बकरीद पर जैनियों ने बचाई 124 बकरों की जान
WhatsApp से एकत्र किया चंदा, फिर मुस्लिम बन गए जैन श्रद्धालु, खरीद डाले 124 बकरे, और बचा ली उनकी जान…
पुरानी दिल्ली के जैन समुदाय ने यह निर्णय किया कि वे सभी बकरों को तो बचा नहीं सकते, मगर जितना संभव हो सके उतने बकरों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए.
पुरानी दिल्ली में बकरीद पर खरीदे गए 124 बकरे, मगर फिर नहीं हुई कुर्बानी
मुख्य बिंदु
1-बकरीद के मौके पर देश में लाखों बकरे बलिदान.
2-इस मौके पर कुछ ऐसे लोग भी सामने आए जिन्होंने बकरों की खरीद तो की मगर उनकी जान बचाने को.
3-अब इन बकरों के उम्र भर पाला जाएगा.
नई दिल्ली 21 जून. ईद उल जुहा जिसे मुस्लिम बकरीद कहना पसंद करते हैं, के मौके पर देश में लाखों बकरों की हत्या की गई. इस मौके पर कुछ ऐसे लोग भी सामने आए जिन्होंने बकरों की खरीद तो की मगर उनकी हत्या नहीं की. अब इन बकरों के उम्र भर पाला जाएगा. पुरानी दिल्ली के जैन समुदाय के लोगों ने यह फैसला किया कि वे सभी बकरों को तो बचा नहीं सकते, मगर जितना संभव हो सके उतने बकरों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. इसलिए जैन लोगों की एक टोली ने मुसलमानों की तरह कपड़े पहने और बकरा मंडियों में जाकर काफी मोलभाव करके 124 बकरों को खरीद लिया. अब इनको एक जैन मंदिर में रखा गया है.
इस पूरे काम के लिए पुरानी दिल्ली के जैन समुदाय ने करीब 15 लाख रुपये जुटाए थे. बहरहाल जैन मंदिर के परिसर में रखे गए बकरे काफी घबराए हुए थे. क्योंकि उनको लग रहा है कि उनको यहां काटने के लिए रखा गया है. उनको यह पता नहीं है कि उनको नया जीवन मिल चुका है. पुरानी दिल्ली के धर्मपुर इलाके में नया जैन मंदिर बकरीद से पहले बकरी बाजारों की तरह ही गुलजार लग रहा था. चांदनी चौक में रहने वाले जैनों के लिए यह बकरा दर्शन का दिन था. बकरियों की एक झलक पाने के लिए लोग मंदिर में उमड़ पड़े. कुछ ने उनके चारे के लिए पैसे भी दान किए.
28 साल के चिराग जैन ने बताया कि इस काम की शुरुआत उनके गुरु संजीव के एक फोन कॉल से हुई. संजीव बकरीद पर बकरों की हत्या से परेशान थे. चिराग ने कहा कि वह इसके बारे में कुछ करना चाहते थे, और तभी यह फैसला लिया गया कि हम सभी बकरों को तो नहीं बचा सकते, लेकिन जितना हो सके उतना बचाना चाहिए. जल्द ही एक योजना बनाई गई. 15 जून की शाम जैन समुदाय के 25 लोगों की एक टीम बनाई गई. पैसे के लिए एक व्हाट्सएप संदेश भेजा गया. इसके बाद, टीम ने उन इलाकों का दौरा किया जहां बकरे बेचे जा रहे थे।
16 जून को जैन लोगों टीम गुप्त रूप से अपने मिशन पर चली और जामा मस्जिद, मीना बाजार, मटिया महल और चितली कबर जैसे पुरानी दिल्ली के इलाकों में अलग-अलग बकरा बाजारों में जोड़े में फैल गई. सभी सदस्यों को निर्देश दिया गया कि वे कुर्ता पहनें और इस तरह से बात करें कि वे बकरे खरीदते समय किसी भी कठिनाई से बचने के लिए लोगों के बीच घुल-मिल सकें. खरीद प्रक्रिया में कई दौर की कठिन मोलभाव शामिल था. अंत में औसतन 10,000 रुपये प्रति बकरे की कीमत पर बकरे खरीदे गए.
शहर के चारों ओर पुरानी दिल्ली में जैन समुदाय के लोगों ने मुस्लिम वेश धारण कर 124 बकरे खरीदे…
दिल्ली के जैन समुदाय ने 15 लाख रुपए जुटाए और फिर पुरानी दिल्ली के बाजारों में जाकर मुसलमान बनकर घूमे। उन्होंने जमकर मोल-भाव किया, 124 बकरे खरीदे और उन्हें चांदनी चौक के प्रसिद्ध मंदिर में रख दिया।
चांदनी चौक के धरमपुर इलाके में नया जैन मंदिर का प्रांगण जहां खरीदे गए बकरे रखे गए हैं |
जामा मस्जिद से करीब 500 मीटर दूर चांदनी चौक में एक मंदिर के प्रांगण में सैकड़ों बकरियों ने विवेक जैन को घेर लिया। 30 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट ने ईद-उल-अजहा (बकरीद) के दौरान 124 बकरियों को कटने से बचाने को 15 लाख रुपये जुटाए थे। और अब वह उन्हें शांत करने को स्पीकर से मंत्र बोल रहा था।
“यह शांति और सकारात्मकता लाने को एक शक्तिशाली जैन मंत्र है। ये बकरियाँ डरी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें वध को इकट्ठा किया गया है। वे नहीं जानते कि हमने उन्हें नया जीवन दिया है,” उन्होंने बकरियों के झटकों पर चौंकते हुए कहा।
धरमपुर इलाके में नया जैन मंदिर ईद से पहले बकरी बाज़ारों की तरह ही गुलज़ार था। हालाँकि, यहाँ उत्साह कसाई की छुरी से बकरियों को “बचाने” को लेकर था। चांदनी चौक के जैनियों के लिए, यह उनके बकरी दर्शन का दिन था। लोग बकरियों की एक झलक पाने को मंदिर में उमड़ रहे थे। कुछ ने उनके चारे को पैसे दान किए, दूसरों ने गर्व से उन्हें दुलारा, और कुछ ने अपने धर्म के गुणों का बखान किया।
हर साल मुस्लिम त्योहारों पर शाकाहार और क्रूरता पर छिड़ी बहस के बीच,दिल्ली में जैन समुदाय अपनी नई लोकप्रियता और प्रशंसा का आनंद ले रहा था। वे पुरानी दिल्ली क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गए थे और ऑनलाइन सनसनी बन गए थे, हैशटैग “जैन” एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर 22,000 से अधिक पोस्ट के साथ ट्रेंड कर रहा था। सभी-हिंदू,मुस्लिम और सिख – इस कम प्रसिद्ध जैन मंदिर के बारे में जानते हैं, जो पुरानी दिल्ली की गलियों में छिपा हुआ है, जिसने इन बकरियों को “बचाने” को लाखों खर्च किए थे।
बकरी के दर्शन के लिए उमड़े लोग |
‘बचाई गई’ बकरियां |
“हमें खुद पर गर्व है। देश भर से हमारे समुदाय के सदस्यों के योगदान से यह संभव हो पाया है। हम इसे सामाजिक कल्याण कहते हैं और यही हमारा धर्म हमें सिखाता है। चांदनी चौक के जैन समुदाय के लिए यह एक ‘ऐतिहासिक क्षण’ है। यह हमारा पहला मौका था और हम यहां से आगे ही बढ़ेंगे,” जैन ने लोगों को बकरी दर्शन को प्रांगण में ले जाते हुए कहा ।
28 वर्षीय चिराग जैन याद करते हैं कि इसकी शुरुआत उनके गुरु संजीव के एक फ़ोन कॉल से हुई थी। संजीव ईद पर बकरों की हत्या से परेशान थे।
चिराग ने कहा, “वह इस बारे में कुछ करना चाहते थे और तभी यह निर्णय लिया गया कि यद्यपि हम सभी बकरियों को नहीं बचा सकते, फिर भी हमें जितनी अधिक बकरियों को बचा सकते हैं, बचाना चाहिए।”
जल्द ही एक योजना बनाई गई। 15 जून की शाम को जैन समुदाय के 25 लोगों की एक टीम बनाई गई। पैसे के लिए व्हाट्सएप पर मैसेज भेजा गया। इसके बाद टीम ने उन इलाकों का सर्वे किया जहां बकरियां बेची जा रही थीं।
चिराग ने कहा , “हमने उनके [मुस्लिम] समुदाय के सदस्य बनकर उनसे बकरियों की बिक्री की कीमत पूछी। हमने बकरियों की मंडियों का भी सर्वेक्षण किया ,” लिविंग रूम में बैठे अन्य लोगों ने सहमति में सिर हिलाया।
16 जून को टीम गुप्त रूप से पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद, मीना बाजार, मटिया महल और चितली क़बर जैसे इलाकों में अलग-अलग बकरा बाज़ारों में अलग-अलग जोड़े में फैल गई। सभी सदस्यों को निर्देश दिया गया कि वे कुर्ता पहनें और इस तरह से बात करें कि वे बकरे खरीदते समय किसी भी तरह की परेशानी से बचने के लिए उस इलाके में घुलमिल सकें।
कई दौर की मोल-तोल के बाद, बकरे 10,000 रुपये प्रति बकरे पर खरीदे गए।
हमने खुद को [मुस्लिम] समुदाय के सदस्य बताकर बकरों की बिक्री की कीमत पूछी। हमने बकरा मंडियों का भी सर्वेक्षण किया
दिल्ली के चांदनी चौक में जैन समुदाय बकरियों को ‘बचाने’ के बाद मिली नई लोकप्रियता से खुश है।
विवेक ने कहा, “हमें डर नहीं था, लेकिन हम नहीं चाहते थे कि खरीदार हमारी भावनाओं से खेलें। अगर उन्हें पता होता कि हम गैर-मुस्लिम हैं, तो वे हमें बकरियों को ज़्यादा कीमत पर बेच देते, और हम ज़्यादा से ज़्यादा बकरियों को बचाना चाहते थे।”
खरीद प्रक्रिया में कई दौर की कड़ी मोल-तोल हुई, लेकिन आखिरकार बकरे औसतन 10,000 रुपये प्रति बकरे की कीमत पर खरीदे गए। हालांकि, विवेक इस बात से हैरान थे कि पुरानी दिल्ली की मंडियों में इन बकरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कैसे बेचा जाता था।
“ऐसा लगा जैसे हम किसी स्ट्रीट वेंडर से कपड़े खरीद रहे हैं। बकरियों को एक साथ ठूंस दिया गया था और उन्हें ठीक से संभाला नहीं गया था। इन जीवित, सांस लेने वाले जीवों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं थी,” उन्होंने बेहद घृणा के साथ कहा।
30 वर्षीय विवेक जैन एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं |
‘बचाई गई’ बकरियां |
इस बीच, मंदिर की धर्मशाला के प्रांगण को खाली कर दिया गया, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर शादियों और धार्मिक आयोजनों के लिए किया जाता है, ताकि बचाई गई बकरियों को रखा जा सके। जब शाम को टीमें बकरियों को लेकर मंदिर लौटीं, तो वहां इंतजार कर रहे अन्य समुदाय के सदस्यों ने उनकी सफलता पर खुशी जताते हुए मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया।
विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “आखिरकार, हम 100 से ज़्यादा बकरियों को बचाने में कामयाब रहे। बहुत उत्साह था।”
