क्या चंद्रशेखर आजाद के पार्क में होने की खबर नेहरू के अग्रेजों को दी थी ?
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत आजाद ने ही यह आरोप लगाया है कि चंद्रशेखर आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की सूचना नेहरू ने ही अंग्रेजों को दी थी ।
उन्होंने कहा कि काकोरी कांड में लूटे गए खजाने को लेकर चंद्रशेखर आजाद आनन्द भवन गए थे जिसके बदले शहीदे आजम भगत सिंह को रिहा कराया जा सके । यह खजाना उन्होंने मोतीलाल नेहरू को सौंपा था । मोतीलाल ने उस खजाने को बड़ी चतुराई से हड़प लिया ।
श्री धर्मेंद्र गौड़ (जो नेहरू के समय में एक गुप्तचर अधिकारी थे) ने एक पुस्तक में लिखा है कि जिस दिन अल्फ्रेड पार्क वाले कांड में चंद्रशेखर आज़ाद की मृत्यु हुई उस दिन वह नेहरू से मिलने के लिए आनन्द भवन गए थे और किसी बात पर उनकी नेहरू से कहा-सुनी हो गई थी । उसके तुरंत बाद वे अल्फ्रेड पार्क में चले गए थे । वहां जाते ही इनको बहुत से पुलिस वालों ने घेर लिया था। बचने का कोई उपाय न देखते हुए आजाद ने अपनी पिस्तोल में बची अंतिम गोली से मृत्यु का वरण कर लिया था ।
१९३१ की बात है । अंग्रेज सरकार उग्रविचारधारा वाले लोगों का बड़े स्तर पर दमन कर रही थी । ज़्यादातर क्रांतिकारी देशभक्त पकड़े जा चुके थे ।आज़ाद और बहुत ही कम लोग बाहर थे । माहौल और स्थिति दोनो ख़राब थी । गांधी ने सरदार भगत सिंह का मामला इरविन के मीटिंग में शामिल नहीं किया था । क्यूँकि सरदार भगत सिंह की पूरी टीम रूसियों से भी सम्पर्क में थी इसलिए आज़ाद कुछ दिन तक Russia जा के रहना चाह रहे थे और इस काम ( रूस जाने में ) में वे नेहरु की मदद चाहते थे । नेहरु इलाहाबाद के थे और आज़ाद भी Rewa ( इलाहाबाद के बग़ल) के थे ।आज़ाद इलाहाबाद के एक पार्क में बैठे थे और उन्होंने अपना संदेश संदेशवाहक और पुराने दोस्त वीर भद्र तिवारी से नेहरु तक भेजवाया । नेहरू ने वापस उन्हें वहीं रुकने को कहा ।कहते हैं कि नेहरु के कहने पर वीर भद्र तिवारी ने पुलिस को सूचित किया था । कुछ देर में police आयी और २४ साल का एक जवान देशभक्त अंत में शहीद हो गया ।
धन्यवाद
क्या चंद्रशेखर आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर अंग्रेजों को जवाहर लाल नेहरू ने दी थी?
आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की मौत के पीछे जवाहर लाल नेहरू की भूमिका थी। नेहरू ने ही अंग्रेजों को यह सूचना दी थी कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद कहां छिपे हुए हैं। यह आरोप खुद चंद्रशेखर आजाद के भतीजे ने लगाया है। गौरतलब है कि इससे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजन भी नेताजी की मौत के रहस्य को लेकर नेहरू और तत्कालीन कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत आजाद ने यूपी पत्रिका को बताया कि, जवाहर लाल नेहरू ने ही अंग्रेजों को चंद्रशेखर आजाद के कंपनी बाग में होने की सूचना दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने उनको घेर लिया था। लेकिन फिर भी क्रांतिकारी आजाद अपनी आखिरी गोली तक अंग्रेजों से लडे़ थे।कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जी के कहने पर भगत सिंह की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद खुद एचएसआरए का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे। सुजीत ने आरोप लगाया कि न केवल खजाना हड़प लिया, बल्कि आजाद के साथ धोखा भी किया।
क्या चंद्रशेखर आजाद को अपनों से धोखा मिला था?
