पंजाब में कैच पकड़ने की ताक में हैं भाजपा और केजरीवाल
पंजाब में कांग्रेस की ओर से तोहफा किसे मिलने वाला है – BJP या आप को?
मालूम नहीं पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत (Harish Rawat) अपडेट दे रहे थे या नेतृत्व के लिए फीडबैक ले रहे थे – अब तो कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) उसी मोड़ पर पहुंच गये हैं जहां जंग शुरू हुई थी।
पंजाब से लगता है कांग्रेस का मन भर चुका है – या फिर राहुल गांधी को राजस्थान जैसा मजा नहीं आ रहा है, जबकि ऐसी ही भीनी भीनी सियासी खूशबू छत्तीसगढ़ के कांग्रेस किचन से भी आने लगी है और दिल्ली को सुवासित भी कर रही है.
कांग्रेस को लेकर पंजाब और राजस्थान तो लगतार खबरों में हैं ही, छत्तीसगढ़ से भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अब तक उनके कैबिनेट साथी टीएस सिंह देव हाजिरी लगा चुके हैं, लेकिन एंट्री सिर्फ प्रभारियों तक ही सीमित रही. बहुत आगे तक की अनुमति नहीं मिल पायी. हो सकता है अभी मामला इतना न पका हो कि रायता फैलाया जा सके. वैसे महाराष्ट्र में भी नाना पटोले अंगड़ाई लेने लगे हैं और हलचल भी महसूस की जा रही है.
अपनी बारी का इंतजार कर रहे टीएस सिंह देव तो कुछ खास नहीं बोल रहे, लेकिन भूपेश बघेल ने थोड़ा इशारा जरूर कर दिया है. प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात के बाद ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का फॉर्मूला गठबंधन की सरकारों के लिए होते हैं.
पंजाब की ही तरह छत्तीसगढ़ में भी मामला प्रियंका गांधी वाड्रा तक पहुंच गया है और आखिरी फैसला राहुल गांधी की सहमति से सोनिया गांधी को लेना है. पंजाब के बारे में अपडेट देकर कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत वापस भी ले चुके हैं – कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू अपनी अपनी ताकत की आजमाइश और पैमाइश भी करने लगे हैं.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की देख रेख में चल रहा पंजाब प्रकरण धीरे धीरे और भी उलझता जा रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस नेतृत्व थाली सजाकर राजनीतिक विरोधियों को सत्ता की सौगात देकर ही मानेगा – बड़ा सवाल ये है कि बीजेपी बाजी मार लेगी या पांच साल पहले फिसली हुई बाजी AAP के हाथ लगेगी?
कांग्रेस नेतृत्व का इरादा क्या है?
सोनिया गांधी के पंजाब कांग्रेस को लेकर फैसला लेने में देर के साथ साथ अंधेर जैसा भी लग रहा है – और धीरे धीरे कांग्रेस के टूट जाने का भी खतरा बढ़ने लगा है.
ऐसा भी नहीं लगता कि कांग्रेस में दो फाड़ होगा और दिल्ली की पंजाब कांग्रेस के मुकाबले पंजाब की भी एक कांग्रेस खड़ी हो जाएगी. बल्कि, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस का एक टुकड़ा छिटक कर किसी और पार्टी को मजबूत न बना दे – मौके की ताक में बीजेपी तो बैठी ही है, घात लगाकर आम आदमी पार्टी भी इंतजार कर रही है. नवजोत सिंह सिद्धू और अरविंद केजरीवाल के बीच तो शेरो-शायरी भी नये सिरे से शुरू हो चुकी है.
जब प्रशांत किशोर की गांधी परिवार से मुलाकात और कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर कमलनाथ का खंडन भी आ गया तो पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत मीडिया के सामने प्रकट हुए – और ऐसे संकेत दिये जैसे पंजाब में ‘स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण’ से आगे बढ़ कर सुलह के करीब पहुंच चुकी है।
कांग्रेस नेतृत्व को न्योता देकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी को वॉकओवर देने में लगा है?
सवाल जवाब की नौबत आयी तो हरीश रावत ने बता दिया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने रहेंगे – और नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाएगा. चूंकि कैप्टन अमरिंदर और सिद्धू पहले ही कह चुके थे कि आलाकमान का जो भी फैसला होगा मंजूर होगा, इसलिए लगा कि सब कुछ निबट गया.
लेकिन ये क्या – टीवी पर हरीश रावत का बयान सुनते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमे में हड़कंप मच गया – और वो हद से ज्यादा नाराज हो गये. फिर क्या था नवजोत सिंह सिद्धू ने भी इमरजेंसी मीटिंग बुला ली – और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी.
हालत ये हो गयी कि मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल को सामने आकर सफाई देनी पड़ी – पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे की खबरें बेबुनियाद हैं. न तो कैप्टन ने इस्तीफा दिया है और न ही ऐसी कोई पेशकश ही की है.
Media reports of CM @capt_amarinder resigning are humbug. He has neither quit nor offered to do so. He’ll lead @INCPunjab to victory in 2022 Assembly polls as he did in 2017. Urge media to stop speculating & spreading misinformation. pic.twitter.com/MAl24yeQqk
— Raveen Thukral (@RT_MediaAdvPBCM) July 15, 2021
भला हरीश रावत बच कर कहां जाते, उनको भी सफाई देनी पड़ी – ‘मैंने ऐसा नहीं कहा कि सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष होंगे. मुझसे एक सवाल पूछा गया था जिसके जवाब में मैंने कहा था कि कई संभावनाएं हैं, जिसमें से एक ये भी है.’
देखते ही देखते लड़ाई मीटिंग बनाम मीटिंग में तब्दील हो गयी. एक मीटिंग चंडीगढ़ में हुई तो दूसरी मोहाली में – ये भी शायद एक तरीके का शक्ति प्रदर्शन ही रहा होगा. चंडीगढ़ में नवजोत सिंह सिद्धू ने अमरिंदर सरकार के 5 मंत्रियों और 10 विधायकों के साथ मीटिंग की. ये मीटिंग कैप्टन के कट्टर विरोधी कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के घर पर बुलायी गयी थी.
सिद्धू की बैठक के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी मोहाली के सिसवां में अपने फॉर्म हाउस पर करीबी विधायकों, मंत्रियों और सांसदों की बैठक बुला ली. बैठक में तीन कैबिनेट मंत्री, दो विधायक और दो सांसद सहित कांग्रेस के सात नेता शामिल हुए.
मालूम नहीं हरीश रावत सवालों के जबाव में गलती से सब कुछ फाइनल होने से पहले ही बता दिये या फिर राहुल गांधी और सोनिया गांधी ऐसा बयान दिला कर फीडबैक लेने की कोशिश कर रहे थे. दोनों पक्षों का रिएक्शन तो आ ही गया सामने.
AAP वाली ट्वीट के जरिये गुगली फेंक कर नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी तरफ से साफ तो कर ही दिया है, मनमाफिक चीजें नहीं हुईं तो आगे का रास्ता साफ है. अरविंद केजरीवाल ने भी रिएक्शन देकर जता दिया है कि पंजाब की हर बात पर उनकी तेज नजर है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी मीटिंग बुलाने के साथ ही अपने मीडिया एडवाइजर को आगे कर अपना स्टैंड और पोजीशन दोनों ही साफ कर दिया है. हरीश रावत के बयान के बाद कैप्टन अमरिंदर का रिएक्शन तो यही बता रहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना उनको मंजूर नहीं है.
आखिर पंजाब को लेकर कांग्रेस नेतृत्व का इरादा क्या है?
आज नहीं कल कोई एक फैसला तो लेना ही पड़ेगा. और फैसला न तो मध्य प्रदेश की तरह होना चाहिये और न ही राजस्थान जैसा. जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की परवाह ही नहीं की गयी और राजस्थान में ऐसा लगता है कभी पूरे न किये जाने वाले वादे के साथ सचिन पायलट को शांत करने की कोशिश की गयी हो – और कुछ ही दिन पहले तो खबर ये भी आयी थी कि अशोक गहलोत अब आलाकमान की भी नहीं सुन रहे हैं.
कहीं ऐसा तो नहीं कि पंजाब में भी राजस्थान जैसा ही हाल हो रखा हो – कैप्टन और सिद्धू दोनों में से कोई सुनने को तैयार नहीं है!
BJP बाजी मारेगी या AAP लेगी लीड?
पंजाब चुनाव को लेकर अब तक एक ही चीज पक्की लग रही है – बादल परिवार की पार्टी शिरोमणि अकाली दल और मायावती की पार्टी बीएसपी के बीच चुनावी गठबंधन, बाकी सब उलझा हुआ है.
अकाली दल के साथ कृषि कानूनों के मुद्दे पर साथ छूट जाने के बाद बीजेपी ने भी बोल दिया है कि वो बगैर किसी गठबंधन के पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ेगी. बीजेपी के संगठन महासचिव बीएल संतोष ने ऐलान किया है कि बीजेपी पंजाब की सभी 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी – और चुनाव में जीत भी हासिल करेगी.
बीएल संतोष ने अपनी तरफ से दलील भी पेश की है और उनके बयान में किसान आंदोलन का जिक्र भी है. बीजेपी महासचिव कहते हैं कि कृषि कानूनों के खिलाफ विपक्ष का गलत प्रचार जल्दी ही खत्म हो जाएगा – क्योंकि किसानों को ये महसूस हो चुका है कि कानूनों से ही समृद्धि आएगी.
बीजेपी नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों का समर्थक बताते हुए कहा है कि कृषि क्षेत्र का हित बीजेपी के साथ साथ मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार है. कहते हैं, मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए भी कई कदम उठाये हैं.
पंजाब में बीजेपी की सरकार बनने के स्कोप पर बीएल संतोष समझाते हैं, देश में भाजपा की लहर है और पंजाब के लोग भी बीजेपी की सरकार बनाने की ख्वाहिश रखते हैं. बीजेपी महासचिव भूल तो नहीं गये कि बंगाल में बीजेपी की लहर तो दिखी नहीं और पार्टी 100 सीटें भी नहीं जीत पायी.
बीजेपी के दावे और दलील में भले दम नजर न आये, लेकिन काम जरूर किया है – पंजाब में अगला मुख्यमंत्री दलित होने को लेकर. नतीजा ये हुआ है कि बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन होने से पहले ही अकाली दल नेता सुखबीर सिंह बादल ने सत्ता में आने पर डिप्टी सीएम दलित समुदाय से बनाने की घोषणा कर रखी है.
कांग्रेस में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोधी बीजेपी की इस पहल को आगे बढ़ाने में लगे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोधी खेमे और दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी ने दलित विधायकों को बुलाकर मीटिंग भी कर ली – और दलित मुख्यमंत्री की मांग शुरू कर दी है.
आम आदमी पार्टी तो पंजाब में पुरानी दावेदार हो चुकी है. 2017 में तो दिल्ली से निकल कर पंजाब में कदम रखते ही अरविंद केजरीवाल ने कह दिया था कि वो वहीं खूंटा गाड़ कर बैठेंगे. सत्ता तो नहीं मिली लेकिन आप को सबसे बड़ा विपक्षी दल जरूर बना दिया. ये बात अलग है कि अब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे आप विधायक सुखपाल सिंह खैरा को कांग्रेस में ला दिया है. सिद्धू से झगड़े को लेकर पंचायत के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले कैप्टन ने आप के तीन विधायकों को कांग्रेस ज्वाइन कराया था.
बहरहाल, आप नेता अरविंद केजरीवाल पंजाब में सरकार बनने पर 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा कर चुके हैं. ये बात अलग है कि ऐसा ही वादा वो उत्तराखंड और गोवा जाकर भी कर चुके हैं.
