अफ्रीकी जनजातीय मां, जिसके आंचल फैला मोदी को आशीर्वाद की है चर्चा
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कौन है यह मां, जिसने राष्ट्रपति भवन में आंचल फैलाकर मोदी को दी दुआएं, 400 साल पुराना अफ्रीका कनेक्शन भी जानिए
Hirbai Ibrahim Lobi: अपने देश की विविधता पद्म पुरस्कार पाने वाले लोगों को देखकर भी समझी जा सकती है। देश के कोने-कोने से ताल्लुक रखने वाले ‘असली हीरो’ जब राष्ट्रपति भवन में बुधवार शाम सम्मानित होने लगे तो प्रधानमंत्री से लेकर हर शख्स तालियां बजाता रहा। ऐसी ही एक मां हीराबाई इब्राहिम लोबी (Siddi Tribe) की खूब चर्चा हो रही है।
नई दिल्ली 27 मार्च: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार शाम 54 हस्तियों को पद्म अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसमें कई ऐसे नाम हैं, जिसके बारे में देश के कम लोगों को ही पता था। जब ऐसे आम लोग राष्ट्रपति से सम्मानित हुए तो सोशल मीडिया पर #PeoplesPadma लिखा जाने लगा। इसका मतलब उन लोगों के सम्मान से है, जिन्होंने बिना किसी प्रचार के जमीन पर काम किया और देश उन्हें सम्मानित कर रहा है। ऐसी ही एक महिला जब अवॉर्ड लेने के लिए राष्ट्रपति भवन में पहुंचीं तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नाम- श्रीमती हीराबाई इब्राहिमभाई लोबी। बुजुर्ग मां जैसे ही आगे की पंक्ति में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, गृह मंत्री अमित शाह और मंत्री स्मृति ईरानी के आगे आईं तो सभी ने हाथ जोड़ लिए। पीएम ने झुककर प्रणाम किया। इसके बाद अपने शब्दों में आशीर्वाद देते हुए यह मां भावुक हो गई। उन्होंने गर्व महसूस करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई ने आज सिद्दी समाज का सम्मान किया है। पीएम ने एक बार फिर हाथ जोड़कर प्रणाम किया और सभी तालियां बजाने लगे।
हीराबाई एक बार फिर भावुक हो गईं और उन्होंने कहा कि हमें अपार खुशी मिली है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया है। भाजपा नेता संबित पात्रा ने लिखा, ‘मातृशक्ति का आशीर्वाद।’ बहुत से लोगों ने वीडियो देखकर लिखा, ‘पद्मश्री समारोह में भावनात्मक पल, जब एक मां ने कहा कि आपने (प्रधानमंत्री मोदी) हमारी झोली को खुशियों से भर दिया।’ उनके बारे में लोग जानना भी चाहते हैं। उनकी कहानी एक प्रेरणा है। श्रीमती हीराबाई लोबी आदिवासी महिला संघ की अध्यक्ष हैं। इस समूह को सिद्दी महिला संघ भी कहा जाता है। हीराबाई सिद्दी समाज और महिला सशक्तीकरण के लिए किए गए अपने कार्यों के लिए जानी जाती है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके उत्थान के लिए काफी काम किया है। 2004 में उन्होंने महिला विकास संघ की स्थापना की। उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन अपने कार्यों की बदौलत वह गांव की नेता के तौर पर पहचानी गईं।
कभी हाथ से खोदती थीं मिट्टी
1 जनवरी 1953 को गुजरात (गिर) के जंबूर गांव में जन्मी हीराबाई छोटी थीं तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया। दादी ने उन्हें पाला। उन्हें शुरुआती शिक्षा नहीं मिली और न कभी स्कूल या कॉलेज गईं। कम उम्र में ही उनकी शादी श्री इब्राहिम भाई लोबी से हो गई। वह अपने पति के साथ जमीन के एक छोटे से टुकड़े में खेती करके गुजर बसर करने लगीं। तब आधुनिक संसाधन या उपकरण नहीं थे, तो उन्हें हाथ से मिट्टी खोदनी पड़ती थी।
400 साल पहले गुलाम बनकर आए थे
वह सिद्दी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, जो जंबूर की कुल आबादी का 98 प्रतिशत हैं। सिद्दी वास्तव में अफ्रीकी जनजाति है जिन्हें करीब 400 साल पहले जूनागढ़ के शासक के राज में गुलाम बनाकर भारत लाया गया था। गुजरात के सबसे ज्यादा पिछड़े समुदायों में से एक सिद्दी जनजाति के लोगों ने दशकों तक बेहद मामूली जीवन जिया। किसी ने उनके उत्थान के बारे में नहीं सोचा। ऐसे में हीराबाई ने अपने समाज की महिलाओं की जिंदगी बदलने का बीड़ा उठाया। वह बिना चर्चा में आए सौराष्ट्र के 18 गांवों में काम कर रही हैं। इसे ‘क्रांति’ कहा जाता है। उन्होंने रोजगार, स्वास्थ्य, खानपान को बेहतर करने और जागरूकता फैलाने के लिए काफी काम किया। उन्होंने स्कूल बनवाने में मदद की और इससे 700 से ज्यादा महिलाओं और बच्चों की जिंदगी बदल गई। उन्हें देश-विदेश से कई सम्मान मिल चुके हैं। आज पूरा भारत उन्हें सलाम कर रहा है।