क्यों डरी है एआई टूल्‍स से दुनिया? क्या है भय,क्या हैं सम्भावनायें?

 

ग्रोक, चैटजीपीटी और डीपसीक, राजनीति का अखाड़ा क्यों बन रहे हैं एआई टूल्स

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस टूल्स को लेकर सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस देखने को मिल रही है

एआई यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चैटबॉट्स स्मार्ट होते जा रहे हैं. इसी के साथ इनसे जुड़े विवाद भी बढ़ रहे हैं.

इस हफ़्ते सोशल मीडिया पर तूफ़ान खड़ा करने वाला ग्रोक हो, डीपसीक हो या गूगल का जेमिनाई हो, या फिर उसके भी पहले से मौजूद चैटजीपीटी. इनसे जहां आम लोग मज़े ले रहे हैं, वहीं ये राजनीति का अखाड़ा भी बन रहे हैं.

बात ये भी है कि दुनिया भर में तकनीक में क्रांति जैसी दिख रही है और भारत भी उसमें एक अहम मोड़ पर है, जहां वो सिर्फ़ मूकदर्शक नहीं बना रह सकता.

जो कुछ हो रहा है, वो मज़ेदार लग रहा है. मगर, जब उसकी तह में जाने की कोशिश करें, तो कुछ हद तक वो डरावना भी हो सकता है.

एआई के साथ-साथ बात डेटा सिक्योरिटी, लोकतंत्र की असली भावना, तटस्थता और पूर्वाग्रहों की भी है.

एआई और उससे जुड़े इन तमाम पहलुओं पर चर्चा के लिए शिव नादर विश्वविद्यालय में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स के प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा और सुप्रीम कोर्ट की वकील ख़ुशबू जैन शामिल हुए.

एआई: आख़िर ये चीज़ क्या है?
कार और रोबोट

एआई का इस्तेमान अलग-अलग व्यवसायों में हो रहा है

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चैटबॉट्स आए दिन चर्चा में आ रहे हैं.

कभी इन पर राजनीतिक बयानबाज़ी हो रही है, तो कभी निजी जानकारियों के साझा किए जाने के सवाल को लेकर कुछ लोग आशंका जता रहे हैं. बौद्धिक संपदा के प्रयोग को लेकर भी यह सभी टूल्स चर्चा के घेरे में हैं.

शिव नादर यूनिवर्सिटी में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स के प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “डीपसीक हो या फिर ग्रोक हो, ये सारे लार्ज लैंग्वेज मॉडल हैं. यानी लैंग्वेज को एक तरह से समझकर उसका विश्लेषण करना और फिर उसे मॉडल करना. सच कहूं तो ये सब अभी ज़्यादा स्मार्ट नहीं हैं. इनमें स्मार्टनेस आएगी, लेकिन अभी टाइम लगेगा.”

उन्होंने बताया, “अभी यह जाइंट ऑटो कंप्लीट हैं, जैसे आप पहले गूगल में एक शब्द टाइप करते थे और चार शब्द आगे के आ जाते थे. लेकिन ये जो ऑटो कंप्लीट है, पूरी तरह से इंटरनेट पर ट्रेन्ड (प्रशिक्षित) है. जब लैंग्वेज मॉडल की ट्रेनिंग होती है, तो इंटरनेट पर मौजूद पूरी जानकारी डाउनलोड करके उसको ट्रेन्ड कर दिया जाता है. सारा डेटा इसने क्रंच कर लिया है.”

उन्होंने बताया कि दूसरी चीज़ इसमें पक्षपात यानी पूर्वाग्रह आता है. जैसे ग्रोक है. ग्रोक का जो डेटा ट्रेन हुआ- उस डेटा को कैसे फिल्टर किया गया, कैसे क्यूरेट किया गया?

आकाश सिन्हा ने कहा, “ग्रोक के बारे में हमने देखा कि इसमें फिल्टरिंग कम है. ट्रेनिंग के बाद एक फिल्टरिंग होती है. एक गार्ड रेल डाला जाता है कि किस सवाल का जवाब देना है और किसका नहीं.”

