हर स्मार्टफोन एक हैंडग्रेनेड है जिसका सेफ्टीपिन किसी फ्राड के हाथ में है

हर स्मार्टफोन एक बम है जिसकी सेफ्टी पिन किसी फ्रॉड के हाथ में है!

हम खूब एन्जॉय कर रहे हैं, चीजें आसान होती दिख रही हैं, लेकिन स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया कब किस मुसीबत में डाल देंगे, रिस्क आपका है. वो कहते है ना एट योर ओन रिस्क. अब तो ऑनलाइन फ्रॉड (Cyber Fraud) एक सच्चाई है. कब, कौन और कैसे शिकार हो जाएगा, कहना मुश्किल है.

कभी सोचा है कि जिस स्मार्टफोन पर आप इतरा रहे हैं कितना खतरनाक हो सकता है? कब हैकर कैसे और क्या हैक कर लेगा कोई अंदाजा है आपको? पिछले दिनों ही सुना था बिल गेट्स हैकर के निशाने पर थे. किसी ने मोदी का ट्विटर हैंडल हैक कर लिया और चंदा मांग लिया. आलम ये है कि तक़रीबन रोजाना ही किसी मित्र या संबंधी या जान पहचान वाले का संदेश मिल जाता है कि उसका फलाना हैंडल हैक हो गया है. विडंबना देखिये ऐसा अलर्ट भी वे किसी न किसी प्लेटफार्म की वाल पर ही देते हैं. मसलन फेसबुक या व्हाट्सप्प या एसएमएस. यानी “छलिया’ ही भावी छल की सूचना दे रहा है. अब तो छलियों यानी कई फ्रॉड यूजर्स की भी बन आई है. पकड़ में आए तो कह देंगे मेरा तो ट्विटर हैंडल या फेसबुक या कोई और सोशल मीडिया अकाउंट हैक हो गया था.

दरअसल ऑनलाइन फ्रॉड के मामले में कहा जा सकता है सतर्कता हटी दुर्घटना घटी. लेकिन सवाल है, कौन-कौन सी और कितनी सतर्कता रखें? स्मार्टफोन में अनलिमिटेड ऑप्शन हैं. पता नहीं कब कौन सा ऑप्शन आपने क्लिक किया और हो गया काम तमाम. पता नहीं कब आपके किसी सोशल मीडिया के वाल पर किसी फ्रेंड ने ही अनजाने ही कोई हॉलीडे पैकेज जीतने वाला पोस्ट टैग कर दिया और आप उसमें पार्टिसिपेट कर बैठे. फिर आपको एक मेल आता है कि आप जीत गए हैं. तब सिलसिला शुरू होता है कथित कम्पटीशन के ऑर्गनाइजर्स का डर्टी और फर्जी खेल; वे आपसे पर्सनल जानकारियां मांगते हैं. कुछ भी बताया और वे फंसा लेंगे. मसलन कहेंगे कपल फ्री है, लेकिन बच्चे के 5000 रुपए लगेंगे और आप रेमिट कर दें. तो लालच बुरी बला है पुरानी कहावत है

चूंकि अपराधियों को पता है कि लोग पहले के मुकाबले काफ़ी अधिक समय ऑनलाइन बिता रहे हैं, वे इसका फायदा उठा रहे हैं. आप ऑनलाइन हैं और नाना प्रकार के प्रमोशन के नोटिफिकेशन आते हैं. क्या अलर्ट बहुत समय से नहीं है कि किसी भी ऐसे प्रमोशन का हिस्सा बनने से पहले ग्राहकों को बहुत सावधान रहना चाहिए. अपनी निजी जानकारियों को साझा नहीं करना चाहिए और खासकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर आने वाले ऐसे ऑफर से विशेष सावधानी अपेक्षित है? तो फिर सावधानी क्यों नहीं रह पाती? यदि आपको किंचित भी डाउट है, कदापि अंदर ना जाएं. गए नहीं कि आप कैसे भ्रमित कर दिए जाएंगे, जब तक समझ आएगा आपसे आपके बैंक अकाउंट तक की डिटेल्स ले ली जाएगी और पालक झपकते ही आपके साथ “जामताड़ा” हो जाएगा.

तरीके तमाम है इन धोखेबाजों के. सावधान आपको रहना है. लगे आपको कि सवाल जो पूछा जा रहा है, मसलन रोजाना फोन आते हैं, आपका अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया है, केवाईसी के चलते या फिर आपकी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ने बोनस अर्न किया है, जिसे आपको क्लेम करना है आदि-आदि. जरुरी नहीं है. विज्ञापन किसी बड़े या स्थापित ब्रांड का नहीं है तो वह फर्जी हो सकता है. कई प्रमोशन में आपकी राय पूछी जाती है तो यह भी एक तरीका है आपका डाटा हथियाने का है. कई बार आप ऐसा ऑफर देखते हैं जिसकी कोई टर्म कंडीशन नहीं है मसलन कब से शुरू है और कब खत्म होगा, कोई नियमावली है ही नहीं. समझ जाइए फ्रॉड है. उन प्रमोशनों से तो दूर ही रहिए जो आपको किसी पेज को लाइक करने या लोगों को टैग करने के लिए कहते हैं, आपसे पैसे मांगते हैं.

अब तो ऑनलाइन फ्रॉड मिनटों में होने लगे हैं. हैकर्स कब एथिक्स छोड़ देंगे, कौन जानता है? ऑप्शंस ढेरों हैं फ्रॉड , लॉग इन डाटा भी चुरा लिया जाता है. मैलवेयर अटैक तो यूज़र नेम, पासवर्ड्स, एड्रेस, फ़ोन नंबर्स आदि सारा डाटा ही चुरा लेता है. एक बार ये सारा डाटा गया नहीं और आपके अकाउंट का एक्सेस और कंट्रोल भी गया. इसे क्रेडेंशियल स्टफिंग अटैक या फिर अकाउंट टेकओवर कहते हैं. पिछले साल ही कनाडा में दो मामले हुए जिनमें हैकर्स ने कॉन्फिडेंटिअल स्टाफिंग टेक्निक्स का इस्तेमाल कर वहां के नागरिकों के यूज़र्स नेम और पासवर्ड्स को हथियाने का पूरा प्रयास किया ताकि उनके नाम पर सरकारी हेल्प फंड्स से पैसा हथिया लिया जाए. ऑनलाइन टैक्स रेवेन्यू सर्विस समेत कुछ अन्य सरकारी एजेंसियों पर वहां अटैक हुए. वे कहां तक सफल हुए अपने इस कृत्य में, वहां इन्वेस्टिगेशन चला था.

सवाल है हैकर्स ऐसा कैसे कर लेते हैं? या तो उनकी वह अनएथिकल मानसिकता होती है जो हर प्रोफेशन में रातों रात पैसा बनाने के लिए होती है या कहीं कहीं क्रिमिनल माइंडसेट भी हो सकता है. उनका मुख्य टूल होता है ओपन सोर्स इंटेलिजेंस. इसके जरिए आपका कोई भी सोशल मीडिया अकाउंट जैसे कि लिंकेडीन या इंस्टा, जहां से वे आपकी हर इंफो कलेक्ट करते हैं. हैकर्स का सिंपल सिद्धांत है जो सेफ है उसमें सेंध लगायी जा सकती हैं, उसे हैक किया जा सकता है. क्या खूब कहते भी हैं हिंदी में हर खूबसूरत चीज बेवफा होती है. दुर्भाग्य ही है कि ऑनलाइन फ्रॉड अब शाश्वत है. हर दिन हर पल फिशिंग और ‘मेलिसियस डोमेन’ बन रहे हैं. साइबर अटैकर अपने काम को इतनी तेजी से अंजाम देता है कि उसे रोकने का कोई तरीका नहीं है. दरअसल ऑनलाइन फ्रॉड के लिए बने कानून ही लचर है. ऑनलाइन स्कैम्स को रोकने के लिए कोई ठोस प्लान किसी भी देश के पास नहीं है. फिर ऑनलाइन फ्रॉड करने वाला कहीं भी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर आपका शिकार कर लेता है.

एक और अहम बात, फ्रॉड जिनको करना है, उनको ना कुछ इंवेस्ट करना है और ना ही रिस्क फैक्टर है, जबकि उन्हें पकड़ना है तो हाईटेक संसाधन चाहिए, विल पॉवर चाहिए. फिर अपराधियों के लिए जामताड़ा सरीखे कम्फर्ट ज़ोन बन जाते हैं, जहां कार्टेल टाइप है, सिस्टम और समाज का भी वरदहस्त होता है, एस्केप रूट के एक्सपर्टाइज भी है. सारी दुनिया का यही हाल है. कभी अफ्रीका का आइवरी कोस्ट भी जामताड़ा से दो कदम आगे था और शायद आज भी है. अब तो देश में ही कई जामताड़ा मॉडल है मसलन मेरठ, भरतपुर और मथुरा और इन्हें न्यू जामताड़ा कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. आज डाटा पानी है तो हर हाथ साइबर हैं. दुनिया डिजिटल हुई और साइबर क्राइम का ग्राफ भी ऊपर से ऊपर चला जा रहा है. मोबाइल बैंकिंग का दौर आने के साथ ही ऑनलाइन फ्रॉड करने वालों के मुंह खून लग गया था.

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लेखक
प्रकाश  जैन

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