उत्तराखंड में भूमि सर्वेक्षण और बंदोबस्ती की रुपरेखा को बनी आठ सदस्यीय समिति
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशभर में अगले पांच वर्षों में चरणबद्ध भूमि बंदोबस्त की घोषणा की है। राजस्व परिषद ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए एक विभागीय समिति का गठन किया है, जो 15 दिनों में विस्तृत कार्ययोजना तैयार करेगी। भूमि बंदोबस्त के लिए नियमों में संशोधन की आवश्यकता है।
>मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की है पांच वर्षों में चरणबद्ध भूमि बंदोबस्त की घोषणा।
देहरादून 22 नवंबर2025 । । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के अनुसार प्रदेशभर में कृषि भूमि का अगले पांच वर्षों में चरणबद्ध सर्वेक्षण कर बंदोबस्त की दिशा में राजस्व परिषद ने कदम बढ़ा दिए हैं। परिषद की ओर से इस संबंध में गठित विभागीय समिति 15 दिन में भूमि बंदोबस्त का कार्य प्रारंभ कराने के लिए विस्तृत कार्ययोजना एवं मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करेगी।
मुख्यमंत्री धामी ने राज्य स्थापना की रजत जयंती के अवसर पर पूरे प्रदेश में कृषि भूमि का चरणबद्ध बंदोबस्त अगले पांच वर्ष में कराने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की घोषणा को मूर्त रूप देने के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जाएगी। इसके आधार पर चरणबद्ध भूमि बंदोबस्त पर आगे बढ़ा जाना है। भूमि बंदोबस्त के लिए राजस्व अभिलेखों में दर्ज भूमि के बंदोबस्त के लिए विद्यमान नियमों एवं अधिनियमों में संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी। इसके दृष्टिगत राजस्व परिषद की आयुक्त एवं सचिव रंजना राजगुरु ने बताया कि इस संबंध में आठ सदस्यीय विभागीय समिति गठित की गई है।
आठ सदस्यीय समिति में गढ़वाल मंडल के अपर आयुक्त उत्तम सिंह चौहान, राजस्व परिषद के संयुक्त संचालक चकबंदी नरेश चुद्र दुर्गापाल, स्टाफ आफिसर सोनिया पंत, भू-विशेषज्ञ एनएस डांगी, चकबंदी अधिकारी अनिल कुमार, सर्वेक्षण इकाई के पेशी कानूनगो मनोज श्रीवास्तव, सेवानिवृत्त सर्वे नायब तहसीलदार मोहम्मद मोहसिन एवं सेवानिवृत्त सर्वे कानूनगो मोहन सिंह रावत सम्मिलित हैं।
समझिए बंदोबस्त है क्या…
भूमि बंदोबस्त एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसके तहत सरकार या स्थानीय प्रशासन भूमि के अधिकारों, कर्तव्यों और व्यवस्थाओं को निर्धारित करता है। यह एक प्रकार का भूमि सुधार है, जिसका उद्देश्य भूमि के वितरण और उपयोग को नियंत्रित करना होता है। यह प्रक्रिया भूमि मालिकों के अधिकारों का निर्धारण करती है, ताकि भूमि का उपयोग उचित तरीके से किया जा सके और समाज में भूमि के वितरण में समता लाई जा सके।
बंदोबस्त का उत्तराखंड में लंबा इतिहास…
ब्रिटिश काल में उत्तराखंड के भूमि बंदोबस्त
ब्रिटिश शासन उत्तराखंड में गोरखाओं को हराने के बाद 1815 में शुरू हुआ। इसी साल कुमाऊं में गार्डनर और 1816 में गढ़वाल में ट्रेल के नेतृत्व में पहला भूमि बंदोबस्त किया गया। यह बंदोबस्त सिर्फ एक साल का था, इसलिए इसे एकल/वार्षिक बंदोबस्त कहा गया।1819 में ट्रेल ने कुमाऊं में पहला पटवारी नियुक्त किया। इसके बाद उन्होंने 1823 में पंचसाला बंदोबस्त शुरू किया, जिसमें गांव-गांव जाकर भूमि का नाम और वर्ग निर्धारण किया जाता था। इसे “अस्सी वर्षीय बंदोबस्त” भी कहा गया।
ट्रेल ने अपने कार्यकाल (1816-1833) में कुल 7 भूमि बंदोबस्त किए। इनमें 1817 में कुमाऊं का पुनः बंदोबस्त भी शामिल था।
बैटन का बंदोबस्त (1840)
1840 में बैटन ने बीस वर्षीय बंदोबस्त किया, जो ब्रिटिश काल का 8वां भूमि समझौता था। इसकी विशेषता यह थी कि, हर गांव को अपना रिकॉर्ड रखने का अधिकार दिया गया। साथ ही लगान की दर एक रुपए वार्षिक तय की गई।
विकेट सेटलमेंट (1863-1873) : सबसे प्रभावी वैज्ञानिक बंदोबस्त
ब्रिटिश शासन का 9वां भूमि बंदोबस्त विकेट के नेतृत्व में किया गया। यही वह समय था जब पहली बार भूमि वर्गीकरण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया।
विकेट ने पहाड़ी भूमि को 5 वर्गों में बांटा –
