लोधी भी मानती हैं कि अमेरिका से ऐसी गर्मजोशी की उम्मीद अभी किसी को नहीं थी.
मलीहा लोधी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ”गर्मजोशी बढ़ी है लेकिन चीन ने जिस स्तर पर पाकिस्तान में निवेश किया है और आर्थिक सहायता के साथ हमारी रक्षा ज़रूरतें पूरी कर रहा है, उसकी बराबरी अमेरिका नहीं कर सकता है. अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में निरंतरता कभी नहीं रही है.”
परवेज़ हुदभाई पाकिस्तान के जाने-माने बुद्धिजीवी और लेखक हैं. उनसे पूछा गया कि क्या वाक़ई पाकिस्तान ने ट्रंप को पहचानने में भारत की तुलना में ज़्यादा समझदारी दिखाई?
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, कि”मैं थोड़ा इससे अलग देखता हूँ. मेरा मानना है कि ये दो अहंकारों का टकराव है.एक मोदी का और दूसरा ट्रंप का.मोदी की इच्छा ये थी कि पाकिस्तान को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाए.लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में ट्रंप ने दिलचस्पी ली और सुलह कराने का दावा किया. लेकिन मोदी को इनकार करना पड़ा और कहा कि ट्रंप ने युद्धविराम नहीं कराया है.इसके बाद हालात बिगड़े और बिगाड़ यहाँ तक आ गया कि टैरिफ़ 25 से 50% हो गया.पाकिस्तान ने ट्रंप को ख़ुश करने को बहुत कुछ किया है। भारत उस हद तक नहीं गया.पाकिस्तान क्रिप्टोकरेंसी सरकारी ख़र्चे पर ख़रीदेगा.पाकिस्तान ने नोबेल सम्मान को भी ट्रंप को नामित किया.पाकिस्तान ने यह भी कहा कि हमारे यहाँ आकर तेल और रेयर अर्थ मिनिरल्स खोजो.ट्रंप को ये सारी बातें पसंद आईं.अगर हिन्दुस्तान भी ऐसा करे तो ट्रंप वहाँ भी अपनापन दिखाने लगेंगे.”
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भारत के दक्षिणपंथ का ग़लत आकलन?
इसी साल फ़रवरी महीने में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने वॉशिंगटन में आयोजित कंजर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ़्रेंस को वीडियो लिंक से संबोधित करते हुए ट्रंप की प्रशंसा में कहा था कि उनकी जीत से लेफ्ट खेमा चिंतित है.
इस दौरान मेलोनी ने प्रधानमंत्री मोदी का भी नाम लिया था, जिस पर भारत का दक्षिणपंथी खेमा सोशल मीडिया पर काफ़ी उत्साहित दिखा था.मेलोनी ने कहा था, ”आज जब ट्रंप, मैं, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई या शायद मोदी कुछ कहते हैं तो इसे लोकतंत्र को ख़तरा बताया जाता है. ये उनका दोहरा मानदंड है लेकिन हम इसके आदी हो चुके हैं. अच्छी बात यह है कि लोग अब उनके झूठ पर यक़ीन नहीं करते, चाहे वे हम पर कितना भी कीचड़ उछालें. नागरिक हमें वोट दे रहे हैं.”
तब भारत में सोशल मीडिया पर इसे ऐसे पेश किया गया था, मानो भारत का दक्षिणपंथ पश्चिम के दक्षिणपंथ से कंधे से कंधे मिलाकर चलेगा.
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ”पश्चिम का लेफ्ट हो या राइट उनमें गोरे रंग की श्रेष्ठता भावना बहुत मज़बूत है. भारत के हिन्दुत्व की राजनीति को लगता है कि पश्चिम के दक्षिणपंथ के साथ सहयोग बढ़ा लेंगे तो ये उनकी समझ की कमतरी की पहचान है. मुसलमानों से नफ़रत के नाम पर भले कुछ बयानबाज़ियां हो सकती हैं लेकिन ये भी एक हद तक.”
हुदभाई कहते हैं,कि ”ट्रंप के बारे में कुछ भी कहना बहुत ही जोखिम भरा होता है क्योंकि इनका व्यक्तित्व बहुत ही अस्थिर है. ये अपनी बातों से बहुत जल्दी मुकर जाते हैं. मुमकिन है कि छह महीने बाद पाकिस्तान को ट्रंप गाली देने लगें और भारत को गले लगा लें. मुझे तो लगता है कि यह फौरी है. जैसे ट्रंप ने पाकिस्तान से कहा कि इसराइल को मान्यता दो तो बात बिगड़ जाएगी. पाकिस्तान इससे इनकार ही करेगा क्योंकि लोग स्वीकार नहीं करेंगे. इससे ट्रंप चिढ़ जाएंगे.”