उन्होंने बताया कि उन्होंने गुजरात, हैदराबाद, केरल, पंजाब और महाराष्ट्र के जैन समुदाय के सदस्यों से 15 लाख रुपए जुटाए थे। उसी शाम विवेक,चिराग और अन्य लोगों ने बची हुई रकम से भिंडी और पालक जैसे चारे खरीदे,जिनकी बोरियाँ आंगन के बाहर रखी हुई थीं।
व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप पर एक संदेश प्रसारित किया गया जिसमें अपील की गई, “कृपया इस नेक काम में योगदान दें ताकि हम कुछ जानवरों को वध से बचा सकें। हम इन बकरियों को जैन संचालित गौशालाओं और बकराशालाओं में भेज देंगे ।”
विवेक ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे चार बकरियां भी खरीद पाएंगे। लेकिन उनकी अपील ने लोगों को प्रभावित किया और दान को अनुरोध आने लगे, जिससे वे एक दिन में ही 15 लाख रुपए जुटा पाए।
फिर बड़ा सवाल आया – 124 ‘बचाई गई’ बकरियों को कहां रखा जाए? चांदनी चौक में हैंडलूम की दुकान चलाने वाले अमन जैन ने बताया कि बागपत में जैन समुदाय संचालित एक बकरी आश्रय गृह को दो दिन उन्हें रखने को चिन्हित किया गया है।
बागपत के अमीनगर सराय में 40 वर्षीय मनोज जैन नई आई बकरियों के लिए एक समर्पित बाड़े का निर्माण कर रहे थे, जिन्हें 15 दिनों तक अलग-थलग रखा जाएगा,उसके बाद उन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने दिया जाएगा। आठ साल पहले मनोज ने बकरियों को वध से बचाने को बकराशाला शुरू की थी । उनके आश्रय में वर्तमान में 615 बकरियाँ हैं, जिन्हें पूरे भारत में बकरीद पर बचाया गया था।
बचाई गई बकरियों को उत्तर प्रदेश के बागपत में जैन समुदाय द्वारा संचालित बकरी आश्रय गृह में भेजा जाएगा।
‘अहिंसा परमो धर्म:’ के सिद्धांत पर चलने वाले आश्रय गृह ने पिछले साल बरकिड के दौरान 250 बकरियां खरीदी थीं ।
“याद रखें, ये सभी नर [बिली] बकरे हैं, मादा नहीं। इस त्यौहार के दौरान नर बकरों का वध किया जाता है। हमारे आश्रय ने अंत तक इन बकरियों की देखभाल की जिम्मेदारी ली है,” मनोज जैन ने फोन पर बताया।
उन्होंने कहा कि यह आश्रय स्थल पूरी तरह से भारत भर के सामुदायिक सदस्यों के योगदान से चलता है।
ईद की बधाई देने निकले बुजुर्ग मुस्लिम जोड़े इमरान और मुश्ताक जैन मंदिर में रुके। इमरान ने बताया, “यह वही मंदिर है, जिसमें ये सभी बकरियाँ रखी हुई हैं।”
इमरान ने रविवार को जैनों को बकरियां ले जाते हुए देखा था, लेकिन उन्हें इसका कारण तब समझ आया जब सोमवार सुबह इस घटना के वीडियो और खबरें इंटरनेट पर छा गईं।
45 वर्षीय व्यक्ति ने कहा कि “हमारा धर्म हमें बकरीद पर बकरों की बलि देने को कहता है,जो हम ईश्वर की भक्ति के लिए करते हैं। हम इसको मजबूर नहीं करते या बढ़ावा नहीं देते।”
उनके दोस्त मुश्ताक (50 वर्ष) मुस्कुराते हुए कहते हैं, कि “यह उनका धर्म है और अगर जानवरों (जैसे बकरियों) को बचाना इसका हिस्सा है,तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। हर किसी को वह करना चाहिए जिससे उन्हें शांति मिले।”
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