पृथ्वीराज चौहान और मौहम्मद गौरी का क्या है इतिहास

Samrat Prithviraj Chauhan and Muhammad Ghori Real Story of war and Death History

Prithviraj Chauhan: सम्राट पृथ्वीराज चौहान की असली कहानी क्या है… क्यों इतिहास पर उठ रहे सवाल और मचा है बवाल?
पुराने इतिहासकारों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है कि उन्होंने ईमानदारी से इतिहास नहीं लिखा और आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी से युद्ध करने वाले सम्राट पृथ्वीराज को किताबों में हारे हुए राजा की तरह पेश किया.

निलेश कुमार

Samrat Prithviraj Chauhan Real Story: चाणक्य धारावाहिक से नाम कमाने वाले डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म सम्राट पृथ्वीराज(Samraat Prithiviraj) रिलीज हो चुकी है. अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर (Akashay Kumar and Manushi Chillar) ने इसमें पृथ्वीराज और संयोगिता (जयचंद की बेटी) का रोल निभाया है. रिलीज से पहले से ही यह फिल्म खूब चर्चा में है. पिछले कुछ दिनों से फिल्म के निर्देशक डॉक्टर द्विवेदी, अक्षय कुमार और फिल्म की अन्य स्टारकास्ट ​जोर-शोर से प्रमोशन करती दिखी. फिल्म को कैसा रेस्पॉन्स मिलता है, यह तो बाद की बात है. लेकिन इस फिल्म के बहाने इतिहास और इतिहासकारों पर एक बार फिर से सवाल उठना शुरू हो गया है. कहा जा रहा है कि इतिहास को ईमानदारी से नहीं लिखा गया है.

बता दें कि पृथ्वीराज चौहान को देश के महान सम्राटों में से एक माना जाता है. कहा जा रहा है कि सम्राट पृथ्वीराज के बारे में भी देश के ज्यादातर लोगों को ठीक से जानकारी नहीं है. उनके बारे में बहुत प्रचारित-प्रसारित नहीं किया गया है. स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों से लेकेर हायर एजुकेशन में पृथ्वीराज चौहान समेत कई हिन्दुस्तानी सम्राटों और योद्धाओं को मुगलों या आक्रमणकारियों की अपेक्षा कम वैल्यू दी गई.

क्या चल रहा है विवाद?

इस फिल्म की रिलीज से पहले से ही एक विवाद चला आ रहा है. ​आपत्ति यह जताई जा रही है कि पृथ्वीराज चौहान के साथ इतिहास लिखने वालों ने न्याय नहीं किया. पुराने इतिहासकारों को भी कठघरे में खड़ा किया जा रहा है कि उन्होंने इतिहास लिखने में ईमानदारी नहीं बरती और आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी (Muhammad Ghori) से युद्ध करने वाले सम्राट पृथ्वीराज को भारतीय इतिहास की किताबों में हारे हुए राजा की तरह पेश किया.

देशभर के विभिन्न राज्यों में सरस्वती शिशु/विद्या मंदिर नाम से स्कूल चलाने वाली संस्था विद्या भारती से जुड़े एक शिक्षाविद ने हमसे बातचीत में कहा कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में लोगों को जितना जानना ​चाहिए, उसका 5 प्रतिशत भी नहीं जानते. उन्होंने बताया कि विद्या भारती ने चौथी कक्षा के इतिहास की किताब में ही सम्राट पृथ्वीराज चौहान, राजा विक्रमादित्य, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों को जगह दी है. हालांकि हायर एजुकेशन में भी ऐसी शूरवीरों का इतिहास ढंग से शामिल करने की जरूरत है.

चर्चा में भी उठे सवाल

गुरुवार भर यह चर्चा का विषय रहा, जिसमें बुद्धिजीवियों, लेखक-पत्रकारों और इतिहासकारों ने मत रखा कि इतिहास, शासकों के हिसाब से लिखा जाता रहा है. कई लोग इस बात पर एकमत थे कि देश पर जिन्होंने राज किया, चाहें वो मुगल हों या फिर ब्रिटिश.. उन्होंने अपने अनुसार इतिहास लिखवाया! इस कार्यक्रम में यह बात भी उठी कि इतिहास को साइंटिफिक तरीके से और ऑथेंटिक रेफरेंस के साथ लिखे जाने की जरूरत है.

