मत: भाजपा की 2024 की जीत को पिच तैयार कर रही है कांग्रेस

Opinion: क्या कांग्रेस 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की पिच तैयार करने लगी है?

नवीन कुमार पाण्डेय

Congress Agenda For 2024 Lok Sabha Election : कांग्रेस पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए 2024 लोकसभा चुनावों के लिए अपनी जमीन तैयार करने की पुरजोर कोशिश की है। हालांकि, इस मकसद में देश की सबसे पुरानी पार्टी कितनी सफल हो पाएगी, इसका ठीक-ठीक अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, यात्रा के दौरान और इससे इतर पार्टी और इसके नेताओं की गतिविधियों का आकलन तो जरूर किया जा सकता है।

rahul and digvijay
राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह।
हाइलाइट्स
अगले वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोर पकड़ने लगी हैं
कांग्रेस पार्टी ने अपनी जमीन तैयार करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा की है
हालांकि कुछ कांग्रेस नेताओं के बयानों से गंभीर सवाल उठने लगे हैं
नई दिल्ली 24 जनवरी: आखिरकार राहुल गांधी इस बार फंदा भांप गए। यूं तो वो खुद भी भाजपा के लिए पिच तैयार करते रहते हैं, लेकिन बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाने वाले दिग्विजय सिंह को उन्होंने तुरंत किनारे लगा दिया। राहुल ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह की सोच में दूर-दूर तक तालमेल नहीं है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि हमारी सेना शानदार काम कर रही है और उसे कभी किसी ऑपरेशन का सबूत देने की जरूरत नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या दिग्विजय सिंह ने पहली बार सीमा लांघी है या वो आदतन अतिक्रमणकारी हैं? फिर यह सवाल सिर्फ दिग्विजय सिंह से ही क्यों, कई अन्य नेताओं के साथ खुद राहुल गांधी भी क्या बीजेपी को संजीवनी देने में पीछे रहते हैं? क्या इन कांग्रेसियों को पता नहीं है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में ही अति संवेदनशील मतदाताओं का एक वर्ग तैयार हो गया जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर उलट बयानबाजियों से सुरसा की तरह दोगुना आकार ले लेता है। सुरसा की कहानी रामायण से जान लीजिएगा या फिर गूगल सर्च कर लीजिएगा।

दिग्विजय सिंह ने फिर वही किया

खैर, बात हो रही है 2024 लोकसभा चुनाव और उससे पहले नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी का एजेंडा साधते कांग्रेसी नेताओं की। ताजातरीन मामले से ही शुरू करते हैं। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुखर विरोधी दिग्विजिय सिंह ने ऐसा मुद्दा छेड़ दिया है जो कथित टुकड़े-टुकड़े गैंग और उसके समर्थकों के सिवा शायद ही कोई भारतीय पसंद करे। इसे दूसरी तरह से कह सकते हैं कि मुट्ठीभर एजेंडावादियों को छोड़कर शायद ही किसी को दिग्विजिय सिंह के बयान से घिन्न नहीं आई हो। वेस्टर्न कमांड के चीफ रहे एयर मार्शल (रिटायर्ड) रघुनाथ नांबियार ने तो दिग्विजय सिंह को परोक्ष रूप से झूठा कह दिया। उन्होंने देशवासियों को आगाह किया कि वो इन झूठे प्रचार का शिकार नहीं हों। दिग्विजय सिंह ने जम्मू-कश्मीर में भारत जोड़ो यात्रा के मंच से कहा था कि बालाकोट एयर स्ट्राइक में कई पाकिस्तानियों के मारे जाने का दावा किया जाता है, लेकिन आज तक एक भी सबूत नहीं दिया गया।

कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा, सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं की लंबी सूची है जिनके बारे में आम धारणा बन गई है कि ये सभी भाजपा के लिए बीजेपी नेताओं से भी ज्यादा मेहनत करते हैं। भाजपा तो यहां तक दावे करती है कि राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह जब-जब चुनाव प्रचार करते हैं, बीजेपी का वोट बढ़ जाता है। बीजेपी के इस दावे पर किसी को कुछ हद तक तो कांग्रेस को भी भरोसा हो गया है, वरना हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों से दोनों नेता गायब क्यों हो जाते? अब ये कहना कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में थे, राजनीति की समझ रखने वाला भला कौन इस पर यकीन करेगा? तो सवाल है कि क्या लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पार्टी की तरफ से वही गलतियां होने लगी हैं जिनसे बीजेपी के दावों को मजबूती मिलती है?

