ज्ञान: पाश्चात्य विज्ञान आज ब्रह्माण्ड को नापने की कोशिश कर रहा है, भारतीय हजारों साल पहले कर चुके
भारत है गणित की मातृभूमि-5
कल दो मार्च से आगे-
पुरुषोऽयं लोक सम्मित इत्युवाच भगवान् पुनर्वसुः आत्रेयः, यावन्तो हि लोके मूर्तिमन्तो भावविशेषास्तावन्तः पुरुषे, यावन्तः पुरुषे तावन्तो लोके॥ (चरक संहिता, शारीरस्थानम् ५/२)
= पुरुष तथा लोक की माप एक ही है। लोक (विश्व) में जितने भाव-विशेष हैं उतने ही पुरुष में हैं।
एभ्यो लोमगर्त्तेभ्य ऊर्ध्वानि ज्योतींष्यान्। तद्यानि ज्योतींषिः एतानि तानि नक्षत्राणि। यावन्त्येतानि नक्षत्राणि तावन्तो लोमगर्त्ताः। (शतपथ ब्राह्मण १०/४/४/२)
= इन लोमगर्त्तों से ऊपर में ज्योति (ज्योतिष्) हैं। जितनी ज्योति हैं उतने ही नक्षत्र हैं। जितने नक्षत्र हैं उतने ही लोमगर्त्त हैं। शरीर में लोम (रोम) का गर्त्त (आधार) कोषिका हैं। आकाश में ३ प्रकार के नक्षत्र हैं-(१) सौर मण्डल की नक्षत्र कक्षा (सूर्य सिद्धान्त १२/८०) के अनुसार यह पृथ्वी (या पृथ्वी से दीखती सूर्य) कक्षा का ६० गुणा है जिसके बाद बालखिल्य आदि हैं। पर यह दीखते नहीं हैं।
भवेद् भकक्षा तीक्ष्णांशोर्भ्रमणं षष्टिताडितम्। सर्वोपरिष्टाद् भ्रमति योजनैस्तैर्भमण्डलम्॥८०॥
दीखने वाले (ज्योति) २ प्रकार के नक्षत्र हैं-(२) ब्रह्माण्ड (आकाशगंगा) में तारा, (३) सम्पूर्ण विश्व में ब्रह्माण्ड। ये दोनों विन्दु मात्र दीखते हैं। इनकी संख्या उतनी ही है जितनी शरीर में लोमगर्त्त या वर्ष में लोमगर्त्त (मुहूर्त्त का १०७ भाग) हैं।
पुरुषो वै सम्वत्सरः॥१॥ दश वै सहस्राण्यष्टौ च शतानि सम्वत्सरस्य मुहूर्त्ताः। यावन्तो मुहूर्त्तास्तावन्ति पञ्चदशकृत्वः क्षिप्राणि। यावन्ति क्षिप्राणि, तावन्ति पञ्चदशकृत्वः एतर्हीणि। यावन्त्येतर्हीणि तावन्ति पञ्चदशकृत्व इदानीनि। यावन्तीदानीनि तावन्तः पञ्चदशकृत्वः प्राणाः। यावन्तः प्राणाः तावन्तो ऽनाः। यावन्तोऽनाः तावन्तो निमेषाः। यावन्तो निमेषाः तावन्तो लोमगर्त्ताः। यावन्तो लोमगर्त्ताः तावन्ति स्वेदायनानि। यावन्ति स्वेदायनानि, तावन्त एते स्तोकाः वर्षन्ति॥५॥ एतद्ध स्म वै तद् विद्वान् आह वार्कलिः। सार्वभौमं मेघं वर्षन्त वेदाहम्। अस्य वर्षस्य स्तोकमिति॥६॥ ((शतपथ ब्राह्मण १२/३/२/५-६)
= १ वर्ष में १०,८०० मुहूर्त्त हैं। १ मुहूर्त्त दिवस (१२ घण्टा) का ३० वां भाग है। मुहूर्त्त के क्रमशः १५-१५ भाग करने पर-क्षिप्र, एतर्हि, इदानी, प्राण, अन (अक्तन), निमेष, लोमगर्त्त, स्वेदायन-होते है। जितने स्वेदायन हैं उतने ही स्तोक (जल-विन्दु) हैं। यह भारी वर्षा में जलविन्दु की संख्या है। स्वेद या जल-विन्दु का अयन (गति) उतनी दूरी तक हैं जितना प्रकाश इस काल में चलता है (प्रायः २७० मीटर)। हवा में गिरते समय उतनी दूरी तक इनका आकार बना रहता है।
अतः १ मुहूर्त्त =१५७ लोमगर्त्त =१.७१ x १०८ (अर्बुद)
= १०८ स्वेदायन=२.५६ x १०९ (अब्ज या वृन्द)
खर्व (१०१०) निखर्व (१०११)-ऊपर के उद्धरण के अनुसार आकाश में ब्रह्माण्ड या ब्रह्माण्ड में तारा संख्या १०८०० x १०७ है, जितने वर्ष में लोमगर्त्त हैं। किन्तु यह पुरुष के रूप हैं जो भूमि से १० गुणा होता है-
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्त्वाऽत्यत्तिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥ (पुरुष सूक्त १)
अतः भूमि (ब्रह्माण्ड) में तारा संख्या इसका दशम भाग १०११ है। खर्व का अर्थ चूर्ण या कण रूप है। विश्व के लिये ब्रह्माण्ड एक कण है, ब्रह्माण्ड के लिये तारा कण है।
महापद्म (१०१२)-पृथ्वी पद्म है, सबसे बड़ी पृथ्वी ब्रह्माण्ड महा-पद्म है, इसमें १०१२ लोमगर्त्त हैं, अतः यह संख्या महापद्म है।
शङ्कु (१०१३)-शङ्कु के कई अर्थ हैं- पृथ्वी पर अक्षांश, दिशा, समय या सूर्य क्रान्ति की माप के लिये १२ अंगुल का स्तम्भ खड़ा करते हैं जिसे शङ्कु कहते हैं (त्रिप्रश्नाधिकार)। इसका आकार शीर्ष पर बिन्दु मात्र है तथा यह नीचे वृत्ताकार में चौड़ा होता गया है। चौड़ा आधार स्वयं स्थिर रह सकता है, वृत्ताकार होने पर यह समान रूप से निर्द्दिष्ट बिन्दु के सभी दिशा में होगा। इस स्तम्भ का आकार शङ्कु कहलाता है। ग्रहों की गति जिस कक्षा में है वह वृत्त या दीर्घवृत्त है, जो शङ्कु को समतल द्वारा काटने से बनते हैं। ब्रह्माण्ड केन्द्र के चारों तरफ तारा कक्षा भी शङ्कु-छेद कक्षा (वृत्तीय) में हैं। इसी कक्षा ने इनको धारण किया है, अतः शङ्कु द्वारा विश्व का धारण हुआ है। सबसे बड़ा शङ्कु स्वयं ब्रह्माण्ड है, जो कूर्म चक्र (ब्रह्माण्ड से १० गुणा बड़ा-आभामण्डल) के आधार पर घूम रहा है। इसका आकार पृथ्वी की तुलना में १०१३ गुणा है। शङ्कु या शङ्ख का अर्थ वृत्तीय गति भी है। इसी से शक्वरी शब्द बना है-ब्रह्माण्ड के परे अन्धकार या रात्रि है, शक्वरी = रात्रि। शक्वरी का अर्थ सकने वाला, समर्थ है-यह क्षेत्र ब्रह्माण्ड की रचना करने में समर्थ है। इसका आकार अहर्गण माप में शक्वरी छन्द में मापा जाता है जिसमें १४ x ४ = ५६ अक्षर होते हैं। ५६ अहर्गण = पृथ्वी २५३ (५६-३)।
✍🏻अरुण उपाध्याय
#और है।शेष कल।