‘वन नेशन,वन इलेक्शन’ क्यों चाहते हैं मोदी, कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति
भास्कर एक्सप्लेनर’एक देश एक चुनाव’ क्या है:PM मोदी क्यों लागू करना चाहते हैं, अंदरखाने क्या-क्या तैयारी हुई; 8 सवालों के जवाब
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ सिर्फ चर्चा का विषय नहीं बल्कि भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है।’
नवंबर 2020 में PM नरेंद्र मोदी ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए ये बात कही थी। तीन साल बाद 1 सितंबर 2023 को सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन पर एक कमेटी बनाई है। इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। सुगबगाहट है कि 18 से 22 सितंबर के विशेष सत्र में इस पर कोई बड़ा फैसला हो सकता है।
वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? PM मोदी इसे क्यों लागू करना चाहते हैं? सरकार ने अंदरखाने क्या-क्या तैयारी कर ली है? विवेचना में ऐसे 8 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल 1: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्य चुनने को एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समयपूर्व ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग हो गई। इससे एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
सवाल 2: सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की दिशा में अब तक क्या-क्या काम किया है?
मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव पर बहस शुरू हो गई।
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन की वन नेशन-वन इलेक्शन पर प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाऐं, तो इससे करोड़ों रुपए बच सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर समाप्त होगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रख 2015 में सिफारिश हुई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।
PM मोदी ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस पर विचार विमर्श को बैठक बुलाई थी। तब केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ BJP नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता लगने से कई प्रशासनिक काम भी रुकते हैं। हालांकि, कई पार्टियों ने विरोध किया था।
वन नेशन वन इलेक्शन पर 2019 में हुई सर्वदलीय बैठक की तस्वीर। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। तब सपा, टीआरएस, शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने इस सोच का समर्थन किया था।
2020 में PM मोदी ने एक सम्मेलन में वन नेशन वन इलेक्शन को भारत की जरूरत बताया। अब 1 सितंबर 2023 को सरकार ने इस पर एक कमेटी बनाने का फैसला किया है जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। कमेटी इस मसले पर सभी स्टेक होल्डर्स से राय लेकर रिपोर्ट तैयार करेगी।
सवाल 3: क्या देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना संभव है?
CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर दो सिनेरियो हैं- संसद कानून बना सकती है या इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की सहमति की जरूरत होगी।
अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई तो ज्यादातर नॉन BJP सरकारें इसका विरोध करेंगी। अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ तो भी कई मुश्किलें होंगी। जैसे- एक साथ चुनाव कब कराए? जिन राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका क्या होगा? क्या इन सरकारों को हटाइ दिया जाएगा?
साफ है कि कानूनी तौर पर कई अड़चनें आयेगी। मेरा मानना है कि कानूनी आधार पर इस समस्या का हल कर पाना संभव नहीं है। इसके लिए दूसरे राज्यों की सहमति बहुत जरूरी है। हालांकि, मतभेद इतना ज्यादा है कि संभव नहीं लगता।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई के अनुसार अभी जिन राज्यों में हाल में सरकार बनी है, वो इसका विरोध करेंगे। एक बात साफ है कि अगर सरकार ऐसा करेगी तो इस मामले का सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है।
सवाल 4: वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना मुश्किल, इसके बावजूद सरकार क्यों लाना चाहती है?
संजय कुमार का कहना है कि सरकार ने निश्चित तौर पर ये कैलकुलेशन किया होगा कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना कितना मुश्किल है। जैसे ही BJP संसद में इसका बिल लाएगी,विपक्षी दल इसका विरोध करेंगे। इससे BJP लोकसभा चुनाव में जनता के बीच ये मुद्दा लेकर जा सकती है। BJP कहेगी कि हम देश का पैसा बचाने को ऐसा करना चाहते थे, विपक्षी दलों ने हमें ऐसा करने से रोक दिया।
राशिद किदवई का कहना है कि PM मोदी जो काम करते हैं, उसकी मंशा ज्यादा से ज्यादा प्रचार की होती है। इसे ऐसे समझें कि संविधान के आर्टिकल 370 के खत्म होने से भले ही कश्मीर में कुछ नहीं बदला हो, न हो, लेकिन देश में PM मोदी ने अपनी धाक जमा ली है। उन्होंने जनता में मैसेज दिया कि केंद्र सरकार ने काफी बड़ा काम कर दिखाया है। देश में बड़ी आबादी मध्यमवर्ग की है, उनको खर्चा बचाने की बात कहने से सरकार की लोकप्रियता बढ़ जाएगी।
राशिद कहते हैं कि अगर केंद्र सरकार सही में इस दिशा में काम करना चाहती है तो उसे लोकसभा चुनाव के साथ उन राज्यों में चुनाव कराना चाहिए, जहां BJP की सरकार है और अगले 6 महीने में चुनाव होने हैं। इस तरह भाजपा खुद की सरकार बलिदान कर दूसरे दलों पर दवाब बना सकती है।
सवाल 5: वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में क्या-क्या कहा जा रहा है?
हर साल 5-6 राज्यों में चुनाव पड़ जाते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थकों का कहना है कि इससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है। वो ओडिशा का उदाहरण देते हैं। ओडिशा में 2004 के बाद से चारों विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ हुए और उसमें नतीजे भी अलग-अलग रहे। वहां आचार संहिता बहुत कम देर के लिए लागू होती है, जिसकी वजह से सरकार के कामकाज में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम खलल पड़ता है।
अपनी EVM लेकर निकलता मतदान कर्मी। किसी भी राज्य में चुनाव कराने में एक बड़ी मशीनरी लगती है। (तस्वीरः AFP)
पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता।
सवाल 6: वन नेशन वन इलेक्शन के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
राष्ट्रीय स्तर पर देश और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होतें हैं। एक साथ चुनाव हुए तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है।
चुनाव 5 साल में एक बार होंगे तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जायेगी। अभी की स्थिति में लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टियों को डर होता है कि अच्छे से काम नहीं करेंगे तो विधानसभा में दिक्कत होगी।
एक साथ चुनाव कराने में तीसरी दिक्कत ये है कि अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा? क्योंकि अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई, जबकि एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा था। ऐसी स्थिति में तो फिर अलग-अलग चुनाव होने लगेंगे।
वोट करने के बाद अलग-अलग समुदाय के लोगों का कोलाज (तस्वीरः AFP)
सवाल 7: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को वन नेशन वन इलेक्शन की कमेटी का अध्यक्ष क्यों बनाया गया है?
रामनाथ कोविंद 1 अक्टूबर 1945 को कानपुर की डेरापुर तहसील के परौंख गांव में जन्मे। 1977 में तब PM रहे मोरारजी देसाई के पर्सनल सेक्रेटरी बने।
1978 में कोविंद सुप्रीम कोर्ट में वकील अपॉइंट हुए। 1980 से 1993 के बीच सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की स्टैंडिंग काउंसिल में भी रहे। कोविंद 1994 से 2000 तक और उसके बाद 2000 से 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे। अगस्त 2015 में बिहार के गवर्नर बने।
रामनाथ कोविंद भाजपा का दलित चेहरा रहे हैं। वे अनुजा भाजपा मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। ऑल इंडिया कोली समाज के प्रेसिडेंट रहे हैं। कोविंद BJP के नेशनल स्पोक्सपर्सन रह चुके हैं, लेकिन वे लाइमलाइट से इतने दूर रहते थे कि प्रवक्ता रहते कभी भी टीवी पर नहीं आए। रामनाथ कोविंद 25 जुलाई 2017 को भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।
रामनाथ कोविंद की प्रोफाइल से पता लगता है कि उन्हें राजनीति और कानून दोनों की समझ है। इसके अलावा मोदी सरकार से उनका तालमेल अच्छा है। वन नेशन वन इलेक्शन की कमेटी में उनकी नियुक्ति को अन्य विपक्षी पार्टियां भी नहीं खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगी क्योंकि वो दलित चेहरा और देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं।
रामनाथ कोविंद कई मौकों पर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर सहमति जता चुके हैं। 2018 के संसदीय भाषण में कहा था, ‘बार-बार चुनाव न केवल मानव संसाधनों पर भारी बोझ डालते हैं, बल्कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास प्रक्रिया में भी रुकावट पैदा करते हैं।
सवाल 8: देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी?
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील विराग गुप्ता के मुताबिक विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ में हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।
इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन करने होंगे।
30 अगस्त 2018 में न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी कहा कि संविधान के मौजूदा ढांचे में देश में वन नेशन वन इलेक्शन नहीं करा सकते हैं। इसके लिए संविधान का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बदलाव की जरूरत होगी। इसके अलावा लोकसभा व विधानसभाओं के संचालन को बने नियमों में भी संशोधन की आवश्यकता होगी।