एएसआई रिपोर्ट: ज्ञानवापी के मंदिर होने के 32 प्रमाण
दीवारों पर महादेव का नाम, तहखाने में देवी-देवता… हिंदू मंदिर पर ही खड़ा है ज्ञानवापी ढाँचा, जिसे पीढ़ियों से जानते हैं हम उसका प्रमाण ASI ने भी दिया
ज्ञानवापी ढाँचे के भीतर ASI सर्वेक्षण
ज्ञानवापी ढाँचे की ASI रिपोर्ट आई सामने
वाराणसी 27 जनवरी 2024 । ज्ञानवापी ढाँचे के ASI सर्वेक्षण से कई अनावरण हुए हैं। 839 पेज की रिपोर्ट साफ बताती है कि ज्ञानवापी ढाँचे की जगह कभी बड़ा हिंदू मंदिर था। इसके प्रमाण वहाँ के खंभों, दीवारों और शिलापट से मिले हैं। कोर्ट ने ASI से कहा है कि वो इस रिपोर्ट की प्रतियाँ हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्षों को दे।
ASI रिपोर्ट आने के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने मीडिया को विस्तार से बताते हुए कहा कि रिपोर्ट में मंदिर होने के 32 प्रमाण मिले हैं। सामने आई जानकारी के अनुसार
दीवारों पर कन्नड़, तेलुगु, देवनागरी और ग्रंथा भाषाओं में लेखनी मिली है।
सबसे बड़ी चीज जो इस रिपोर्ट में आई वो भगवान शिव के 3 नाम दीवारों पर लिखे मिले हैं- जनार्दन, रुद्र और ओमेश्वर।
ढाँचे के सारे खंभे भी गवाही दे रहे हैं कि वह पहले मंदिर का हिस्सा थे उन्हें मॉडिफाई करके वहाँ नए ढाँचे में शामिल किया गया।
ढाँचे की पश्चिमी दीवार से भी पता चलता है कि वो मंदिर की दीवार है जो 5 हजार साल पहले की नागर शैली में निर्मित है।
दीवार के नीचे 1 हजार साल पुराने अवशेष भी मिले हैं।
ये भी पता चला है कि ढाँचे से पहले मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष और उत्तर की ओर छोटा कक्ष था।
कुछ खंबों से हिंदू चिह्नों को मिटाने के भी प्रमाण मिले हैं।
इतना ही नही हनुमान जी और गणेश जी की खंडित मूर्तियाँ, दीवार पर त्रिशूल की आकृति भी मिली हैं। साथ ही तहखाने में भी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मिलीं।
यह भी पता चला कि ढाँचे का गुंबद मात्र 350 साल पुराना है जबकि उसके परिसर में मिलने वाले हिंदू साक्ष्य हजारों वर्ष पुराने हैं।
ढाँचे के निर्माण संबंधी एक शिलापट पर अंकित समय को मिटाने का भी प्रयास हुआ है।
ASI रिपोर्ट से निष्कर्ष आया है कि 2 सितंबर 1669 को मंदिर ढहा दिया गया था।
रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद मुस्लिम पक्ष ने इस विषय पर कानूनी लड़ाई आगे बढ़ाने का ऐलान किया है। वहीं हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा है कि 839 पेज की रिपोर्ट में वजूखाने को छोड़कर हर कोने का एक-एक ब्योरा एएसआई ने लिखा है। रिपोर्ट से यह साफ है कि मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी ढाँचा बनाया गया था। इसलिए अब हिंदुओं को वहाँ पूजा-पाठ की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ढाँचे में वजूखाने में मिले शिवलिंग का भी एएसआई सर्वे होने के बाद साफ हो जाएगा कि वो कोई फव्वारा नहीं शिवलिंग ही है। इसके अलावा भी कई सबूत मिलेंगे जो हिंदुओं के पक्ष को मजबूत करेंगे।
ज्ञानवापी मस्जिद बनने से पहले यहाँ एक हिन्दू मंदिर था: एएसआई
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे करने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने कहा है कि मौजूदा ढाँचे के निर्माण से पहले वहाँ एक हिंदू मंदिर था.