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परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ”ऑपरेशन सिंदूर से आसिम मुनीर का कद पाकिस्तान में बहुत ऊंचा हो गया है. ऑपरेशन सिंदूर बाद पाकिस्तान में फौज का रुतबा बहुत ही ऊपर चला गया है. ऐसे में आसिम मुनीर जो बोल रहे हैं या भारत को धमकी दे रहे हैं तो यह उनके उस आत्मविश्वास को बता रहा है कि वही सरकार हैं. ”
पाकिस्तान की रक्षा विश्लेषक आयशा सिद्दीक़ा से पूछा गया कि वह पाकिस्तान और ट्रंप के बीच उमड़े प्यार को कैसे देखती तो उन्होने कहा कि ”मैं ये नहीं मानती कि ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति प्यार केवल भारत पर दबाव बनाने को उमड़ रहा है. उन्हें मध्य-पूर्व, मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान के साथ कुछ हद तक भारत पर भी रोब डालने को पाकिस्तान की ज़रूरत है. मैं इसको केवल भारत के संदर्भ में नहीं देखती. ट्रंप की और भी कई सारी ज़रूरतें हैं, जिनको पाकिस्तान और यहाँ की सेना की ज़रूरत है। ईरान मामले में भी ट्रंप के लिए पाकिस्तान बहुत ही महत्वपूर्ण देश है. एब्राहमिक एकॉर्ड में भी ट्रंप पाकिस्तान को शामिल करना चाहते हैं क्योंकि सऊदी अरब इसमें अब अकेले नहीं जाना चाहता. मध्य-पूर्व के संदर्भ में ट्रंप को पाकिस्तान की ज़रूरत है. ट्रंप की फैमिली के बड़े स्टेक हैं. क्रिप्टोकरेंसी और माइन एंड मिनिरल्स को लेकर पाकिस्तान ने ट्रंप को बहुत कुछ आश्वासन दिया है.”
कसिद्दीक़ा जवाब में कहती हैं, कि ”देखिए ट्रंप अहंकारी हैं. हिन्दुस्तान का मसला यह है कि नरेंद्र मोदी का भी अपना स्वाभिमान है. मुझे लगता है कि कई मामलों में ये मोदी और ट्रंप के स्वाभिमान का टकराव है. मोदी अपनी जनता को बता नहीं पा रहे कि ट्रंप के कहने पर पाकिस्तान से युद्धविराम किया. ये दोनों के पर्सनल ईगो का भी टकराव है। मुझे लगता है कि भारत ने ट्रंप से कुछ ज़्यादा उम्मीद लगा ली थी. भारत से जो ट्रंप मांग रहे हैं, उसे इंडिया अफोर्ड नहीं कर सकता. ख़ास कर कृषि और डेयरी क्षेत्र में. भारत के हिन्दुत्व राजनीति को लग रहा था कि हिन्दुस्तान बहुत शक्तिशाली हो गया है और अमेरिका इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता. मुझे लगता है कि अमेरिका में ये समझ बनी है कि भारत में अमेरिका के लिए चीन से लड़ने की ताक़त नहीं है, ऐसे में भारत पर इतना दांव लगाने का कोई मतलब नहीं है.”
हालांकि जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एफेयर्स के डीन श्रीराम चौलिया ऐसा नहीं मानते हैं कि ट्रंप को साधने में भारत की नीति विफल रही है.
चौलिया कहते हैं, ”पाकिस्तान मामले में भले अभी लग रहा है कि उसने ट्रंप को साध लिया है लेकिन यह क्षणिक है. आप ट्रंप का पहला कार्यकाल याद कीजिए. ट्रंप ने जो अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाया है, उसे 27 अगस्त से लागू होना है. मुझे लगता है कि यह कभी लागू नहीं होगा. 15 अगस्त को ट्रंप और पुतिन में कोई न कोई समझौता हो जाएगा. मेरा मानना है कि 25 प्रतिशत टैरिफ भी घटेगा. ट्रंप को जो लोग नहीं समझते हैं, वही कह सकते हैं कि पाकिस्तान ने उन्हें अपने पाले में कर लिया है.”
