ओआरओपी को ले सड़कों पर पूर्व सैनिक सैन्याधिकारियों से भी नाराज़

वन रैंक वन पेंशन: रिटायर्ड सैनिक फिर सड़क पर और पूर्व अफ़सरों पर भी उठा रहे सवाल

भारत सरकार ने इस साल जनवरी माह में रिटायर्ड जवानों और अधिकारियों के लिए जो ‘वन रैंक वन पेंशन’ यानी ‘ओआरओपी’ के दूसरे अध्याय की अधिसूचना जारी की है उससे सिपाही से लेकर जूनियर कमांडिंग अफ़सर तक के सेवानिवृत्त सैनिकों में रोष है. हालांकि इससे ‘लेफ्टिनेंट कर्नल’ से लेकर ‘मेजर जनरल’ तक के अधिकारी ख़ुश हैं.

रक्षा मंत्रालय में उप-सचिव राजेंद्र कुमार गुप्त ने 28 फरवरी को एक और अध्यादेश जारी कर कहा कि नयी ‘ओआरओपी’ जुलाई 2019 से लागू मानी जायेगी और सभी सेवानिवृत्त जवानों और अधिकारियों को एक ही किश्त में बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा.

इस मामले में पूर्व सैनिकों के संगठनों ने बकाये के भुगतान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है. इसकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली खंडपीठ ने रक्षा मंत्रालय के सचिव को बकाया राशि के भुगतान के निर्देश दिए.

27 फ़रवरी को मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन. वेंकटरमण ने खंडपीठ को आश्वासन दिया था कि 15 मार्च तक सभी सेवानिवृत्त सैनिकों के बकाये का भुगतान कर दिया जाएगा.

28 फरवरी को रक्षा मंत्रालय के उप-सचिव राजेंद्र गुप्त ने एक और अध्यादेश जारी कर कहा कि सभी सेवानिवृत्त सैनिकों और अधिकारियों के बकाये का भुगतान सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इस साल 15 मार्च तक कर दिया जाएगा.

वैसे तो केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल 23 दिसंबर को अपनी बैठक में इस भुगतान के लिए सहमति दे दी थी.

इसकी जानकारी देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि नए ओआरओपी से 25.13 लाख सेना के पेंशनधारियों को लाभ मिलेगा. उन्होंने ये भी कहा था कि सेना के जो लोग वर्ष 2019 के 30 जून तक रिटायर हुए हैं, नयी ओआरओपी का लाभ उन्हें भी मिलेगा.

इससे पहले ‘ओआरओपी’ की योजना वर्ष 2006 में लागू की गयी थी. लेकिन विसंगतियों का हवाला देते हुए सेवानिवृत्त सेना के अफ़सर और जवान एक साथ मिलकर आंदोलन करने लगे. ये आंदोलन कई सालों तक चला और 2014 और 2019 के आम चुनावों में कुछ एक राजनीतिक दलों ने इसमें संशोधन करने का वादा भी किया था. लेकिन पूर्व सैनिक ओआरओपी के पुनरावलोकन की मांग पर अडिग रहे.

केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंत्रिमंडल के फै़सले की जानकारी देते हुए कहा था कि पूर्व सैनिकों की संशोधित पेंशन को लेकर सरकार ने 8450 करोड़ रुपए का अतिरिक्त प्रावधान किया है.

लेकिन, इस बार जैसे ही ओआरओपी के दूसरे अध्याय की अधिसूचना जारी की गयी, सेवानिवृत्त जवान इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये हैं. कुल 27 पूर्व सैनिकों के संगठनों ने एक साझा मोर्चा बनाकर दिल्ली के जंतर मंतर पर इसके ख़िलाफ़ अनिश्चितकालीन धरना भी शुरू कर दिया है.

‘अफ़सरों के लिए नहीं थी योजना’

‘साबक़ा सैनिक संघर्ष समिति’ के बैनर तले आंदोलन कर रहे सेना के कनिष्ठ सेवानिवृत्त जवानों का आरोप है कि नए ‘ओआरओपी’ के लागू होने के बाद सेवानिवृत्त कनिष्ठ पद पर काम करने वाले सैनिकों और अफ़सरों को मिलने वाली पेंशन में ‘ज़मीन और आसमान’ का फ़र्क हो गया है.

सिपाही से लेकर जूनियर कमांडिंग अफ़सर तक के ओहदे वाले पूर्व सैनिक दलील दे रहे हैं कि ये योजना अफ़सरों के लिए थी ही नहीं, मगर इसके तहत सेवानिवृत्त अफ़सरों को ही लाभ पहुंचाने का काम किया गया है.

सरकार ने 2006 में लागू हुए ‘वन रैंक वन पेंशन’ में 42 हज़ार 500 करोड़ के आस पास का प्रावधान रखा था. जिसमें तीनों सेनाओं के कनिष्ठतम सैनिक से लेकर वरिष्ठतम अधिकारियों की पेंशन से लेकर सेवा के दौरान घायल होकर विकलांग होने वालों के लिए पेंशन निर्धारित की थी. इसके अलावा कार्य करते हुए मारे गए जवानों और अधिकारियों की विधवाओं को दी जाने वाली पेंशन में भी बढ़ोतरी की थी.

आंदोलन करने वालों ने बताया, “सेना में जवानों की संख्या, कुल बल की 97 प्रतिशत है जबकि अधिकारियों का प्रतिशत 3 है. पहली ‘ओआरओपी’ में जो जवानों की पेंशन में 298 रुपए से लेकर 1900 रुपए तक की वृद्धि की गयी. ये बहुत ही कम थी. फिर दूसरी ‘वन रैंक वन पेंशन’ की इसी साल 20 जनवरी को घोषणा की गयी. उसके अन्दर 23 हज़ार करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया. हालांकि वो पहले से आधा ही था.”

‘विधवाओं की पेंशन में भी भेदभाव’
कपिल देव सिलानी बताते हैं कि नयी ‘ओआरओपी’ सिपाही और जवानों की पेंशन में सिर्फ़ 2300 रुपए तक की ही बढ़ोतरी की गयी है.

उनका कहना था, “2006 में जो हमारा सबसे छोटा रैंक होता है वो है टीएस नायक. उसकी जो पेंशन थी वो थी 4 हज़ार 46 रुपए. और जो अधिकारी में सबसे निचला रैंक होता है ‘टीएस कर्नल’, उनकी जो पेंशन थी 14 हज़ार 600 रुपए. आज अधिकारियों को मिलने वाली पेंशन 14 हज़ार 600 रुपए से (जो 2006 से ले रहे थे) 2023 में 95 हज़ार रुपए तक पहुँच गयी है. इसके अतिरिक्त 38 प्रतिशत उन्हें महंगाई भत्ता भी मिलता है.”

“यूं समझिये कि सब मिलाकर उन्हें अब 1.5 लाख मिलेगा. लेकिन, जवानों को जो 4 हज़ार 46 रुपए मिल रहे थे उसे 2023 में 20 हज़ार रुपए किया गया है. ये तुलना देखिये. एक तरफ जवानों को मामूली से बढ़ोतरी मिली वहीं दूसरी तरफ सेवानिवृत्त अधिकारियों को 50 हज़ार रुपए से ज़्यादा तक का फ़ायदा दिया गया.”

साबक़ा सैनिक संघर्ष समिति का आरोप है कि सैनिकों की विधवाओं को जो पेंशन दी जा रही हैं उसमें भी भेदभाव किया गया है.

कपिलदेव के अनुसार, “सैनिकों की विधवाएं 7.5 लाख के क़रीब हैं. उनको जो 2006 में न्यूनतम पेंशन मिलती थी वो 3500 रुपए थी. और एक लेफ्टिनेंट कर्नल पद के अधिकारी की विधवा को पेंशन के रूप में 5880 रुपए मिलते थे. इन दोनों की पेंशन में सिर्फ़ 2380 रुपए का फ़र्क था. सैनिकों की विधवाओं को आज 2023 में 11 हज़ार 45 रुपए ही बतौर पेंशन मिल रहे हैं जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल की विधवा, जिसे 5880 रुपए मिलते थे उसे अब 54 हज़ार रुपए के अलावा महंगाई भत्ता भी मिलेगा. यानी 72 हज़ार रुपए से भी ज़्यादा.”

समिति ने सरकार के समक्ष एक आवेदन भी दिया है जिसमे बिंदुवार ढंग से नयी ‘ओआरओपी’ की ‘विसंगतियों’ को उठाया गया है. इसमें युद्ध में घायल होकर विकलांग हुए सैनिकों और अधिकारियों को मिलने वाली पेंशन में भी ‘भेदभाव’ का उल्लेख गया है.

सेवानिवृत्त नायक हरपाल सिंह कहते हैं कि जवान हों या अफ़सर दोनों के शरीर का मूल्य बराबर का है. उन्होंने दूसरे दशों की फ़ौज की मिसाल दी जैसे अमेरिका, कनाडा, और यूरोप. वो बताते हैं कि इन सभी देशों में जो युद्ध में घायल होकर शारीरिक रूप से विकलांग हो जाते हैं वैसे जवानों और अफ़सरों को एक जैसी पेंशन ही मिलती है.हरपाल सिंह कहते हैं, “भारत में युद्ध में बुरी तरह से घायल हुए जवान, यानी जो सौ प्रतिशत तक विकलांग हो जाते हैं, उनको 18 हज़ार रुपए ‘डिसेबिलिटी पेंशन’ मिलती है. वहीं पर, उसी स्थान पर अगर किसी अफ़सर को इसी तरह की चोटें आती है और वो घायल और विकलांग हो जाता है उसे 2.5 लाख रुपए पेंशन का प्रावधान किया गया है. इतना बड़ा गैप कर दिया है इन्होंने.”

आंदोलन कर रहे पूर्व सैनिकों का कहना है कि ‘ओआरओपी’ में ज़्यादा लाभ कनिष्ठ पदों पर काम करने वाले जवानों को दिया जाना चाहिए था क्योंकि इनकी सेवा अवधि बहुत कम होती है. वो कहते हैं कि जहां अधिकारी 58 से 60 वर्ष की आयु में रिटायर होते हैं वहीं जवान 32 से 40 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो जाते हैं.

पूर्व सैनिकों का ये भी आरोप है कि वीरता के पदकों में भी उनके साथ इंसाफ़ नहीं किया जाता है.

नलिन तलवार वायु सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं और आंदोलन कर रहे अपने दूसरे साथियों के साथ धरने पर बैठे हैं. वो बताते हैं कि जो प्रतिवेदन उन्होंने सरकार को दिया है उसमें उन्होंने इस मुद्दे को भी उठाया है. उनका कहना था, “हमारे जवानों की संख्या 97 प्रतिशत और अफ़सरों की संख्या अगर देखा जाए तो वो 3 प्रतिशत ही होगी. लेकिन जब पदक या बहादुरी के पदक देने की बात आती है तो अफ़सरों को 97 प्रतिशत मिलते हैं. सिर्फ़ दो या 3 प्रतिशत ही जवानों को मिल पाते हैं.”

“मेडल देते समय कंजूसी किसलिए? जो जवान वहां घायल हुए हैं या शहीद हुए हैं वो ग़लती से नहीं हुए हैं. उन्होंने छाती पर गोली खायी है पीठ पर नहीं. इस तरह हर स्तर पर नाइंसाफ़ी होती रही है.”

अफ़सरों ने सैनिकों से खु़द को अलग किया

पूर्व सैनिकों को इस बात का मलाल बहुत ज़्यादा है कि पिछली बार जब उन्होंने ‘ओआरओपी ‘ के पुनरावलोकन के लिए संघर्ष किया था उस समय उनके साथ उनके रिटायर्ड अफ़सर भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे. मगर वो कहते हैं कि अब अफ़सरों ने ख़ुद को न सिर्फ़ दूर कर लिया है बल्कि कई पूर्व अफ़सरों के ऐसे बयान सोशल मीडिया पर आ रहे हैं ‘जिसमें सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए घृणा साफ़ झलक रही है.’

वो बताते हैं कि कुछ एक पूर्व अफ़सरों ने सरकार को इन सैनिकों के ‘आंदोलन को कुचलने’ की सलाह तक दे दी है. धरना दे रहे पूर्व सैनिकों का ये भी आरोप था कि कुछ पूर्व अधिकारी सरकार से सोशल मीडिया के माध्यम से कह रहे हैं कि अगर ये आंदोलन जारी रहा तो ये एक तरह ‘बग़ावत’ ही है जिससे ‘कार्यरत सैनिकों को भड़काने का काम हो रहा है.’

सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर सुखदेव सिंह इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं, “जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इन सेवानिवृत्त अफ़सरों की इतनी बड़ी तादात में पेंशन बढ़ाई तब फ़ौज में हंगामा क्यों नहीं हुआ? अभी हम अपने हक़ के लिए धरने पर बैठे हैं. हम इनसे मांगकर इधर भोजन नहीं खा रहे हैं. हम इनसे मांग कर पानी नहीं पी रहे हैं. हम अपनी जेब से ख़र्च कर यहाँ बैठे हैं. हमारी एक पंजीकृत यूनियन है. अगर हमारी मांगें प्रधानमंत्री द्वारा मान ली जाती हैं तो तो इनको क्या तकलीफ़ है?”

सैनिक संगठनों ने सभी पूर्व सैनिकों का आह्वान किया है कि वो ओआरओपी को लेकर देश के हर ज़िले के ज़िलाधिकारी को ज्ञापन सौंपें और अपने क्षेत्रों में आंदोलन को और तेज़ करें.

इस बारे में हमने रक्षा मंत्रालय के सचिव से संपर्क करने की कोशिश की ताकि सरकार का पक्ष जान सकें. जैसे ही उनकी तरफ़ से जानकारी साझा की जायेगी हम उसे अपनी कॉपी में अपडेट कर देंगे.

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