फैक्ट चैकर का फैक्ट चैक: तो मिल गये झूठ के सौदागर ज़ुबैर और प्रतीक सिन्हा को शांति का नोबेल?
फैक्ट चेकर जुबैर के ‘नोबेल नामांकन’ की खबर का फैक्ट चेक
फैक्ट चेकर वेबसाइट आल्ट न्यूज के फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) और प्रतीक सिन्हा (Pratik Sinha) को ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ (Nobel Peace Prize) मिलने की ‘संभावना’ वाली खबर चर्चा में है. एक तबका तो इतना खुश है मानो नोबेल ही मिल गया हो, हकीकत ये है कि इससे बड़ी बे सिर-पैर की खबर नहीं हो सकती. आइये पड़ताल करते है।
देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi
‘आल्ट न्यूज के फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को नोबेल शांति पुरस्कार मिल सकता है – टाइम मैगजीन की रिपोर्ट’. इस स्टोरी के मीडिया में आने के बाद इसके इर्द-गिर्द कई तरह की बातें हुई हैं. उन पर बाद में आएंगे, पहले खबर पर बात करते हैं. अमेरिका की नामी मैगजीन टाइम में सान्या मंसूर ने लिखा है कि मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा के साथ सोनिया गांधी के टीम मेंबर हर्ष मंदर को नोबेल के लिए नामांकित किया गया है. यह जानकारी उन्होंने जिस हवाले से दी है, उसका नोबेल नामांकन से कोई लेना-देना नहीं है. तथ्य ये है कि नोबेल पुरस्कार समिति 50 वर्षों तक पुरस्कार के लिए नामांकित व्यक्तियों के नाम गोपनीय रखती है. इसे किसी भी स्तर पर या मीडिया को सार्वजनिक नहीं किया जाता है. इतनी जानकारी तो भारतीय मीडिया में भी आई है. फिर सवाल ये उठता है कि टाइम जैसी मैगजीन ने ऐसे हल्के आधार वाली खबर को क्यों छापा? अब इस तथ्य की पड़ताल से पहले इस खबर की लेखिका के बारे में बात कर लेते हैं.
कश्मीरी मूल की सात साल से इंग्लैंड में रह रही सान्या मंसूर टाइम मैगजीन भारत से जुड़ी खबरें लिखती रही हैं. लेकिन, इन खबरों में एक खास तरह का पैटर्न है. उनके निशाने पर मोदी सरकार, दक्षिणपंथी खासकर हिंदु समुदाय होता है. उन्होंने उदयपुर में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड के बाद ट्रेंड हुए ‘हिंदू लाइफ मैटर’ के हैशटैग को खतरनाक बताया था. वे मुस्लिम कट्टरपंथियों की करतूतों पर पर्दा डालती दिखाई पड़ती हैं. खैर, जुबैर और प्रतीक सिन्हा भी अकसर ऐसे ही एजेंडे पर काम करते दिखाई देते हैं. सान्या की ख्वाहिश जो भी हो, लेकिन उन्होंने नोबेल नामांकन वाली जानकारी का आधार सटोरियों के दांव और एक एनजीओ PRIO के डायरेक्टर को बताया गया. हालांकि, टाइम ने रायटर्स के एक सर्वे का भी हवाला दिया, जिसमें नोबेल के संभावित विजेताओं की सूची तैयार की गई है. लेकिन, उस सूची में इन धुरंधर फैक्ट चैकरों का नाम नहीं है.
लेकिन, सान्या ने अपनी स्टोरी में जुबैर और प्रतीक सिन्हा का यशोगान करने और मोदी सरकार को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जुबेर और प्रतीक सिन्हा वाले हिस्से में उन्होंने पूरी ताकत लगा दी यह साबित करने में कि हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा कैसे मुसलमानों पर ज्यादती कर रही है. किस तरह भारत में पत्रकारों पर ज्यादती की जा रही है. किस तरह ‘बेचारे’ जुबैर को एक चार साल पुराने ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया है. भारत में सिर्फ नफरत का माहौल है, जिससे जुबैर और प्रतीक लोहा ले रहे हैं. सान्या ने अपने लेख में दस नामांकनों का जिक्र किया है, लेकिन जुबैर और प्रतीक का जिक्र करते हुए उन्होंने अपनी आत्मा ही उड़ेल कर रख दी है. खबर में तथ्य कम, भावनाएं ज्यादा नजर आ रही है. नोबेल जीतने वाले संभावितों में जुबैर और प्रतीक का जिक्र खबर कम, मनोकामना ज्यादा लग रही है.
जुबैर-प्रतीक को किस बात की बधाई?
नोबेल नामांकन वाली खबर पढ़ते ही सतही मालूम हो रही है, लेकिन सोशल मीडिया पर इसने वो काम कर दिया, जिसके लिए यह लिखी गई थी. जुबैर और प्रतीक को बधाई दी जा रही है. मानो नोबेल मिल ही गया. भारत में बुद्धिजीवी वर्ग का एक हिस्सा खुशी के मारे लहालोट हुआ जा रहा है. खुद मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा भी अपने ‘नोबेल नामांकन’ की खबर का नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाने जैसा उत्सव मना रहे हैं. सोशल मीडिया पर कहा जाने लगा है कि मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को ‘निष्पक्षता’ के साथ फर्जी खबरों और दावों के फैक्ट चेक करने का ईनाम मिलने वाला है.
report claims Fact Checker Mohammed Zubair and Pratik Sinha among favourites for Nobel Peace Prize also need a Fact Check
कुछ लोग इस तरह दावा कर रहे हैं कि मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को नोबेल शांति पुरस्कार मिल ही गया है. (फोटो साभार:@freethinker)
क्या है नोबेल पुरस्कार का 50 सालों वाला सीक्रेसी रूल?
नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट www.nobelprize.org पर साफ शब्दों में लिखा हुआ है कि नोबेल शांति पुरस्कार के नामांकित व्यक्तियों और नामांकन करने वाले व्यक्तियों के नाम 50 सालों तक सामने नहीं लाए जा सकते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो द टाइम्स मैगजीन के लिए सान्या मंसूर ने ‘संभावित’ नामों की एक खबर लिखी है. और, इस खबर के सहारे मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाने का दावा अपने
आप में एक फेक न्यूज बन जाता है.
nobel prize 50 year secrecy rule
नोबेल पुरस्कार का सीक्रेसी रूल.
वैसे, भी इन दावों को झुठलाने के लिए 50 साल का इंतजार करना होगा. क्योंकि, नोबेल शांति पुरस्कार के सीक्रेसी रूल के हिसाब से 2072 में ही पता चल सकेगा कि सान्या मंसूर ने मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को लेकर जो दावा किया है, वो कितना सही है? और, अगर सिन्हा और जुबैर को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं भी मिलता है. तो, इस कथित नामांकन का इस्तेमाल तो वैसे भी अलग तरह से ही किया जाना है.
जुबैर-प्रतीक को नोबेल नामांकन वाली खबर ‘अग्रिम जमानत’ तो नहीं?
कुछ महीने पहले आल्ट न्यूज के फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने नूपुर शर्मा का एक वीडियो काट-छांटकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर शेयर किया था. जिसके बाद पूरे देश के मुस्लिमों का गुस्सा नूपुर शर्मा के खिलाफ फट पड़ा था. कई हिंदुओं की नृशंस हत्याएं हुईं. लेकिन, जब हिंदू देवता के लिए अपमानजनक ट्वीट करने पर जुबैर को गिरफ्तार किया गया तो वे बेचारे बनने लगे. उनके पक्ष में दुनियाभर से लामबंदी होने लगी. भारत में एडिटर्स गिल्ड ने भी जुबैर के पक्ष में बयान जारी किया. जुबैर और प्रतीक को नोबेल नामांकित होने वाली टाइम मैगजीन खबर में इन बातों का उल्लेख भी है. इन्हीं के बल पर जुबैर को निर्दोष कहा जा रहा है. अब जब नोबेल नामांकन वाली खबर आ ही गई है तो तय मानिए कि उनके अगले अपराध को यही कहकर कवर-फायर दिया जाएगा कि एक नोबेल नामांकित पत्रकार पर ज्यादती हो रही है.
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लेखक
देवेश त्रिपाठी @DEVESH.R.TRIPATHI
लेखक राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं.
Ex Dgp Shesh Paul Vaid Shared A Meme On The List Of Nobel Peace prize
घोड़ों की रेस में गधे भी दौड़ेंगे – नोबेल शांति पुरस्कार संबंधी लिस्ट पर पूर्व DGP ने शेयर किया ऐसा मीम
नोबेल शांति पुरस्कार 2022 के लिए नामांकित 343 उम्मीदवारों में ऑल्ट न्यूज़ (Alt News) के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा (Prateek Sinha) और मोहम्मद ज़ुबैर(Mohammed Zubair) भी शामिल बताए गए ।
Former DGP Shesh Paul Vaid (File Photo)
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान 7 अक्टूबर को नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में किया जाएगा। सैकुलर गिरोह की हिस्सेदार की लिखी एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट ALT न्यूज़ के सह – संस्थापक प्रतीक सिन्हा, मोहम्मद जुबैर और भारतीय लेखक हर्ष मंदर का नाम दावेदारों की लिस्ट में शामिल है। नोबेल पीस प्राइज को लेकर जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व डीजीपी शीश पॉल वैद ने एक मीम शेयर किया। जिस पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
पूर्व डीजीपी ने शेयर किया ऐसा मीम
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व डीजीपी शीश पॉल वैद ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक मीम शेयर किया। जिसमें लिखा गया था कि, ‘ अब घोड़ों की रेस में गधे भी दौड़ेंगे।’ इसके साथ ही उन्होंने हंसने वाली इमोजी का प्रयोग कर लिखा कि नोबेल पीस प्राइज। उनके द्वारा शेयर किए गए इस मीम को अब तक 19 हजार से ज्यादा लोग लाइक कर चुके हैं तो वहीं 12 सौ लोगों ने कमेंट किया है।
लोगों की प्रतिक्रियाएं
ज़ुबैर और प्रतीक सिन्हा गैंग की पत्रकार रोहिणी सिंह लिखती हैं कि दुर्भाग्य की बात है कि आप इतने वरिष्ठ आईपीएस और जिम्मेदार पद पर रह चुके हैं और अब आईटी सेल के ट्रोल तक सिमट गए हैं। अगर रिटायरमेंट के बाद आपको समय बिताना मुश्किल लगता है तो बागवानी करने या फिर तो टोकरी बुनने की कोशिश क्यों नहीं करते? ये सम्मानजनक शौक है। इसके जवाब में उन्होंने लिखा कि सजेशन देने के लिए धन्यवाद। मुझे मीम पसंद है, ये ज्यादा मजेदार है।