फारुख अब्दुल्ला चाहते तो बचा सकते थे कश्मीरी पंडितों की जान: फारुख रेंजू शाह

70 आतंकी.. Pak में ट्रेनिंग, घाटी में भेजा… J&K के पूर्व अधिकारी का खुलासा – फ़ारूक़ अब्दुल्ला चाहते तो रोक सकते थे कश्मीरी पंडितों का नरसंहार


फारूक अब्दुल्ला (बाएँ) फारूक रेंजू शाह (दाएँ)

90 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और उनके पलायन के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। उस वक्त घाटी में तैनात नौकरशाह फारूक रेंजू शाह (Farooq Renzu Shah) ने कश्मीरी पंडितों पर जुल्म और उनके पलायन के पीछे की साजिशों पर पर्दा उठा अब्दुल्ला को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ से बातचीत में कहा कि अगर तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला चाहते तो कश्मीरी पंडितों का नरसंहार रुक सकता था।

अगर मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला चाहते तो क्या कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार और उनका पलायन रोका जा सकता था? के जवाब में शाह ने कहा, “हाँ, हाँ, बिल्कुल रुक सकता था। पिछले 700 साल से कश्मीर के मुसलमानों और पंडितों में जबर्दस्त तालमेल और दोस्ती देखने को मिली, लेकिन उसे जहरीले सियासी बयानों से तार-तार कर दिया गया।”

पूर्व डीजीपी डॉक्टर. वैद के एक बयान का हवाला देते हुए पूर्व नौकरशाह ने कहा कि वर्ष 1989 में पाकिस्तान से प्रशिक्षित 70 आतंकियों को घाटी में उतारा गया था। दो दिन पहले डॉक्टर वैद ने कहा था कि 70 प्रशिक्षित आतंकवादियों को एक गुप्त गलियारे से लाकर राजनीतिक संरक्षण में रखा गया। फिर उन्हें आम लोगों के बीच भेज दिया गया। वो 70 प्रशिक्षित आतंकी कौन थे?”

वे आगे कहते हैं कि हम लोगों को केवल पाँच से छह आतंकियों के बारे में ही पता था, जिन्हें मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद की फिरौती में छोड़ा गया था। उनका मानना है कि इन्हीं पाँच-छह आतंकियों ने घाटी को बर्बाद कर दिया, ये सोचना कोरा झूठ है। उनके अनुसार, वहाँ पाकिस्तान में प्रशिक्षित 70 आतंकियों को लाया गया था। शाह यह भी बताते हैं कि उस वक्त मैंने देखा कि आतंकियों ने टिकलाल टपलू को मारा, फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया। ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। उसके बाद आतंकियों ने मकबूल भट्ट को फाँसी की सज़ा सुनाने वाले जज को मार दिया।

शाह का दावा है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए वहाँ की सियासी साजिश जिम्मेदार है। उन्होंने कहा, “हर कश्मीरी मुसलमान ने अत्याचार नहीं किया। एक समूह ने किया, जिसके नियंत्रण में अल सफा अखबार था। उसने ही अल सफा के पहले पन्ने पर बैनर न्यूज लगाया था कि 48 से 72 घंटे के अंदर तमाम कश्मीरी पंडित यहाँ से भाग जाएँ, नहीं तो मारे जाएँगे। अल सफा का चीफ एडिटर बाद में मारा गया, लेकिन अखबार में धमकी छपने के बाद ही कश्मीरी पंडित रातोंरात सब कुछ छोड़कर भागने लगे थे।”

शाह ने बताया, “जो शख्स इस अखबार को कंट्रोल कर रहा था, वह बाद में 98 हजार वोटों के साथ संसद पहुँचा। उसने ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराई थी।” आपको बता दें कि वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नैशनल कॉन्फ्रेंस का सांसद सैफुद्दीन सोज था। उसी ने पार्टी लाइन से हटकर विश्वास मत के विरोध में वोट डाला था, जिससे वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी। बाद में सैफुद्दीन सोज कॉन्ग्रेस में शामिल हो गया था।

बता दें कि साल 1989 में जुलाई और दिसंबर के बीच फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने 70 कट्टर इस्लामी आतंकियों को छोड़ दिया था। बाद में ये पाकिस्तान का समर्थन पाकर खूंखार आतंकी बने और हिंदुस्तान में कई आतंकी वारदातों को अंजाम दिया। घाटी में हिंदुओं के खिलाफ विरोध और इस्लामिक उग्रवाद को बढ़ावा देने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

हाइलाइट्स
1-कश्मीर में हिंदुओं पर हुए अमानवीय अत्याचार को लेकर नए-नए दावे किए जा रहे हैं
2-कहा जा रहा है कि इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पूरी तरह जिम्मेदार हैं
3-त्रासदी के वक्त घाटी में तैनात एक मुस्लिम नौकरशाह ने अब्दुल्ला को कठघरे में खड़ा कर दिया
4-वहीं बीजेपी आईटी सेल के अध्यक्ष अमित मालवीय ने भी अब्दुल्ला को एक दस्तावेज से घेरा

अल सफा अखबार में किसने छपवायी थी धमकी?

पूर्व नौकरशाह फारुख रेेंजू शाह का दावा है कि घाटी में हर मुसलमान कश्मीरी पंडितों का दुश्मन नहीं था और उन पर हुए अत्याचार के लिए सभी मुसलमान को दोषी बताना गलत है। उनका कहना है कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए वहां की सियासी साजिश जिम्मेदार है। शाह ने कहा, ‘हर कश्मीरी मुसलमान ने अत्याचार नहीं किया। एक टोले ने किया जिसके नियंत्रण में अल सफा अखबार था। उसने अल सफा के पहले पन्ने पर बैनर न्यूज लगाया गया कि 48 से 72 घंटे में कश्मीरी पंडित निकल जाएं वरना मारे जाएंगे। अल सफा का चीफ एडिटर बाद में मारा गया।’अल सफा में धमकी छपने के बाद ही कश्मीरी पंडित रातोंरात सबकुछ छोड़कर भागने लगे थे। शाह आगे कहते हैं, ‘जो शख्स इस अखबार को कंट्रोल कर रहा था, वह 98 हजार वोट लाकर संसद पहुंच गया। उसने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी।’

1998 में वाजपेयी सरकार के गिरने की तरफ इशारा

शाह का इशारा 1998 में वाजपेयी सरकार के एक वोट से विश्वास मत हारने की तरफ है। तब फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नैशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज ने पार्टी लाइन से हटकर विश्वास मत के विरोध में वोट डाल दिया और वाजेपेयी का सरकार एक वोट से गिर गई। बाद में सैफुद्दीन सोज कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया था। ध्यान रहे कि 1998 की वाजपेयी सरकार में नैशनल कॉन्फ्रेंस बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा थी और उमर अब्दुल्ला केंद्र में मंत्री थे।

 

अमित मालवीय ने भी पूछा सवाल

इधर, बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी एक दस्तावेज के जरिए फारूक अब्दुल्ला को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने जेएंडके माइग्रेंट इमूवेबल प्रॉपर्टी एक्ट के पहले पन्ने को ट्वीट कर कहा कि उमर अब्दुल्ला अपने पिता फारूक अब्दुल्ला का दामन पाक-साफ होने का दावा कर रहे हैं जो सरासर झूठ है। वो लिखते हैं, ‘उमर ने पिता फारूक अब्दुल्ला को नरसंहार का जिम्मेदार नहीं माना है जो पूरी तरह झूठ है। यहां जम्मू-कश्मीर शरणार्थी अचल संपत्ति कानून है जिसे फारूक अब्दुल्ला ही लाये थे। इसमें माना गया है कि 1 नवंबर 1989 से कश्मीरी पंडितों का सामूहिक पलायन शुरू हो गया था।’ मालवीय ने पूछा कि फारूक अब्दुल्ला ने 18 जनवरी 1990 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया है तो इस बीच के 79 दिनों तक उन्होंने कश्मीरी पंडितों के संरक्षण के लिए क्या किया?

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