पूर्व सैनिक पुत्र युवा अपील धामी से भाजपा ने साधे क्षेत्रीय और जातीय समीकरण
उत्तराखंड बीजेपी में क्षेत्रीय और जाति प्रतिनिधित्व संतुलित करने के लिए हुआ पुष्कर सिंह धामी का चयन
खटीमा से दो बार विधायक रहे धामी न तो त्रिवेंद्र सिंह रावत और न ही तीरथ सिंह रावत सरकार में मंत्री रहे. धामी का चयन पार्टी के अंदर क्षेत्रीय और जाति प्रतिनिधित्व को संतुलित करता है क्योंकि गढ़वाल से ब्राह्मण नेता मदन कौशिक पार्टी प्रमुख हैं.
अमन शर्मा/ अनुराग अन्वेषी
नई दिल्ली/नोयेडा. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कुमाऊं क्षेत्र से पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) के रूप में बीजेपी ने एक युवा ठाकुर चेहरे को चुना है. इससे पहले उसने गढ़वाल से अंतिम दो सीएम दिए थे. हमने 2 जुलाई को खबर दी थी कि तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) के इस्तीफा देने के बाद धामी इस पद के लिए एक आश्चर्यजनक विकल्प हो सकते हैं. खटीमा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे धामी न तो त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) और न ही तीरथ सिंह रावत सरकार में मंत्री रहे. धामी का चयन उत्तराखंड में पार्टी के अंदर क्षेत्रीय और जाति प्रतिनिधित्व को संतुलित करता है क्योंकि गढ़वाल से ब्राह्मण नेता मदन कौशिक (Madan Kaushik) पार्टी प्रमुख हैं.
धामी ने खुद को बताया सैनिक के बेटे और साधारण पार्टी कार्यकर्ता
अपने नाम की घोषणा के बाद धामी ने अपनी पहली टिप्पणी में जोर देकर कहा कि वह पार्टी के एक साधारण कार्यकर्ता, एक सैनिक के बेटे हैं और पिथौरागढ़ के सीमावर्ती क्षेत्र में पैदा हुए थे. उत्तराखंड एक सीमावर्ती राज्य है जो युवाओं को सशस्त्र बलों में भेजने के लिए जाना जाता है. वह रविवार यानी कल शाम 5 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. भाजपा ने 45 वर्षीय धामी पर यह विश्वास करते हुए अपना दांव लगाया है कि वे युवा मतदाताओं से अपील कर सकते हैं क्योंकि वे राज्य में भाजपा युवा मोर्चा के प्रमुख के रूप में काम कर चुके हैं.
सबसे युवा मुख्यमंत्री
2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य की 70 में से 57 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी ने कुमाऊं की 29 में से 23 सीटें जीती थीं. यह वह क्षेत्र है जहां से राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता आते हैं, जिनमें पूर्व सीएम हरीश सिंह रावत भी शामिल हैं, जिनके खिलाफ भाजपा राज्य के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में धामी को खड़ा कर रही है. कुमाऊं से एक और शीर्ष कांग्रेस नेता थीं इंदिरा हृदयेश, पिछले महीने जिनका निधन हो गया.
चुनाव को अवसर के रूप में देखते हैं धामी
धामी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नजदीकी हैं. कोश्यारी भी कुमाऊं के बागेश्वर से हैं और इन दोनों के आरएसएस के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. कोश्यारी फिलहाल में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. उत्तराखंड में भाजपा को फिलहाल एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले चार साल में उसके तीसरे मुख्यमंत्री 2022 के विधानसभा चुनाव की अगुवाई करेंगे. धामी के मुताबिक, वे इस चुनाव को एक अवसर के रूप में देखते हैं कि पार्टी को फिर सत्ता दिलाई जा सके.
पुष्कर सिंह धामी के चयन से बीजेपी ने की उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल दोनों को साधने की कोशिश!
पुष्कर सिंह धामी के लिए उत्तराखंड के मुखिया की कुर्सी इतनी आसान नहीं रहने वाली है. उन्हें वरिष्ठ विधायकों के साथ ही ब्यूरोक्रेसी से भी सामंजस्य बनाना होगा. सरकार चलाने का कम अनुभव भी धामी के आड़े आ सकता है.
उत्तराखंड में 11वें मुख्यमंत्री के रूप में युवा नेता पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) पर दांव खेलने के पीछे बीजेपी की क्या रणनीति हो सकती है, इस पर राजनीतिक विश्लेषक मंथन करने लगे हैं. इस बारे में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. एक निशाना तो बीजेपी का उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 है और दूसरा निशाना पश्चिम बंगाल है. महज चार महीने पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) का इस्तीफा लेकर उत्तराखंड की कमान बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) को थमाई थी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसे में बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत से फिर क्यों अचनाक पद खाली करवाया और युवा मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी का चयन किया.
2022 के विधानसभा चुनाव पर बीजेपी की निगाह
बीजेपी की स्ट्रैटजी युवाओं को सामने लाने की रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल आबादी 2011 में उत्तराखंड की कुल आबादी 1 करोड़ 86 हजार 292 थी. इनमें पुरुषों की संख्या 51 लाख 38 हजार 203 जबकि महिलाओं की संख्या 49 लाख 48 हजार 89. उभयलिंगी के रूप में 637 नाम दर्ज किए गए थे. अब 2021 में उत्तराखंड की अनुमानित आबादी सवा करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है. बताया जाता है कि इस आबादी में 60 प्रतिशत युवा वोटर हैं. बीजेपी के कई नेता यह दावा करते हैं कि प्रदेश में स्वरोजगार के इतने अवसर सुलभ कराए गए हैं कि रोजगार के लिए होने वाले पलायन में रोक लगी है. नतीजा यहां युवा वोटरों की संख्या बढ़ी है. प्रदेश के नेताओं की ऐसी रिपोर्ट के आधार पर ही बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व मान कर चल रहा है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में युवा वोटरों से ही जीत-हार तय होनी है. इसलिए भी उन्होंने प्रदेश का नेतृत्व 46 साल के युवा के हाथों में सौंपने का फैसला किया.
मैनेजमेंट की शिक्षा प्लस पॉइंट
दूसरी खासियत पुष्कर धामी की मैनेजमेंट की शिक्षा भी है. बीजेपी में अब तक जिन पदों पर धामी को जिम्मेवारियां सौंपी गईं, उनमें धामी ने खुद को साबित भी किया. धामी बीजेपी की हर कसौटी पर खरा उतरते रहे हैं. इसके अलावा उनकी छवि एक निर्विवाद नेता की भी रही है. यह अलग बात है कि उत्तराखंड के मुखिया के रूप में उन्हें वरिष्ठ विधायकों के साथ-साथ ब्यूरोक्रेसी से भी सामंजस्य बनाना होगा. पार्टी यह समझते हुए भी कि सरकार चलाने का कम अनुभव धामी के आड़े आ सकता है, उसने जोखिम उठाया. माना जा रहा है कि इस जोखिम के पीछे धामी का मैनेजमेंट स्कील उनके जेहन में रहा होगा।
पश्चिम बंगाल पर निशाना
राजनीतिक पंडितों की निगाह में बीजेपी ने जिन कारणों से तीरथ सिंह रावत से कमान लेकर पुष्कर धामी का चेहरा सामने किया है, वही कारण वह पश्चिम बंगाल में भी लागू करवाना चाहेगी. यानी, उत्तराखंड में उपचुनाव न करवा पाने की जो स्थिति बताई गई, वह स्थिति तो पश्चिम बंगाल के लिए भी हो सकती है. वहां भी कोरोना संक्रमण का तर्क काम करेगा और वहां भी तुरंत चुनाव नहीं कराया जा सकता. ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी के सामने भी संकट खड़ा होगा और अगर पश्चिम बंगाल में भी उपचुनाव नहीं हुए तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.