उत्तराखंड में अन्य प्रदेशों के आरक्षितों को नहीं मिलेगा आरक्षण लाभ,हाईकोर्ट निर्णय
उत्तराखंड में अन्य प्रदेशों के आरक्षितों को नहीं मिलेगा आरक्षण लाभ,हाईकोर्ट निर्णय
उत्तराखंड में किन महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल सकता है और किन्हें नहीं, इसको लेकर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया.
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उत्तराखंड हाईकोर्ट
नैनीताल 25 नवंबर 2025 : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि दूसरे राज्य की अनुसूचित जाति की महिलाएं, जो विवाह के उपरांत उत्तराखंड में बसी हैं, उन्हें राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा. न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने यह फैसला अंशु सागर और सहित कई अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया. कोर्ट ने माना कि आरक्षण का अधिकार क्षेत्र-विशिष्ट होता है और यह प्रवास के साथ स्थानांतरित नहीं होता.
याचिकाकर्ता अंशु सागर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की है. उनका विवाह उत्तराखंड के एक अनुसूचित जाति के युवक से हुआ था,वे जन्म से ‘जाटव’ समुदाय से हैं, जो उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति है.विवाह के बाद उन्होंने उत्तराखंड के जसपुर से जाति प्रमाण पत्र और स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त किया और सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक भर्ती के लिए आरक्षण का दावा किया,जिसे विभाग ने अस्वीकार कर दिया था.
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि 16 फरवरी 2004 और अन्य शासनादेशों के अनुसार आरक्षण का लाभ केवल उत्तराखंड के मूल निवासियों के लिए है.पड़ोसी राज्यों के निवासी,भले ही वे उत्तराखंड से जाति प्रमाण पत्र बनवाने में सफल हो जाएं,सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के अधिकारी नहीं होंगे.तर्क था कि जाति श्रेणी जन्म से तय होती है,विवाह से नहीं.
अदालत ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के ”मैरी चंद्र शेखर राव” और ”रंजना कुमारी बनाम उत्तराखंड राज्य” जैसे प्रमुख फैसलों का संदर्भ दिया. इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह सिद्धांत स्थापित किया है कि संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में अनुसूचित जाति/जनजाति की सूची “उस राज्य के संबंध में” होती है.इसलिए एक राज्य में अनुसूचित जाति माना जाने वाला व्यक्ति दूसरे राज्य में स्वतः ही उस श्रेणी में नही आयेगा.
फैसले में स्पष्ट किया गया कि प्रवास,चाहे वह स्वैच्छिक हो या अनैच्छिक (जैसे शादी के कारण),किसी व्यक्ति को दूसरे राज्य में आरक्षण का अधिकार नहीं देता.कोर्ट ने कहा कि यदि प्रवासियों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है,तो यह उस राज्य के मूल अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा. एक राज्य का आरक्षित वर्ग दूसरे राज्य में सामान्य वर्ग माना जाएगा.
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि भले ही दोनों राज्यों (मूल राज्य और प्रवास वाले राज्य) में जाति का नाम समान हो,फिर भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता.अंशु सागर के मामले में भले ही ‘जाटव’ या ‘वाल्मीकि’ जाति दोनों राज्यों में अनुसूचित जाति सूची में है,फिर भी उत्तर प्रदेश में जन्मी महिला उत्तराखंड में अनुजा कोटे की अधिकारी नहीं हो सकती.जाति प्रमाण पत्र जारी होना भी सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के फैसलों की कठोरता न्यून नहीं कर सकता.
इस आधार पर कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मांगी गई राहत अमान्य कर उनकी रिट याचिकाएं निरस्त कर दी गईं.यह फैसला भविष्य में अन्य राज्यों से आकर उत्तराखंड में बसने वाले अभ्यर्थियों के लिए एक स्पष्ट निर्णय है.
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