भाजपा की चाहत और कांग्रेस की कमजोरी

इसका जवाब ढूंढने से पहले यह जानते हैं कि आखिर बीजेपी अपने धुर विरोधी कांग्रेस के लिए कौन-कौन से दावे करती है? मोदी-शाह के मार्गदर्शन में बदली हुई बीजेपी हिंदुत्व, राष्ट्रवाद समेत उन मुद्दों पर खुलकर खेलने लगी है जिस पर अटल-आडवाणी की बीजेपी पर्दे के पीछे से पासे फेंका करती थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तो खेल के नियम ही बदल डाले। मुस्लिम तुष्टीकरण से लेकर माफियागिरी और हिंदू विरोधी से लेकर राष्ट्र विरोधी ताकतों के खिलाफ खुलकर ऐक्शन लिए जाने लगे जिसकी कल्पना कुछ साल पहले तक नहीं की जा सकती थी। भाजपा के केंद्रीय एवं प्रादेशिक नेता इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि उन्हें इस पर भारी जनसमर्थन मिल रहा है। 2014 में राष्ट्रवाद की लहर ने भाजपा को 10 साल बाद केंद्र की सत्ता दिला दी और 2019 के अगले आम चुनाव में और भी बड़ी जीत दिलवा दी। राज्यों में भी बीजेपी का विस्तार और विरोधियों का सिकुड़ता जनाधार इस बात की गवाही हैं।

खुद को ही धता बताते राहुल गांधी!

तो बदली हुई सियासत के लिए कांग्रेस कितना तैयार है? इस सवाल के अब तक कई बार जवाब मिल चुके हैं। लेकिन यह सवाल ऐसा है कि जब-जब चुनाव आएगा, इसकी प्रासंगिकता पैदा हो जाएगी। निर्वाचन आयोग ने त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के तारीखों की घोषणा कर दी है। वहीं, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और मिजोरम में भी इसी वर्ष चुनाव होने हैं। कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में भी इस वर्ष विधानसभा चुनाव हो सकता है। फिर अगले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे। इसके लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली। जैसा कि नाम से ही जाहिर है- कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी का दावा करते हैं कि बीजेपी शासन में नफरत का बोलबाला है जिससे देश के विभिन्न वर्गों में दूरियां बढ़ गई हैं, इसलिए उन्हें जोड़ने की जरूरत है। लेकिन वही राहुला गांधी जब यात्रा में दिल्ली पहुंचते हैं तो कहते हैं कि उन्हें देशभर में कहीं नफरत नहीं दिखी। सोचिए, राहुल गांधी के दावे को खुद राहुल गांधी ही धता बता रहे हैं। बीजेपी भी तो यह कह रही है कि कहीं नफरत नहीं है। अलबत्ता कांग्रेस अपना राजनीतिक हित साधने के लिए नफरत-नफरत का राग अलापकर देश का सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने से भी नहीं हिचकती है।

भारत जोड़ो या कांग्रेस जोड़ो यात्रा?

यूं तो भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी को एक गंभीर नेता के रूप में पेश करने और कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में जोश भरकर पार्टी को ताकतवर बनाना है। लेकिन यात्रा के दौरान इन दोनों ही मकसदों के उलट भी कई बातें हुईं। राहुल गांधी ने दाढ़ी बढ़ाकर अपने गंभीर व्यक्तित्व की दावेदारी तो पेश की, लेकिन आबादी को रुपये में बताकर और ठंड को डर से जोड़कर इस दावेदारी को खुद ही हल्का कर दिया। गुजरात में कांग्रेस के स्थानीय नेता ने राहुल गांधी के भाषण का अनुवाद करने से इनकार कर दिया और मंच छोड़कर चले गए। ऐसी घटनाओं से राहुल गांधी की छवि निर्माण की कोशिशों को झटका लगा तो निश्चित तौर पर सबसे ज्यादा बीजेपी ही मुस्करा रही होगी। इसी तरह, बीजेपी भारत जोड़ो यात्रा पर यह कहते हुए तंज कसती रही कि राहुल गांधी को कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए। भारत जोड़ो यात्रा चल ही रही थी कि हिमाचल प्रदेश में चुनाव से पहले 26 नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी। हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा पंजाब से निकली ही थी कि वहां के बड़े नेता और पूर्व वित्त मंत्री मणप्रीत बादल ने कांग्रेस छोड़ दी।

जम्मू पहुंचीं उर्मिला मातोंडकर
जम्मू पहुंचीं उर्मिला मातोंडकर
मंगलवार को राहुल गांधी की यात्रा जम्मू से चलकर उधमपुर तक के लिए निकली। इस दौरान उनके साथ उर्मिला मातोंडकर (Urmila Matondkar) नजर आईं।

पंजाब में काम्या पंजाबी का मिला साथ
पंजाब में काम्या पंजाबी का मिला साथ
टेलीविजन आइकन काम्या पंजाबी (Kamya Punjabi) 5 जनवरी को राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हुई थीं।

तेलंगाना में पूजा भट्ट चली थीं पैदल
तेलंगाना में पूजा भट्ट चली थीं पैदल
2 नवंबर को पूजा भट्ट तेलंगाना पहुंची थीं और राहुल गांधी के साथ साढ़े दस किलोमीटर पैदल चली थीं।

पूनम कौर की तस्वीर पर हुआ था विवाद
पूनम कौर की तस्वीर पर हुआ था विवाद
अक्टूबर में राहुल गांधी की यात्रा में तमिल-तेलुगु फिल्मों की अभिनेत्री पूनम कौर भी शामिल हुई थीं। उनके साथ राहुल की तस्वीर खूब वायरल हुई थी।

रिया सेन हो गई थीं ट्रोल
रिया सेन हो गई थीं ट्रोल
रिया सेन हिंदी और बंगाली फिल्मों की जानी मानी अभिनेत्री मुनमुन सेन की बेटी हैं। वह नवंबर में राहुल गांधी के साथ यात्रा में शामिल हुई थीं।

रश्मि देसाई और अकांक्षा पुरी आई थीं नजर
रश्मि देसाई और अकांक्षा पुरी आई थीं नजर
भारत जोड़ो यात्रा 19 नवंबर को महाराष्ट्र में थी। राहुल गांधी के साथ टीवी अभिनेत्री रश्मि देसाई और आकांक्षा पुरी नजर आई थीं।

राम्या ने जॉइन की थी भारत जोड़ो यात्रा
राम्या ने जॉइन की थी भारत जोड़ो यात्रा
भारत जोड़ो यात्रा तेलंगाना पहुंची थी, तब राहुल गांधी के साथ एक्ट्रेस राम्या नजर आई थीं।

रितु शिवपुरी बनी थीं भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा
रितु शिवपुरी बनी थीं भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा
इस महीने की शुरुआत में राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करती हुई अभिनेत्री रितु शिवपुरी नजर आई थीं।

किन-किन से मिले राहुल? सवाल तो उठेंगे

अब बात कांग्रेस को ताकतवर बनाने की। कहना न होगा कि पार्टी की ताकत उसे मिलते जनसमर्थन से ही आंका जाता है। कांग्रेस पार्टी की नीतियां मतदाताओं को किस हद तक आकर्षित कर पाती है, इसी से तय होगा कि चुनावों में देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को कितनी सफलता मिलेगी। जनता का मिजाज समझने में राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और इसके नेता कितने कामयाब हैं, इसका अंदाजा उनकी गतिविधियों और उनके बयानों से लगाया जा सकता है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उस रिजिल मकुट्टी से मिले जिस पर बछड़े को काटकर सामूहिक भोज करने का आरोप लगा था, उस पादरी जॉर्ज पोन्नैया से मिले जिसने भारत और हिंदुओं के लिए अपशब्द कहे, स्वरा भास्कर समेत तमाम उन लोगों को साथ लाया जिन पर हिंदू विरोध, राष्ट्रवादी भावनाओं का विरोधी और मुस्लिम तुष्टीकरण का चैंपियन होने के आरोप लगते रहते हैं।

एक तरफ हल्ला, दूसरी तरफ चुप्पी

राहुल गांधी खुद हिंदुत्व पर खूब हमलावर रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) पर तो कठोरतम हमले करते रहे, लेकिन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे राष्ट्रविरोधी संगठन, मुसलमानों में बढ़ते कट्टरता पर एक शब्द नहीं कहा। जब पैंगबर विवाद में आठ निर्दोष हिंदुओं की गर्दनें काट ली जाएं, लोगों को गर्दन काटने की खुली धमकियां दी जाएं, अजमेर शरीफ दरगाह समेत कई मुस्लिम धर्मगुरुओं और मुस्लिम नेताओं की तरफ से हिंसा एवं हिंदुओं के बहिष्कार की अपील की जाए, खुलेआम सर तन से जुदा के नारे लगाए जाएं तब इन सब घटनाओं पर चुप्पी ठानकर आरएसएस को नफरत की दुकान होने के दावे किए जाएं तो किसे भरोसा होगा कि राहुल गांधी सच में सामाजिक-सांप्रदायिक सौहार्द चाहते हैं, सिर्फ राजनीतिक एजेंडा साधना उनका मकसद नहीं! इससे तो मुस्लिम तुष्टीकरण में पोर-पोर समाई कांग्रेस की धारणा ही पुष्ट होती है और इससे बीजेपी का दावा ही मजबूत होता है। एक तरफ राहुल गांधी कहते हैं कि उन्हें आरएसएस ऑफिस ले जाने के लिए उनकी गर्दन काटनी होगी, दूसरी तरफ आठ गर्दनें कट गईं और वो चुप हैं।

भारत जोड़ो यात्रा पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारों की क्या है सच्चाई? पुलिस ने की मामले में पहली कार्रवाई

