जयंती: बमों के साथ बंदी भाई हिरदाराम ने काटे काला पानी में 15 साल
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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
🙏🙏 *भाई हिरदाराम जी* 🌷🌷🌷🌷🌷
📝राष्ट्रभक्त साथियों, मातृभूमि भारत का चप्पा-चप्पा उन वीरों के स्मरण से अनुप्राणित है, जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये अपना तन, मन और धन समर्पित कर दिया। उनमें से ही एक भाई हिरदाराम का जन्म 28 नवम्बर, 1885 को मण्डी, हिमाचल प्रदेश में गज्जन सिंह स्वर्णकार के घर में हुआ था। उन दिनों कक्षा 08 से आगे शिक्षा की व्यवस्था मण्डी में नहीं थी। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि इन्हें पढ़ाई के लिये बाहर भेजा जा सके, अतः पढ़ने की इच्छा होने के बावजूद इन्हें अपने पुश्तैनी काम में लगना पड़ा। कुछ समय बाद सरला देवी से इनका विवाह हो गया। इनकी पढ़ाई के शौक को देखकर इनके पिता कुछ अखबार तथा पुस्तकें ले आते थे। उन्हीं से इनके मन में देश के लिये कुछ करने की भावना प्रबल हुई। कुछ समय के लिये इनका रुझान अध्यात्म की ओर भी हुआ। अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एस्टोरिया में 25.06.1913 को देश को आजाद करवाने के लिये गदर पार्टी बनाई। इस संगठन ने भारत को अनेक महान क्रांतिकारी दिये। गदर पार्टी के महान नेताओं सोहन सिंह भाकना, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल के कार्यो ने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को उत्प्रेरित किया।
📝 पहले महायुद्ध के दौरान जब भारत के अन्य दल अंग्रेजों को सहयोग दे रहे थे गदर पार्टी के नेताओं ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग की घोषणा कर दी। लाला हरदयाल ने हरदेव नामक युवक को कांगड़ा में गदर पार्टी के काम करने के लिये भेजा। इनका सम्पर्क हिरदाराम से हुआ और फिर मण्डी में भी गदर पार्टी की स्थापना हो गयी। सन् 1915 में बंगाल के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस जब अमृतसर आये, तो उनसे बम बनाने का प्रशिक्षण लेने हिरदाराम भी गये थे। यह काम बहुत कठिन तथा खतरनाक था। इनके साथ भाई परमानन्द और डाक्टर मथुरा सिंह को भी चुना गया था। ये तीनों जंगलों में बम बनाकर क्रांतिकारियों तक पहुँचाते थे। गदर पार्टी ने 21.02.1915 का दिन गदर के लिये निश्चित किया था; पर इसकी सूचना अंग्रेजों को मिल गयी. अतः इसे बदलकर 19.02.1915 कर दिया गया; पर तब तक हिरदाराम पुलिस की पकड़ में आ गये। उनके पास कई बम बरामद हुये। अतः उन्हें व उनके साथियों को लाहौर के केन्द्रीय कारागार में ठूँस दिया गया। 26.04.1915 को इनके विरुद्ध जेल में ही मुकदमा चलाया गया। 03 न्यायाधीशों के दल में 02 अंग्रेज थे। शासन ने इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध बैरिस्टर सी. वेवन पिटमैन को अपनी ओर से खड़ा किया; पर क्रान्तिकारियों की ओर से पैरवी करने वाला कोई नहीं था। जिन 81 अभियुक्तों पर मुकदमा चला, उनमें से भाई हिरदाराम को फाँसी की सजा दी गयी। उनकी अल्पव्यस्क पत्नी सरलादेवी ने वायसराय हार्डिंग से अपील की। इस पर इनकी सजा घटाकर आजीवन कारावास कर दी गयी।
📝 आजीवन कारावास के लिये इन्हें कालेपानी भेजा गया। वहाँ हथकड़ी बेड़ी में कसकर इन्हें अमानवीय यातनायें दी जाती थीं। चक्की पीसना, बैल की तरह कोल्हू खींचना, हंटरों की मार, रस्सी कूटना और उसके बाद भी घटिया भोजन कालेपानी में सामान्य बात थी। एक बार उन्होंने देखा कि हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़े एक क्रांन्तिकारी को कई लोग कोड़ों से पीट रहे हैं। हिरदाराम ने इसका विरोध किया। इस पर उन्हें 40 दिन तक लोहे के पिंजरे में बन्द कर दिया गया। बाद में पता लगा कि जिसे उसे दिन पीटा जा रहा था, वे वीर सावरकर थे। काफी समय बीतने पर उन्हें मद्रास स्थानान्तरित कर दिया गया। कारावास पूरा कर 1929 में जब वे वापस अपने घर मण्डी आये, तब तक उनका शरीर ढल चुका था। 21.08.1965 को क्रान्तिवीर भाई हिरदाराम का देहान्त हुआ। उस समय वे अपने पुत्र रणजीत सिंह के साथ शिमला में रह रहे थे। देश आजाद होने के बाद भी जीवित रहते उन्हें सरकार से कुछ नहीं मिला। हां, जनता से प्यार और सम्मान भरपूर मिल।
*मातृभूमि सेवा संस्था आज ऐसे महान क्रांतिकारी के 135वीं जयंती पर नतमस्तक है।*
*नोट:-* लेख में कोई त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।
✍️ राकेश कुमार
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