पुण्य स्मृति: सीमित संसाधनों से अंग्रेजों से संघर्ष करते फांसी के फंदे तक पहुंचे लाला हुकुमचंद जैन
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बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏
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🔥 *लाला हुकुमचंद जैन* 🔥
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✍️ राष्ट्रभक्त साथियों, सन् 1857 के विद्रोह के समय बैरकपुर, मेरठ, झाँसी, कानपुर, आरा, लखनऊ, फैजाबाद, बरेली आदि स्थानों पर स्वतंत्रता हेतु क्रांति की मशाल ने प्रचंड रूप धारण किया, वहीं हरियाणा का हांसी (हिसार) भी पीछे नहीं रहा। इस भूमि से भी महान देशभक्त लाला हुकुमचंद जैन जी ने बलिदान दिया है। आज मातृभूमि सेवा संस्था आज इसी महान देशभक्त के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करेगी। हुकुमचंद जैन का जन्म सन् 1816 में हांसी (हिसार) हरियाणा के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में पिता दुनीचंद जैन के घर हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई थी। जन्मजात प्रतिभा के धनी हुकुमचंद जी की फ़ारसी और गणित में रुचि थी। अपनी शिक्षा व प्रतिभा के बल पर इन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के दरबार में उच्च पद प्राप्त कर लिया और बादशाह के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध हो गये। सन् 1841 में मुगल बादशाह ने इनको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो व प्रबन्धकर्त्ता नियुक्त किया। ये 07 साल तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे, फ़िर इलाके के प्रबन्ध के लिए हांसी लौट आये। इस बीच ब्रितानियों ने हरियाणा प्रांत को अपने अधीन कर लिया। हुकुमचंद जी ब्रिटिश शासन में कानूनगो बने रहे, पर इनकी भावनायें सदैव ब्रितानियों के विरुद्ध रहीं।
📝 सन् 1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब लाला हुकुमचंद की देशप्रेम की भावना अंगडाई लेने लगी। दिल्ली में आयोजित देशभक्त्त नेताओं के सम्मेलन में, जिसमें तांत्या टोपे शामिल थे, हुकुमचंद जी भी आए। बहादुर शाह से उनके गहरे सम्बन्ध पहले से ही थे अत: इन्होंने ब्रितानियों के विरुद्ध युद्ध करने की पेशकश की। इन्होंने सबको विश्वास दिलाया की वे इस संग्राम में अपना तन मन और धन र्स्वस्व बलिदान करने को तैयार है। इनकी इस घोषणा से बहादुर शाह ने भी हुकुमचंद जी को विश्वास दिलाया कि वे अपनी सेना, गोला-बारुद तथा हर तरह की युद्ध सामग्री सहायता स्वरुप पहुँचायेगे। हुकुमचंद जी इस आश्वासन को लेकर हांसी आ गए। हांसी पहुँचते ही इन्होने देशभक्त्त वीरों को एकत्रित किया और जब ब्रितानियों की सेना हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही थी, तब उस पर हमला किया और उसे भारी हानि पहुँचाई। हुकुमचंद व इनके साथियो के पास जो युद्ध सामग्री थी वह अत्यंत थोडी थी, हथियार भी साधारण किस्म के थे, दुर्भाग्य से जिस बादशाही सहायता का भरोसा इन्होंने किया था वह भी नही पहुँची, फ़िर भी इनके नेतृत्व में जो वीरतापूर्ण संघर्ष हुआ वह एक मिशाल है। इस घटना से ये हतोत्साहित नहीं हुए, अपितु ब्रितानियों को परास्त करने के उपाय खोजने लगे।🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
📝 लाला हुकुमचंद जी व उनके साथी मिर्जा मुनीर बेग ने गुप्त रुप से एक पत्र फ़ारसी भाषा में मुगल सम्राट को लिखा, (कहा जाता है कि यह पत्र खून से लिखा गया था) जिसमें उन्हें ब्रितानियों के विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास दिलाया, साथ ही ब्रितानियों के विरुद्ध अपने घृणा के भाव व्यक्त्त किये थे और अपने लिये युद्ध सामग्री की माँग की थी। हुकुमचंद जी मुगल सम्राट के उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए हांसी का प्रबन्ध स्वयं संभालने लगे। किन्तु दिल्ली से पत्र का उत्तर ही नहीं आया। इसी बीच दिल्ली पर ब्रितानियों ने अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट् गिरफ़्तार कर लिये गए 15 नवम्बर, 1857 को व्यक्तिगत फ़ाइलों की जांच के दौरान लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला वह पत्र ब्रितानियों के हाथ लग गया। यह पत्र दिल्ली के कमीश्नर सी.एस. सॉडर्स ने हिसार के कमिश्नर नव कार्टलैन्ड को भेज दिया और लिखा की – इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाए।🙏🙏🌷🌷🌷🌷
📝 पत्र प्राप्त होते ही कलेक्टर एक सैनिक दस्ते को लेकर हांसी पहुँचे और हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के मकानों पर छापे मारे गए। दोनों को गिरफ़्तार कर लिया गया, साथ में लाला हुकुमचंद जी के 13 वर्षीय भतीजे फ़कीरचंद जैन जी को भी गिरफ़्तार कर लिया गया। हिसार लाकर इन पर मुकदमा चला, एक सरसरी व दिखावटी कार्यवाही के बाद 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट जॉन एकिंसन ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फ़ांसी की सजा सुना दी। फ़कीर चंद जैन जी को मुक्त कर दिया गया। 19 जनवरी 1858 को लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग़ को लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फाँसी दे दी गई। क्रूरता और पराकाष्ठा तो तब हुई जब लाला जी के भतीजे फ़कीरचंद जैन जी को, जिसे अदालत ने बरी कर दिया था, जबरदस्ती पकड़ कर फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया। ब्रितानियों की क्रोधाग्नि इतने से भी शान्त नहीं हुई। धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिये ब्रितानियों ने इनके रिश्तेदारों को इनके शव अन्तिम संस्कार हेतु नहीं दिये गये, बल्कि इनके शवो को इनके धर्म के विरुद्ध दफ़नाया गया। ब्रितानियों ने लाला जी की सम्पत्ति को कौड़ियों के भाव नीलाम कर दिया था। *मातृभूमि सेवा संस्था आज इन तीनों देशभक्तों के बलिदान के साथ साथ शंकर महली जी के बलिदान को भी नमन करती है।* 🌷🌷
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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