 

कहा जा रहा है कि NCERT की किताबों में भी बहादुर भारतीय नायकों की विजयगाथा कम लिखी गई है. कई कहानियों को गुप्त रखा गया. जबकि भारत विरोधी आक्रमणकारियों को एक नायक के तौर पर पेश किया गया है. पिछले साल पब्लिक पॉलिसी रिसर्च सेंटर नाम के एक थिंक टैंक ने NCERT की इतिहास की किताबों का विश्लेषण किया था और अपनी रिपोर्ट में बताया था कि इन किताबों में हिंदू शासकों को मुस्लिम शासकों के बराबर महत्व नहीं दिया गया है. बहरहाल चलिए हम पृथ्वीराज की असली कहानी जानने की कोशिश करते हैं.

पृथ्वीराज चौहान का जन्म और बचपन

पृथ्वीराज चौहान के जन्म को लेकर भी इतिहासकारों में अलग-अलग मत है. पृथ्वीराज महाकाव्य में उनका जन्म 1 जून 1163 को गुजरात राज्य के पाटन पतंग नामक गांव में बताया गया है, जबकि कुछ इतिहासकारों ने उनका जन्म वर्ष 1166 में तो कुछ ने वर्ष 1168 में बताया गया है. अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और कर्पूदेवी के बेटे पृथ्वीराज बचपन से ही प्रतिभाशाली थे. चौहान वंश में उस समय छह भाषाएं बोली जाती थीं- संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाचिक, शौर और अपभ्रंश. कहा जाता है कि पृथ्वीराज की पकड़ इन सभी भाषाओं पर थी.

पृथ्वीराज ने परंपरागत शिक्षा लेने के अलावा वेदांत, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान, मीमांसा और चिकित्सा की पढ़ाई भी की थी. वे संगीत और चित्रकला में भी पारंगत थे. एक और बड़ी खासियत उनमें यह थी कि वे प्रभु राम के पिता दशरथ की तरह शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे. यानी आवाज सुनकर निशाना लगाने में वे निपुण थे.

कम उम्र में संभाली गद्दी, फिर बने दिल्ली के शासक

दिल्ली यूनिवर्सिटी में तदर्थ शिक्षक डॉक्टर संतोष राय बताते हैं कि पृथ्वीराज 13 साल के ही थे, जब उनके पिता की मृत्यु हो गई. फिर उन्हें अजमेर के राज सिंहासन पर बिठाया गया. उनके दादा अंगम्म दिल्ली के शासक हुआ करते थे. पृथ्वीराज की बहादुरी और वीरता के आधार पर दादा अंगम्म ने उन्हें दिल्ली के राज सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. दिल्ली की गद्दी संभालने के बाद चौहान ने किला राय पिथौरा बनवाया. कम उम्र में ही उन्होंने गुजरात के शासक भीम देव को भी हरा दिया था. कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, पृथ्वीराज चौहान की के पास विशाल सेना थी, जिसमें 300 हाथी और 3 लाख घुड़सवार और पैदल सैनिक शामिल थे.

पृथ्वीराज की प्रेम कहानी

पृथ्वीराज की प्रेम कहानी में राजा जयचंद की बेटी संयोगिता (Sanyogita) का जिक्र आता है. उनके मित्र चंद बरदाई रचित पुस्तक पृथ्वीराज रासो के मुताबिक, पहली बार 11 वर्ष की उम्र में ही पृथ्वीराज की शादी करा दी गई थी. उसके बाद 22 साल की उम्र होने तक उनकी कई शादियां हुई. पृथ्वीराज रासो में उनकी 5 रानियों का ही जिक्र है- जंबावती, इन्छनि यादवी,शशिव्रता, हंसावती और संयोगिता.

संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी. वही गद्दार जयचंद (Jaychand), जिसकी धोखाधड़ी के कारण पृथ्वीराज को हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि पृथ्वीराज रासो के अलावा इतिहास में इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है. कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान एक-दूसरे को पसंद करते थे.

जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रचाया था, लेकिन पृथ्वीराज चौहान को पसंद नहीं करने के कारण द्वेषवश उनकी एक प्रतिमा द्वारपाल के रूप में लगा दी. पृथ्वीराज ने संयोगिता को स्वयंवर से ही उठा लिया और दोनों ने गंधर्व विवाह किया. बाद में जयचंद भी समझ गया कि उनकी बेटी भी पृथ्वीराज को पसंद करती है.

पृथ्वीराज चौहान की वीरगाथा

कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने 1186 से 1191 के दौरान मोहम्मद गोरी को कई बार धूल चटाई है. हालांकि कितनी बार हराया है, इस बारे में अलग-अलग जानकारी दी गई है. NBT गोल्ड पर अपने एक ब्लॉग में गंगाधर ढोबले लिखते हैं कि हम्मीर महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 7 बार हराया है, पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार 8 बार, पृथ्वीराज रासो के अनुसार 21 बार, जबकि प्रबंध चिंतामणि के अनुसार 23 बार हराया है.

कुछ मुस्लिम स्रोत केवल 2 लड़ाइयों, तराइन के पहले और दूसरे युद्ध का जिक्र करते हैं. 1191 में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गौरी को मुंह की खानी पड़ी. कहा जाता है कि एक सिपाही ने उसे अधमरी हालत में घोड़े पर चढ़ाकर मैदान छोड़ भागा था. उसकी सेना भी वापस भागने लगी. हालांकि पृथ्वीराज ने फिर पीछा नहीं किया. हालांकि कहा जाता है कि पृथ्वीराज ने गोरी को 17 बार बंदी बनाया और फिर छोड़ दिया. वहीं, प्रबंध कोश में 20 बार का जिक्र है.

शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गौरी को मार डाला!

खैर 1191 के बाद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी बुरी हार के एक साल बाद ही मोहम्मद गौरी लौट आएगा. लेकिन 1192 में मोहम्मद गौरी लौट आया. इस बार जयचंद ने गद्दारी दिखाई और गौरी के साथ जा मिला. 18वीं बार हुए इस युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को मात दिया और उन्हें बंदी बनाकर अपने साथ ले गया.

पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके मित्र चंदबरदाई को भी बंदी बना लिया गया. सजा के तौर पर गर्म सलाखों से पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दी गई. लेकिन चौहान ने हिम्मत नहीं हारी. मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने वाली कला के बारे में पता चला और आखिरी इच्छा के रूप में चंदबरदाई के कहने पर इसके प्रदर्शन की इजाजत दे दी.

यहीं पर “चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण.. ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान” का जिक्र आता है. पृथ्वीराज चौहान के लिए मोहम्मद गोरी की दूरी मापने के लिए चंद बरदाई का यह संकेत काफी था. मोहम्मद गौरी ने जैसे ही ‘चलाओ’ बोला, आवाज सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण चला डाला और मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई. हालांकि इसको लेकर भी इतिहासकारों में मतांतर है.

… पर नहीं मिलते हैं ऐतिहासिक प्रमाण

हालांकि मोहम्मद गौरी की मृत्यु की तारीख और सम्राट पृथ्वीराज की मृत्यु की तारीख को लेकर भी इतिहासकारों में मतांतर है. ऐतिहासिक तौर पर बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को कैद करने के बाद उसकी हत्या करवा दी थी और इस घटना के छह वर्ष बाद 1206 ईस्वी में उसकी मृत्यु हुई. गंगाधर ढोबले ही लिखते हैं कि जाटों की खोखर नामक जमात ने झेलम नदी के किनारे उसे मार डाला, जहां उसकी कब्र भी है.

तो फिर पृथ्वीराज रासो के अनुसार शब्दभेदी बाण से किसे मार गिराया गया था. इसकी भी एक कहानी है. कहा जाता है कि उस समय किसी कारणवश मोहम्मद गौरी यानी शहाबुद्दीन दरबार में नहीं आ सका था. उसका बड़ा भाई गियासुद्दीन तब सुल्तान हुआ करता था. आशंका जताई जाती थी कि तब वही दरबार में ​गद्दी पर बैठा था और पृथ्वीराज रासो में जिस शब्दभेदी बाण वाली घटना का जिक्र है, उसमें गियासुद्दीन ही मारा गया था. उसकी मौत के बाद मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी सुल्तान बना. ढोबले लिखते हैं कि गजनी में पृथ्वीराज की समाधि के पास ही सुलतान गियासुद्दीन की कब्र होना इस कहानी का आधार हो सकता है.

(डिस्क्लेमर: पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बारे में उपरोक्त तमाम जानकारियां विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई हैं. उन्हीं को आधार बनाते हुए यह स्टोरी लिखी गई है.)

 

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