“वो वहां पर कम है, इसलिए वहां पर आप देखेंगे कि बातचीत में कई बार वह पॉलिटिकली करेक्ट रहेगा और वह अपने बायसेस के बारे में खुलकर बात करेगा.”

कुछ सवालों पर क्यों सहम जाता है एआई?
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी

पीएम मोदी और राहुल गांधी से जुड़े सवाल पर ग्रोक ने बहुत ही डिप्लोमेटिक जवाब दिया
पीएम मोदी और राहुल गांधी में पंसद कौन हैं?

ग्रोक ने इसका बहुत ही डिप्लोमेटिक जवाब दिया. कई बार यह देखा गया है कि राजनीतिक जवाबों को लेकर ये टूल्स सहम जाते हैं.

प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “अगर आप डीपसीक से पूछें कि पुतिन के बारे में कुछ क्रिटिसिज़्म दीजिए, ट्रंप के बारे में दीजिए, मोदी के बारे दीजिए, तो वो बहुत खुल कर देगा और आप उससे पूछिए आप शी जिनपिंग के बारे में कोई क्रिटिसिज़्म दीजिए तो वो साइलेंट हो जाएगा. कुछ भी नहीं बोलेगा.”

उन्होंने बताया, “यह दो चीज़ें बता रहा था. एक तो, मॉडल में बायस है, इसके डेटा में ही कोई फॉल्ट है. जैसे कि अगर सारा डेटा वेस्टर्न मीडिया का है, तो एआई में वहां पर बायस होगा. दूसरा मुद्दा है गार्ड रेल का. गार्ड रेल पोस्ट ट्रेनिंग यानी ट्रेनिंग के बाद की प्रक्रिया का हिस्सा है.”

आकाश सिन्हा ने बताया, “जैसे डीपसीक या चीन से कोई मॉडल आता है तो चाइनीज़ गर्वमेंट ने कोई 70 हज़ार से ज़्यादा सवाल बना रखे हैं जो वह पूछते हैं और उसको सलाह देते हैं कि फलां सवाल का उत्तर क्या होगा? तो पोस्ट प्रोसेसिंग में उसका जवाब फिक्स कर दिया जाता है. यही वजह है कि अलग-अलग मॉडल में अलग-अलग मसले आ रहे हैं

एआई चैट और चिंता
एआई

एआई का इस्तेमाल वर्चुअल असिस्टेंस टेक्नॉलॉजी में भी भरपूर हो रहा है
सुप्रीम कोर्ट की वकील ख़ुशबू जैन ने कहा, “अगर तकनीक की बात करूं और जिस तरह से यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रयोग हो रहे हैं, तो मैं यही कहूंगी कि यह बहुत अच्छी चीज़ है.”

उन्होंने कहा, “तकनीक का बहुत अच्छे से इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन अगर इससे जुड़ी चिंताओं की बात करें तो बहुत सारे बिंदु हैं. जैसे किस तरह पक्षपात की बात होती है, इसके साथ कैसे भेदभाव एक चिंता की बात है.”

उन्होंने कहा कि इन एआई मॉडल्स को बनाने लिए जिस कंटेट का प्रयोग होता है, उसे लेकर कई सवाल उठते हैं- जैसे क्या वह किसी की बौद्धिक संपदा है, जिसको आप इस्तेमाल करके अपनी चीज़ विकसित कर रहे हैं. ऐसा है तो किसी के बौद्धिक अधिकार पर आप कब्ज़ा कर रहे हैं.

ख़ुशबू जैन कहती हैं इसमें तीसरी सवाल गोपनीयता को लेकर उठता है, यानी जिसका डेटा प्रयोग कर रहे हैं, क्या इसके लिए उसकी अनुमति या सहमति ली गई है. क्या अनाधिकृत तरीके से डेटा लिया गया है या फिर उसका दुरुपयोग किया जा रहा है?

आख़िर में कौन होगा ज़िम्मेदार?
साइबर क्राइम

एआई के माध्यम से साइबर क्राइम के बढ़ने की आशंका जताई जा रही है
ख़ुशबू जैन ने कहा, “स्‍वायत्तता और जवाबदेही की बात करें तो यह भी एक बड़ा मुद्दा है. अभी छह महीने में काफी परिवर्तन आ गया है. अब हम एआई को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल कर रहे हैं.”

