संदिग्ध रेडियोएक्टिव यंत्र ठगी को ही बनाया गया था, सुमित के रिमांड की तैयारी
Suspected Radioactive Device Became A Puzzle For Dehradun Police as well as BARC
संदिग्ध रेडियोएक्टिव उपकरण बना पुलिस के लिए भी पहेली, राजस्थान की घटना को देख रचा गया पूरा षडयंत्र
संदिग्ध रेडियोएक्टिव उपकरण मामले में अभी पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है। आरोपित ने राजस्थान में हुई एक ठगी से प्रेरित होकर इस तरह का षडयंत्र रचा था।
देहरादून 17 जुलाई 2024 । संदिग्ध रेडियोएक्टिव उपकरण पुलिस के लिए पहेली बना हुआ है। पुलिस ने छह आरोपितों को गिरफ्तार तो किया लेकिन उनसे पूछताछ में हर दिन एक नई जानकारी मिली। अब इतना तो पता चला कि यह उपकरण नकली है, लेकिन किसने और कब इसे बनाया इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पा रही है।
अलबत्ता अब पुलिस ने उस डीलर को पूछताछ को बुलाया है जो इसे खरीदने देहरादून आने वाला था। दावा था कि उसके पास ऐसे उपकरण खरीदने का लाइसेंस है, लेकिन वह कोई प्रपत्र लेकर नहीं पहुंचा। पिछले शुक्रवार पुलिस ने राजपुर क्षेत्र में पूर्व आयकर अधिकारी श्वेताभ सुमन के घर पर छापा मारकर पांच आरोपित पकड़े थे।
उनसे एक संदिग्ध रेडियोएक्टिव उपकरण मिला था। एसडीआरएफ ने जांच की तो पता चला कि इसमें रेडियोएक्टिव पदार्थ हो सकता है। लेकिन, अगले दिन नरौरा से आई टीम ने जांच की तो इसमें रेडियोएक्टिव पदार्थ न होने की पुष्टि हुई। आरोपितों सुमित पाठक और तबरेज आलम ने पुलिस को बताया कि सहारनपुर निवासी राशिद ने उन्हें यह उपकरण बेचा था। अगले दिन राशिद गिरफ्तार हुआ तो कहानी कुछ और निकली।
करोड़ों रुपये में होना था सौदा
उसने पुलिस को बताया कि यह उपकरण नकली है और उसने कभी नहीं बेचा। यह उपकरण तबरेज और उसके एक साथी ने अपने घर पर बनाया था। इससे एक बात तो साफ हो गई कि यह उपकरण नकली है। लेकिन, किसने और कब इसे बनाया इसकी पक्का जानकारी नहीं मिल सकी है। सूत्रों के अनुसार इतना भी साफ है कि इसका सौदा करोड़ों रुपये में होना था। इस पूछताछ में एक नाम लव मल्होत्रा का भी सामने आया था। लव को ही यह उपकरण खरीदना था। बताया गया था कि लव के पास इस तरह के उपकरण बेचने और खरीदने का लाइसेंस है। लेकिन, पुलिस के सामने पहुंचा लव अपने साथ कोई प्रपत्र लेकर नहीं आया है। देर रात तक पुलिस उससे पूछताछ कर रही थी।
तो राजस्थान की घटना से प्रेरित हो सुमित ने ही बनाया उपकरण
बताया जा रहा है कि इस पूरी कहानी के पीछे सुमित पाठक का दिमाग है। सुमित पाठक दिल्ली में पुराने सामान खरीदता-बेचता है। वह बहुत सी पुरानी चीजों के नकली प्रतिरूप बनाकर महंगे दामों पर बेचता है। बताया जा रहा है कि सुमित पाठक ने राजस्थान में हुई 14 करोड़ रुपये की ठगी से प्रेरित होकर इस तरह का षडयंत्र रचा था। एक बार इसी तरह के उपकरण बेचने का राजस्थान में ठगों ने जाल बुना था।
राजस्थान पुलिस ने तब 18 गिरफ्तारियां की थी। इन आरोपितों ने सात लोगों से 14 करोड़ रुपये की ठगी इस तरह के एक नकली उपकरण बेचकर की थी। पुलिस के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार सुमित पाठक ने ही अपनी दुकान व कार्यशाला पर यह उपकरण बनाया था। ताकि, वह इसे इसी तरह बेचकर करोड़ों की ठगी कर सके। हालांकि, अभी सुमित से भी पुलिस कस्टडी रिमांड में लेकर पूछताछ की जानी बाकी है। जल्द ही पुलिस उसकी पीसीआर मांग सकती है।
पांच साल पहले जयपुर में रेडियो एक्टिव पदार्थ के नाम पर करोड़ों की ठगी, देशभर से 18 लोग गिरफ्तार
मुंबई, जयपुर, इंदौर और दिल्ली में रेड मारकर की गई थी गिरफ्तारी
फर्जीवाड़े में शामिल जयपुर का सत्यनारायण नगर निगम का पूर्व कर्मचारी
पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव ने करोड़ों के फर्जीवाड़े का अनावरण किया था जिसमें डांसिंग डॉल नाम के फर्जी रेडियो एक्टिव पदार्थ खरीदने के नाम पर पुणे के दो लोगों से पहले 81 लाख रुपए लिए गए। टेस्टिंग को फेल बता फिर से टेस्ट कराने के नाम पर करोड़ों रुपए लिए गए। जयपुर पुलिस ने मुंबई, जयपुर, इंदौर और दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में रेड मारकर रेनसेल कंपनी के मालिक गणेश इंगले और उसके साथी जयपुर के सत्यनारायण समेत 18 लोग पकड़े थे।
पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव के अनुसार पुणे के तीन लोगों की रिपोर्ट थी कि डांसिंग डॉल रेडियो एक्टिव पदार्थ खरीदने-बेचने को लेकर उनसे 7 से 8 करोड़ का फर्जीवाड़ा किया गया है। उन्होंने कि उन्हे किसी से पता चला था कि जयपुर में सत्यनारायण के पास डांसिंग डॉल नाम का रेडियो एक्टिव पदार्थ है जिसे मुंबई बेस रेनसेल कंपनी खरीदना चाहती है। उन्होंने सत्यनारायण से बात की तो वो उन्हे ये रेडियो एक्टिव पदार्थ 500 करोड़ प्रति इंच पर बेचने को तैयार हो गया। वहीं, पूरा प्रोडक्ट 18 इंच का बताया गया था। इसके साथ पुणे के लोगों ने मुंबई की रेनसन कंपनी से भी संपर्क किया जो इस प्रोडक्ट को खरीदना चाहते है। रेनसेल ने उन्हे बताया कि वो ये प्रोडक्ट नासा के लिए खरीदना चाहते हैं जिसके लिए वो उन्हे इस रेडियो एक्टिव प्रोडक्ट के 7000 करोड़ प्रति इंच देंगे। इसके बाद ठगी का खेल शुरू हआ।
ऐसे शुरू हुआ ठगी का खेल
रेनसेल ने पुणे के व्यक्ति से रेडियो एक्टिव पदार्थ की जांच को 81 लाख रुपए जमा कराए। उन्हे बताया गया कि इसकी जांच को डीआरडीओ और बार्क के साइंटिस्ट आएंगें (जो बाद की जांच में फर्जी निकले)। इसके साथ जांच में लगने वाले कई केमिकल के लिए रुपए जमा कराए। जयपुर के एक फ्लैट में जांच शुरू हुई जिसके लिए सभी को एंटी रेडिएशन सूट पहनाए गए। सभी ‘साइंटिस्ट’ भी वहां पहुंचे। तभी वहां धमाके हुए। पुणे के व्यक्तियों को बताया गया कि टेस्टिंग फेल हो गई। इसके बाद रेडियो एक्टिव पदार्थ सही करने को उनसे लाखों रुपए लिए गए।
दूसरी टेस्टिंग फेल होने पर हुआ शक
कुछ समय बाद बताया गया कि अब पदार्थ टेस्टिंग को फिर से तैयार है। फिर से टेस्टिंग के नाम पर उनसे लाखों रुपए लिए गए और टेस्टिंग फिर फेल हो गई। तब पुणे के व्यक्ति को संदेह हुआ। उन्होंने पता लगाया तो मुंबई की रेनसेल कंपनी फर्जी निकली। तब उन्होंने जयपुर पुलिस को मामले की जानकारी दी।
जयपुर नगर निगम का पूर्व कर्मचारी था आरोपित
राजस्थान पुलिस को मामले की जानकारी मिलने पर जांच को गठित टीम ने मूंबई में रेनसेल कंपनी, जयपुर में सत्यनारायण और दिल्ली में लोगों पर नजर रखनी शुरू की। फिर सभी जगह एक साथ रेड मारकर 18 लोग पकड़े । जयपुर का सत्यनारायण नगर निगम का पूर्व कर्मचारी निकला। रेनसेल कंपनी का मालिक गणेश इंगले मैकेनिकल इंजिनियर था।