एक क्रांतिकारी जिन परिस्थितियों में रहता है वहाँ धोका मिलना कोई बड़ी बात नही है। और चंद्रशेखर आज़ाद पहले ऐसे व्यक्ति नहीँ थे जिन्हें धोका मिला । काकोरी के क्रांतिकारियों के साथ भी ऐसा ही हुआ था ।
Quora , whatsapp जैसे platform पर एक परंपरा सी चली आ रही है कि देश मे हुई इस प्रकार की घटनाओं का ठीकरा आम तौर पर नेहरू जी या गांधी जी के सर फोड़ना ।
श्रीयुत चद्रशेखर आज़ाद के विषय मे खबर देने वाले नेहरू थे ,कुछ इस प्रकार की बिना सिर-पैर की बकवास खूब की जाती है । जो सरासर गलत और झूठी है । लोग पढ़ना नही चाहते बस कहीँ से सुन लिया , और विश्वास कर लिया और बन गए एक propaganda का हिस्सा जो जानबूझकर एक व्यक्ति विशेष के प्रति नफरत फैलाने के लिए चलाया जा रहा है ।
आइए आज इस विषय पर ही बात करते है कि आखिर “आज़ाद “को धोखा देने वाले थे कौन । उत्तर थोड़ा बड़ा है , इसलिए धैर्यपूर्वक पूरा पढ़े ।
हाँ , ये सच है कि आज़ाद को धोखा मिला ,वो भी किससे …..उन लोगों से जो उनके करीबी थे , जिनके शुरुआती जीवन मे क्रांति ही सब कुछ थी , पर समय के बहाव में जो अपनी आसक्तिओं के आगे इतना कमजोर पड़ गए कि अपने ही commander-in-chief की मृत्यु का षड्यंत्र रचा ।
भगतसिंह ,दत्त के बम फेंकने के बाद पुलिस ने बाकी क्रांतिकारियों की धर -पकड़ चालू कर दी । 12 अप्रैल,1929 को सुखदेव आदि भी पकड़े गए और बाद में अक्टूबर तक राजगुरु ,शिव वर्मा , अजय घोष आदि मिलकर 18 अभियुक्त पकड़ लिए गए । बाहर रह गए आज़ाद और उनके गिने-चुने विश्वसनीय साथी ….और हाँ कुछ गद्दार भी ।
बाहर रह गए साथी थे :-
श्री भगवती चरण वोहरा (दुर्गा भाभी के पति , Philosophy of the bomb के लेखक )
विश्वनाथ वैशम्पायन (आज़ाद के सबसे विश्वशनीय)
भगवान दास माहौर (आज़ाद के विश्वसनीय)
सुखदेवराज (एक मात्र चस्मदीद गवाह,जो अंतिम समय मे अल्फ्रेड पार्क में उनके साथ थे )
दुर्गा वोहरा, सुशील दीदी, खोकी ,चंद्रावती,प्रकाशवती
यशपाल
वीरभद्र
कैलाशपति एवं अन्य ।
श्री भगवती चरण वोहरा 28 मई, 1930 के दिन बम परिक्षण करते हुए रावी नदी के तट पर शहीद हुए । वह बम भगत सिंह आदि को जेल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे । आज़ाद को इससे गहरा धक्का लगा । भगवती भाई ही थे जो दल में भगतसिंह की कमी पूरी किए हुए थे ,पर अब वो भी जा चुके थे ।
भगतसिंह आदि के गिरफ्तार हो जाने के बाद दल में काफी अशांति सी फेल चुकी थी । सही मायने में आज़ाद को वैसे साथी मिल ही नही पा रहे थे जो वास्तव में अपने उद्देश्य के लिए पूर्ण समर्पित हो । 1या 2 ही साथी ऐसे थे जो उनके विश्वासपात्र थे ।
आज़ाद के बचे हुए साथियों के संस्मरणों से 3 लोग शक के घेरे में आते हैं ,जिनके कारण और जिनके द्वारा कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी जिससे आज़ाद अल्फ्रेड पार्क में शहीद हुए । आइए देखते है 👇👇👇👇
यशपाल – नाम तो सुना ही होगा इनका , हिंदी साहित्य के महान लेखकों में इनकी गिनती की जाती है , और वास्तव में ये एक उम्दा कहानीकार थे । भगतसिंह आदि तो इन्हें “कलाकार ” कहा करते थे । पर इन्होंने अपनी इस प्रतिभा का प्रयोग अपनी करतूतें छिपाने और उसका ठीकरा दूसरों पर कैसे फोड़ा जाए ,इस पर बखूबी किआ है । इनके द्वारा लिखी गयी इनकी आत्मकथा ” सिंहावलोकन” पढ़ कर किसी भी व्यक्ति को साफ साफ समझ आ सकता है कि इसमें आधे से ज्यादा बातें झूटी और बकवास है । ये जनाब यही नही रुकते , पुस्तक में श्री आज़ाद के बारे मे तो ऐसी ऐसी बातें लिखी है जिन पर कोई चाह कर भी यकीन नही कर सकता । कहीं ये आज़ाद को “मोटी बुद्धि” कहकर संबोधित करते हैं तो ,कहीं आज़ाद में सोचने – समझने और बहस (बौद्धिक स्तर पर ) कर सकने की छमता न होना कहकर उनका अपमान करते हैं । और अंत मे इनकी खुद की गलत हरकतों के बाद भी ये अपनी पुस्तक में आज़ाद से माफी भी मंगवाते हैं ।
पर सुनिए, वास्तविकता क्या थी 👉👉👇👇👇
भगतसिंह आदि के जेल में चले जाने के बाद सिर्फ यही कुछ साथी रह गए थे । पार्टी को fund की ज़रूरत हमेसा से रहती थी । इसलिए कहीं न कहीं से पैसे का इंतज़ाम करना ही पड़ता था । ऐसे मे दल के संपर्क में आई “प्रकाशवती ” । इस लड़की को यशपाल की बहन स्कूल में पढाती थी । और उसी के माध्यम से यह यशपाल से मिली । “सिंहावलोकन” में यशपाल कहते हैं कि “प्रकाशो” दल के लिए बहुत सारा रुपया लाने वाली थी । पर रास्ते मे वो रुपया उससे कहि गिर गया । उसके घर वाले उसकी शादी कराना चाहते थे ,इसलिए वह घर से भाग कर यशपाल के पास आ गई और दल में शामिल हो कर देश सेवा में संलग्न होने की प्रार्थना करने लगी । ये राम कथा श्री यशपाल लिखते हैं ।
अब आगे सुनिए अन्य लोगों के आंखों-देखा हाल । वैशम्पायन, सुखदेवराज ,माहौर जी , दुर्गा वोहरा आदि के संस्मरणों से ये साफ पता चलता है कि यशपाल एक झूटी कहानी बनाकर अपना और प्रकाशवती का सम्बंध सही साबित करने की कोशिश कर रहा है । सच्चाई तो ये है कि दल में आने से पहले ही यशपाल प्रकाशो से प्यार कर बैठा ,और पैसे लेकर आने वाली झूटी बात फैलाकर प्रकाशो को दल में शामिल करा लिया । बाद में आज़ाद की अनुपस्तिथि में इसी यशपाल ने पार्टी का कीमती पैसा इस लड़की के लिए कीमती कपड़े , मोटर का सफर , रेलगाड़ी का फर्स्ट क्लास सफर आदि करने में बर्बाद किया । आज़ाद ने खुद कमरे में कीमती क्रोकरी पड़ी देखी थी ,जिसका वहां कोई काम था ही नही । यहाँ तक कि शुरुआत में यशपाल इस संबंध से मुकरता रहा पर बाद में खुद ही इस बात को स्वीकार भी किआ । सुखदेवराज के अनुसार इन दोनों का सम्बंध “आपत्तिजनक” था , जो एक क्रांतिकारी को शोभा नही देता । यशपाल अपनी आसक्तियों के चलते कमजोर पड़ गया और कर्तव्य पथ से भटक गया । जब आज़ाद को यह बात पता चली ,तो उनका गुस्सा फूट पड़ा । वे किसी भी हालत में अनुशासनहीनता और गद्दारी बर्दास्त नही कर सकते थे । उन्होंने केंद्रीय समिति बुलाकर इसे मारने का निर्णय किया । अब देखिए ,नाटक शुरू होता है । यशपाल उस मीटिंग में नही था क्योंकि वो जानता था कि आज़ाद उसकी हरकतों से नाराज़ हैं और वह उनसे नज़रें नही मिला पाएगा । अब वीरभद्र तिवारी यशपाल से मिलकर उसे केंद्रीय समिति के फैसले के बारे मे बता देता है । मतलब दल से गद्दारी कर डाली । और यशपाल को आगाह कर देता है । अब क्योंकि यशपाल को मारे जाने की बात पता चल चुकी थी इसलिए वो आज़ाद से खैर खा बैठा पर आज़ाद से सीधे टक्कर तो ले नही सकता था । इसलिए “सिंहावलोकन ” में वीरभद्र का पक्ष लेते हुए उसके विषय मे काफी मीठे बोल लिखे गए है और कहा गया है कि बाद में किसी तीसरे व्यक्ति की मदद से आज़ाद से अकेले में मिलकर सारी बातें साफ़ हुई और आज़ाद ने अपने इस फैसले( यशपाल को मार देने का ) के लिए उससे माफी मांगी । ये पूरी तरह से बकवास और झूठ है । आज़ाद की अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर यशपाल ने दी ,इसका जिक्र कहीं नही मिलता ,हाँ पर कहि न कही ये आज़ाद से प्रतिशोध की भावना रखता था औऱ वीरभद्र का पक्षधर भी था । ऐसी कई बातें हैं जो यशपाल के द्वारा बस बनाई गई हैं उनमें कोई सच नही हैं । एक लड़की के प्यार में आसक्त हो ये पूरे दल को डूबा ले गया । आज़ाद की शहादत के तुरंत बाद इसने स्वयं को कमांडर इन चीफ घोसत कर दिया पर इसके कमांडर इन चीफ रहते हुए एक भी एक्शन नही हुआ और बड़े ही नाटकीय ढंग से इसकी गिरफ्तारी भी हुई । आज के समय मे एक मशहूर साहित्यकार के रूप में मशहूर इन जनाब ने शायद ही कभी जेल के डंडे खाए हो । इनकी तो गिरफ्तारी भी बड़ी शानदार ढंग से हुई थी । उसके बारे में फिर कभी ।
2. कैलाशपति :- ये भी दल में था । शुरू में ठीक था । और जब यशपाल के बदलते तेवर और तौर – तरीके देखे । तो असर तो इस पर भी हुआ । और इसने भी चंद्रवती नाम की एक शादी- शुदा औरत ( जिसका पति इनकी पार्टी को हर तरह से सहायता देता था और जिसने भगतसिंह के पम्प्लेट टाइप करने में अपनी नौकरी तक खतरे में डाल दी ) से सम्बंध स्थापित कर लिए । और बाद मे सरकारी गवाह बनकर अपने ही साथियों के खिलाफ गवाही दी और वीरभद्र के बारे में भी बयान दिया । इसका जिक्र इसलिए किआ है ,क्योंकि यशपाल आज़ाद की शहादत का जिम्मेदार इसे कहता है और प्रकाशवती और खुद के संबधों के बारे मे उल्टी सीधी बात फैलाने का इल्जाम भी इसी पर लगाता है।
3 .वीरभद्र तिवारी :- ये आदमी शुरू से लेकर अंत तक अवसरवादी रहा । काकोरी के शहीदों के साथ भी इसने धोका किआ और अंत मे आज़ाद के साथ भी । सच्चाई तो ये थी कि यह केंद्रीय समिति का सदस्य था ,जिससे पार्टी के हर एक्शन का पता इसे रहता था और इसका संबंध इसके पड़ोसी पुलिस इंस्पेक्टर शम्भूनाथ से था । मतलब ये बंदा double -cross करता रहा । जब भगवतीचरण ने आज़ाद के सामने ये प्रस्ताव रखा कि केंद्रीय समिति में केवल वही लोग शामिल किए जाए जो किसी न किसी एक्शन में शामिल हो तो इन जैसे लोगों की धज्जियां उड़ गई । वीरभद्र एक चालाक खोपड़ी का डरपोक आदमी था । पर ये केंद्रीय समिति में बने रहना चाहता था ।इसलिए जब कभी भी यह किसी एक्शन में शामिल होता तो ये कुछ न कुछ ऐसा कर देता कि वो एक्शन हो ही नही पता । औऱ इससे यह समिति में भी बना रहता और इसे एक्शन भी नही करना पड़ता । आज़ाद को इस मामले में कई लोगों ने बताने की कोशिश की पर आज़ाद ने शुरू में इन बातों को नज़रन्दाज किआ । लेकिन कहीं न कहीं आज़ाद को इस पर शक था । आज़ाद जब सुखदेवराज के साथ अल्फ्रेड पार्क में जा रहे थे ,तो वहाँ उन्होंने वीरभद्र तिवारी को देखा था और देखते ही वे बोले :- “शिराज ,देखो वो वीरभद्र है ,पर ये यहाँ क्या कर रहा है ।” और इसके बाद ही वहाँ एक मोटर आ कर रुकी जिसमे कुछ सिपाही थे । गोलियां चलने लगी । आज़ाद और सुखदेवराज ने जामुन के पेड़ की आड़ ली ,दोनों तरफ से गोली चलने लगी । नाटबाबर की एक गोली आज़ाद की जांघ में आकर लगी । आज़ाद ने सीधे एक गोली चलाई जो उसके कंधे में लगी । इतने में आज़ाद ने राज से जाने को कहा और उन्हें वहाँ से निकाल दिया । जब तक “राज” मदद ले कर पहुचे तब तक आज़ाद शहीद हो चुके थे । भीड़ इक्कठा हो गई थी ।
ये सब अंदरखाने की बात है , जिसमे सबसे बड़ा गद्दार वीरभद्र तिवारी है ,जिसने आज़ाद की खबर शम्भूनाथ को दी और उसने नाट बाबर को । यशपाल अपने बाद के लेखों में सच्चाई छिपाता है और हर तरह से वीरभद्र का पक्ष लेता है क्योंकि उसने यशपाल की जान बचाई थी ।
स्रोत:- अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद :- विश्वनाथ वैशम्पायन ।
सिंहावलोकन:-यशपाल ।
जब ज्योति जगी – सुखदेवराज ।
हां नेहरू ने ही अंग्रेजों को बताया था कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद कहां छिपे हुए हैं
क्या चंद्रशेखर आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की मुखबिरी जवाहर लाल नेहरु ने अंग्रेजों से की थी ?
चंद्रशेखर आज़ाद
एक ऐसा नाम जिसे कोई भी भारतीय जब सुनता है तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। सिर्फ उनका नाम ही आज़ाद नहीं था, वह आजादी के साथ जीना भी जानते थे।
इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क उस चन्द्रशेखर आज़ाद की जिन्दगी का वो आखिरी किस्सा है जिसने जीते जी अपने बेखौफ अंदाज से अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए, लोहे के चने चबवा दिए.
चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही भारत की आज़ादी को लेकर दीवानगी की हद तक गंभीर थे। पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल और सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारी अनन्यतम साथियों में
इस बात की क्या सत्यता है कि “चंद्रशेखर आजाद की मुखबीरी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से की थी”?
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता आन्दोलन की कमान सदैव केवल और केवल महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के हाथ में थी, न कि क्रांतिकारियों के हाथ में। क्रांतिकारी स्वयं गांधी, नेहरू और सुभाष को ही नेता मानते थे। ध्यान रहे कि इस सूची में सरदार पटेल का नाम नहीं है क्योंकि न वे अपने मुस्लिम विरोधी रवैए के कारण जनसाधारण में लोकप्रिय थे और न ही क्रांतिकारियों में। अधिकतर क्रांतिकारी कम्युनिस्ट थे और नेहरू के निकट थे। नेहरू के सामने चन्द्रशेखर आज़ाद एक बौने से अधिक महत्व नहीं रखते थे।यह लोग आर्थिक और नैतिक सहायता के लिए नेहरू के पास जाते रहते थे। आज़ाद को नेहरू ने तब जाना जब वे आनन्द भवन जाकर
चंद्रशेखर आजाद जी की मृत्यु कैसे हुयी थी?
चंद्रशेखर आजाद शायरी, चुटकुले और बेबुनियादी लेख तो बहुत हुए लेकिन आज मैं आप सभी को परिचित करना चाहता हूं एक ऐसे हीरो से जो सही मायनों में देश के हीरो थे। फिल्मी पर्दे पर जो कारनामे आज के हीरो बॉडी डबल करने के बाद भी नहीं कर पाते वह एक समय महान क्रांतिकारी और देशभक्त शहीद चन्द्रशेखर आजाद ने कर दिखाया था।शहीद चन्द्रशेखर आजाद की कहानी जब भी मैं पढ़ता हूं तो दिल के अंदर एक अलग सी भावना जाग उठती है जो इस भ्रष्टाचार में लिप्त भारतमाता को जगाने की बात करती है।
चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस- गोखले मार्ग मे रखी है। उस फ़ाइल को नेहरु ने सार्वजनिक करने से मना कर दिया। इतना
चंद्रशेखर आजाद और जवाहरलाल नेहरू की मुलाकात कब और क्यों हुई थी ?
२७ फरवरी १९३१ के दिन नेहरू प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में थे।
चंद्रशेखर आजाद और उनके साथी अपनी गतिविधियों को कुछ समय के लिए समेटकर रूस भागना चाहते थे।इस काम में आर्थिक सहयोग मांगने वह नेहरू जी से मिले।
नेहरू जी ने आजाद से कहा कि अभी आप अल्फ्रेड पार्क जाओ।मेरा बंदा ३ बजे तुम्हारे पास आवश्यक धनराशि लेकर पहुंच जाएगा।
आजाद नेहरू जी की सलाह मानकर अल्फ्रेड पार्क पहुंचे।
नेहरू जी ने आजाद की अल्फ्रेड पार्क में ३बजे तक उपस्थिति की सूचना पुलिस को दे दी।
आजाद ने अपने साथियों को सुरक्षित भगा दिया। खुद दर्जनों पुलिसकर्मियों के बीच फंस गए।
अपने माउजर से पांच पुलिसकर्मियों को जहन्नुम पहुंचा कर अंतिम गोली अपनी क
क्या चंद्रशेखर आजाद की हत्या के लिए मुखबिरी की गई थी?
इतिहास गवाह है कि देश की धरती ने अनगिनत वीर सपूतों को जन्म दिया है। उन्हीं में से एक हैं चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में राम प्रसाद बिस्मिल, सुखदेव और भगतसिंह के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थीं। आजादी की हद तक जाना और बेखौफ अंदाज दिखाना, यही मां भारती के सपूत चंद्रशेखर आजाद की पहचान रही है, जिसके चलते वह आज भी भारतीयों के दिलों में जिंदा हैं। 27 फरवरी 1931 को उन्होंने खुद को अंग्रेजों से घिरा पाकर अपनी ही पिस्तौल से गोली मार ली, ताकि अंग्रेज उन्हें जीवित न पकड़ सकें। भारत माता के वीर सपूत की पुण्यतिथि के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें जानते हैं-
1- चंद्रशेखर आजाद
क्या नेहरू की गद्दारी के कारण अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आजाद को आजाद पार्क में घेर लिया था?
A2a सीधी बात नो बकबास।
आप थोड़ी देर के लिए मान लो कि आप सरकारी मुजरिम हो और सरकार ने आपको जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर एक बड़ा सा ईनाम घोषित किया हुआ है।आप मुझसे मिलने मेरे निमंत्रणम पर मेरे घर आये और वापसी मे आपका इनकाउंटर पुलिस कर देती है।फिर मुखबीरी कौन कर सकता है जब आपके मेरे घर आने का राज सिर्फ मै ही जानता हूं।
यह बात सिद्ध है कि पं चंद्रशेखर आजाद के बारे मे नेहरू ने ही अंग्रेजों को सूचना दी थी और वे मारे गये।क्योंकि मरने से पहले आखिरी बार वे नेहरू से ही मिलकर गये थे।
चंद्रशेखर आज़ाद के बारे में रोचक तथ्य क्या है ?
23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर आजाद का नाम दुनिया के महान क्रांतिकारियों में शुमार है। वह कसम खाए थे कि जीते-जी अंग्रेजों के हाथों में नहीं आएंगे। आजादी पाने के लिए हद तक जाना और बेखौफ अंदाज दिखाना, इन दोनों ही बातों से चंद्रशेखर आजाद आज अमर हैं। 27 फरवरी, 1931 को जब वह इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में किसी से मिलने गए तो मुखबिर ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। आजाद उन पर गोलियां चलाने लगे। जब उनके माउजर की गोलियां खत्म हो गई तो आखिरी गोली उन्होंने खुद को ही मार ली और यह प्रण पूरा किया कि जीते-जी अंग्रेजों के ह
इस बात की क्या सत्यता है कि “चंद्रशेखर आजाद की मुखबीरी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से की होती तो सत्यता होती या प्रमाण होता। नेहरू को पता ही नहीं था कि आज़ाद कहाँ जाने वाले हैं तो वह कैसे बताते कि वे अल्फ्रेड पार्क में मिलेंगे? आज़ाद की मुखबिरी उनके साथी वीरभद्र तिवारी ने की थी, क्योंकि उन्हें ही बताकर गए थे कि वे कहाँ जा रहे हैं।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु से जुड़ी कुछ रहस्यमय बातें क्या हैं?
. चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है जितनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। कहते हैं कि एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है। इसमें आजाद की मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। तमाम कोशिशों के बाद सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। एक बार भारत सरकार ने इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे। लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया। इस फाइल में कथित तौर पर पुलिस अफसर नॉट वावर के बयान दर्ज है। उसने कहा है कि वह उस समय खाना खा रहा था तभी उन्हेंं भारत के एक बड़े नेता ( शायद नेहरू ) ने आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की जानकारी दी थी ।
क्या चंद्रशेखर आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर अंग्रेजों को जवाहर लाल नेहरू ने दी थी?
जी बिल्कुल सही है। क्योंकि चन्द्रशेखर आजाद जी को रुस जाने को पैसा चाहिए था? जिसकी जिम्मेदारी नैहरू ने ली थी। पैसे देने को चन्द्र शेखर आजाद जी को पार्क में बुलाया? और अँग्रेजों को खबर दे दी। जिसका उसे इनाम भी मिला होगा?
