सुदर्शन ‘UPSC जिहाद’ में opindia समेत तीन हस्तक्षेप याचिकायें

सुदर्शन ‘UPSC जिहाद’ मामला: ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और UpWord ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की इंटरवेंशन एप्लीकेशन

‘यूपीएससी जिहाद’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है मामला

‘सुदर्शन न्यूज़’ के शो ‘यूपीएससी जिहाद’ के प्रसारण का मसला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। चैनल ने इसके प्रसारण पर लगी रोक हटाने की माँग की है। अब इस मामले में ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और अपवर्ड ने ‘इंटरवेंशन एप्लीकेशन’ (हस्तक्षेप याचिका) दायर की है। ‘फ़िरोज़ इक़बाल खान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में अनुमति-योग्य फ्री स्पीच को लेकर रिट पेटिशन दायर की गई है।

‘हस्तक्षेप याचिका’ में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचार के लिए जो मुद्दे आए हैं, जाहिर है कि उसके परिणामस्वरूप फ्री स्पीच की पैरवी करने वालों पर प्रकट प्रभाव पड़ेगा। साथ ही ऐसी संस्थाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जो जनता के लिए सार्वजनिक कंटेंट्स का प्रसारण करते हैं। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से ये निवेदन है कि इन्हें भी इस मामले में एक पक्ष बनाया जाए। इस प्रक्रिया में एक पक्ष बना कर भाग लेने की अनुमति दी जाए।”

रिट याचिका में अब तक दिए गए आदेशों की बात करते हुए बड़े ही विस्तृत रूप से कई मुद्दों को रखा गया है। अब तक उठाए गए मुद्दों, आए फैसलों और राहत प्रदान करने वाले निर्णयों को ध्यान में रखते हुए इसमें बातें रखी गई हैं। साथ ही इसमें न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार की बात करते हुए सवाल उठाए गए हैं कि क्या प्रशासन की जाँच के दौरान ही कंटेंट्स को प्रसारण के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है या नहीं।

साथ ही एक और महत्वपूर्ण मुद्दा ये उठाया गया है कि आगे स्थानीय प्रशासन या फिर सम्बद्ध अथॉरिटी को इस कंटेंट में कुछ गलत नहीं मिलता है और वो प्रसारण की अनुमति दे देते हैं, तो क्या कोर्ट स्वयं ही प्रशासन का किरदार निभाते हुए इसे प्रतिबंधित कर सकता है? साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कंटेंट्स को देखने-सुनने का अधिकार जनता को है, क्या इस पर विचार किए बिना ही निर्णय लिया जा सकता है?

साथ ही न्यायिक रूप से ऐसे कंटेंट्स को लेकर भी बात की गई है, जिन्हें ‘हेट स्पीच’ के दायरे में रखा जाए। साथ ही पूछा गया है कि हाल की वस्तुस्थिति को विस्तृत रूप से देखे बिना ‘हेट स्पीच’ के अंदर आने वाली सामग्रियों को लेकर क़ानून बनाया जा सकता है या नहीं। हाल के दिनों में मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा ‘फ्री स्पीच’ के माध्यम से काफी बार बहुत कुछ किया गया है। साथ ही ऑपइंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट भी पेश करने की अनुमति माँगी है।

इस रिपोर्ट का टाइटल है- ‘A Study on Contemporary Standards in Religious Reporting by Mass Media’, जिसमें 100 ऐसी घटनाओं का जिक्र है, जब मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों ने विभिन्न घटनाओं को लेकर गलत रिपोर्टिंग की जो उनके पहुँच को देखते हुए पाठकों के मन में संशय पैदा करता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे हिन्दुओं के खिलाफ नैरेटिव बनाया जाता है।

साथ ही कैसे मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा एक मजहब विशेष के दोषियों को बचाने के लिए उनके अपराध को कम कर के दिखाया जाता है या फिर ह्वाइटवॉश कर दिया जाता है। इसलिए, नैतिकता का मापदंड सिर्फ एक किसी घटना को लेकर लागू नहीं की जा सकती, सेलेक्टिव रूप से कार्रवाई नहीं हो सकती। इस रिपोर्ट में हिन्दूफोबिया की कई घटनाओं को उद्धृत किया गया है।

फैक्ट्स के साथ छेड़छाड़ करना, विवरणों को सेलेक्टिव रूप से साझा करना, चित्रों के जरिए नैरेटिव बनाना, फेक न्यूज़ और ओपिनियन बनाना- इन सबके जरिए ये बताने की कोशिश की गई है कि कैसे मुख्यधारा की मीडिया ने ही एक ट्रेंड सेट किया है, जो अब तक चला आ रहा है। इससे कोर्ट को इस मामले में निर्णय लेने में आसानी होगी। दिल्ली दंगे, मुस्लिमों से जबरन ‘जय श्री राम’ कहलवाना और ‘सैफ्रॉन टेरर’ से जुड़े ऐसे लेखों को उद्धृत किया गया है।

रविवार (सितंबर 20, 2020) को ही सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में सुदर्शन न्यूज ने कहा था कि चैनल अपने “बिंदास बोल” शो के “यूपीएससी जिहाद” कार्यक्रम के शेष एपिसोड प्रसारित करते हुए कानूनों का कड़ाई से पालन करेगा। चैनल की तरफ से यह भी कहा गया था कि वह सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रोग्राम कोड का पालन करेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चैनल की तरफ से हलफनामा प्रस्तुत किया गया था।

शो नहीं देखना चाहते तो उपन्यास पढ़ें या फिर टीवी कर लें बंद: ‘UPSC जिहाद’ पर सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड

न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने दिया सुदर्शन न्यूज़ मामले में जवाब
न्यायाधीश चंद्रचूड़ (साभार – news 18)

सुदर्शन न्यूज़ के कार्यक्रम ‘UPSC जिहाद’ के प्रसारण पर रोक लगाने की माँग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस कार्यक्रम में ज़कात फ़ाउंडेशन पर आरोप लगाए जाने से जिनलोगों को परेशानी हैं वे टीवी को नज़रअंदाज़ कर उपन्यास पढ़ सकते हैं या फिर टीवी बंद कर सकते हैं।

अभियोजन पक्ष के वकील की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात कही। अभियोजन पक्ष कहना था कि ‘UPSC जिहाद’ कार्यक्रम में सुदर्शन न्यूज़ के एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हाणके ने जो कहा है वह हेट स्पीच की श्रेणी में आता है। अभियोजन पक्ष के वकील ने यह आरोप भी लगाया था कि जो तस्वीरें उम्मीदवारों को परीक्षा में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, उसे कार्यक्रम में गलत रूप में पेश कर दिखाया गया है। इतना ही नहीं कार्यक्रम में उन्हें जिहादी षड्यंत्र रचने वाले की तरह दिखाया गया है।

दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी ने दर्शकों पर वह कार्यक्रम देखने का दबाव नहीं बनाया है। जिन लोगों को उस कार्यक्रम से किसी भी तरह की समस्या है, वह उससे किनारा कर सकते हैं। न्यायालय को केवल एक सूरत में इस केस की सुनवाई में समय खर्च करना चाहिए, अगर वह ज़कात फ़ाउंडेशन पर लगाए गए आरोपों से संबंधित है। इसके अलावा मामले की सुनवाई का कोई और आधार नहीं होना चाहिए।

इसके पहले 3 न्यायाधीशों की पीठ जिसमें न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा इन्दू मल्होत्रा और केएम जोसफ शामिल हैं, ने कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश दिया था। न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने टोपी, दाढ़ी, हरे रंग और बैकग्राउंड में आन के चित्रण को लेकर आपत्ति जताई थी।

सुदर्शन चैनल का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता ने कहा, कार्यक्रम में ज़कात फ़ाउंडेशन को मिलने वाली फंडिंग पर सवाल उठाया गया था। जिस फंडिंग के ज़रिए परीक्षाओं की कोचिंग की आर्थिक मदद की जाती है। इसके अलावा सुरेश चव्हाणके ने कहा था, “देश हित के लिए इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा होना बहुत ज़रूरी है कि ज़कात फ़ाउंडेशन जैसी संस्थाओं को फंडिंग कैसे मिलती है?” उन्होंने यह भी कहा कि पूरे 4 कार्यक्रम की शृंखला में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि एक समुदाय के किसी व्यक्ति को UPSC का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।

आज इस मामले में ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और अपवर्ड ने ‘इंटरवेंशन एप्लीकेशन’ (हस्तक्षेप याचिका) दायर की थी। ‘फ़िरोज़ इक़बाल खान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में अनुमति-योग्य फ्री स्पीच को लेकर रिट पेटिशन दायर की गई थी।

‘हस्तक्षेप याचिका’ में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचार के लिए जो मुद्दे आए हैं, जाहिर है कि उसके परिणामस्वरूप फ्री स्पीच की पैरवी करने वालों पर प्रकट प्रभाव पड़ेगा। साथ ही ऐसी संस्थाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जो जनता के लिए सार्वजनिक कंटेंट्स का प्रसारण करते हैं। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से ये निवेदन है कि इन्हें भी इस मामले में एक पक्ष बनाया जाए। इस प्रक्रिया में एक पक्ष बना कर भाग लेने की अनुमति दी जाए

 

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