“आज से कुछ साल बाद हमें ये समझ नहीं आएगा कि वह जो जवाब दे रहा है वो सही दे रहा है या ग़लत दे रहा है.”

वो कहती हैं कि “हमारे सिस्टम में जब हम पूरी तरह से एआई को लेकर आ जाएंगे तो वो अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल होंगे तो वहां पर हम बात करेंगे कि जवाबदेही किसकी है? मैं ज़िम्मेदारी की बात कर रही हूं, अभी तो ये पूरा सिस्टम ब्लैक बॉक्स (अंधेरे) की तरह इस्तेमाल हो रहा है.”

उन्होंने कहा, “बहुत सारे एआई मॉडल हैं और ये जवाबदेही को उलझा सकते हैं. लीगल सिस्टम में सभी देशों के लिए समस्या है कि इसमें किसको ज़िम्मेदार माना जाएगा.”

ख़ुशबू जैन ने कहा, “हम देख रहे हैं कि साइबर क्राइम में कितना इज़ाफ़ा हो गया है और इसके माध्यम से स्पष्ट अपराध होने लगेंगे तो आप और हम समझ ही नहीं पाएंगे कि क्या सही है और क्या ग़लत.”

बायस और गार्ड रेल का बैलेंस ज़रूरी

जानकार कहते हैं कि ग्रोक में अभी पाबंदी बहुत कम है, लेकिन इसमें पक्षपात है.
प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “ये मॉडल्स पर निर्भर करता है कि उन पर किस हद तक गार्ड रेल रखा गया है. किस हद तक ट्रेनिंग के बाद मॉडल को प्रतिबंधित किया है.”

उन्होंने कहा, “ग्रोक में अभी पाबंदी बहुत कम है, लेकिन पक्षपात है. अगर वो बोल रहा है कि ट्रंप और एलन मस्क नुक़सानदेह हैं तो इसका मतलब जिस डेटा पर वो ट्रेन हुआ है, उस डेटा में ही पक्षपात है. वो जिस डेटा पर ट्रेन्ड हैं उसमें काफ़ी लोग बोल रहे हैं कि वो नुक़सानदेह हैं.”

उन्होंने बताया कि अभी भारतीय सेना के लिए विशेष एलएलएम (लॉन्ग लैंग्वेज मॉडल, एक तरह का आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम) बनाने की बात चल रही है.

सेना का पहला अनुरोध यही था कि उनको ये ज़ीरो बायस और ज़ीरो गार्ड रेल के साथ एलएलएम चाहिए. उस पर उन्हें कोई पाबंदी नहीं चाहिए लेकिन उसका इस्तेमाल केवल सेना करेगी. सेना का कहना है कि उन्हें हर चीज़ पर सही राय चाहिए.

आकाश सिन्हा ने कहा, “दुनिया में क्या चल रहा है या बायसेस का भी विश्लेषण करें, तो ये जो मॉडल्स भविष्य में बनेंगे, उनमें हमें देखना होगा कि कहां पर नियंत्रण चाहिए और कहां पर नहीं चाहिए. लेकिन इनमें बायस और गार्ड रेल का बैलेंस ज़रूरी है.”

इंग्लिश की तरफ़ क्यों झुकता है एआई

जानकार मानते हैं कि हमारे घरों में जो रोबोट्स काम कर रहे होंगे, उनमें भी अपने बायस होंगे.
एआई का झुकाव अंग्रेज़ी की तरफ़ ज़्यादा क्यों होता है?

इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “इंग्लिश का कंटेंट इंटरनेट पर ज़्यादा उपलब्ध है. उदाहरण के लिए आप किसी को कहें कि एक इंग्लिश स्पीच में मोदी जी की आवाज़ निकालिए तो आप देखिएगा कि उसमें वह बीच-बीच में अमेरिकन एक्सेंट भी डाल देगा.”

