डेटा के आधार पर कोविशील्ड की डोज में दिया गैप
डॉक्टर रणदीप गुलेरिया (फाइल फोटो)
Covishield news: फरवरी में ही आई थी स्टडी तो कोविशील्ड डोज में गैप बढ़ाने में देर क्यों? क्या बोले डॉक्टर गुलेरिया
Chandra Pandey |
डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि फरवरी में ही स्टडी आई थी कि वैक्सीन की दोनों डोज के बीच 12 हफ्ते से ज्यादा गैप से वह और ज्यादा प्रभावी हो रही है। लेकिन तब भारत में यह फैसला इसलिए नहीं हुआ कि एक्सपर्ट कमिटी में आम सहमति नहीं थी। उन्होंने कहा कि आज आलोचना करने वाले ही तब पूछते कि इतनी जल्दबाजी क्यों।
नई दिल्ली13 मई। सरकार ने कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच गैप को 6-8 हफ्ते से बढ़ाकर 12-16 हफ्ते करने की एक्सपर्ट कमिटी की सिफारिश को मान लिया है। गैप बढ़ाने के फैसले का ऐलान करते हुए नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने कहा कि यह फैसला वैज्ञानिक तथ्यों और रियल लाइफ एक्सपीरियंस के आधार पर किया गया है। इस बीच, सवाल भी उठने लगे हैं कि कहीं यह फैसला पर्याप्त वैक्सीन नहीं होने की वजह से तो नहीं उठाया गया है? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि जब फरवरी में ही लैंसेंट पत्रिका में यह स्टडी प्रकाशित हो चुकी थी कि 12 हफ्ते से ज्यादा गैप पर वैक्सीन की एफिकेसी और बेहतर हो रही है तो उसी वक्त यह फैसला क्यों नहीं लिया गया, देरी क्यों की गई?
उपलब्ध डेटा के आधार पर सही फैसला: डॉक्टर गुलेरिया
अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘टाइम्स नाउ’ पर यही सवाल जब एम्स डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया से पूछा गया तो उन्होंने दो खुराकों के बीच अंतराल बढ़ाने के फैसले को उपलब्ध डेटा के आधार पर व्यावहारिक बताया है। उन्होंने कहा, ‘डेटा बताते हैं कि 12 हफ्ते से ज्यादा का अंतराल कारगर है। लेकिन इसके लिए रेंज होना चाहिए जैसे 12 से 14 हफ्ते या 12 से 16 हफ्ते। क्योंकि सभी को 12 हफ्ते में ही दूसरी डोज लग जाएगी, ऐसा नहीं है इसलिए रेंज होना चाहिए। कमिटी ने डेटा को ऐनालाइज करके 16 हफ्ते तक का रेंज तय किया। यह उपलब्ध डेटा के आधार पर भी यह व्यावहारिक है और डिलिवरी सिस्टम और सेफ्टी के लिहाज से भी व्यावहारिक है।’
‘आज देरी पर सवाल उठाने वाले ही तब पूछते- इतनी जल्दबाजी क्यों?’
जब फरवरी में ही यह बात सामने आ गई थी कि 12 हफ्ते से ज्यादा गैप के नतीजे अच्छे मिल रहे हैं तो भारत में तभी यह फैसला क्यों नहीं किया गया, इस सवाल पर डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि तब कमिटी के सदस्यों में आम सहमति नहीं बन पाई थी। उन्होंने कहा, ‘इस साल की शुरुआत में यह बात सामने आई थी कि गैप बढ़ने से वैक्सीन और ज्यादा असरदार हो रही है। लेकिन बाद में कनाडा और दूसरे देशों से और ज्यादा डेटा सामने आए। फरवरी में लैंसेंट का आर्टिकल पब्लिश हुआ। कमिटी में उस पर चर्चा हुई थी लेकिन कोई आम सहमति नहीं बन पाई कि अंतराल को 12 हफ्ते से ऊपर किया जाए। अगर उस वक्त ही अंतराल को 12 हफ्ते से ज्यादा कर दिया गया होता तो आज जो आलोचक देरी पर सवाल उठा रहे हैं, वही तब कहते कि यह क्यों किया गया, और अधिक डेटा का इंतजार क्यों नहीं किया गया।’
और ज्यादा कन्विंसिंग डेटा का इंतजार सही था: डॉक्टर अशोक सेठ
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट के चेयरमैन और पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर अशोक सेठ ने भी कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच अंतराल बढ़ाने के फैसले को सही ठहराया है। डॉक्टर सेठ ने कहा कि यह एक सही रणनीति है, वैज्ञानिक आधार पर है। फरवरी में ही येह डेटा उपलब्ध था और तब डब्लूएचओ ने कहा था 12 हफ्ते का अंतराल रखना चाहिए। ब्रिटेन ने तब इस सलाह को अपनाया था। लेकिन तब भारत ने गैप को यह कहकर इतना नहीं बढ़ाया था कि वह डेटा से कन्विंस नहीं है और ज्यादा कन्विंसिंग डेटा का इंतजार करना सही था।
सिंगल डोज से भी 3 महीने तक संक्रमण से सुरक्षा: डॉक्टर अशोक सेठ
डॉक्टर अशोक सेठ ने सिंगल डोज की अहमियत को भी बताया कि किस तरह वह संक्रमण कम करने और मौतों को रोकने में कारगर है। उन्होंने कहा, ‘डेटा बता रहे हैं कि 12 हफ्ते से ज्यादा अंतराल पर एफिकेसी बेहतर हो रही है। सिंगल डोज से भी बेहतर इम्युनिटी बन रही है। वैक्सीन की सिर्फ एक डोज ही 3 महीने तक इन्फेक्शन रोकती है। उसकी एफिकेसी 60-65 प्रतिशत है। एक डोज से ही संक्रमण फैलाने का चांस 50 प्रतिशत कम हो रहा है और मौत की गुंजाइश 80 प्रतिशत कम हो रही है।’ उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में हमें अधिक से अधिक आबादी को जितना जल्दी संभव हो सके वैक्सीनेट करना होगा।