वाराणसी ज़िला अदालत ने पिछले साल जुलाई में एएसआई को मस्जिद परिसर का सर्वे करने का निर्देश दिया था.अब सार्वजनिक एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चार महीने के अपने सर्वे में “वैज्ञानिक अध्ययन/सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प अवशेषों, विशेषताओं, कलाकृतियों, शिलालेखों, कला और मूर्तियों के अध्ययन के आधार पर यह आसानी से कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहाँ एक हिंदू मंदिर मौजूद था.”
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उन्हें भी देर रात एएसआई की रिपोर्ट की कॉपी मिल गई थी और अभी रिपोर्ट वकीलों के पास है.
ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन ने कहा, “यह एक रिपोर्ट है, फ़ैसला नहीं. रिपोर्ट 839 पन्नों की है. इसके अध्ययन विश्लेषण में समय लगेगा. एक्सपर्ट्स से राय लेंगें. अदालत में विचार को ले जाऐंगें.”
मस्जिद पक्ष का मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद में बादशाह अकबर से लगभग 150 साल पहले से मुसलमान नमाज़ पढ़ते चले आये हैं. एसएम यासीन कहते हैं, “आगे अल्लाह की मर्ज़ी. हमारी ज़िम्मेदारी मस्जिद को आबाद रखने की है. मायूसी हराम है, सब्र से काम लेना होगा. हमारी अपील है कि बहस से बचा जाए.”
800 से अधिक पन्नों वाली रिपोर्ट में दर्ज निष्कर्षों की कॉपी हमें मुक़दमे में मुख्य वादिनी राखी सिंह के वकील अनुपम द्विवेदी से मिली .
एएसआई रिपोर्ट के अनुसार, ”एक कमरे में पाए गए अरबी-फारसी में लिखे शिलालेख में ज़िक्र है कि मस्जिद निर्माण औरंगज़ेब के शासनकाल के 20वें वर्ष (1676-77) में हुआ था. इसलिए ऐसा लगता है कि पहले से मौजूद संरचना को 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया था और इसके कुछ हिस्से को बदल कर मौजूदा संरचना में इस्तेमाल किया गया था.”
फ़िलहाल इस एएसआई सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद में सील किए गए वज़ूखाने का वैज्ञानिक सर्वे नहीं किया गया.हिंदू पक्ष का दावा है कि वज़ूखाने में शिवलिंग मौजूद है, जिसे मस्जिद पक्ष फव्वारा बताता है.
वादी राखी सिंह के वकील अनुपम द्विवेदी ने इस रिपोर्ट को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, “एएसआई का यह कहना कि परिसर में औरंगज़ेब के मस्जिद बनाने के पहले एक हिन्दू संरचना थी और मंदिर था, तो इससे यह स्पष्ट है कि इससे हमारे मुकदमे को बल मिलेगा. यह एविडेंस के नज़रिये से मुकदमों में बहुत अहम रोल अदा करेगा.”
किन-किन चीज़ों का हुआ सर्वे?
ज्ञानवापी मस्जिद
मौजूदा संरचना में केंद्रीय कक्ष और पहले से मौजूद संरचना के मुख्य प्रवेश द्वार
पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार
मौजूदा संरचना में पहले से मौजूद संरचना के स्तंभों और भित्ति स्तंभों के फिर से इस्तेमाल पर
बरामद हुए पत्थर पर अरबी और फ़ारसी शिलालेख
तहखाने में मूर्तिकला अवशेषों का
‘ढाँचे का स्वरूप ‘हिंदू मंदिर’ जैसा’
ज्ञानवापी मस्जिद
ज्ञानवापी के मौजूदा ढाँचे के स्वरूप और उसके समय के बारे में एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है,”मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष,दीवारों पर सजाए गए सांचे, केंद्रीय कक्ष के कर्ण रथ और प्रति रथ,पश्चिमी कक्ष की पश्चिमी दीवार पर तोरण के साथ एक बड़ा सजाया हुआ प्रवेश द्वार, ललाट बिम्ब पर छवि वाला एक छोटा प्रवेशद्वार, पक्षियों और जानवरों की नक्काशी अंदर और बाहर की सजावट से पता चलता है कि पश्चिमी दीवार किसी हिंदू मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है.”