सामाजिक सौहार्द का ढिंढोरा और जमीनी हकीकत

बीजेपी तो राहुल गांधी पर हिंदुओं को बांटने का आरोप लगाती रही है। राहुल गांधी का यह बयान कि ‘भारत तपस्वियों का देश है, पुजारियों का नहीं’ को ब्राह्मणों के खिलाफ परोक्ष हमला माना जा रहा है। एक वर्ग का आरोप है कि राहुल गांधी अंग्रेजों की फूट डालो, राज करो की नीति पर ही हिंदुओं को जातियों में तोड़ने की साजिश रच रहे हैं। राहुल गांधी ने नोटबंदी और जीएसटी का जिक्र कहते हुए भी बेतुकी बात कर दी। उन्होंने कहा नरेंद्र मोदी सरकार ने लक्ष्मी की शक्ति और दुर्गा की शक्ति पर आक्रमण किया है। सोचिए, नोटबंदी-जीएसटी का लक्ष्मी और दुर्गा से क्या लेना-देना? खैर, राहुल गांधी को सामाजिक सद्भाव की इतनी ही चिंता है तो फिर रामचरितमानस और भगवान राम पर लांछन लगाने से उपजे विवाद पर उन्होंने चुप्पी क्यों साध रखी है? बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने रामचरितमानस पर ओछी टिप्पणी की और उसी सरकार में कांग्रेस पार्टी भी शामिल है। क्या कांग्रेस का यह दायित्व नहीं बनता है कि वो इस विवाद पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे?

राष्ट्रवाद पर यूं तो काम नहीं चलेगा

सोचिए, राहुल गांधी श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने से इनकार कर दिया। क्यों? उन्होंने कहा कि लाल चौक पर झंडा फहराना बीजेपी के पुराने एजेंडों में शामिल रहा है, इसलिए वो वहां तिरंगा नहीं फहराएंगे। बीजेपी ने तो आतंकवादियों को चुनौती देने के लिए पहली बार 1990 के दशक में लाल चौक पर झंडा फहराया था। क्या आतंकवादियों को चुनौती देना भी गलत है? माना कि यह एजेंडा है, तो क्या यह गलत है? क्या राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर के उन मुसलमानों को खुश करने के लिए लाल चौक पर झंडा नहीं फहराया जो पाकिस्तान परस्त और भारत विरोधी हैं? भारत जोड़ो यात्रा जब मध्य प्रदेश के खरगोन पहुंची तब आरोप लगे कि जुलूस में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया।

हिमाचल पर 75 हजार करोड़ का कर्ज, सरकारी खजाना खाली… उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने खड़े किए हाथ

आर्थिक नीति पर अपनों से घिर रही कांग्रेस

जनता को लुभाने का एक बड़ा हथियार पार्टियों की आर्थिक नीतियां भी है। कांग्रेस पार्टी पूर्व सैनिकों के लिए पुरानी पेंशन योजना का समर्थन कर रही है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने वादा किया कि सत्ता में आकर वह ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करेगी। जबकि उसी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में योजना आयोग के अध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया और पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन इसे विध्वंसकारी कदम बता रहे हैं। अब तो हिमाचल प्रदेश की नई कांग्रेस सरकार को भी अहसास हो गया है कि पुरानी पेंशन योजना का वादा उसके लिए कितना महंगा पड़ने जा रहा है। हिमाचल के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने हाल ही में कहा है कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। उन्होंने कहा कि सरकारी खजाने में पैसे नहीं हैं और ऊपर से 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। सरकारी कर्मचारियों की देनदारी ही 11 हजार करोड़ रुपये है। सोचिए, पुरानी पेंशन योजना लागू करके हिमाचल प्रदेश की वित्तीय प्रबंधन का किस तरह भट्टा बैठने वाला है!

इन सबके अलावा नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और कांग्रेस नेताओं की दलीलें, 2002 गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्युमेंट्री से उठे विवाद जैसे तमाम ऐसे मुद्दे हैं जहां कांग्रेस पार्टी की मुखरता या चुप्पी से मतदाताओं में साफ संदेश जा रहा है। इसलिए यह सवाल बहुत गंभीर है कि क्या कांग्रेस पार्टी चुनावी माहौल में बीजेपी का पिच सजाने लगी है जैसा कि पहले करती रही है? सैकड़ों किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की छवि कुछ हद तक जरूर बदली है, लेकिन क्या कांग्रेस पार्टी और खुद राहुल गांधी खुद को उस दायरे में सीमित रख पाने में अब भी सक्षम हो पाए हैं जिसके पार बीजेपी की सीमा शुरू हो जाती है?

Congress Again Started Playing On Bjp Pitch Before 9 Assembly Elections And 2024 General Election

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *