दो-दो हाथ को तैयार इंडी गठबंधन ने क्यों होने दिया ध्वनिमत से लोस अध्यक्ष का फैसला?

Om Birla Elected Lok Sabha Speaker Without Vote Division Who Will Be Deputy speaker?
पक्ष-विपक्ष की खींचतान में कैसे 20 मिनट में हो गई बिरला का पदारोहण, अब किसे मिलेगा उपाध्यक्ष पद?

मंगलवार रात मल्लिकार्जुन खरगे के घर इंडिया गठबंधन की बैठक में सपा नेता रामगोपाल यादव और कुछ अन्य नेताओं ने ये प्रस्ताव रखा था। बैठक में इन नेताओं ने साफ कहा था कि इंडिया गठबंधन के पास संख्या बल नहीं है। वहीं इंडिया गठबंधन के कुछ सांसद गैर हाज़िर भी रहेंगे।

18वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद पर बिना मतदान ओम बिरला की ताजपोशी किसी बड़ी हैरानी से कम नहीं रही। मंगलवार रात तक इस पद के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तगड़ी रस्साकस्सी का दौर चल रहा था। बुधवार सुबह भी एनडीए और विपक्षी गठबंधन के नेताओं के बीच तीखे बयान के दौर जारी रहे। लेकिन लोकसभा की कार्यवाही के शुरू होने के महज 20 मिनट के भीतर बिना किसी मतदान के ओम बिरला का नाम सर्वसम्मति से सामने आना, किसी ट्विस्ट से कम नहीं था। ध्वनिमत से बिरला को अध्यक्ष चुने जाने पर विपक्ष ने वोटिंग की मांग ही नहीं रखी और इसे मान लिया।

दरअसल, विपक्ष ने ओम बिरला के सामने के सुरेश को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई, तो विपक्ष ने मत विभाजन की मांग ही नहीं की। जिसके बाद सर्वसम्मति से ही बिरला को अध्यक्ष चुन लिया गया। विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि मंगलवार रात हुई INDI गठबंधन की बैठक में यह फैसला लिया गया कि विपक्ष वोटिंग के लिए दबाव नहीं बनाएगा। अगर ध्वनिमत से चुनाव परिणाम आ जाता है, तो उसे मान लिया जाएगा। मंगलवार रात मल्लिकार्जुन खरगे के घर इंडी (INDI) गठबंधन की बैठक में सपा नेता रामगोपाल यादव और कुछ अन्य नेताओं ने ये प्रस्ताव रखा था। बैठक में इन नेताओं ने साफ कहा था कि इंडिया गठबंधन के पास संख्या बल नहीं है। वहीं इंडिया गठबंधन के कुछ सांसद गैर हाज़िर भी रहेंगे। ऐसे में अगर वोटिंग हुई, तो इंडी गठबंधन की संख्या और कम दिखेगी, जबकि एनडीए संख्या बल में बेहद मजबूत दिखेगा।

इंडी गठबंधन की हो जाती अग्निपरीक्षा
दूसरी तरफ लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सत्ता पक्ष के साथ-साथ इंडी ब्लॉक की एकजुटता का भी चुनाव था। एनडीए गठबंधन शुरू से ही नंबर गेम में आगे चल रहा था। विपक्ष भी दमदारी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा था। लेकिन इंडी गठबंधन को पहला झटका तब लगा, जब गठबंधन के उम्मीदवार कोडिकुन्निल सुरेश के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करने से सहयोगी टीएमसी सांसदों ने इनकार कर दिया। टीएमसी ने दूरी बनाने के पीछे यह दलील दी कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर ममता बनर्जी के साथ चर्चा करना, क्यों जरूरी नहीं समझा। इससे लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार विपक्षी खेमे के भीतर जारी उठापटक उजागर हुई।

टीएमसी ने छिपाई नहीं अप्रसन्नता 
टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल से वार्ता कर ममता बनर्जी की अप्रसन्नता बताई । मंगलवार को लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेने पहुंचे टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि के. सुरेश की उम्मीदवारी को लेकर उनकी पार्टी से कोई संपर्क नहीं हुआ। टीएमसी से राय नहीं ली और इस बारे में पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ही कोई फैसला लेंगी। तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक्शन में आए। उन्होंने तुरंत ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी से बात की। इसके बाद मामला सुलझा। ममता की हरी झंडी मिलने पर ही टीएमसी सांसद डेरेक ओ. ब्रायन और कल्याण बनर्जी सदन की रणनीति पर चर्चा करने को मंगलवार रात मल्लिकार्जुन खरगे के निवास पहुंचे। यहां इंडी ब्लॉक के नेताओं की बैठक में लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की रणनीति पर चर्चा हुई।

सूत्रों का कहना है कि खरगे के घर बैठक में तृणमूल सांसदों ने कहा कि पार्टी अब के. सुरेश के समर्थन में है, लेकिन पार्टी नेतृत्व बुधवार को स्पष्ट करेगा कि विपक्ष को वास्तविक मतदान से या सिर्फ ध्वनि मत से अध्यक्ष का चुनाव का निपटारा करना चाहिए। बुधवार सुबह टीएमसी ने कांग्रेस नेताओं को बताया कि वे मतदान के पक्ष में है। इसके बाद इंडिया गठबंधन नेताओं ने तय किया नंबर हमारे पक्ष में नहीं हैं। इसलिए मतदान का फैसला फिलहाल टाल देना चाहिए। इंडिया गठबंधन के एक सांसद ने कांग्रेस के निर्णय पर आपत्ति जताई कि इस विषय पर कांग्रेस ने टीमएसी के अलावा एनसीपी और अन्य दलों से भी चर्चा नहीं की थी। अगर पहले से चर्चा होती तो के. सुरेश के नामांकन में इंडिया गठबंधन के अन्य नेता भी होते। कांग्रेस को हमेशा भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे क्षेत्रीय दिग्गजों का सम्मान करना चाहिए।

लोकसभा स्पीकर चुनाव से अपनी ताकत दिखाना चाहता था विपक्ष लेकिन…
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव से विपक्षी गठबंधन बताना चाहता था कि वह अब कमजोर नहीं है। इसलिए उन्होंने अपना उम्मीदवार खड़ा किया। हालांकि विपक्षी खेमे को यह डर ज़रूर था कि मतदान हुआ और नंबर कम हो गए, तो विपक्ष का न केवल मनोबल कम होगा बल्कि इससे इंडी ब्लॉक की एकजुटता पर भी प्रश्न खड़ा होगा। इसके अलावा एक कारण यह भी था कि किन्हीं कारणों से अब तक विपक्षी गठबंधन के करीब एक दर्जन सांसद लोकसभा सदस्यता लेने पहुंचे ही नहीं। विपक्ष पहले एनडीए से नंबर गेम में कम था। इसके अलावा कई सांसद मौजूद नहीं थे। ऐसे में इंडिया गठबंधन ने मत विभाजन का रिस्क लेना उचित नहीं समझा। इसलिए विपक्ष ने अंतिम मौके पर सर्वसम्मति का सहारा लिया।

मोदी सरकार ने दिया ये संदेश
स्पीकर के चुनाव से मोदी सरकार ने भी कई संदेश दिए हैं। सरकार ने अपना स्पीकर बनवा कर साफ बता दिया कि लोकसभा चुनाव में सीटें भले ही कम हो गई हों, लेकिन सरकार का मिजाज नहीं बदलेगा। लोकसभा अध्यक्ष चुनाव में आर-पार को तैयार विपक्ष को आगे बढ़ने का रास्ता देकर सरकार ने साफ कर दिया कि सदन में संख्या बल और एनडीए के सहयोगी दलों पर पर उसका इतना नियंत्रण है कि उसे अब भी विपक्ष के सामने झुकने की कोई जरुरत नहीं है।

अब क्या होगा उपाध्यक्ष का?
लोकसभा में इस बार विपक्ष का संख्या बल बढ़ा है। इसलिए सदन में भविष्य में और अधिक शोर-शराबा दिखेगा। इसलिए संसद में चर्चा इस बात की ज्यादा है कि सरकार भविष्य में उपाध्यक्ष का पद किसी एनडीए सहयोगी को दे देगी या फिर पिछले दो कार्यकाल की तरह इस बार भी लटकाए रखेगी। या फिर परंपरा के नाम पर ये पद विपक्ष को मिलेगा।

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