”कला और वास्तुकला के आधार पर,इस पूर्व-मौजूदा संरचना को एक हिंदू मंदिर के रूप में पहचाना जा सकता है.”
वैज्ञानिक अध्ययन और अवलोकन के बाद यह कहा गया है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले, वहाँ एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था.
एएसआई का कहना है कि उसके रिकार्ड्स में यह बात है कि एक पत्थर शिलालेख में यह लिखा था कि मस्जिद का निर्माण मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल में (1676-77) में किया गया था.रिपोर्ट के मुताबिक़ पत्थर पर यह भी लिखा था कि मस्जिद की सहन (आँगन) की मरम्मत भी की गई थी. इस पत्थर की तस्वीर एएसआई के 1965-66 के रिकॉर्ड में मौजूद है.
लेकिन एएसआई का कहना है कि यह पत्थर सर्वे में मस्जिद के एक कमरे से बरामद हुआ लेकिन मस्जिद के निर्माण और उसके विस्तार से जुड़ी जानकारी को खरोंच कर मिटा दिया गया था.
एएसआई का कहना है कि औरंगज़ेब की जीवनी मासीर-ए-आलमगीरी में लिखा है कि औरंगज़ेब ने अपने सभी प्रांतों के गवर्नरों को काफ़िरों के स्कूलों और मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था.एएसआई के मुताबिक़ इसका ज़िक्र जदुनाथ सरकार की 1947 में मासिर-ए-आलमगीरी के अंग्रेज़ी अनुवाद में भी है.जदुनाथ सरकार के मासीर-ए-आलमगीरी के अंग्रेज़ी अनुवाद के हवाले से एएसआई अपनी रिपोर्ट में लिखता है, “2 सितंबर 1669 को यह बात दर्ज की गई कि शहंशाह औरंगज़ेब के आदेश के बाद उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ का मंदिर तोड़ दिया.”
ढाँचे में मौजूद शिलालेख
ज्ञानवापी मस्जिद
इस बारे में एएसआई की रिपोर्ट कहती हैं कि मस्जिद के ढाँचे में कुल 34 शिलालेख और 32 स्टम्पिंग पाए गए और दर्ज किए गए.एएसआई कहता है कि यह शिलालेख हिंदू मंदिर के पत्थरों पर पहले से मौजूद थे जिनका मस्जिद के निर्माण और मरम्मत में इस्तेमाल हुआ.यह शिलालेख देवनागरी, तेलुगू और कन्नड़ भाषाओं में है.
इससे एएसआई इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि पहले से मौजूद संरचनाओं को तोड़ कर उनके हिस्सों का मौजूदा संरचना के निर्माण और मरम्मत में इस्तेमाल हुआ है.
एएसआई ने कहा है कि इन शिलालेखों में उसने तीन भगवान – जनार्दन, रूद्र और उमेश्वरा के नाम भी पाए हैं.
एएसआई ने “महामुक्तिमंडप” के तीन शिलालेखों के पाए जाने को बहुत महत्वपूर्ण बताया है.
तहखानों में क्या मिला?
ज्ञानवापी मस्जिद
एएसआई के अनुसार, मस्जिद में इबादत को उसके पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाए गए और मस्जिद में चबूतरे और ज़्यादा जगह भी बनाई गई ताकि इसमें अधिक से अधिक लोग नमाज़ पढ़ सकें.
एएसआई कहता है कि पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाने को मंदिर के स्तंभों का इस्तेमाल किया गया.
एन2 (N2) नाम के एक तहखाने में एक स्तंभ का इस्तेमाल किया हुआ जिस पर घंटियाँ, दीपक रखने की जगह और सम्वत के शिलालेख मौजूद हैं.
एस -2 ( S2) नाम के तहखाने में मिट्टी के नीचे दबी हुई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी मिली.
स्तंभ और भित्ति स्तंभ
एएसआई रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद को बड़ा करने को और उसके सहन (आँगन) बनाने को पहले से मौजूद मंदिर के खंभों को थोड़ा मॉडिफाई करके बनाया गया था.
एएसआई के अनुसार मस्जिद के गलियारों के खंभों की गहन जाँच से पता चला है कि वो मूल रूप से से मौजूद हिंदू मंदिर का हिस्सा थे.
इन स्तम्भों से मस्जिद निर्माण को इनमे मौजूद कमल के पदक के बगल में बने व्याला फिगर्स को हटा कर फूलों का डिज़ाइन बनाया गया.
ज्ञानवापी मस्जिद
पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार
एएसआई का कहना है कि मौजूदा संरचना (मस्जिद) की पश्चिमी दीवार का शेष भाग पहले से मौजूद हिंदू मंदिर है.
एएसआई के अनुसार यह पश्चिमी दीवार,”पत्थरों से बनी है और इसे क्षैतिज साँचों से सजाया गया है. यह पश्चिमी दीवार पश्चिमी कक्षों के बचे हिस्सों, केंद्रीय कक्ष के पश्चिमी प्रोजेक्शन्स और उत्तर और दक्षिण में दो कक्षों की पश्चिमी दीवारों से बनी है. दीवार से जुड़ा केंद्रीय कक्ष अब भी पहले जैसा मौजूद है और बगल के दोनों कक्षों में बदलाव किए गए हैं.”
मंदिर के उत्तर और दक्षिण के प्रवेश द्वारों को सीढ़ियों में बदल दिया था और उत्तरी हॉल के प्रवेश द्वार में बनी हुई सीढ़ियाँ आज भी इस्तेमाल में हैं.
केंद्रीय कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार
एएसआई की रिपोर्ट कहती है कि मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल चैम्बर) हुआ करता था और उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में एक-एक कक्ष थे.एएसआई के मुताबिक़ पूर्व की संरचना (मंदिर) का जो केंद्र कक्ष था, वो अब मौजूदा संरचना (मस्जिद) का केंद्रीय कक्ष है.
चुनौतीपूर्ण था ज्ञानवापी का सर्वे: एएसआई
पिछले साल चार अगस्त को एएसआई ने कड़ी सुरक्षा में सर्वे शुरू किया.एएसआई टीम में एएसआई के प्रोफ़ेसर आलोक त्रिपाठी, डॉक्टर गौतमी भट्टाचार्य, डॉक्टर शुभा मजूमदार, डॉक्टर राज कुमार पटेल, डॉक्टर अविनाश मोहंती, डॉक्टर इज़हर आलम हाशमी, डॉक्टर आफताब हुसैन, डॉक्टर नीरज कुमार मिश्रा और डॉक्टर विनय कुमार रॉय जैसे एक्सपर्ट्स शामिल थे.
सर्वे की संवेदनशीलता देखते हुए अदालत ने सर्वे के दौरान मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी.
अदालत ने ढाँचे को बिना नुक़सान पहुँचाए सर्वे करने के आदेश दिए थे लेकिन मिट्टी और मलबा देख सभी पक्षों की सहमति से सभी सावधानी बरतते हुए मलबा हटाया गया.
ज्ञानवापी के चारों तरफ केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों का घेरा है जिससे बार-बार मस्जिद से अंदर बाहर जाना मुश्किल था.
चार महीने चले इस सर्वे में एएसआई की टीम और मज़दूरों ने गर्मी और उमस भरे मॉनसूनी दिनों में लगातार काम किया.कुछ तहखानों में बिजली नहीं थी और शुरुआती दिनों में टॉर्च और रिफ्लेक्टर की रोशनी से सर्वे हुआ.तहखानों में काम करती एएसआई टीम को हवा की कमी महसूस हुई तो लाइट और पंखे लगा कर काम किया गया.
बारिश के मौसम में तिरपाल से खुदे हुए हिस्से को ढँका गया और सर्वे का एक कैंप कार्यालय बनाया गया.
एएसआई टीम को बंदरों ने भी परेशान किया और वो अक्सर लगे हुए तिरपाल फाड़ देते थे और सर्वे एरिया को डिस्टर्ब कर देते थे.
सर्वे का अदालती आदेश
एएसआई सर्वे का आदेश देते हुए वाराणसी के ज़िला जज ने अपने आदेश में लिखा था, “अगर प्लॉट और ढाँचे का सर्वे और वैज्ञानिक जाँच होती है तो उससे अदालत के सामने सही तथ्य आएँगे, जिससे मामले का अदालत में न्यायसंगत और उचित तरीक़े से निपटारा हो सकेगा.”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में एएसआई के सारनाथ सर्किल के सुपरिन्टेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट को सेटलमेंट प्लॉट नंबर 9130 (मौजूदा ज्ञानवापी परिसर) के भू-भाग और भवन (मस्जिद की इमारत) का सर्वे करने का आदेश दिया था.कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि एएसआई ऐसे तरीक़े से सर्वे करेगी, जिससे कोई टूट-फूट न हो. केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया कि सर्वे में न ही खुदाई होगी और ना ढाँचा तोड़ा जाएगा.
सर्वे की टीम में: आर्कियोलॉजिस्ट, आर्कियोलॉजिकल केमिस्ट, एपीग्राफिस्ट, सर्वेयर, फोटोग्राफर और अन्य टेक्निकल एक्सपर्ट्स को इन्वेस्टिगेशन और डॉक्यूमेंटेशन में लगाया गया. विशेषज्ञों के दल ने जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वे किया.
एएसआई की वैज्ञानिक जाँच का दायरा
ज्ञानवापी मस्जिद
एएसआई को सर्वे करके बताना था कि मौजूदा ढाँचा क्या किसी पहले से मौजूद मंदिर के ऊपर बनाया गया है.
ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार की उम्र और निर्माण के स्वरूप का पता करने को वैज्ञानिक जाँच करनी थी.
ज़रूरत पड़ने पर एएसआई को पश्चिमी दीवार के नीचे जाँच को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल करना था.
एएसआई को ज्ञानवापी के तीन गुंबदों के नीचे और ज्ञानवापी के सभी तहखानों की जाँच करनी थी.
एएसआई को अपनी जाँच में मिली सभी कलाकृतियों की सूची बनानी थी और यह भी दर्ज करना था कि कौन सी कलाकृति कहाँ से मिली और डेटिंग से उन कलाकृतियों की उम्र और स्वरूप जानने की कोशिश करनी थी.
एएसआई को ज्ञानवापी परिसर में मिलने वाले सभी खंभों और चबूतरों की वैज्ञानिक जाँच कर उसकी उम्र, स्वरूप और निर्माण की शैली की पहचान करना था.
डेटिंग, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और अन्य वैज्ञानिक तरीक़ों से ज्ञानवापी के ढांचे के निर्माण की उम्र, और निर्माण के स्वरूप की पहचान करना था.
उसे जाँच में मिली कलाकृतियों और ढाँचे में और उसके नीचे पाई गई ऐतिहासिक और धार्मिक वस्तुओं की भी जाँच करनी थी.
और यह सुनिश्चित करना था कि ढाँचे को किसी भी तरह का नुक़सान नहीं हो और वो सुरक्षित रहे.
बता दें कि 18 दिसंबर को ASI रिपोर्ट में सील बंद लिफाफे में स्टडी रिपोर्ट सौंपी थी। इसी दिन हिंदू पक्ष की ओर से निष्कर्ष सार्वजनिक करने की माँग की गई थी लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई। 24 जनवरी को वाराणसी कोर्ट ने कहा कि सर्वे की कॉपियाँ हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष को दी जाए। रिपोर्ट मिलने के बाद दोनों पक्ष इस संबंध में 6 फरवरी तक आपत्ति अंकित करवा सकते हैं।
TOPICS:Gyanvapi Case ASI EXPERT TEAM काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी विवादित ढाँचा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग