मत: रूस यूक्रेन से युद्ध जीतना भी चाहता है कि नहीं? लक्ष्य नाटो नष्ट करना
Ukraine Russia war: यूक्रेन में एक साल से उलझा हुआ है रूस, आखिर युद्ध जीतना क्यों नहीं चाहते पुतिन? समझिए मास्टर प्लान
प्रियेश मिश्र
रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा हो चुका है। इसके बावजूद शांति की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही। दोनों ही देश हार मानने को तैयार नहीं हैं। रूस जहां खुद की रक्षा के नाम पर हर संभव उपाय करने का ऐलान कर रहा है। वहीं, यूक्रेन भी पश्चिमी देशों के दम पर पीछे हटने को राजी नहीं है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
हाइलाइट्स
1-रूस-यूक्रेन युद्ध को आज एक साल पूरे हुए
2-पुतिन ने 24 फरवरी 2022 को दिया था युद्ध का आदेश
3-यूक्रेन युद्ध में रूस को हुआ बहुत ज्यादा नुकसान
मॉस्को: तारीख 24 फरवरी 2022। सुबह-सुबह न्यूज चैनलों पर व्लादिमीर पुतिन की तस्वीरों के साथ टैंक-तोप और मिसाइलों के वीडियो दिखाए जाने लगे। ब्रेकिंग चलने लगी कि ”रूस ने यूक्रेन पर किया हमला।” कुछ जगहों पर तो पुतिन का युद्ध के ऐलान वाला ऐतिहासिक भाषण भी चलने लगा था। उसके तुरंत बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के भविष्य पर चर्चा शुरू हो गई। दुनियाभर के कई एक्सपर्ट्स ने दावा किया कि रूस चंद दिनों में यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा। कई ने तो यहां तक कहा कि इसमें मुश्किल से 24 से 48 घंटे का समय लगेगा। पर, उनका यह मिथक जल्द ही टूट गया। आज रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए एक साल पूरा हो चुका है। इसके बावजूद न तो रूस युद्ध जीत पाया और न ही यूक्रेन ने हार मानी।
यूक्रेन पर कब्जा क्यों नहीं कर पा रहा रूस
रूस का लक्ष्य यूक्रेन पर पूर्ण रूप से कब्जे की है ही नहीं। यूक्रेन पर हमले की शुरूआत करते वक्त ही पुतिन ने साफ शब्दों में कहा था कि उनका लक्ष्य यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं है। उन्होंने कहा कि रूस, यूक्रेन से नाजीवादी ताकतों को उखाड़ फेकेंगा और खुद की रक्षा करेगा। रूस का लक्ष्य डोनबास क्षेत्र से यूक्रेनी सेना को खदेड़ना और यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन करना है। रूस भी जानता था कि इस काम में लंबा समय लगने वाला है, हालांकि पुतिन ने इतने लंबे वक्त की भी उम्मीद नहीं की थी। उन्हें भी लगता था कि मुश्किल से 1 से डेढ़ महीने में डोनबास पर कब्जा कर लेगा और यूक्रेन से एक बड़ा हिस्सा छीन लेगा। लेकिन, पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप ने पुतिन के सपनों पर पानी फेर दिया।
पश्चिमी देशों ने पुतिन के सपनों पर फेरा पानी
कहते हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद के लिए पश्चिमी देश आगे आए। युद्ध के पहले महीने से ही तुर्की को छोड़ नाटो के हर एक देश ने यूक्रेन को हथियार सप्लाई किए हैं। तुर्की ने युद्ध की शुरुआत के पहले ही यूक्रेन को अपना बायरकटार टीबी-2 ड्रोन बेचा था। इस ड्र्रोन ने रूस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, लिथुआनिया, लातविया और नॉर्वे ने यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियार दिए हैं। अमेरिका ने तो यूक्रेनी सैनिकों को अपने कई वेपन सिस्टम चलाने की ट्रेनिंग भी मुहैया करवाई है। इन्हीं हथियारों के दम पर यूक्रेनी सेना ने रूस को करारी चोट पहुंचाई है।
क्या जान बूझकर युद्ध नहीं जीतना चाहते पुतिन
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि जब रूस और यूक्रेन की शक्ति का कोई मुकाबला नहीं है तो पुतिन युद्ध को जीत क्यों नहीं पा रहे हैं। रूस ने अभी तक यूक्रेन के खिलाफ अपनी वायु सेना, थल सेना या नौसेना की पूरी ताकत का इस्तेमाल नहीं किया है। रूस के पास ऐसी-ऐसी परमाणु मिसाइलें हैं, जो सेंकेंड में युद्ध को खत्म कर सकती हैं। इतना ही नहीं, रूस गैर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर यूक्रेन के शीर्ष नेतृत्व को मार सकता है। इसके बावजूद रूस ऐसा कोई कदम नहीं उठा रहा और ना ही पूरे मन से युद्ध को लड़ रहा है। यूक्रेन में जारी युद्ध में रूस की तरफ से बड़ी संख्या में भाड़े के सैनिक भी शामिल हैं। इनमें कई विदेशी तो कुछ रूस के सजायफ्ता नागरिक हैं।
यूक्रेन युद्ध तो पुतिन के लिए बहाना है
कुछ जानकारों का मानना है कि पुतिन की चाल यूक्रेन युद्ध की आड़ में नाटो देशों को बर्बाद करने की है। पुतिन नहीं चाहते कि रूस-यूक्रेन युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो जाए। ऐसे में वह युद्ध को लंबा खींचने के लिए सैन्य कार्रवाईयों को काफी धीमी रफ्तार से अंजाम दिलवा रहे हैं। पुतिन की चाहत है कि पश्चिमी देश लंबे समय तक यूक्रेन युद्ध में उलझे रहें और अपने संसाधनों का इस्तेमाल करें। इससे इन देशों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध से तेल और गैस के दाम में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यूरोपीय देशों और गरीब विकसित देशों को हुआ है। ऐसे में रूस ओपेक प्लस देशों के साथ मिलकर तेल के उत्पादन को न बढ़ाने का फैसला किया है।
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