अजमेर गैंगरेप में छह को आजीवन कारावास,30 लाख अर्थदंड

Court Decision Today On 32 Year Old Ajmer Blackmail Scandal All Six Sentenced To Life Imprisonment 
अजमेर सेक्स स्कैंडल : 32 साल बाद 6 आरोपितों को आजीवन कारावास, 30 लाख रुपए अर्थदंड
अजमेर 1992 ब्लैकमेल कांड में पाॅक्सो कोर्ट ने 6 आरोपियों को दोषी ठहराया। इन आरोपितों ने 32 साल पहले मेयो काॅलेज की लड़कियों को ब्लैकमेल किया था। इस मामले में कुल 18 आरोपित थे, जिनमें से कई पहले ही सजा काट चुके हैं।

अजमेर 20 अगस्त 2024 : राजस्थान के 1992 के बहुचर्चित अजमेर सेक्स और ब्लैकमेल कांड में मंगलवार को बड़ा फैसला आया। 6  बलात्कारियों कोर्ट ने दोषी बताते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही सभी 6 दोषियों पर 30 लाख रुपए का अर्थ दंड भी लगाया है। इससे पहले अजमेर के पॉक्सो कोर्ट ने सुबह ही 6 आरोपितों को दोषी ठहराया था। मेयो कॉलेज की 100 से ज्यादा छात्राओं के साथ ब्लैकमेलिंग हुई थी। 32 साल बाद फैसले के समय सभी दोषी कोर्ट में थे।

32 साल पहले कॉलेज की 100 से ज्यादा छात्राओं के साथ रेप

मामला 32 साल पुराना है, जब अजमेर के मशहूर मेयो कॉलेज की 100 से ज़्यादा छात्राओं को आरोपितों ने फोटो खींचकर ब्लैकमेल किया था। आरोपितों में नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमील हुसैन हैं। POCSO कोर्ट ने इन सभी को दोषी पाया। दोषी पाने के बाद पुलिस ने सभी को हिरासत में लिया और दोपहर 2 बजे फैसले के समय फिर कोर्ट में पेश किया।

निर्लज्जता की सीमा पार, कोर्ट में चेहरे पर मुस्कान
कॉलेज की सौ से ज्यादा लड़कियों से पशुता करने वाले ये दोषी कोर्ट पहुंचे तो निर्लज्जता की सारी सीमाएं पार कर दी। फैसले के पहले वो एक दूसरे के साथ मुस्कुराते दिखे। हालांकि आजीवन कारावास की सजा सुनाए पर उनकी गर्दन झुकी थी। सजा बाद  सभी दोषियों को अजमेर जेल भेज दिया गया

18 आरोपित थे, 9 को पहले ही मिली सजा

इस मामले में कुल 18 लोग आरोपित थे। इनमें से 9 को पहले ही सज़ा हो चुकी है, जबकि एक आरोपित ने आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य आरोपित पर एक बिजनेसमैन के बेटे से कुकर्म के आरोप में अलग से केस चल रहा है। एक आरोपित अभी भी भागा हुआ है, जिसे कोर्ट ने भगोड़ा घोषित किया हुआ है। इस मामले में 6 आरोपितों की ट्रायल इसी साल जुलाई में पूरी हुई थी और 8 अगस्त को फैसला आना था। लेकिन अब जाकर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। फैसले के बाद सभी की निगाहें सज़ा की अवधि पर टिकी थी।
6 दोषियों को आजीवन कारावास; ₹5-5 लाख का जुर्माना; 100 छात्रायें हुईं थीं शिकार
अजमेर के सबसे बड़े ब्लैकमेल मामले में नफीस चिश्ती और नसीम उर्फ ​​टार्जन समेत 6 दोषियों को स्पेशल पोक्सो एक्ट कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इन लोगों ने 1992 से 100 से ज्यादा लड़कियों को अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल किया था.