उन्होंने बताया, “वहां पर आपको बायस का पता चलेगा. या अगर आप बोलिए कि हमें आप टिपिकल इंसान दिखाओ कि कैसे होते हैं? तो यह हो सकता है कि उसमें ज्यादा व्हाइट लोग दिखें. ये बायस हैं. हालांकि इन्हें सही करने का तरीका भी है. ”

उन्होंने कहा कि पांच साल के अंदर-अंदर हमारे घरों में रोबोटस काम कर रहे होंगे. उनमें भी बायस होगा. उनमें भी गार्ड रेल्स होंगे. वहां पर इसका वास्तविक प्रभाव का पता चलेगा.

सिन्हा ने कहा, “अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं ले सकता कि बिना ड्राइवर वाली कार अगर जाकर कहीं किसी का एक्सीडेंट कर दे तो फिर ज़िम्मेदारी किसकी होगी. वहां पर बायसेस और गार्ड रेल पर बहुत ध्यान देना होगा.”

न्यूक्लियर पावर की तरह है एआई

ग्रोक

जानकारों के मुताबिक़, एआई की ताक़त न्यूक्लियर पावर की तरह है.
हॉलीवुड और बॉलीवुड की कई ऐसी फ़िल्में बनी हैं जिनमें ऐसी स्थिति के बारे में दिखाया गया है जिसमें रोबोट इंसान के नियंत्रण से बाहर हो गया है.

रोबोट्स या एआई के बारे में एक सवाल ये भी उठता है कि अगर मशीन ने इंसान के आदेशों की अवहेलना शुरू कर दी तो क्या होगा. क्या एआई भी कंट्रोल से बाहर हो सकता है?

प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “यह न्यूक्लियर पावर की तरह है. इसमें बहुत क्षमता है और यह बहुत ताक़तवर भी है. साथ ही यह बहुत ही रचनात्मक भी है और यह बहुत विध्वसंक भी हो सकता है.”

उन्होंने कहा, “इसकी संभावना है, ऐसे में यह ज़रूरी है कि जिस तरह से न्यूक्लियर पावर को कंट्रोल किया गया, यहां भी कंट्रोल का एक लेवल रहना चाहिए, क्योंकि एआई शुद्ध रूप से ताकत है और ये ताकत सही दिशा में भी जा सकती है और ग़लत दिशा में भी.”

उन्होंने बताया कि “इनके कंट्रोल से बाहर होने की संभावना है, लेकिन साथ में इसमें असीम संभावाएं भी हैं. इनमें एक यूटोपियन वर्ल्ड (सपनों की दुनिया) का भी प्रॉमिस है, लेकिन यह भी हो सकता है कि वह भी हमारे ख़िलाफ़ चला जाए. इस पर हमें ख़ुद ध्यान देना होगा.”

एआई के लिए कितना तैयार है क़ानून?

जानकार कहते हैं कि भारत में एआई को लेकर टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया था. लेकिन, अगर क़ानून की बात करें तो अभी कोई प्रावधान नहीं है.
दुनिया में तेज़ी से बदल रही तकनीक और उसमें भी एआई में हो रहे बदलाव के बीच क्या भारत के पास इसके लिए उचित क़ानूनी प्रावधान हैं, जिससे कि वह सरकार, राष्ट्र और आम लोगों के हितों की रक्षा और सुरक्षा कर पाए?

इसे लेकर वकील ख़ुशबू जैन ने कहा, “अगर मैं सीधा जवाब दूं तो इसके लिए हमारे क़ानून अभी तैयार नहीं है. एआई को लेकर क़ानूनी तौर पर जो चुनौतियां आती हैं उसे पूरी तरह से हल करने के लिए हम तैयार नहीं हैं. लेकिन यह बात केवल भारत की नहीं है बल्कि ये वैश्विक स्तर की बात है.”

उन्होंने कहा, “अभी दुनिया में इस दिशा में दो ही जगहों पर कदम उठाए गए हैं, और एआई पर क़ानूनी प्रावधान लाने की कोशिश की है. एक यूरोपियन यूनियन का एक्ट आया है और दूसरी चीन की गाइडलाइन आई है. इन्हें छोड़कर अभी कोई और ऐसा कदम नहीं उठा सका है.”

ख़ुशबू जैन ने कहा, “भारत में एआई को लेकर टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया था. इसे लेकर बजट में भी प्रावधान किया गया था लेकिन अगर क़ानून की बात करें तो फिलहाल कोई प्रावधान नहीं है.”

डेटा प्राइवेसी के लिए क्या प्रावधान है?
फेसबुक मैसेंजर की तस्वीर

एआई की वजह से यूज़र्स के डेटा को लेकर भी तरह-तरह की आशंकाएं हैं.
भारत में आम से लेकर खास तक का डेटा कई माध्यमों से इंटरनेट पर उपलब्ध है. इस डेटा की सुरक्षा के लिए भारत सरकार एक क़ानून भी लेकर आई, लेकिन क्या ये उपाय इतने पुख़्ता हैं?

वकील ख़ुशबू जैन कहती हैं, “डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 साफ़ कहता है कि यूज़र की बिना सहमति के कंपनियां किसी का डेटा इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं.”

वो कहती हैं कि कंपनियों को यह बताना होगा कि वह इसका इस्तेमाल किस काम के लिए कर रहे हैं. इतना ही नहीं अगर कोई तीसरी कंपनी इस डेटा का इस्तेमाल कर रही है तो उसे भी बताना होगा कि वो इसका इस्तेमाल किस तरह से कर रही है.

इस प्रक्रिया में पारदर्शिता आना बहुत ज़रूरी है. अगर कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो क़ानून के तहत उन पर 50 करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना लग सकता है.

ख़ुशबू जैन ने कहा, “अगर आज मैं किसी को अपना डेटा इस्तेमाल करने की अनुमति दे देती हूं, लेकिन अगर कल मैं इसे बंद करना चाहती हूं तो क़ानून में इसका भी ​प्रावधान है और मैं इस अधिकार को वापस ले सकती हूं.”

“तीसरा प्रावधान है- राइट टू इरेज़ का है. यहां मैं कंपनी से ये कह सकती हूं कि मेरा जो डेटा उनके पास है, उसे वो डिलीट कर दें. अगर मैं कहती हूं कि इसके इस्तेमाल का अधिकार आगे मैं उन्हें नहीं देना चाहती हूं तो इसमें थोड़ी परेशानी आती है. लेकिन यहां वो डेटा मास्क कर दें या पहचान छुपा दें तो वो अपना काम जारी रख सकते हैं.

उन्होंने कहा कि ये सब बातें क़ानून में हैं. हमको और आपको इन अधिकारों का इस्तेमाल समझने की ज़रूरत है.

एआई के क्या फ़ायदे हैं?
एआई मॉडल्स

विशेषज्ञों का लगता है कि आने वाले समय में एआई मॉडल्स मनुष्यों की प्राथमिकता तय करेंगे
प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा कहते हैं कि एआई के कारण अगले चार पांच साल में दुनिया बहुत बदलने जा रही है.

वो उदाहरण देकर समझाते हैं, “मान लीजिए हम लोग अभी मीटिंग कर रहे हैं. आने वाले समय में हम सब का एक पर्सनलाइज़ मॉडल होगा. एक हमारा, एक आपका, एक किसी और सहयोगी का. हम मिलेंगे इससे पहले हमारे मॉडल्स मिल लेंगे और वो आपस में बात कर लेंगे.”

“हमारी प्राथमिकताएं, हमारी राय और हमाके ज्ञान की सीमा का भी उन्हें पता होगा. वो आपस में बात करके यह तय कर लेंगे कि हमारी बैठक का क्या परिणाम था?”

“वो यह बता पाएंगे कि पर्सनली मीटिंग चाहिए या फिर चाहिए ही नहीं. हो सकता है कि काफी काम हमारे मॉडल्स ही वर्चुअल वर्ल्ड में मिलकर ख़त्म कर लेंगे.”

सिन्हा कहते हैं कि शायद ही ऐसा कोई काम है जो एआई से लैस मशीन या रोबोट मनुष्य से बेहतर न कर पाएं. ये आने वाले समय में होगा तो उसके बाद हमें कुछ और भी सोचना पड़ेगा. अगर ऐसा टाइम आ जाए कि हम यूटोपियन दुनिया में हों और किसी को काम करने की ज़रूरत ही नहीं है, तो फिर उस समय दुनिया को कैसे हैंडल किया जाए.