चंडीगढ़ रवाना होने से पहले ही अरविंद केजरीवाल ने पंजाबी में ही एक ट्वीट किया था, जिसमें लिखा था – ‘दिल्ली में हम हर परिवार को 200 यूनिट मुफ्त बिजली मुहैया कराते हैं… महिलाएं बहुत खुश हैं… पंजाब की महिलाएं भी महंगाई से काफी नाराज हैं – आप सरकार पंजाब में भी मुफ्त बिजली देगी.’
बीजेपी और आम आदमी पार्टी के अपने अपने दावे हैं. और ये कोई पंजाब तक सीमित नहीं है. होता भी नहीं है. हर राज्य में हर कोई सरकार बनाने का दावा कर रहा है – और ये चुनाव नतीजे आने तक जारी भी रहेगा, यही परंपरा भी है.
हैरानी की बात ये है कि जैसे उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सामने मैदान साफ है, करीब करीब वही हाल पंजाब में भी है. जैसे यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने विपक्ष नजर नहीं आ रहा, पंजाब में भी अब तक कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने अगर कोई चैलेंज करते नजर आता है तो वो भी सिर्फ नवजोत सिंह सिद्धू ही हैं – और वो भी तभी तक लगते हैं जब तक कि कांग्रेस में बने हुए हैं या फिर दिल्ली से गांधी परिवार का सपोर्ट हासिल है.
पांच साल पहले कांग्रेस को असम में भी ऐसी ही समस्या दिखी होगी, लेकिन अभी सिद्धू को हाथोंहाथ लेने वाले राहुल गांधी तब हिमंत बिस्वा सरमा से मुलाकात में उनसे ज्यादा अपने पालतू पिडी से बातें करते रहे – सिद्धू को लेकर तो कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन बड़ी बात ये है कि हिमंत बिस्वा सरमा आज असम के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन बीजेपी का होने के बाद.
अब अगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी असम की ही तरह पंजाब समस्या को भी हल करना चाहते हैं तो ये भी गलत नतीजे ही देने वाला है. तब अगर राहुल गांधी तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के मोह में नहीं पड़े होते तो बीजेपी के लिए सरकार बना पाना मुश्किल होता – और अब अगर गांधी परिवार सिद्धू का मोह नहीं छोड़ पा रहा है तो पंजाब में भी बीजेपी के लिए सरकार बनाने का रास्ता आसान कर रहा है.
पिछले चुनाव में तो लगा भी नहीं कि बीजेपी भी अकाली दल के साथ गठबंधन में पंजाब चुनाव लड़ रही है – और इस बार भी अभी तक कोई खास गतिविधि नजर नहीं ही आयी है. बीजेपी महासचिव बीएल संतोष सभी चुनावी राज्यों का दौरा कर ग्राउंड सिचुएशन की पड़ताल और नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं. ऐसा ही वो यूपी और उत्तराखंड में भी कर चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल तो मौजूदगी दर्ज कराने ही लगे हैं, जैसे ही बीजेपी को भनक लगी कि कांग्रेस ढीली पड़ रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर अमित शाह और जेपी नड्डा फटाफट धावा बोल देंगे और कश्मीर में डीडीसी चुनाव से लौट कर कैबिनेट में प्रमोशन पाने वाले अनुराग ठाकुर भी मोर्चा संभाल लेंगे. दिल्ली में भले ही अनुराग ठाकुर फेल रहे हों, लेकिन पड़ोसी हिमाचल प्रदेश से लगे इलाकों में अपनी छाप तो छोड़ ही सकते हैं.
अब जबकि लगता है कांग्रेस थाल सजा कर बैठी हुई है, जिसे भूख लगी हो भोजन की तरफ दौड़ेगा ही, लेकिन डार्विन का सरवाइवल ऑफ फिटेस्ट का नियम ही लागू होगा – और ये रेस जल्द ही AAP यौर BJP के बीच शुरू होने वाली है!
लेखक
मृगांक शेखर @mstalkieshindi