32 साल पहले हुए अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल कांड के बाकी बचे 6 आरोपियों को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने आजीवन कारावास सुनाया है. साथ ही 5-5 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है. इससे पहले अदालत ने अपने फैसले में आरोपितों नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गनी, सैयद जमीर हुसैन और इकबाल भाटी को दोषी घोषित किया . साल 1992 में 100 से ज्यादा स्कूल और कॉलेज छात्राओं के गैंगरेप और ब्लैकमेलिंग मामले में 18 आरोपित थे. 9 को सजा सुनाई जा चुकी है. एक आरोपित दूसरे मामले में जेल में बंद है. एक सुसाइड कर चुका है और एक फिलहाल भागा हुआ है. बचे 6 पर आज फैसला आ गया
दरअसल, दुनिया में सूफी ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और जगत पिता ब्रह्मा जी के पवित्र स्थल तीर्थराज पुष्कर से धार्मिक पर्यटन नक्शे पर राजस्थान का अजमेर अपनी पहचान रखता है. अजमेर को संस्कृति के रूप में आज भी जाना और पहचाना जाता है.

मगर यहां की आबोहवा में साल 1990 से 1992 तक कुछ ऐसा घट-गुजर रहा था जो ना सिर्फ संस्कृति को कलंकित करने वाला था, बल्कि अजमेर के सामाजिक ताने-बाने पर बदनुमा दाग बन रहा था.

युवा पीढ़ी पाश्चात्य जगत के आकर्षण में ढल रही थी. शिक्षा-संस्कार और मर्यादाएं गुम हो रहे थे. समाजकंटकों और अवसरवादियों में पुलिस और कानून का भय रहा ही नहीं था. शासन- प्रशासन से जुड़े लोग हों या समाज कंटक सब हम प्याला-हम निवाला बने थे. पद-प्रतिष्ठा के साथ न्याय की कुर्सियों पर बैठने वाले हों या समाज को जागरूक करने और उचित दिशा दिखाने वाले, उनकी जवाबदेही और दायित्वों का बोध सुर-सुरा और सुंदरियों में डूबा था. जुआ-सट्टा, शराब-ड्रग्स के धंधेबाज पुलिस संरक्षण में फल-फूल रहे थे.

अश्लील तस्वीरों से ब्लैकमेलिंग, 100 लड़कियों से गैंगरेप… अजमेर ‘सेक्स स्कैंडल’ की कहानी

दैनिक नवज्योति अखबार में छपी खबरों से मचा गया था हंगामा

तब यहां के स्थानीय दैनिक नवज्योति अखबार में युवा पत्रकार संतोष गुप्ता एक खबर ने लोगों को झकझोर दिया. खबर में स्कूली छात्राओं को उनके नग्न फोटो क्लिक करके ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का अनावरण था.

”बड़े लोगों की पुत्रियां ‘ब्लैकमेल का शिकार” शीर्षक से प्रकाशित खबर ने पाठकों के हाथों में अखबार पहुंचने के साथ ही भूचाल ला दिया.

क्या नेता, क्या पुलिस, क्या प्रशासन, क्या सरकार, क्या सामाजिक धार्मिक नगर सेवा संगठन से जुड़े लोग सब के सब सहम गए. यह कैसे हो गया? कौन हैं? किसके साथ हुआ? अब क्या करें? कैसे करें? वो जमाना भले ही सोशल मीडिया का नहीं था, लेकिन कानों-कान हुई खुसुर-पुसुर ने खबर को आग की तरह फैलने में जरा सा भी वक्त नहीं लगा.


स्कूली लड़कियों को ब्लैकमेल कर यौन शोषण

दरअसल, अजमेर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वालीं 17 से 20 साल की 100 से भी ज्यादा लड़कियों को छ्दम बहाने से जाल में फंसा कर उनकी न्यूड फोटो खींचकर ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण करने वाले गिरोह का भांडा फूट चुका था. खबर में गिरोह के लोग धार्मिक—राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक सभी तरह से प्रभावशाली बताए गए थे. लिहाजा शासन-शासन में मानों भूकंप आ गया.

समाजकंटक अपने कुकर्मों के साक्ष्य मिटाने में लग गए तो ओहदेदार अपने उच्च प्रभाव से खुद को बचाने में. पीड़िताओं के परिवारजन अपने इज्जत के खातिर नगर से अपना नाता तोड़कर दबे पांव अन्यत्र कूच करने की जुगत-जुगाड़ में जुट गए. वहीं प्रशासन के लोग शासन के आदेश की पालना में तो उधर शासन अपने सिंहासन और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो गया.

अजमेर दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा के परिवार के युवा थे शामिल

यहां बताते चले कि अजमेर की शान और पहचान में बदनुमा दाग के अखबारों से जाहिर होने से पहले अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में पता लगा लिया था कि गिरोह में अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा यानी खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं. इतना ही नहीं पुलिस ने यह भी जान लिया था कि  वे युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं और आर्थिक रूप से संपन्न भी.

पुलिस हो गई थी बेबस!

जिला पुलिस प्रशासन को यह अच्छी तरह पता चल गया था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो नगर की शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा और यदि शांति और कानून व्यवस्था संभाल भी लेंगे तो क्या पता इसमें अजमेर के किन-किन प्रभावशाली और प्रतिष्ठत परिवारों की बच्चियां प्रभावित हों. नगर के कौन-कौन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधि तक इसके तार जुड़े हैं। बहुत सोच विचार के बाद स्थानीय जिला पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत को स्थिति से अवगत कराया।

मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने एक्शन लेने को कहा

बताते हैं कि भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को नहीं छोड़ने के आदेश देते हुए मामले में समुचित एक्शन लेने को कहा. बावजूद इसके जिला पुलिस प्रशासन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका । इससे इस बीच आरोपितों को अपने खिलाफ इस्तेमाल होने वाले साक्ष्य मिटाने और अजमेर से भागने का अवसर मिल गया.

अखबार में छपी खबरें

अखबार में स्कूली छात्राओं को अश्लील फोटो से ब्लैकमेल करने के कांड की पहली खबर प्रकाशित होने के लगभग एक पखवाड़े बाद भी जिला पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. इसके बाद युवा पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ‘छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?’ शीर्षक से प्रकाशित किया.

खबर के साथ नग्न फोटो भी किए गए प्रकाशित

इस बार के साथ वह फोटो भी प्रकाशित किए जिससे अजमेर में छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सकता था. फोटो के प्रकाशन के बाद तो समूचे राजस्थान में तूफान आ गया.

तीसरी खबर ”सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!” शीर्षक से प्रकाशित हुई.

चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का बयान आया ”उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र”

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इसके बाद क्या थाए जनता ने सड़कों पर उतर कर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया.शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा. नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने को सक्रिय हो गए.स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवक हिन्दू लड़कियों से कर रहे थे. इसे लेकर विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान लीं.

वकीलों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हाल और हालात को लेकर चर्चा शुरू की और पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने को उचित मार्ग खोजना शुरू कर दिया. वकीलों के शिष्टमण्डल ने तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मुलाकात की. पुलिस अधीक्षक एम.एन धवन की मौजूदगी में हुई वार्ता में रास्ता निकाला गया कि जिन भी आरोपितों को पहचाना जा चुका है, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में जेल में डाला जाए, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो और माहौल साम्प्रदायिक न बने.

इसी बैठक में यह भी अनावरण हुआ कि जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार और विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी ने फोटो उपलब्ध कराकर षड्यंत्रपूर्वक हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन शोषण की सूचना दी थी. साथ ही यह भी मंशा दर्शाई थी कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ा गया तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा।
जिला पुलिस प्रशासन ने भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों की इस चेतावनी से ही थोड़ी सक्रियता तो दिखाई, लेकिन तत्कालीन उपाधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच को कहा. गोपनीय जांच में हुए अनावरण पर तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए. जिला पुलिस प्रशासन ने मामले का अनावरण कर अपराधियों को जेल डालने के बजाय पूरा प्रकरण ही ठंडे बस्ते डालने कोशिश की.

तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि मामला वैसा नहीं है ,जैसा प्रचारित किया जा रहा है अजमेर की स्कूली छात्राओं से किसी तरह का षडयंत्रपूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है. मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी जांच पड़ताल में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है.

अजमेर कांड.
राजस्थान भर में आंदोलन शुरू

पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं राजस्थान भर में आंदोलन शुरू हो गए. जगह-जगह मुलजिमों को गिरफ्तार करने की मांग उठने लगी और पीड़िताओं को न्याय की आवाज ऊंची होने लगी. कस्बे बंद होने की खबरें आने लगीं. राजस्थान की भाजपा सरकार पर प्रकरण को लेकर भारी दवाब बना. तत्कालीन कांग्रेस नेताओं  अशोक गहलोत, कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं से हुए यौन शोषण अपराध की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा की मांग की. कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया.

30 मई 1992- मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंपा

आखिर 30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराने की घोषणा की . इसकी सूचना अजमेर जिला पुलिस प्रशासन को मिली तो अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपाधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादा पेपर पर प्राथमिकी लेकर उसे दर्ज कर लिया. इससे जिला पुलिस की भद्द पिटने से बच गई.

पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी होने के नाते हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी. जिसमें लिखा था ”अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींचे गए. इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया गया साथ ही उनका यौन शोषण हुआ. साथ ही उन पर अन्य लड़कियों को लेकर आने का दबाव गिरोह से बनाए जाने की जानकारी मिली है.”

रिपोर्ट में यह भी था कि गिरोह में सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से प्रभावशाली युवा हैं. फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो-तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी पुलिस केस में जिक्र किया और मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना दर्शाई.

खादिम चिश्ती के परिवार के लोगों के नाम आए सामने

अजमेर जिला पुलिस के रिपोर्ट के अगले ही दिन सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए और 31 मई 1992 से जांच अपने हाथों में लेकर अनुसंधान शुरू कर दिया. जांच शुरू हुई तो गिरोह में युवा अपराधी कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी , महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी के नाम सामने आए.

इनमें शामिल हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर था. जहां अपराधी युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और अपराधी सोहेलगनी छात्राओं के यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने लाते थे. फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब के मालिक घनश्याम भूरानी  लैब पर आती थी.

जानकारी के अनुसार, पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाता था. यही वह व्यक्ति है जिससे सबसे पहले स्कूली छात्राओं की नग्न अश्लील फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और मुस्लिम युवकों के छात्राओं का यौनाचार बंद करिने को कलर लैब से बाहर निकलकर पहले एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचे, फिर वकील से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचे. इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया. फिर क्या था, मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलने लगा.

केस से जुड़े कई लोगों ने की आत्महत्या

कहते हैं कि सीआईडी सीबी ने अनुसंधान में राजनीतिक दबाव में काम किया. इसी से जिस फोटो लैब के मालिक, टेक्निशियन, मैनेजर को सरकारी गवाह बनाया जा सकता था, उनमें से मालिक को तो छोड़ ही दिया और मैनेजर व टेक्निशियन को अपराधी बना दिया. आखिर अच्छी मंशा रखने के बाद भी मुलजिम बन जाने तथा अपराधियों के निरंतर प्रताड़ित किए जाने से निराश एवं हताश, पीड़ित होकर पुरुषोत्तम ने जमानत पर रिहा होते ही पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली.

यहां पर होता था लड़कियों का यौन शोषण.
कई लड़कियों ने भी दी अपनी जान

स्कैंडल में जिन लड़कियों की फोटोज खींची गईं, उनमें से कई लड़कियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी शुरू कर दी. उन दिनों में अचानक एक के बाद एक दर्जनभर लड़कियों ने सुसाइड कर लिया. इस घटना में सबसे दर्दनाक यह रहा कि इन लड़कियों के लिए न समाज और न ही घरवाले आगे आए, मामले के अनावरण में यह एक दुखद कड़ी साबित हुआ.

फोटोज और वीडियोज से लड़कियों की पहचान

आरोपितों के राजनीतिक प्रभाव से  कोई भी आगे नहीं आया. हालांकि, बाद में फोटोज और वीडियो आधार पर लड़कियों की पहचान हुई. इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ. समझाइश के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं. इनके बयानों के आधार पर 16-17 आरोपितों की पहचान हुई, जिसमें से एक अलमास महाराज को छोड़ कर वर्तमान में सभी आरोपित पकड़े जा चुके है.

ये आरोपी थे शामिल

पीड़ित लडकियों के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई. इनमें से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है. मामले में वर्तमान में पांच आरोपियों सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं. जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई है वे जमानत पर हैं.

अखबार में प्रकाशित खबर.
100 से ज्यादा इन पीड़िताओं को इंसाफ का इंतजार

100 से ज्यादा इन लड़कियों को आज भी इंसाफ नहीं मिल पाया है. कोर्ट में आज भी मामला दर्ज है. जिन लड़कियों के साथ हैवानियत हुई, उनकी आज उम्र 50 से 54 साल के पार हो गई है, लेकिन उनको आज भी इंसाफ का इंतजार है. 2018 में इस मामले का मुख्य आरोपित पकड़ा गया. आरोप है कि अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारूक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैलगनी, कैलाश सोनी, महेशलुधानी, पुरुषोत्तम, हरीश तोलानी वगैरह लड़कियों के यौन शोषण को फार्महाउस और एक पोल्ट्री फार्म पर लेकर जा उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे.

कई बरी, कई की सजा माफ, बाकी जमानत पर

अजमेर ब्लैकमेल कांड जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच घूमता रहा. शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान लिखाये, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं. 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार छोड दिये.

साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दी. इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था. 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया, जिसने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था.

2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है. साल 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर छूटा. अन्य आरोपितों को भी जमानत मिल गई थी.

वहीं, एक आरोपित अलमास महाराज जो पूर्व कांग्रेस विधायक का करीबी रिश्तेदार है, वह पकड़ा नहीं जा सका. आखिरी में पकड़े गए सोहेल गनी, नफीश चिश्ती, जमीर हुसैन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, नसीम उर्फ टार्जन को कोर्ट ने दोषी ठहराया है.

झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है: पीड़िता

अदालत से मिल रहे समन से परेशान होकर अब पीड़िताओं ने पेशी पर बयानों को आना बंद कर दिया है.  इस ब्लैकमेल कांड में शामिल अधिकतर महिलाएं अब दादी-नानी बन गई हैं और उन्हें पेशियों पर आने को भी घर पर झूठ बोलना पड़ता है. इस बात का अनावरण पिछले साल पेशी पर आई एक पीड़िता ने किया था. पीड़िता ने कोर्ट को कहा कि उनके साथ जो हुआ, वह घर पर बता नहीं सकती और उन्हें झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है.

आठ के खिलाफ केस हुआ था दर्ज.

3 दशक बाद मामला फिर आया चर्चा में

ब्लैकमेल कांड के 3 दशक पूरे होने पर एक बार पिछले साल जुलाई में मामला चर्चा में आया था. दरअसल, पिछले साल रिलीज फिल्म ‘Ajmer 92’ को लेकर दावा किया गया कि यह 1992 में अजमेर में हुए इसी ब्लैकमेल कांड की सच्ची घटना पर आधारित है. इसे लेकर खादिम समुदाय के साथ मुस्लिम समाज की अन्य संस्थाओं ने इसका विरोध कीया था.

पहले ‘कश्मीर फाइल्स’, फिर ‘द केरला स्टोरी’ और अब ‘अजमेर 92’: सरवर चिश्ती

अजमेर दरगाह अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा था, पहले कश्मीर फाइल. उसके बाद ‘द केरला स्टोरी’ और अब ‘अजमेर 92’ बनी है. इस मूवी में ढाई सौ लड़कियों को रेप और ब्लैकमेल का शिकार बताया जा रहा है, जबकि उस समय मात्र 12 लड़कियों ने शिकायत दी थी.साथ ही इस फिल्म में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह और एक शिक्षण संस्थान को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि दरगाह में ऐसी कोई घटना नहीं हुई और दरगाह से जुड़े खादिम समुदाय चिश्ती को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है. ब्लैकमेलिंग में कई लोग शामिल थे, लेकिन बदनाम खादिम समुदाय को किया जा रहा है.

सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा

सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘अजमेर 92’ में दावा किया गया था कि फिल्म में उन 250 लड़कियों की कहानी को बयां किया गया है, जिनका जाल में फंसाकर रेप किया गया और फिर उन्हें सिलसिलेवार ब्लैकमेल किया गया. केस में सबसे पहले अजमेर के एक स्कूल की लड़की को फंसाकर उसके न्यूड फोटोज खींचे गए थे और उन फोटो के आधार पर उसे और लड़कियां लाने को  ब्लैकमेल किया गया था और फिर एक चेन बनती गई, जिसमें कई लड़कियां शिकार बनीं. फिल्म ‘अजमेर 92’ को पुष्पेन्द्र सिंह ने निर्देशित किया था.

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