हालांकि वो कहते हैं कि यह संभावना है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि रोबोट सचेत हो जाएंगे, लेकिन ये बात तय है कि वो कोई भी काम हमसे बेहतर कर पाएंगे.

प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा ने कहा, “एक स्पेशलाइज़्ड एक्सपर्ट का विकास हो रहा है. एक जेनेरिक एआई है जैसे चैटजीपीटी. अब कोई डॉक्टर है, जो सेक्सुअल हेल्थ पर सलाह दे रहा है या कोई फसल पर सलाह दे रहा है. ये छोटे-छोटे एक्सपर्ट हैं, जो कि असल में छोटे-छोटे लैंग्वेज मॉडल हैं.”

“ये आराम से बहुत लो पावर वाले फ़ोन पर भी काम कर सकेंगे. इसका भी बहुत फ़ायदा है.”

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भारत ने बहुत अच्छा काम किया है. पीएम मोदी के नेतृत्व में कॉमन हार्डवेयर सेंटर बनाए जा रहें हैं, जो खुले तौर पर स्टार्टअप्स को दे दिए जाएंगे, क्योंकि मॉडल्स के विकास के लिए हार्डवेयर सबसे बड़ा फैक्टर है. यह हार्डवेयर जब आम तौर पर उपलब्ध हो जाएगा, तो काफ़ी सारे स्टार्टअप्स भी जल्दी जल्दी इन चीज़ों को लाएंगे.

सुरक्षा, सरकार और सेंसरशिप
सुरक्षा एक अहम मसला है. लेकिन सरकारें केवल ख़ास तरह की सूचनाएं बाहर आने देना चाहती हों तो क्या ये एआई मॉडल्स पर भी सेंसरशिप की तरह नहीं दिखाई देता?

इस सवाल के उत्तर में वकील ख़ुशबू जैन ने कहा, “अगर आप फ़्री स्पीच को समझने की कोशिश करें तो यह है कि अगर आपका फ़्री स्पीच मेरे अधिकारों का अतिक्रमण करता है तो आपका फ़्री स्पीच वहीं ख़त्म हो जाता है.”

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और क़ानून व्यवस्था के तहत निर्णय लेना सरकार का कर्तव्य है. इस मामले में किसी को भी खुली छूट दे दें ऐसा नहीं है. हमारे पास आईटी एक्ट है जिसमें नियम दिए गए हैं और बताया गया है कि किस कैटेगरी में किस तरीके से काम कर सकते हैं.

उन्होंने कहा, “एक्स प्लेटफार्म की अगर बात करें तो भारतीय और वैश्विक स्तर पर बहुत सारे सबूत हैं कि ये व्यवसायिक हितों के लिए काम कर करते हैं. वो सिर्फ़ प्लेटफार्म नहीं रहे, वो इंसान के जीवन में दखल दे रहे हैं.”

वो कहती हैं उनकी समस्या का समाधान, सहयोग पोर्टल से हो रहा है. इंटरनेट की दुनिया में सूचना आग की तरह फैलती है. इसका असर भी आग की तरह ही होता है तो समय पर कंटेन्ट टेकडाउन (कंटेन्ट हटाने) का एक्शन लेना बहुत ज़रूरी है. ये भारत ही नहीं कई देशों में हो रहा है.

सहयोग पोर्टल पर यह भी जानकारी रहेगी कि जिस कंटेन्ट को टेकडाउन करने को कहा जा रहा है अगर वह असंवैधानिक है तो उसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है कि हम उसे टेकडाउन नहीं करना चाहते हैं.

एआई में भारत कहां है?

जानकारों का कहना है कि एआई महंगे कामों को सस्ते में कर रहा है.
चीन, डीपसीक लेकर आया फिर अमेरिका के ग्रोक ने तूफ़ान मचाया है. ऐसे में भारत में कहां है?

प्रोफ़ेसर आकाश सिन्हा कहते हैं, “हम इस रेस में थोड़ा-सा पीछे रह गए क्योंकि शुरू में जब यह मॉडल्स बन रहे थे तो इसमें बहुत भारी निवेश हुए थे.”

उन्होंने बताया कि हमारे पास भारत में जीपीयू सेंटर्स ही नहीं थे. लेकिन अब भारत जीपीयू सेंटर्स बना रहा है और स्टार्टअप्स इन्हें अपने मॉडल्स को बनाने के लिए प्रयोग कर पाएंगे.

सिन्हा कहते हैं, “वहीं डीपसीक एक बड़ा बदलाव लेकर आया. जिस काम में ट्रेनिंग के लिए 100-100 मिलियन लग रहे, उसको उन्होंने पांच छह ​मिलियन में कर दिया और मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि अगले एक या दो साल में इंडिया से कोई स्टार्टअप आएगा जो यही काम एक मिलियन में कर देगा.”

उन्होंने कहा कि एक और चीज़ जो बदलाव लेकर आएगी वो ये है कि क्वांटम कंप्यूटिंग में कितनी ज़ल्दी एडवांस आता है.

वो कहते हैं, “क्वांटम कंप्यूटिंग एक अच्छे लेवल पर पहुंचती है, तो एआई भी एक नए स्तर का आ जाएगा. ट्रेनिंग भी एक नए लेवल पर होगी तो वो एक और नया विकास हो सकता है.”

वही हुआ जिसका डर था! अब कहां मुंह छिपाएंगे ये कहने वाले कि AI किसी की नौकरी नहीं खायेगा, बल्कि…
मॉर्गन स्टेनली ने एआई और ऑटोमेशन के कारण 2000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की है. बैंक ने 2024 में 61.8 बिलियन का राजस्व अर्जित किया था. सीईओ टेड पिक के अनुसार, एआई टूल्स कर्मचारियों का समय बचाएंगे.

एआई और ऑटोमेशन भी बड़ी संख्‍या में कर्मचारियों की निकालने की वजह बने हैं.
मुख्य बिंदू

मॉर्गन स्टेनली ने 2000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की.
एआई और ऑटोमेशन के कारण नौकरियां खतरे में.
सीईओ टेड पिक के अनुसार, एआई टूल्स समय बचाएंगे.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से नौकरियां जाने की आशंका दुनियाभर में जताई जा रही है. लेकिन, एक वर्ग ऐसा भी है जो जिसका मानना है कि एआई की वजह से किसी की नौकरी खतरे में नहीं आएगी. ऐसा कहने वालों की बात को अब बैंकिंग दिग्‍गज मॉर्गन स्टेनली (Morgan Stanley) ने ही झुठला दिया है. बैंक अपने 80000 कर्मचारियों में से इस महीने के अंत तक 2,000 कर्मचारियों को बाहर का रास्‍ता दिखा देगा. कुछ कर्मचारियों को निकालने का आधार जहां कपंनी ने उनके कमजोर प्रदर्शन को बनाया है, वहीं एआई और ऑटोमेशन भी बड़ी संख्‍या में कर्मचारियों की निकालने की वजह बने हैं. मॉर्गन स्टेनली ने 2024 में 61.8 बिलियन का रिकॉर्ड राजस्व अर्जित किया था. फिर भी कंपनी ने छंटनी का फैसला किया है.

मॉर्गन स्टेनली ने कई AI टूल्स भी लॉन्च किए हैं. सितंबर 2023 में बैंक ने एक AI नॉलेज असिस्टेंट टूल लॉन्च किया जो फाइनेंशियल एडवाइजर्स को रिसर्च में जल्दी जानकारी ढूंढने में मदद करता है. जून 2024 में जारी AI टूल क्लाइंट्स के साथ वीडियो मीटिंग्स के दौरान नोट्स लेता है. सीईओ टेड पिक कह चुके हैं कि ये एआई टूल्स कर्मचारियों का 10 से 15 घंटे प्रति सप्ताह बचा सकते हैं ये गेम चेंजर साबित होंगे.ब्लूमबर्ग ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि आने वाले वर्षों में AI के कारण और भी नौकरियां कम हो सकती हैं.

कर्मचारियों की संख्‍या में कटौती का अभियान 
मॉर्गन स्‍टेनली नए सीईओ टेड पिक (Ted Pick) के कार्यभार संभालने के बाद यह पहली बड़ी छंटनी होगी. यह छंटनी कंपनी के अलग-अलग विभागों को प्रभावित करेगी, लेकिन 15,000 वित्‍तीय सलाहकारों में से किसी को नहीं निकाला जाएगा. कंपनी का मकसद खर्चों को कम करना है, क्योंकि कर्मचारियों के कंपनी को छोड़ने की दर काफी कम है. एआई ऑटोमेशन को अपनाकर मॉर्गन स्‍टेनली कर्मचारियों की संख्‍या कम करना चाहता है ताकि उसका वित्‍तीय भार कुछ कम हो सके.

AI का बढ़ता दबदबा
ऐसा नहीं है कि मॉर्गन स्टेनली अकेले एआई के कारण नौकरियां कम कर रहा है. ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जेपी मॉर्गन (JPMorgan) और गोल्डमैन सॉक्‍स जैसे 100 के करीब बैंकों के उच्‍च अधिकारियों ने माना है कि अगले 3 से 5 साल में उनके बैंकों में 3 फीसदी नौकरियां एआई के कारण खत्म हो जाएंगी. अमेरिका की ही बात करें तो वहां करीब 200,000 नौकरियों पर खतरा है.

ChatGPT और DeepSeek का इस्तेमाल ना करें कर्मचारी…’, केंद्र सरकार ने दी चेतावनी
भारत सरकार की तरफ से एक आदेश जारी किया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को AI Apps और प्लेटफॉर्म को लेकर जरूरी निर्देश दिए है. आदेश में कर्मचारियों से कहा कि कई लोग ऑफिस के कंप्यूटर और लैपटॉप में AI Apps (जैसे ChatGPT, DeepSeek आदि) का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट और डेटा के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

भारत सरकार की तरफ से एक आदेश जारी किया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को AI Apps और AI प्लेटफॉर्म को लेकर जरूरी जानकारी दी है. फाइनेंस मिनिस्ट्री की तरफ से जारी आदेश में सरकारी कर्मचारियों से कहा कि कुछ स्टाफ ऑफिस के कंप्यूटर और लैपटॉप में AI Apps (जैसे ChatGPT, DeepSeek आदि) का इस्तेमाल करते हैं, जो भारत सरकार के कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट और डेटा के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.

केंद्र सरकार के सर्कुलर में कहा कि AI Apps और टूल्स को सरकारी कंप्यूटर, लैपटॉप और डिवाइस में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. यह फैसला डेटा और प्राइवेसी को प्राथमिकता देते हुए लिया गया है. हालांकि इससे वे AI यूजर्स का मनोबल नहीं गिराना चाहते हैं.

भारत में कई विदेशी AI Apps
भारत में ढेरों विदेशी AI Apps मौजूद हैं, जिनमें ChatGPT, DeepSeek और Google Gemini आदि के नाम शामिल हैं. भारत में कई लोग इनका इस्तेमाल अपना काम आसान बनाने के इरादे से करते हैं. डिवाइस में AI Apps या टूल्स इंस्टॉल करने के बाद वह जरूरी परमिशन का एक्सेस मांगते हैं. ऐसे में सरकारी फाइलों का डेटा लीक होने का खतरा बना रहता है.

AI ऐसे करते हैं काम

AI Apps और AI ChatBOT की मदद से कई लोग प्रोम्प्ट देकर लेटर, आर्टिकल या फिर ट्रांसलेशन आदि का काम कर सकते हैं. कई लोग तो इसका इस्तेमाल प्रजेंटेशन आदि बनाने में भी करते हैं. यहां यूजर्स को एक सिंपल सा टेक्स्ट प्रोम्प्ट देना होता है.

पॉपुलर है DeepSeek

चीनी स्मार्टअप DeepSeek ने हाल ही में पॉपुलैरिटी हासिल की है और इस स्टार्टअप ने किफायती कीमतों की वजह से इंडस्ट्री में खलबली मचा दी है. चीन का यह स्टार्टअप करीब 20 महीने पहले शुरु हुआ. 20 जनवरी 2025 को DeepSeek R1 ChatBot अचानक तेजी से पॉपुलर हुआ और उसने पुरानी AI कंपनियों कई रिकॉर्ड्स को तोड़ दिया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *