जयंती: चुनौती दे अंग्रेजों की गोली खा बलिदान दिया वीर उदय चंद जैन ने
*जय मातृभूमि*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
…………………………………………………………………………………………………………..चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳
…………………………………. *अमर बलिदानी वीर उदय चंद जैन* ………………..
…………………………………………………………..🌹🌹🌹🌹🇮🇳
कहने को तो वह एक अहिंसक आंदोलन था लेकिन इस बार अहिंसा की प्रतिमूर्ति स्वयं महात्मा गांधी को भी एक एक युद्ध के सेनापति की भांति कहना पड़ा ‘करो या मरो’ कदाचित स्वयं महात्मा गांधी तक को यह अनुमान नहीं होगा कि उनके एक करो या मरो कहने का कितना व्यापक प्रभाव पड़ेगा।इस एक नारे ने गांधीवादी स्वतंत्रता सैनानियों को भी क्रांतिकारियों की भांति आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया अतः अंततः भारत छोड़ो आंदोलन अंतिम गांधीवादी आंदोलन के रूप में अत्यंत निर्णायक सिद्ध हुआ। जिसमें कई क्रांतिकारियों को अपने प्राणों की आहुति तक देनी पड़ी। जैन धर्म एवं गांधीवाद दोनों के मूल प्रेरक तत्व के रूप में अंहिसा का महत्वपूर्ण स्थान है।किन्तु जब बात मातृभूमि की आजादी की लड़ाई की हो तो एक ऐसा क्रांतिकारी जो दोनों ही का अनुयायी था *दुष्ट गोरों की बंदूक की गोलियों के आगे अपना चट्टानी सीना तान मातृवेदी के लिए अपना रक्त बहाने से पीछे नहीं हटा। ऐसा ही वीर योद्धा का नाम होता है अमर बलिदानी वीर उदय चंद जैन।*
🌹🌹🌹🌹🇮🇳
*उदय चंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को मध्य प्रदेश के प्राचीन नगर मण्डला में हुआ ।* बालक उदयचंद मेधावी छात्र तो थे ही साथ ही अपनी उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता के कारण वे छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये। बचपन से ही वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एक ओर पढ़ाई तो दूसरी तरफ खेलकूद में भी वह काफी सक्रिय थे। अपने बलिष्ठ और ऊंचे कद की वजह से वह खेलों में भी सदैव अव्वल रहे जिनमें हाकी उनका प्रिय खेल था।
🌹🌹🌹🌹🇮🇳
*1942 के आन्दोलन के दौर में सारा देश जब राष्ट्रभक्ति की प्रचंड धारा में सराबोर था ।’करो या मरो का नारा बुलन्द हो भावी आजादी की राह तय कर रहा था ।* इन परिस्थितियों में मण्डला नगर भी जैसे पीछे रहता। 14 अगस्त 1942 को वहाँ पर भी श्री मन्नूलाल मादी और श्री मथुरा प्रसाद यादव के आह्वान पर जगन्नाथ हाई स्कूल के छात्रों ने हड़ताल कर दी । कक्षाओं का बहिष्कार किया गया । मात्र 19 वर्ष के उदय चंद जैन मैट्रिक के छात्र थे। उदय चंद जैन की उस समय राष्ट्रभक्ति का जज़्बा देखिए प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी गोपाल प्रसाद तिवारी अपने संस्मरण ‘मैंने देखी है उदयचंद जैन की शहादत’ में बड़े ही गर्व के साथ उनकी वीरगाथा का बखान कुछ इस प्रकार किया है कि “विद्यालय में जब चहुओर अफरातफरी मच गई ,जब लोग इधर उधर भागने लगे तब मैने श्री उदयचंद जैन से कहा कि-“कहीं ऊँचे स्थान पर खड़े होकर जनता को प्रदर्शन करते रहने को कहो, मै भीड़ में घुसकर लोगों को इकट्ठा करता हूँ।” यह सुन कर उदय चंद कुएं की पनघट पर चढ़ गये और जनता से शान्तिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने का अनुरोध करने लगे । उनकी ओजस्वी वाणी ने जादुई प्रभाव डाला एवं जनता पुनः इक्ट्ठी होकर नारे लगाने लगी। यह देख उप-जिलाधीश ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। हांलाकि वह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था किंतु समस्त प्रदर्शनकारियों के जोश को देख वह भयभीत हो गया। *तमाम प्रतिशोध के नेतृत्व को अपनें हाथों में ले वीर उदय चंद ने सिंहनाद करते हुए कमीज को फाड़ते हुए पुलिस को ललकारा कि–”गोली चला दी जाये, वे उसे अपने सीने पर झेलने के लिए तैयार है”। यह सुन दुष्ट गोरों की पुलिस ने बिना सोचे समझे गोली चला दी जो भारत माता के इस वीर सपूत के पेट को चीरते हुए शरीर में घुस गई। ‘भारत माता की जय’, तिरंगे झंडे की जय’ के साथ उदयचंद जमीन पर गिर पड़े ।* मातृभूमि के लिए अपने रक्त की आहुति देने वाले वीर सिंह का रक्त मानों मातृभूमि में मिल कर मातृभूमि से कह रहा हो कि तेरी आजादी के महायज्ञ में यह रक्त नहीं बल्कि एक आहुति है। उदय चंद को बचाने का ढोंग करते हुए पुलिस उदयचंद को अस्पताल ले गई । भीड़ भी अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। लोग पुलिस के खून के प्यासे हो उठे थे। उदयचंद को क्या पता था कि जिस 15 अगस्त 1942 की रात्रि को वह मृत्यु के इंतजार में तड़प रहे हैं । ठीक पाँच वर्ष बाद आज ही की रात उनकी एवं उनके जैसे असंख्य क्रांतिकारियों की रक्ताहुति आजादी की नई सुबह में परिवर्तित हो जाएगी। सारी रात तड़प- तड़प कर गुजारने के बाद *अगली सुबह 16 अगस्त 1942 को उदय चंद वीरगति को प्राप्त हो गये ।* तात्कालिक जिलाधीश गजाधर सिंह तिवारी ने उदयचंद के पिताजी सेठ त्रिलोकचंद से कहा कि शव का चुपचाप दाहसंस्कार कर दिया जाये। किन्तु क्रांतिकारी के राष्ट्रभक्त पिता इसका दृढ़तापूर्वक इसका विरोध किया। सारा नगर क्रोध की अग्नि से तप्त था। जब स्थानीय वकील असगर अली ने जब मण्डला और महाराजपुर के नागरिकों की और से स्थानीय प्रशासन को आश्वस्त किया कि शवयात्रा के जुलूस में हिंसा नहीं भड़केगी ।किन्तु यह शर्त भी रख दी कि पुलिस जुलूस में शामिल न हो अन्यथा खून-खराबा रोका नहीं जा सकेगा।
🌹🌹🌹🌹🇮🇳
मण्डला का वीर पुत्र भारत माता के लिए अपनें प्राणों की आहुति दे चुका था । सारा नगर एवं आसपास का क्षेत्र गर्व एवं क्रोध की मिश्रित अभिव्यक्ति के साथ शवयात्रा में शामिल हुए *मण्डला के इतिहास में इतनी बड़ी शवयात्रा कभी नहीं निकली थी।* कहा जाता है कि लगभग नौ हजार लोग उनकी शवयात्रा में शामिल थे। दूर दूर तक केवल लोगों का हुजूम ही नजर आता था। वह शहर जिसकी आबादी उस समय 12 हजार मात्र हो तो आप लोगों के जोश एवं जुनून का अनुमान लगा ही सकते हैं।
🌹🌹🌹🌹🇮🇳
आज भी मण्डला में उनकी यादों को तरोताजा करते कई महावत्पूर्ण स्थल हैं।इनमें उदय चौक पर त्रिकोणाकार लाल लाट (पत्थर) का *’उदय स्तम्भ’* एवं समीप ही नगर पालिका, मण्डला द्वारा निर्मित *’उदय प्राथमिक विद्यालय’* प्रमुख हैं।महाराजपुर में उनका समाधि स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष 16 अगस्त को मेला लगता है एवं इस महान पुण्यात्मा को याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है।
🌹🌹🌹🌹🇮🇳
*मातृभूमि सेवा संस्था मातृभूमि के इस वीर सपूत के महान बलिदान को शत शत नमन करती है।*
*नोट:-* लेख में कोई त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।
✍️प्रशांत टेहल्यानी
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9351595785* 🇮🇳